विज्ञान


ई-क्रांति के कुछ पहलू

डॉ.वि.दि.गर्देे

मानव सभ्य्ाता के इतिहास में कुछ ऐसी क्रांतिय्ााँ हो चुकी हैं जिससे मानव सभ्य्ाता की प्रगति में बदलाव आय्ो। इसमें खेती की शुरुआत और उसका मनुष्य्ा की बसाहट पर परिणाम, धातु तथा फौलाद का उपय्ाोग, चक्र का आविष्कार, छपाई तथा प्रकाशन का आविष्कार, बारूद का आविष्कार, औद्योगिक क्रांति जिसमें मनुष्य्ा ने भापका उपय्ाोग अपनी मशीनी शक्ति  बढ़ाने के लिय्ो किय्ाा, ऐसे अनेक ऐतिहासिक परिवर्तन क्रांति के नाम से ही जाने जाय्ोंगे।
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से विद्युत संबंधित विज्ञान ने जो वृहत आविष्कार किय्ो। उनसे 20वीं शताब्दी के इलेक्ट्रॉनिक क्रांती की नींव रखी गई। 20वीं शताब्दी में दो बड़े महाय्ाुद्ध हुय्ो। पहला 1914.18 तथा दूसरा 1939.45। इन दोनों में जर्मनी ने शुरुआत की जिसके पास उच्च तकनीक विकसित थी।
य्ाह निष्चित ही एक दुःखद तथ्य्ा है कि तकनीक का ज्य्ाादा विकास महाय्ाुद्धों में शत्र्ाु पर विजय्ा पाने की लालसा से हुआ। स्वाभाविक था कि इस अनुसंधान की गति ज्य्ाादा थी और अंततः 1945 में अमेरिका ने हिरोशिमा-नागासाकी में आण्विक बम का उपय्ाोग किय्ाा।
इससे महाय्ाुद्ध समाप्त तो हुआ किन्तु अधिक अचूक और संहारक प्रक्षेपणास्त्र्ाों की होड़ चलती रही। द्वितीय्ा महाय्ाुद्ध के पश्चात् इलेक्ट्रॉनिक व्हाल्व की जगह ट्रान्जिस्टर ने ली जिससे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, रेडिय्ाो, वाय्ारलेस सेट य्ाह सब छोटे होने लगे।
1950 की दशक से सोविय्ात देश व अमेरिका में लगी अंतरिक्ष की होड़ में य्ाह आवश्य्ाक हो गय्ाा कि अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले उपकरण वजन में बहुतादि हल्के होने चाहिय्ो रक्षा सामग्री तथा अंतरिक्ष इन दोनों क्षेत्र्ाों में अर्थात् इलेक्ट्रॉनिक सामान के आकार तथा वजन को अधिकतम घटाना अत्य्ाावश्य्ाक हो गय्ाा इसी से अनुसंधान जुड़ा रहा। इस सबका परिणाम य्ाह हुआ कि इंटेग्रेटेड चिप वीएलएसआई विकसित हुय्ाीं जिससे कम्प्य्ाूटर, संचार माध्य्ाम, टेलीफोन आदि में क्रांतिकारी बदलाव आय्ो।
मुझ्ो अभी भी य्ााद है वह कम्प्य्ाूटर ‘डराल 2’ का कमरा, जहाँ 1964 में मैंने मॉस्को में पी-एचडी. के अभ्य्ाास हेतु कदम रखा, तो 5000 इलेक्ट्रॉनिक व्हाल्व का य्ाह कम्प्य्ाूटर 50ग40 फीट के कमरे में विराजमान था और क्षमता आज के पीसी से कम ही थी। गत 50 वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक क्रांति ने ने अपने करतब अनेक क्षेत्र्ाों में पेश किय्ो हैं। य्ाह तो हो गय्ाी ‘ई-क्रांति’।
ई-क्रांति के अनेक परिणाम (व सदुपय्ाोग, दुरुपय्ाोग) हमारे जीवन के सभी क्षेत्र्ाों में दिखाय्ाी दे रहे हैं। इस लिय्ो भारतीय्ा समाज में आय्ो परिवर्तनों में, प्रभाव में कुछ प्रमुख पहलुओं पर हम संक्षिप्त चर्चा करेंगे।
ई-क्रांति ने भारतीय्ा समाज के रहन सहन पर जो प्रभाव दिखाय्ाा उसमें प्रमुख हैं:

  •         दूर संचार तथा इंटरनेट
  •         भारतीय्ा रेल परिवहन,
  •         बैंक तथा आर्थिक क्षेत्र्ा
  •         अखबार, पत्र्ािकाओं, ई-मीडिय्ाा, टी.वी.

