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क्षय रोग : आज भी एक चुनौती

डॉ.कृष्ण कुमार मिश्र
 
क्षय रोग यानी ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) का व्यापक प्रसार आज पूरे विश्व में चिन्ता का विषय बन गया है। दुनिया में हर साल लाखों लोग टीबी की बीमारी से अपनी जान गवाँ देते हैं। क्षय रोग के विषय में वैश्विक स्तर पर जानकारी एवं जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर वर्ष 24 मार्च को “विश्व क्षय रोग दिवस” के रूप में मनाया जाता है। क्षय रोग एक जानलेवा संक्रामक बीमारी है। इसे तपेदिक, यक्ष्मा अथवा राजयक्ष्मा भी कहा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 में कुल 1 करोड़ 4 लाख लोग टीबी की चपेट में आये। इनमें से लगभग 18 लाख लोगों की मौत हो गई। भारत में यह बीमारी बहुत ही भयावह तरीके से फैली हुई है। पूरी दुनिया के क्षय रोगियों में लगभग 27 प्रतिशत भारत में हैं। देश में क्षय रोग के व्यापक प्रसार का सबसे बड़ा कारण बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, जनचेतना की कमी, अशिक्षा, लोगों में समुचित साफ-सफाई की आदत का न होना है। विश्व क्षय रोग दिवस मनाने के पीछे उद्देश्य यह है कि लोगों को इस बीमारी के विषय में जागरूक किया जाए तथा इस रोग की रोकथाम के लिए जरूरी कदम उठाए जाएँ। विश्व क्षय रोग दिवस को विश्व स्वास्थ्य संगठन से व्यापक समर्थन मिलता है। 
एक समय था जब टीबी की बीमारी लाइलाज थी। टीबी हो जाने का मतलब होता था कि जीवन की संध्या नजदीक है। इसका कोई कारगर इलाज नहीं था। तब ऐन्टीबायोटिक दवाओं का आविष्कार नहीं हुआ था। हाँ, टीबी हो जाने पर खानपान तथा आबोहवा दुरुस्त रखने से मरीज का जीवनकाल थोड़ा बढ़ जाता था। पुराने जमाने में अमीर लोग टीबी होने पर पेरिस, जेनेवा जैसे ठंडे स्थानों पर चले जाते थे जिससे रोग का संक्रमण थोड़ा थम जाता था। खानपान पर ध्यान देने से व्यक्ति की सेहत सुधर जाती थी। इससे मरीज की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती थी। यानी बीमारी से लड़ने की ताकत मिल जाती थी। इससे टीबी के जीवाणुओं से लड़ाई की मियाद बढ़ जाती थी। दूसरे शब्दों में, बीमारी से जद्दोजहद थोड़ा लम्बा खिंच जाता था। लेकिन अंततः बीमारी ही जीतती थी। फिर भी रोगी को उम्र थोड़ी बढ़ जाती थी। वे लोग जो विदेश जाने की हैसियत नहीं रखते थे, वे अकसर देश में शिमला, मसूरी, नैनीताल जैसे स्थानों पर जाकर सेहत बनाते थे। नैनीताल के पास रानीखेत रोड पर भवाली में एक जाना माना सेहतगाह (सैनेटोरियम) हुआ करता था जहाँ टीबी के मरीज प्रायः स्वास्थ्यलाभ के लिए जाते थे। लेकिन आज स्थितियां बदल चुकी हैं। यह बीमारी बिलकुल ठीक हो सकती है बशर्ते कि नियमित तौर पर दवा ली जाए तथा उसका कोर्स पूरा किया जाए। 
 
