विज्ञान


विज्ञान खोजों का व्यापक स्पेक्ट्रम

डॉ.कपूरमल जैन 
 

किसी भी वैज्ञानिक क्रिया-कलाप का उद्देश्य किसी घटना को समझने, किसी वस्तु को पाने की क्रिया को विकसित करने, पदार्थों के नये गुणों को खोजने, प्रकृति में छिपे अंतर्संबंधों कीे खोजने, किसी सिद्धांत को विकसित अथवा विस्तारित करने, किसी वस्तु या यंत्र को आविष्कृत करने आदि के लिए होता है। वैज्ञानिकों की खोज-यात्रा के दौरान जब ‘यूरेका-क्षण’ आते हैं तब उन्हें अपार आनन्द की अनुभूति होती है। यह वास्तव में सृजन से मिला सुख होता है। इस दौरान कई ‘मजेदार घटनाएं घटती हैं। इन घटनाओं को आधार मान कर खोजों का एक व्यापक स्पेक्ट्रम प्राप्त होता है। आइये, इस स्पेक्ट्रम से परिचित होने के लिए हम वैज्ञानिक-इतिहास में गोता लगाते हैं। 

तर्कजन्य खोजें

  • लुइस पास्चर मादक पेय की मेन्यूफेक्चरिंग से जुड़ी शराब, बीयर आदि के खट्टा होने या दूध के फटने जैसी समस्याओं पर शोध कार्य कर रहे थे। इनके कारण ज्ञात नहीं थे और कम्पनियों को बहुत नुकसान होता था। पास्चर ने ‘कीटाणु सिद्धांत’ को विकसित कर अपने तर्कजन्य प्रयोगों से इनके कारणों को ‘बैक्टीरिया’ की उपस्थिति के रूप में खोजा। इसके बाद उन्होंने निर्जीवीकरण या पास्चराइजेशन की विधि खोजी जिससे द्रव को खराब होने से बचाया जा सकता है। 
  • स्पेक्ट्रम के लाल सिरे के पास अदृश्य अवरक्त किरणों की खोज के बाद जोहान विलहेल्म रित्तर स्पेक्ट्रम के दूसरे सिरे के आगे भी अदृश्य विकिरणों की उपस्थिति की संभावना देख रहे थे। लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी। ऐसे में उनका ध्यान रसायन के क्षेत्र में हो रहे उस अनुसंधान पर गया जिसमें प्रकाश की उपस्थिति में चांदी के कुछ लवण लाल प्रकाश की अपेक्षा बैंगनी-प्रकाश से अधिक प्रभावित होते हैं। इस जानकारी के बाद रित्तर ने प्रयोग करना आरंभ किये तथा बैंगनी प्रकाश से परे अदृश्य स्पेक्ट्रल क्षेत्र में उपस्थित पराबैंगनी विकिरणों की खोज की।
  • विक्टर फ्रेंट्ज हैस बीसवीं सदी के आरंभ में वैज्ञानिकों को एक अवलोकन समझ के स्तर पर चुनौती प्रस्तुत कर रहा था। वह आवेशित इलेक्ट्रोस्कोप के अपने आप विसर्जित होने से जुड़ा था। इसका संबंध निश्चित ही हवा में आवेशित कणों की मौजूदगी से था। लेकिन हवा में ये किस तरह आ रहे होगे, इसका कारण ज्ञात नहीं हो पा रहा था। वैज्ञानिकों ने सभी संभावित कारणों पर विचार किया। उस समय रेडियो एक्टिविटी की खोज हुई थी। अतः वैज्ञानिकों को इसमें इसका प्रमुख कारण नजर आ रहा था। चूँकि रेडियोएक्टिव पदार्थ खनिज के रूप में धरती में छिपे होते हैं, अतः वैज्ञानिकों को लगा कि आवेशित इलेक्ट्रोस्कोप के विसर्जित होने की दर को धरती में गहराई के साथ बढ़ते हुए मिलना चाहिए। लेकिन ऐसा कुछ मिल नहीं पाया रहा था। ऐसे में हैस ने सोचा कि अब धरती सतह के ऊपर की तलाश की जाए। धरती-सतह से ऊपर जाने के लिए गुब्बारों का प्रयोग करने का विचार उनके मन में उठा। ऊँचाई के साथ ताप में कमी और ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। लेकिन हैस ने तमाम विपरीत स्थितियों का सामना करते हुए प्रयोग करने का निश्चय किया और अंततः निरावेशन के कारण के रूप में ‘कॉस्मिक किरणों’ (अंतरिक्ष से आने वाली आवेशित कणों से बनी किरणों) की खोज की।