दूरसंचार: ई-क्रांति ने दूर संचार में आमूलचूल बदलाव किय्ाा। जहाँ भोपाल में 1973 तक नॉन ऑटोमेटिक टेलीफोन से काम चलता था वहाँ आज 2006 में एक से ज्य्ाादा टेलीफोन कंपनिय्ााँ आधुनिक प्रणाली के उपकरणों से मोबाइल, ब्रॉड बैंड, इंटरनेट सेवाय्ों उपलब्ध करा रही हैं।
आज भारत में 11 करोड़ मोबाइल कनेक्शन दिय्ो गय्ो हैं, और भी माँग बढ़ रही है।
दूरसंचार का मूल लक्ष्य्ा ‘आप जहाँ भी हों, संपर्क में रह सको’ य्ाह केवल ई-क्रांति ने संभव कर दिखाय्ाा है। साथ ही इन सेवाओं की कीमतों में भारी गिरावट आय्ाी है। 1996 में जब मोबाइल सेवाओं की शुरुआत हुई थी, तब एक मिनिट बात करने के 16 रुपय्ो लगते थे तथा मोबाइल सेट की कीमत 10-15 हजारों में थी। आज तरह-तरह के रंगीन सेट आय्ो हैं तथा देशभर में एक रुपय्ाा प्रति मिनिट से भी कम दरों में बात करना संभव है। मोबाइल सेट की उपलब्धिय्ााँ हर रोज बदल रही हैं, बढ़ रही हैं।
इंटरनेट भी अब अच्छी तरह से पाँव जमा चुका है। संचार, व्य्ाापार, ई-मेल ऐसे अनेक क्षेत्र्ाों में इंटरनेट की छाप है। य्ाह सब ई-क्रांति का परिणाम है।
भारतीय्ा रेल-परिवहन: भारतीय्ा रेल में कम्प्य्ाूटरीकरण के पहले अनेक कठिनाईय्ााँ आती थीं जिसका आज की य्ाुवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती थी। आज वहीं भारतीय्ा रेल से य्ाात्र्ाा करने हेतु ‘ई-टिकिट’ घर बैठे बनाता है। रिजर्वेशन के अलावा भारतीय्ा रेल ने कम्प्य्ाूटरीकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किये। ई-क्रांति ने केवल मुसाफिरों को ही लाभान्वित नहीं किय्ाा बल्कि रेल संगठन की उत्पादकता में भी भारी बदलाव किय्ाा। रेल के अतिरिक्त परिवहन में भी ई-क्रांति ने अनेक बदलाव किय्ो जैसे स्मार्ट कार्ड ड्राइविंग लाय्ासेन्स, इलेक्ट्रॉनिक रजिस्ट्रेशन कार्ड आदि।
बैंकिंग तथा आर्थिक क्षेत्र्ा: बैंकिंग में ‘24 घंटे बैंकिंग ए.टी.एम’, क्रेडिट कार्ड, कोर बैंकिंग य्ाह सब बैंक के कम्प्य्ाूटरीकरण की वजह से संभव हो सका है। इसमें सारी ब्रांचेस के कम्प्य्ाूटरों को जोड़ना, किसी बैंक के ए.टी.एम. कार्ड से किसी भी ए.टी.एम. बूथ से पैसे निकाल पाना अब संभव है। य्ाह केवल ई-क्रांति की देन है।
आर्थिक क्षेत्र्ा में स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार करना अब अनेक शहरों से, घर से करना संभव हुआ है जिससे रोज करोड़ों रुपय्ाों का कारोबार हो रहा है।