टीबी क्या है?
टीबी एक संक्रामक रोग है। यह जीवाणु (बैक्टीरिया) की वजह से होता है। सन् 1882 में जर्मनी के चिकित्सक तथा सूक्ष्मरोगविज्ञानी डॉ। रॉबर्ट कॉख (क्तण् त्वइमतज ज्ञवबी) ने क्षय रोग के जीवाणु, माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस की पहचान की थी। इस महत्वपूर्ण अनुसंधान के लिए उन्हें सन् 1905 में चिकित्सा विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। टीबी का बैक्टीरिया शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है। हालाँकि यह ज्यादातर फेफड़ों को संक्रमित करता है। इसके अलावा आंतों, मस्तिष्क, हड्डियों, जोड़ों, गुर्दे, त्वचा तथा हृदय भी टीबी से संक्रमित हो सकते हैं। टी.बी से संक्रमित व्यक्ति धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। इससे उसे कई दूसरी गंभीर बीमारियां होने का खतरा रहता है। टी.बी। की बीमारी अकसर एड्स पीडि़त, मधुमेहग्रस्त और कमजोर लोगों को अधिक होती है। 
टीबी का इलाज बिलकुल संभव है। हाँ, इसके लिए एन्टीबायोटिक दवाइयों का कोर्स पूरा करना पड़ता है। लेकिन किन्हीं कारणों से यदि मरीज ने दवाइयों का कोर्स पूरा नहीं किया तो उसके अंदर मौजूद जीवाणुओं का पूरी तरह खात्मा नहीं होता तथा बाद में चलकर वे दवाइयों के खिलाफ प्रतिरोध (रेजिस्टेंस) पैदा कर लेते हैं। फिर एन्टीबायोटिक दवाएं इन पर बेअसर हो जाती हैं। इस जटिल स्थिति को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (एमडीआर टी.बी.) कहते हैं। इस बीमारी से दुनियाभर के डॉक्टर वाकई बहुत चिंतित हैं। हमारे देश में अकसर देखा गया है कि मरीज पूरा इलाज नहीं कराते। थोड़ा आराम होते ही उन्हें लगता है कि वे चंगा हो गये हैं। वे दवा लेना बंद कर देते हैं। इससे रोगियों में एमडीआर टी.बी। के मामले बढ़ रहे हैं। भारत में टीबी के तेजी से पैर पसारने का एक मुख्य कारण इस बीमारी के लिए लोगों सचेत ना होना, और इसे शुरूआती दौर में गंभीरता से न लेना भी है।
 
क्षय रोग (टीबी) के प्रकार
  • फुफ्फुसीय क्षय रोग - फुफ्फुसीय क्षय रोग में व्यक्ति के फेफड़े टीबी के जीवाणु से संक्रमित होते हैं। इसे पल्मोनरी टीबी भी कहा जाता है। सभी टीबी में यह सबसे आम तौर पर मिलने वाली टीबी की बीमारी है। यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। साथ ही किसी भी पेशे के इंसान को इसका संक्रमण हो सकता है। अलग-अलग व्यक्तियों में फुफ्फुसीय क्षय रोग के लक्षण अलग-अलग पाए जाते हैं। इनमें कुछ सामान्य लक्षण हैं, सांस तेज चलना, सिरदर्द होना या नाड़ी तेज चलना, इत्यादि।
  • पेट का क्षय रोग - दरअसल पेट के क्षय रोग के मरीज को सामान्य रूप से होने वाली पेट की समस्याएं ही होती हैं जैसे बार-बार दस्त लगना, पेट में दर्द होना, कब्ज इत्यादि। जब तक पेट के टी.बी के बारे में पता चलता है, तब तक पेट में गांठें पड़ चुकी होती हैं। इसलिए पेट सम्बन्धी किसी भी समस्या को गंभीरता से लेना चाहिए। क्षय रोग के लक्षण दिखाई देने पर इसका समुचित इलाज कराना चाहिए।
  • हड्डी का क्षय रोग -  हड्डी में होने वाले क्षय रोग के कारण हड्डियों में जगह-जगह घाव हो जाते हैं जो कि इलाज के बाद भी आसानी से ठीक नहीं होते। शरीर में जगह-जगह फोड़े-फुंसियां होना भी हड्डी के क्षय रोग का लक्षण है।
टीबी के सामान्य लक्षण
टीबी के मरीजों में प्रारम्भिक अवस्था में प्रायः निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते है जैसे कि -
  • दो सप्ताह या उससे ज्यादा दिन तक लगातार खांसी - मरीज को दो हफ्ते से ज्यादा समय तक खांसी आती रहती है। कफ सिरप तथा अन्य कफ सम्बन्धी दवाइयों के सेवन से भी खांसी ठीक नहीं होती। खांसी के दौरान यदि कफ के साथ मुंह से खून आता है तो यह टीबी का लक्षण हो सकता है।
  • भूख कम लगना और वजन का कम होना - टीबी के मरीजों में अक्सर देखा जाता है कि उन्हें भूख कम लगती है जिसके कारण उनका वजन तेजी से घटता है। टीबी के मरीज बेहद कमजोर हो जाते हैं।
  • ठंड लग कर पसीने के साथ बुखार आना - टीबी का संक्रमण फैलने के बाद रोगी को अक्सर बुखार रहता है तथा ठंड के साथ-साथ पसीना भी आता है।
  • कई लोगों में शरीर में गांठें बनना - टीबी के लक्षणों में यह भी देखा जाता है कि रोगी के शरीर पर बहुत सी गांठें बनने लगती हैं।
टीबी के जाँच के तरीके
शरीर के जिस हिस्से की टीबी है, उसके मुताबिक जांच कराना जरूरी होता है। फेफड़ों की टीबी के लिए बलगम की जांच की जाती है। सरकारी अस्पतालों और डॉट्स सेंटर पर यह जाँच निःशुल्क की जाती है। बलगम की जाँच दो दिन लगातार की जाती है। ध्यान रहे, थूक नहीं, बल्कि बलगम की जांच की जाती है। अच्छी तरह खांस कर ही बलगम को जाँच के लिए दिया जाना चाहिए। थूक की जाँच होगी तो टीबी पकड़ में नहीं आएगी। अगर बलगम में टीबी पकड़ नहीं आती तो एएफबी कल्चर कराना होता है। लेकिन इनकी रिपोर्ट छः हफ्ते में आती है। ऐसे में अब जीन एक्सपर्ट जांच की जाती है, जिसकी रिपोर्ट चार घंटे में ही आ जाती है। इस जाँच में यह भी पता चल जाता है कि किस स्तर की टीबी है, और दवा का असर कितना होगा। किडनी की टीबी के लिए यूरीन कल्चर टेस्ट किया जाता है। गर्भाशय की टीबी के लिए सर्वाइकल स्वैब लेकर जाँच की जाती है। वैसे तो टीबी की जाँच करने के कई तरीके होते हैं, जैसे- छाती का एक्स-रे, बलगम की जाँच, स्किन टेस्ट, आदि। लेकिन आधुनिक तकनीक के माध्यम से आईजीएम हीमोग्लोबिन जाँच कर भी टीबी का पता लगाया जा सकता है।
 