  • वैज्ञानिक हंस ओर्स्टेड ने बताया कि विद्युत-धारा से चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण हो जाता है। इस प्रेक्षण से मायकल फैराडे बहुत उत्तेजित हुए। वे सोचने लगे कि जिस तरह विद्युत से चुम्बकत्व की प्राप्ति होती है क्या उसी तरह चुम्बकत्व से विद्युत की प्राप्ति नहीं हो सकती? उन्होंने इस सोच को आधार बनाकर भिन्न-भिन्न तरीकों से कई प्रयोगों को अनेक बार किया लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी। एक दिन अचानक उन्होंने देखा कि गेल्वेनोमीटर से सम्बद्ध तार से बने लूप के पास चुम्बक लाने अथवा दूर ले जाते समय लूप में विद्युत प्रवाहित होती है जिसे गेल्वेनोमीटर के विक्षेप से पहचाना जा सकता है। इस तरह इस अवलोकन ने वैज्ञानिकों को विद्युत उत्पादन हेतु एक सर्वथा नवीन रास्ता सुझा दिया और वह यह कि या तो प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में चालक को रखकर अथवा समान चुम्बकीय क्षेत्र में चालक को घुमाकर विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।
  • अलबर्ट आईंस्टीन जब परमाणु द्वारा किये जाने वाले अवशोषण व उत्सर्जन की प्रक्रिया का अध्ययन कर रहे थे तब उनके संज्ञान में आया कि परमाणु उत्तेजित अवस्था में अत्यल्प समय तक ही ठहरता है तथा अपनी मूल अवस्था में लौट आता है। इसीलिए किसी भी गैसीय नमूने में परमाणुओं की ‘पापुलेशन’ अपनी मूल अवस्था ही अधिकतम रहती है। तभी उनके मन में एक तर्क उठा कि अगर किसी नमूने में परमाणु अपनी किसी उत्तेजित अवस्था में अधिक देर तक ठहरें तो क्या इसका उलटा नहीं हो सकता यानि उत्तेजित परमाणुओं की पापुलेशन मूल अवस्था में रहने वाले परमाणुओं से अधिक नहीं हो सकती? इसे आधार बना कर उन्होंने ‘उद््दीपित उत्सर्जन’ की जो कल्पना की उसने ‘लेसर’ की संभावना को जन्म दिया।
  • लुइस डिब्रॉगली को प्लांक और आईंस्टीन के ऊर्जा संबंधों ने चकित प्रभावित किया। वे इस बात से चकित थे कि ऊर्जा का संबंध एक के सूत्र में जहाँ तरंग के गुण ‘आवृत्ति’ से है तो वहीं दूसरे में यह कण के गुण ‘द्रव्यमान’ से। वे आईंस्टीन द्वारा प्रतिपादित विकिरणों के ‘दोहरे स्वभाव’ वाली अवधारणा से भी प्रभावित थे। उनका ध्यान प्रकृति में व्याप्त ‘सममिति’ पर गया। वे सोचने लगे कि जब विकिरणों का दोहरा स्वभाव हो सकता है तो पदार्थों का भी होना चाहिए। वैसे यह तार्किक सोच से निकला बड़ा ही अजीबोगरीब निष्कर्ष था जो उन्हें स्वयं भी चौंका रहा था। लेकिन, विकिरणों के दोहरे स्वभाव की प्रायोगिक पुष्टि हो चुकी थी। अतः अपने तर्क पर भरोसा कर उन्होंने ‘पदार्थ-तरंग’ की परिकल्पना प्रस्तुत की। इस तरह आधुनिक भौतिकी के सृजन का एक ठोस आधार तैयार हुआ। 