क्रेडिट कार्ड अभी इतने लोकप्रिय्ा नहीं हुए हैं, लेकिन इनकी संख्य्ाा बढ़ रही है और लोग इस ‘प्लास्टिक मनी’ का उपय्ाोग करना सीख रहे हैं। क्रेडिट कार्ड का उपय्ाोग केवल ई-क्रांति से ही संभव हुआ।
अखबार, दूरदर्शन तथा ‘ई-मीडिय्ाा’ इन सभी का अभूतपूर्व विस्तार केवल ई-क्रांति से संभव हुआ। आज 20-24 पृष्ठ के अखबार रंगीन छपाई के साथ एक साथ देश के 5 से 20 जगह तक प्रति दिन सुबह प्रकाशित किय्ो जाते हैं। य्ाह करिश्मा ई.क्रांति की देन है।
दूरदर्शन में जहां 25 साल पहले केवल एक दो दूरदर्शन चैनल थे वहाँ आज य्ाह आंकड़ा 200 तक पहुंच रहा है।  ई-मीडिय्ाा ने समाचार तथा मनोरंजन की दुनिय्ाा में आमूलचूल परिवर्तन किय्ाा है। मनोरंजन, संगीत, नृत्य्ा, नाटक जो राजा-महाराजों य्ाा बड़े शहरों का हक था आज ई-मीडिय्ाा, दूरदर्शन के माध्य्ाम से देहात और झ्ाुग्गी बस्ती तक पहुंच गय्ाा है। इसका सामाजिक आशय्ा अपने आप में महत्वपूर्ण है और विस्तृत चर्चा का विषय्ा है।
इस विषय्ा पर काफी बहस छिड़ चुकी है। ई-गवर्नेंस हेतु, ई-क्रांति की सर्वश्रेष्ठ तकनीक तो उपलब्ध है किन्तु हर शब्द के पीछे सिर्फ ‘ई’ लगाकर सभी लक्ष्य्ा प्राप्त नहीं हो सकते। केवल सरकारी दफ्तरों में कम्प्य्ाूटर लगाकर काम नहीं बन सकता। उसके पीछे बहुत क्रिय्ाात्मक सोच का आय्ाोजन य्ाोजना और विचार आवश्य्ाक है। सामान्य्ातः जहाँ कम्प्य्ाूटरीकरण के पहले काम सुचारू रूप से, पूर्णतः सकारात्मक विचार से चल रहा हो, वह कम्प्य्ाूटरीकरण से बेहतर तथा गतिमान किय्ाा जा सकता है।
भारत में भी जहाँ कम्प्य्ाूटरीकरण से पूर्व काम सुचारू पद्धतिय्ाों पर आधारित था, सकारात्मक दृष्टि से था वहाँ कम्प्य्ाूटर का उपय्ाोग वरदान साबित हुआ। य्ाह भी ध्य्ाान में रखने की बात है कि जहाँ पश्चिमी देशों में कम्प्य्ाूटर का उपय्ाोग कंपनिय्ाों ने अपने प्रतिस्पर्द्धिय्ाों से आगे जाने के लिय्ो किय्ाा तो एक ईष्यर््ाा और प्रतिस्पर्द्धा का विचार था। सरकारों में ऐसे प्रतिस्पर्धा का अभाव होता है। इसलिय्ो संभवतः य्ाह स्वाभाविक हो कि ‘ई-गवर्नेंसी’ में उतना य्ाश प्राप्त नहीं हुआ।
अनेक विभागों के वेब साइट फीते काटकर समारोह के साथ शुरू तो किय्ो गय्ो लेकिन उनके दैनंदिन रखरखाव तथा अद्यतन रखने के लिय्ो कोई प्रशिक्षित वेब मैनेजर न रखने की वजह से बहुतांश शासकीय्ा विभागों के वेब साईट पर संभवतः उद्घाटन समय्ा की ही तारीख व जानकारी लगी रहती है। कम्प्य्ाूटर का सही उपय्ाोग न होने का कारण य्ाह भी है कि ‘एक बार कम्प्य्ाूटर लगाने के बाद सब काम वह ऑटोमैटिकली कर कर लेगा’ य्ाह सोच है।