टीबी से बचाव के तरीके
टीबी से बचाव के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाएं जा सकते है जैसे कि -
  • बीसीजी का टीका लगवाकर टीबी से बचा जा सकता है।
  • टीबी के रोगी से समुचित दूरी बना कर रखें। ध्यान रहे, यह एक संक्रामक रोग है।
  • टीबी के मरीज को मास्क पहनना चाहिए ताकि उसके छींकने, या फिर खांसने से यह रोग दूसरों को न फैले। 
  • मरीज को इधर-उधर नहीं, बल्कि किसी पीकदान में ही थूकना चाहिए।
  • मरीज को सार्वजनिक वस्तुओं का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए जिससे कि अन्य लोग इसकी चपेट में न आएं।
टीबी से राहत के लिए कुछ घरेलू उपाय 
जैसा कि हम जानते हैं, टीबी एक संक्रामक बीमारी है। यह किसी को भी हो सकती है। टीबी की बीमारी में कुछ घरेलू नुस्खे भी लाभकारी होते हैं। इन नुस्खों से टीबी मरीजों को राहत मिलती है। लेकिन ध्यान रहे, ये नुस्खे टीबी का उपचार कत्तई नहीं हैं। 
  • रोज सुबह-शाम खाली पेट आधा कप प्याज का रस एक चुटकी हींग डाल कर पिएं। 
  • एक पका केला लें। उसे मसलकर उसमें एक कप नारियल पानी, आधा कप दही और एक चम्मच शहद मिलाएं। इसे दिन में दो बार लें। इससे प्रतिरक्षा-तंत्र मजबूत होता है।
  • संतरे के ताजे जूस में थोड़ा-सा नमक और शहद मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीएं। इससे प्रतिरक्षा-तंत्र मजबूत होता है तथा फेफड़ों से बलगम साफ करने में भी मदद मिलती है।
  • टीबी में शरीफा बेहद फायदेमंद है। शरीफे का गूदा निकालकर खाने की सलाह दी जाती है। 
  • अखरोट के सेवन से टीबी के मरीजों को ताकत मिलती है। इससे रोगी के जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है।
  • शहद, मिश्री, गाय का घी, तीनों को अच्छे से मिला लें। मरीज को 6.6 ग्राम मात्रा दिन में कई बार चटाएं। साथ में गाय या बकरी का दूध पिलाएं। इससे कफ के कारण होने खांसी से काफी राहत मिलती है।
क्षय रोग (टीबी) से संबंधी मिथक तथा भ्रांतियां
क्षय रोग से सम्बन्धी बहुत सारे अंधविश्वास समाज में व्याप्त हैं। इसे लेकर बहुत सारी भ्रांतियां हैं। मसलन कि क्षय रोग आनुवंशिक होता है, जो कि बिल्कुल निराधार तथा गलत है। हाँ, क्षय रोग संक्रामक होता है। यह रोगी के खांसने तथा छींकने से फैलता है। इसलिए मरीज के सम्पर्क में रहने वाले व्यक्तियों को सावधानी बरतनी चाहिए। कुछ लोगों को भ्रम होता है कि चूंकि उनमें टीबी का कोई लक्षण नहीं है इसलिए उन्हें टीबी नहीं है। कई बार लक्षण न होने पर भी जांच में टीबी पायी जाती है। इस स्थिति को छुपा हुआ टीबी कहा जाता है। इन परिस्थितियों में व्यक्ति को काफी सचेत रहने की आवश्कता होती है जिससे कि छुपा हुआ टीबी का रोग आगे चलकर सक्रिय टीबी में तब्दील न हो सके।
 