  • क्लार्क मैक्सवेल ने तत्कालीन शोध कार्यों पर नजर डाली तथा अपना तार्किक चिंतन आरंभ किया। उन्होंने एम्पियर नियम को संशोधित कर ‘विस्थापन धारा’ की अवधारणा रखी। मैक्सवेल ने अपने तर्क के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि ‘हर वह स्थान जहाँ दोलनीय या त्वरित आवेश उपस्थित होगा वह विद्युत तथा चुम्बकीय विक्षोभों की उत्पत्ति का केन्द्र बन जायेगा’ जिससे विद्युत-चुम्बकीय तरंगें संचरित होने लगेंगी। अपने इस कार्य का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि प्रकाश तरंगें एक प्रकार की विद्युत-चुम्बकीय तरंगें ही हैं। इस तरह प्रकाश की विद्युत चुम्बकीय प्रकृति प्रकट हो गई। आगे चल कर इसने संचार क्षेत्र में तकनीकी क्रांति की नींव रखी।   
  • सन १८८५ तथा बाद के वर्षों में स्पेक्ट्रमों में उपस्थित स्पेक्ट्रल रेखाओं के संगत विकिरणों को आवृत्ति के रूप में पहचानने के अलावा अवशोषित अथवा उत्सर्जित रेखाओं के बीच की दूरियों को नापने की एक सर्वथा नयी बात बामर नामक एक ब्रितानी वैज्ञानिक ने सोची। उन्होंने हाइड्रोजन के दृश्य-स्पेक्ट्रम में उपस्थिति रेखाओं के बीच की दूरियों को माप कर एक ऐसा गणितीय सूत्र निकाला जिससे अवशोषित अथवा उत्सर्जित प्रकाश की आवृत्तियों को प्राप्त किया जा सके। बामर के इस कार्य से हाइड्रोजन की दृश्य-स्पेक्ट्रल रेखाओं का परिचय एक गणितीय शंृखला के रूप में हुआ जिसे ‘बामर शंृखला’ के नाम से जाना गया। शीघ्र ही यह कार्य पहले बोहर के परमाण्विक मॉडल का और आगे चल कर हैजनबर्ग की क्वांटम यांत्रिकी का आधार बना।

अवलोकनों पर आधारित उद्गम से निकले तर्क से हुई खोजें

  • एक बार आयजक न्यूटन ने पेड़ से एक सेब गिरते हुए देखा। इस घटना ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। सोचने लगे कि आखिर यह फल नीचे ही क्यों गिरा? इस पर वे तब तक सोचते रहे जब तक कि ‘गुरूत्वाकर्षण’ के रूप में उसका कारण नहीं जान लिया। 
  • एक बार क्रिश्चियन आइजकमान को एक समस्या से रूबरू होना पड़ा। समस्या यह थी कि अलग-अलग रखने के बावजूद मुर्गियाँ जुलाई से नवम्बर महिनों के बीच बेरी-बेरी रोग की चपेट में आ गई। लेकिन इसके बाद फिर बीमारी गायब हो गई। आइजकमान ने नोट किया कि इस दौरान रसोइया बदल गया था और पॉलिश किया हुआ चावल मुर्गियों को खिलाया गया था। इसके पूर्व उन्हें बिना पॉलिश का चावल खिलाया जाता रहा था। अब उनके मन में विचार उठा कि कहीं इन चावलों में अंतर का संबंध तो बीमारी से नहीं है? इस विचार के बाद उन्होंने पॉलिश के दौरान अलग किये गये पदार्थ को बीमार मुर्गियों को खिलाया तो वे मुर्गियाँ ठीक होने लगी। इसे देख कर वे खुश हो गये क्योंकि इससे उन्हें अपने अनुमान की पुष्टि होते मिली। इस तरह तत्कालीन मान्यता के विपरीत बैक्टीरिया की जगह भोजन में छिपा कोई पदार्थ बीमारी का कारण बन कर सामने आया। रासायनिक विश्लेषण से पता चला कि यह पदार्थ ‘विटामिन-बी’ है। इस तरह रसोइये के काम पर खोजी नजर रखने के कारण यह वैज्ञानिक खोज हुई।