वास्तव में य्ाह सोच कितनी गलत है य्ाह बताने की आवश्य्ाकता है। कम्प्य्ाूटर अच्छा बदलाव लाने में बड़ा मददगार साबित हो सकता है और अनेक प्रतिष्ठानों तथा कंपनिय्ाों में सिद्ध हुआ है। इसमें कर्मचारिय्ाों को सही प्रशिक्षण देने की तथा उनकी मानसिकता बदलने की बड़ी आवश्य्ाकता है।
य्ाह अनुभव किय्ाा गय्ाा कि कम्प्य्ाूटरीकरण की सफलता हेतु कर्मचारिय्ाों को 100 घंटे का एक सर्टीफिकेट कोर्स करवाय्ाा जाय्ा। कुछ राज्य्ा सरकारों ने ऐसा किय्ाा भी है। बैंकों ने जब कम्प्य्ाूटरीकरण के बारे में के बारे में सोचा तो बहुत प्रतिबद्धता से कर्मचारिय्ाों को प्रशिक्षण दिय्ाा। सामान्य्ातः जनता को ई-गवर्नेंस का लाभ तभी मिलेगा जब सरकारी मानसिकता में सकारात्मक बदलाव आय्ोगा। य्ाह भी सच है कि 40-45 वर्ष की आय्ाु से ऊपर के अधिकारी/कर्मचारी ऐसे नई पहल के काम में कम रुचि लेते हैं। अतः जब तक वे सेवानिवृत्त न हों तब तक बदलाव की संभावना कम है।
प्राय्ाः देखा जाता है कि नय्ाी तकनीक- हार्डवेय्ार, पर कम रखरखाव ध्य्ाान देते हैं आपमें से कितने लोगों ने बार-बार अनुभव किय्ाा होगा -पोस्ट ऑफिस में मिलने वाली कम्प्य्ाूटरीकृत रजिस्ट्री रसीद य्ाा बिजली बोर्ड से मिलने वाला बिजली बिल, पढ़ते नहीं बनते क्य्ाोंकि प्रिंटर की रिबन पुरानी घिसी पिटी होती है और पयर््ावेक्षक का ध्य्ाान नहीं होता/देना। सरकारी संस्थानों में ऐसी नय्ाी तकनीक कामय्ााब होने में काफी समय्ा लगना है।
प्राय्ाः देखा गय्ाा है कि किसी तरह का बदलाव लाने में एक तरह के विरोध का सामना करना पड़ता है लेकिन बदलाव लाना आवश्य्ाक नहीं है।
कुछ दूसरी बातों पर भी ध्य्ाान देना आवश्य्ाक है- जैसे हार्डवेय्ार और सॉफ्टवेय्ार की कीमतें। एक बार य्ाह चर्चा थी कि सामान्य्ा पी.सी. की कीमत टी.वी. जितनी हो, ताकि य्ाह आम आदमी की  पहुंच में आ सके। वरना एक नय्ाी तरह की दीवार खड़ी हो सकती है। जो कम्प्य्ाूटर जानते हैं और जो नहीं जानते तथा कम्प्य्ाूटर खरीद नहीं सकते- जिसे डिजिटल डिवाइड कहा गय्ाा है। क्य्ाा इस तरह से हम एक नय्ाा ‘पिछड़ा वर्ग’ तैय्ाार करेंगे?
इंटरनेट पर अपने विचार, दैनंदिन डाय्ारी लिखने वालों की तादाद बढ़ रही है। इन्हें ूमइ सवह.सवह कहते हैं। ई-क्रांति से निर्मित इंटरनेट और वेब पर य्ाह नय्ाा प्रय्ाास है। कहा जाता है कि ठसवह से कुछ नय्ो विचारों को - विचारधाराओं में समानता लाने में मददगार हो। ऐसा होता है तो ई-क्रांति का य्ाह एक नय्ाा पहलू होगा।

(‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ नवम्बर-दिसम्बर 2006)