डॉट्स
डॉट्स यानी ‘डायरेक्टली ऑब्जर्व्ड ट्रीटमेंट-शॉर्ट कोर्स’ टीबी के इलाज का अभियान है। इसमें टीबी की मुफ्त जाँच से लेकर मुफ्त इलाज तक शामिल है। इस अभियान में स्वास्थ्यकर्मी  मरीज को अपने सामने दवा देते हैं ताकि मरीज दवा लेना न भूले। वे मरीज और उसके परिवार को मशविरा भी देते हैं। साथ ही, इलाज के बाद भी मरीज पर निगाह रखते हैं। ऐसा वे यह सुनिश्चित करने के लिए करते हैं कि मरीज में टीबी के लक्षण कहीं फिर से तो प्रकट नहीं हो रहे हैं। डॉट्स में 95 फीसदी तक इलाज पूर्णतः सफल होता है। टीबी फैलाने पर सजा का भी प्रावधान है। भारतीय दंड संहिता की धारा 269 और 270 के अनुसार टीबी का ठीक से पूरा इलाज न कराने, और इसे समाज में दूसरों तक फैलाने के लिए छः महीने तक की सजा का प्रावधान है। 
आज की जीवन-शैली में लोग अपने कामों में बहुत व्यस्त रहते हैं। जीवन की भागदौड़ में रोजमर्रा की दिनचर्या प्रभावित होती है। जीवन में सफलता तथा मुकाम हासिल करने की दौड़ के चलते लोग जीवनशैली से समझौता कर लेते हैं। इन हालात में सबसे ज्यादा उपेक्षित होता है उनका स्वास्थ्य। आजकल युवा पीढी सेहत को लेकर उतनी सजग नहीं दिखती है। शरीर पर लगातार क्षमता से ज्यादा बोझ पड़ने और नुकसानदायक खाद्यपदार्थों (जंक फूड) के सेवन करने की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते युवाओं के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। ऐसे में टीबी जैसे रोग की गिरफ्त में आ जाने की संभावना कई गुना बढ जाती हैं। खास कर के बड़े शहरों के ऐसे युवाओं में, जो बेहद प्रतिस्पर्धात्मक नौकरियों में हैं, या परिवार से दूर छात्रावासों में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं, उनमें टीबी के संक्रमण के मामले तेजी से फैलते देखे गए हैं। 
नशीले पदार्थों का सेवन युवाओं की रोगप्रतिरोधक क्षमता को खोखला कर देता है। कम उम्र के युवाओं में कम खाकर और अनियोजित डायटिंग कर चुस्तदुरुस्त दिखने की प्रवृत्ति बेहद खतरनाक रूप लेती जा रही है। इससे उनमें टीबी के संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है। आज जरूरत है टीबी जैसी खतरनाक जानलेवा बीमारी से बचने के लिए सरकार और सामाजिक संगठन, दोनों परस्पर मिलकर काम करें। तभी वर्ष 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य हासिल हो सकता है। हालांकि सरकारी एवं गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा टीबी की रोकथाम के लिए देश में बहुत सारी योजनाएं चलायी जा रही हैं। लेकिन टीबी की बीमारी आज भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। जाहिर है, इससे निबटने के लिए हमें अपनी तैयारियों को अभी और अधिक पुख्ता करना पड़ेगा। 
 
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