  • छपाई उद्योग में काम करते हुए विलिस हेविलैंड कैरियर ने काम के दौरान देखा कि उनके कारखाने के काफी नमी होने से कागज गीले हो जाते हैं जिससे छपाई की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इससे बचने का आयडिया उनके मन में रेल्वे प्लेटफार्म पर घूमते हुए ‘कोहरे’ को देख कर आया। ‘कोहरे’ के बनने की प्रक्रिया को समझने के दौरान उनके मन में एक ऐसी मशीन तैयार करने का विचार आया जो हवा को इतना ठंडा रख सके जिससे वातावरण की नमी उस पर संघनित हो कर बैठ जाये और कमरा नमी से मुक्त हो जाए। आगे चल कर कैरियर की यह मशीन छापाखाने से निकल कर ‘एअर कंडीशनर’ के रूप में घरों और ऑफिस में पहुँच गई।
  • जोहान्नेस गुटेनबर्ग को प्रिंटिंग के लिए जरूरी साँचे को बनाने के लिए विचार एक स्वर्णकार से मिला। सुनार लोग सोने जैसी नर्म धातुओं से आभूषणों का निर्माण करते हैं। अपने कार्य के दौरान वे आभूषणों पर अपने प्रातिनिधिक लक्षण (हॉलमार्क) को गहरा कर छोड़ देते हैं। इसे बनाने के लिए वे एक साँचे की सहायता से पैटर्न के रूप में पंच कर देते हैं। साँचे पर यह पैटर्न उभरा रहता है जो कुछ भी हो सकता है। गुटेनबर्ग ने वर्णमाला के अक्षर के साँचे बना कर प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किया।
  • एंटोनी वेन ल्यूवेनहॉक कपड़े की एक दुकान पर काम करते थे। वहाँ वे ‘लैंस’ से कपड़े की परख करते थे। इसी से उनके मन में अन्य चीजों को देखने का विचार आया। शीघ्र ही वे जीवाणु और रक्त कोशिकाओं को देखने में सफल हो गए और दुनिया को जैव-जगत की आंतरिक संरचना को दिखाने में सफल हो गए।
  • अपनी समुद्री यात्रा के दौरान सी.वी.रमन को समुद्र के नीलेपन ने जिज्ञासु बनाया। उन्होंने सिलसिलेवार प्रयोग कर उस समय की मान्य धारणाओं को तोड़ते हुए अणुओं से प्रकाश के प्रकीर्णित होने से संबंधित एक विशिष्ट प्रभाव को खोजा जिसे आज हम ‘रमन प्रभाव’ को खोजा। आज रमन प्रभाव ‘रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी’ बन कर अणुओं की संरचना का पता लगाने का विश्वसनीय साधन बन कर सामने आया है।
  • १९४१ में स्विस इलेक्ट्रिकल इंजीनियर जार्ज मेस्ट्रल ने जंगल में घूमते हुए देखा कि कोक्लबर एक प्र्रकार की कटीली वीड है जो उनके पेंट और कुत्ते के बालों से आसानी से चिपक रही है। उन्होंने ध्यान से देखा तो पाया कि इस बीड में छोटे-छोटे हुक हैं जो कपड़ों और बालों में आसानी से अटक जाते हैं। इस अवलोकन के बाद उन्होंने विचार किया कि अगर कृत्रिम तरीके से एक सतह पर ऐसे लचीले हुक बना लिए जाएं और इसी तरह की दूसरी सतह पर लचीले लूप हों तो इसका लाभ लिया जा सकता है। इस तरह उन्होंने ‘वेलक्रो’ का आविष्कार कर डाला। आज वेलक्रो का उपयोग जूतों, घड़ी के बेल्ट, अंतरिक्ष में शून्य-ग्रेविटी पर पदार्थों और पैकेट्स को अपनी जगह बनाये रखने आदि में होता है। 
  • एक बार सी.टी.आर। विल्सन सूर्य की किरणों से चमकने वाली बारीक-बारीक जल की बूँदों को हवा में नृत्य करते हुए देख रहे थे। इस घटना ने उन्हें प्रयोगशाला में ‘बादल’ बनने की प्रक्रिया का अध्ययन करने को प्रेरित किया। उन्होंने देखा कि धूल के कणों पर जल-वाष्प के संघनित होने से बादल तो बनते ही हैं लेकिन, धूल-रहित कक्ष में भी बादल बन सकते हैं अगर उसमें आवेशित कण उपस्थित हों। इसतरह इस सावधानीपूर्ण किये गए अवलोकन के बाद उन्होंने मेघ-कक्ष (क्लाउड चैम्बर) का आविष्कार कर लिया जिसका आरंभिक उपयोग एक्स-किरणों की आयनित करने की क्षमता के अध्ययन में तथा बाद में कॉस्मिक किरणों के अध्ययन में हुआ। कार्ल एंडरसन ने इस की सहायता से कॉस्मिक किरणों के अध्ययन के दौरान पॉजिट्रॉन के रूप में ‘प्रतिपदार्थ’ की खोज कर ब्रह्याण्ड की संरचना को समझने की दृष्टि में नये आयाम जोड़े। 
  • डोनाल्ड ए. ग्लेसर मूल कणों का अध्ययन कर रहे थे। उन्हें इस अध्ययन में प्रचलित क्लाउड चैम्बर के उपयोग से दिक्कतें आ रही थी। क्योंकि इसमें अध्ययन के लिए प्रवेश करने वाले ‘आवेशित कण’ हवा से गुजर कर आगे चल कर चैम्बर में प्रयुक्त धातु की प्लेट से टकराते थे। इससे पूरी घटना को रिकार्ड करने में समस्या आती थी। दूसरी बड़ी समस्या उन्हें इस चैम्बर को हर घटना के बाद प्रयोग के लिए रि-सेट करने के रूप में मिल रही थी। उन्होंने देखा कि चैम्बर में प्रवेश करने वाले कणों के समयांतराल की तुलना में यह रि-सेट करने में लगने वाला समय बहुत अधिक होता है। अतः उन्होंने इसके विकल्प के बारे में सोचा। उन्हें ‘बुलबुले’ ने प्रेरित किया। इसके बनने की प्रक्रिया को समझ कर उन्होंने मूल कणों के अध्ययन के लिए बेहतर संसूचक ‘बबल चैम्बर’का आविष्कार कर डाला।
  • अपनी किशोर वय में फिलो फार्नस्वर्थ ने एक दिन अपने खेत पर देखा कि लाइन दर लाइन आगे-पीछे चलते हुए खेत से आलू निकाले जाते हैं। इससे उन्हें प्रेरणा मिली कि इस तरह कैथोड-रे ट्यूब से निकलने वाले एक इलेक्ट्रॉन बीम की सहायता से किसी फोटो को भी लाइन-दर-लाइन स्केन किया जा सकता है। स्कूल पहुँचने पर उन्होंने अपने शिक्षक से इस पर चर्चा की तथा काम करने की अनुमति चाही। शिक्षक से प्रोत्साहन पा कर उन्होंने काम शुरू किया तथा आधुनिक टेलीविजन की पहली जनरेशन ‘कैथोड-रे ट्यूब आधारित टेलीविजन’ का आविष्कार हो गया। वैसे आज यह प्रचलन से बाहर होता जा रहा है क्योंकि इसके स्थान पर नये एल.सी.डी। तथा प्लाज्मा पर्दों वाले टेलीविजन आ गये हैं।
  • फ्रेडरिक विलियम हर्षेल यह जानना चाहते थे कि सूर्य के प्रकाश में सबसे अधिक गर्मी देने वाला प्रकाश किस रंग का हो सकता है? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हर्षेल ने सर्वप्रथम न्यूटन द्वारा अपनाई गई तकनीक का उपयोग कर सूर्य के प्रकाश का स्पेक्ट्रम प्राप्त किया तथा फिर विभिन्न रंगों के प्रकाश के ऊष्मीय-प्रभावों को मापा। इस अध्ययन से उन्हें पता चला कि बैंगनी-प्रकाश की तुलना में लाल-प्रकाश अधिक गर्म होता है। अब यूँ ही कौतुहलवश उन्होंने स्पेक्ट्रम के लाल सिरे के पास अदृश्य क्षेत्र में ऊष्मीय प्रभाव को मापना चाहा। वे आश्चर्यचकित रह गये यह देख कर कि लाल प्रकाश की तुलना में यहाँ बहुत अधिक ताप मिल रहा है। हर्षेल के लिए यह प्रेक्षण अचंभित कर देने वाला था क्योंकि वहाँ कोई प्रकाश उपस्थित ही नहीं था। इस तरह हर्षेल को स्पेक्ट्रम के इस भाग में अधिक ऊष्मा देने वाले विकिरण मिले और ‘अवरक्त’ या ‘इन्फ्रारेड’ विकिरणों की खोज हुई। 

असावधानी, गलती या दुर्घटना के दौरान हुई खोजें

  • फ्रांस के रसायनज्ञ बेनेडिक्टस को अपने एक प्रयोग में सेलूलोस नाइट्रेट की आवश्यकता थी। उनकी प्रयोगधाला में करीब १५ वर्षों से इस रसायन से भरी एक बाँटल थी। वे बॉटल को उठा रहे थे कि असावधानीवश वह हाथ से छूट कर फर्श पर गिर गई। लेकिन, आश्चर्य वह चटक तो गई लेकिन उसके सभी टुकड़े आपस में चिपके रहे। वे सोचने लगे कि हो सकता है इस रसायन की वाष्प ने बॉटल की भीतरी दीवार पर सेल्यूलाइड की एक परत बना दी हो। अब उनके दिमाग में आइडिया आया कि अगर काँच की दो प्लेटों के बीच सेल्यूलाइड की एक पतली परत बना दी जाए तो ‘न टूटने वाला ग्लास’ बनाया जा सकता है जो सुरक्षा के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। इसतरह अचानक एक असावधानी से न टूटने वाले ग्लास का आविष्कार हो गया।
  • एक समय में डामर यानि कोल-टार के रूप में वैज्ञानिकों को बहुत ही कीमती कच्चा माल हाथ लग गया था। उससे और क्या और प्राप्त किया जा सकता है, इस पर १८७९ में रूस के रसायनविद कांस्टनटिन फेहलबर्ग डामर और उसके साथ फास्फोरस, अमोनिया आदि के प्रयोग कर रहे थे। एक बार वे प्रयोगशाला से काम निपटा कर भूलवश बिना हाथ घोये ही अपने घर लौट आये। अचानक मुँह में हाथ गया तो बहुत मीठा लगा। वे हतप्रभ रह गये। यानि, आज काम के दौरान उन्होंने जो रसायन के रूप में प्राप्त किया है वह एक कृत्रिम मधुरक है। यह ही सेकरिन है, दुनिया का पहला कृत्रिम मधुरक! 
  • विल्सन ग्रेटबेच पशुओं के व्यवहार पर कार्य कर रहे थे। इसके लिए वे रक्तचाप, हृदय की पम्प करने की दर तथा मस्तिष्क तरंगों पर अपने वैज्ञानिक प्रयोग करने में जुटे थे। इस बीच वे दो सर्जनों से मिले जिनसे उन्होंने उन मरीजों पर चर्चा की जिनकी हृदय की धड़कन अनियमित रहती है और इसका असर उनके जीवन पर बड़े गंभीर तरीके से पड़ता है। कई बार तो उनकी मौत तक हो जाती है। यह बात उनके दिमाग में बैठी रही। कुछ दिनों बाद वे इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हो गये। यहाँ वे हृदय की तीव्र चलने वाली धड़कनों को रिकार्ड करने के लिए आवश्यक दोलित्र के लिए एक परिपथ डिजाइन कर रहे थे। इसके लिए जिस प्रतिरोध को प्रयुक्त करना था, भूल से उसके बदले में कोई दूसरे मान का लग गया। परिपथ ने काम करना आरंभ तो किया लेकिन उन्होंने देखा कि वह परिपथ १ण्८ मिलीसेकंड की पल्सेस दे रहा है। फिर एक-एक सेकंड रुकते हुए उसी पैटर्न का दोहराने लगा। ग्रटबेच ने पैटर्न को पहचान लिया। यह वही जो उन्होंने अपने सर्जन मित्रों के साथ चर्चा के दौैैरान देखा था। इसके बाद उन्होंने छोटा तथा आसानी से प्रयोग में लाये जा सकने वाले ‘पेसमेकर’ का निर्माण किया।  
  • १९२८ में बैक्टीरियोलॉजिस्ट अलेक्जेंडर फ्लेमिंग इंफ्लुअंजा के वायरस पर कार्य कर रहे थे। इस दौरान एक बार वे अपनी गंदी प्लेट वगैरह को बिना साफ किये ही छुट्टी पर चले गये। लौटे तो देखा कि पेट्री-डिसेस पर फफूंद आ गई है जिसने उनके स्टेफिलोकोक्कस कल्चर को संदूषित कर दिया है। पर, उन्होने देखा कि फफूंद के पास बेक्टीरिया पैदा ही नहीं हो रहा था। फफूंद ने उन्हें मार दिया था। वे चकित रह गये इसे देख कर। फफूंद में पेनीसिलिन था। इस तरह फ्लेमिंग की लापरवाही से पेनीसिलिन की खोज हो गई। 
  • १८३९ में चार्ल्स गुडइयर रबर पर प्रयोग कर रहे थे। आज उन्हें हम ‘रबर मेन’ के नाम से जानते हैं। उस समय सारा रबर उद्योग खतरे में और बंद होने के कगार पर था क्योंकि रबर गरमी में पिघल कर एक बहुत ही अरूचिकर गंध उत्पन्न करता है। गुडईयर ऐसा रबर बनाना चाहते थे जो ताप की मार से बचने वाला हो। अब उन्होंने रबर के गुणों के बारे में जानकारियाँ एकत्रित करना शुरू की। इसी खोजबीन के दौरान उन्हें पता चला कि रबर में विभिन्न रसायनों को मिला कर नए प्रकार के रबर का निर्माण किया जाता है। गुडईयर को रोशनी की किरण दिखाई देने लगी। भोजन बनने के बाद वे किचन को रोज प्रयोगशाला में बदल देते थे और अपनी खोज में जुट जाते। एक बार अपने रबर के पर्दे को पेंट करते समय एक गलती की जिससे उस पर अलग रंग उभर आया। इसे मिटाने के लिए उन्होंने सल्फ्यूरिक अम्ल का इस्तेमाल किया। अम्ल ने न सिर्फ उस रंग को ही मिटाया वरन् रबर के रंग को भी बदल दिया। पर्दा भद्दा दिखने लगा। गुस्से में उन्होंने पर्दे को ही नीचे फैंक दिया। अगले दिन उन्हें कुछ सूझा। उस पर्दे को पुनः ध्यान से देखा तो पाया कि पर्दे की वह जगह कठोर हो गई है। वे सोच में डूब गए कि क्या यह अम्ल ही वह है जिसकी तलाश में वे इतने समय से थे? अब उन्होंने अपने प्रयोगों की एक शृखंला आरंभ की। प्रयोगों के दौरान उन्होंने देखा कि अम्ल ने रबर को कठोर ही नहीं बना दिया बल्कि उसने उसे ऊष्मारोधी भी बना दिया। एक दिन उन्होंने टर्पेंटाइन में बने रबर के घोल को सल्फर मिला कर उबाला। फिर, प्राप्त रबर के एक टुकड़े को प्लेट में रखते समय गलती से वह छूट कर चूल्हे की आग में गिर गया। जब उन्होंने इसे बाहर निकाला तो देखा कि वह रबर की तरह पिघला नहीं बल्कि चमड़े की तरह जल गया। लेकिन ध्यान से देखने पर उन्हें इसी टुकड़े में रबर की एक लाईन दिखाई दी जो मनमाफिक अपेक्षित गुणों को धारण किए हुए थी। रबर की यह लाईन लचीली भी थी और कठोर होने के साथ ही ऊष्मारोधी भी। इस तरह अचानक उन्हें वह रबर मिल गया जो उन्हें सिलसिलेवार प्रयोगों के दौरान भी नहीं मिल सका था। 
  • स सेन-डिआगो स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के रसायन के स्नातक छात्र जेमी लिंक सिलिकॉन चिप पर कार्य कर रहे थे। एक प्रयोग के दौरान दुर्घटनावश उनकी सिलिकॉन चिप गिर कर चकनाचूर हो गई। यह प्रयोग की दृष्टि से बहुत बुरी स्थिति थी। लेकिन उन्होंने देखा कि उस चिप के यहाँ-वहाँ बिखरे अत्यंत सूक्ष्म धूल जैसे कण भी सिग्नल को संप्रेषित कर रहे हैं। उन्हें लगा जैसे ये सूक्ष्म सेंसर का कार्य कर रहे हैं। इस तरह दुर्घटना के बाद उन्हें जो अचानक अनजाने में मिला इससे उन्हें दुनिया को बदलने का रास्ता दिखाई दिया। इन धूल जैसे कणों में उन्हें अनुप्रयोगों हेतु एक जबर्दस्त क्षमता नज़र आई। इससे अत्यंत सूक्ष्म आकार के सेंसर, रोबोट तथा अन्य उपकरणों को बनाने का रास्ता खुलता नज़र आया। इस तरह से तैयार यह धूल सामान्य धूल नहीं बल्कि स्मार्ट धूल है। इसे सूक्ष्म सेंसर और रोबोट के रूप में प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह वास्तव में यह ‘मेम’ (माइक्रो-इलेक्ट्रोमेकेनिकल सिस्टम) है जो प्रकाश, ताप, नमी, कम्पन, दाब, त्वरण, चुम्बकीय क्षेत्र, रसायन वाष्प आदि को पहचान सकता है। इस क्षमता से परिचित होने के बाद अतिशीघ्र ही इसके कई अनुप्रयोग सामने आने लगे। इसमें मेमोरी, माइक्रोप्रोसेसर, रेडियो रिसिवर व ट्रांसमीटर होते हैं। ये एक वायरलेस कम्प्यूटर नेटवर्क से जुड़े रहते हैं। एक अनुप्रयोग में यह स्मार्ट धूल ट्यूमर कोशिकाओं पर आक्रमण करने और उन्हें नष्ट करने में प्रभावी भूमिका निभाती है। 

अचानक मिली रोशनी और हो गई खोजें

  • आर्किमिडिज अपने देश के राजा के मुकुट में प्रयुक्त सोने की शुद्धता को जाँचने की चुनौती से जूझ रहे थे। कोई रास्ता सुझायी नहीं दे रहा था। एक बार वे कुण्ड पर नहाने को पहुँचे। उन्होंने देखा कि जैसे ही वे कुण्ड में उतरे, पानी का तल उठने लगा। अचानक उनके दिमाग में बिजली कौंधी। उन्हें सोने की शुद्धता को जाँचने का आइडिया मिल गया। वे यूरेका, यूरेका चिल्लाते हुए शहर की ओर दौड़ने लगे। इस समय वे यह भी भूल गये कि वे निर्वस्त्र हैं। इस तरह उन्होंने न सिर्फ पदार्थों की शुद्धता को जानने का तरीका खोज लिया वरन् ‘उत्प्लावन के नियमों’ को खोज कर प्रकृति के एक रहस्य को भी उजागर कर दिया। 
  • अलफ्रेड नोबेल को अचानक हुए एक धमाके से प्रेरणा मिली। एक बार वे नाइट्रोग्लिसरीन का ट्रांसपोर्ट कर रहे थे। इस दौरान एक केन टूटी और इसमें से यह रसायन लीक होने लगा जिसे वहाँ रखे ‘रॉक मिक्सर’ द्वारा सोख लिया गया। इस मिक्सर में अचानक धमाका हुआ। इसी से नोबेल को विस्फोटक बनाने का आयडिया मिल गया।

इस तरह ‘तर्कजन्य खोजों’, ‘अवलोकनों पर आधारित उद्गम से निकले तर्कों से हुई खोजोंं’़, ‘असावधानी, गलती या दुर्घटना से हुई खोजों से बनने वाले इस आनन्द देने वाले स्पेक्ट्रम की एक झलक हमने देखी। इतिहास में गोता लगाने पर ऐसी कई और खोजें मिलती है। इस स्पेक्ट्रम के कई और क्षेत्र हैं जिनमें ‘अंतर्मन के अचानक प्रकाशित होने से मिलने वाली खोजें’, ‘स्वप्न से मार्गदर्शित खोजें’ और ‘सोच से परे मिलने वाली अनअपेक्षित खोजें’ शामिल हैं। 

 
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