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विज्ञान संचार के जरिये विज्ञान की जानकारी गांव-गांव तक

संगीता चतुर्वेदी से मनीष मोहन गोरे की बातचीत

ज्ञान-विज्ञान से जुड़े साहित्य का लेखन और अनुवाद को अक्सर दोयम दर्जे का काम समझकर इन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। विज्ञान के बारे में जन सामान्य को जागरूक करने के लिए जनसमझ की भाषा में लेखन एक महत्वपूर्ण काम है वहीं दूसरी तरफ यदि भाषाओं के परस्पर अनुवाद करने वाले उम्दा अनुवादक न हों तो दुनिया की तमाम संस्कृतियाँ, साहित्य और ज्ञान-विज्ञान के दस्तावेज यूं ही स्रोत स्थल पर सिमटकर रह जाएं। अनुवादक दरअसल ज्ञान के प्रसारक हैं और वो भी मूल जैसी तबियत, तेवर और भावना के साथ। अनुवाद को हल्के में लेना किसी विधा के उज्ज्वल भविष्य को धूमिल करने के समान है। वैसे तो किसी भी संस्कृति-साहित्य का अनुवाद अहम है परंतु विज्ञान और तकनीकी साहित्य का अनुवाद अपने आप में अधिक महत्वपूर्ण होता है और इसे अंजाम देने वाले सराहना के हकदार हैं। इस बार एक और महत्वपूर्ण शख्सियत के साथ हम पाठकों के सम्मुख हैं। इस शख्सियत का नाम श्रीमती संगीता चतुर्वेदी है। इन्होंने कंप्यूटर विज्ञान, सूचना प्रौद्योगिकी और दूसरे तकनीकी विषयों को लेकर हिंदी और उडि़या भाषा में मौलिक लेखन के माध्यम से सराहनीय योगदान किये हैं। श्रीमती संगीता जी ने मूल रूप से लोकप्रिय विज्ञान लेखन के अतिरिक्त हिंदी और उडि़या भाषाओं में वैज्ञानिक व तकनीकी साहित्य के उल्लेखनीय अनुवाद भी किये हैं। इलेट्रॉनिक परिपथ, विंडोज और वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत इनकी कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं। कम्प्यूटर विज्ञान की अग्रणी किताब ‘कंप्यूटर एक परिचय’ का उन्होंने उडि़या भाषा में सार्थक अनुवाद किया है। इस अंक में हम तकनीकी विषयों से जुड़े लेखन और अनुवाद की बारीकियों के बारे में श्रीमती संगीता चतुर्वेदी के विचार पाठकों से साझा करेंगे।


आपने इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की है। आप इस दिशा में अपना कॅरियर बना सकती थीं। विज्ञान को लेकर रचनात्मक लेखन की ओर आपका रुझान कैसे हुआ?
मैंने सन १९८६ में इंजीनियरिंग की शिक्षा समाप्त की और उसके बाद चार वर्ष कलकत्ता में ैवदवकलदम म्समबजतवदपबे नामक कंपनी मंे कार्य किया। सन १९९१ में आईसेक्ट संस्था के संस्थापक संतोष चौबे की प्रेरणा से मैंने अपने इंजीनियरिंग कॅरियर की ओर से हट कर विज्ञान लेखन की ओर रुख किया। मेरी पहली पुस्तक इलेक्ट्रॉनिक परिपथ थी। इसके बाद मैंने संतोष चौबे जी द्वारा लिखित पुस्तक कम्प्यूटर एक परिचय का उडि़या भाषा में अनुवाद किया और धीरे-धीरे यह सफर आगे बढ़ा।

एक विज्ञान लेखक के रूप में आपने लेखन के शुरुआती दिनों  में किस प्रकार की चुनौतियों का सामना किया?
आरंभ में मेरे लिए विज्ञान से जुड़े शब्दों को हिंदी में लिखना एक चुनौती थी, लेकिन मेरी प्रारंभिक शिक्षा हिंदी माध्यम एवं ओडीशा राज्य में उडि़या भाषा की किताबें पढ़कर हुई थी इसलिए इसमंे मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं आई।

विज्ञान संचार के महत्व और आम जीवन में इसकी उपयोगिता को लेकर आपके क्या विचार हैं? विज्ञान संचार के क्षेत्र में भारतीय परिप्रेक्ष्य में आपको क्या संभावनाएं दिखती हैं?
विज्ञान संचार का महत्व हमारे आम जीवन में दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन उसका स्वरूप बदल गया है। आज का युग डिजिटल युग है लेकिन इसकी प्रत्येक इकाई विज्ञान की ही देन है। भारत में विज्ञान संचार के क्षेत्र में अपार संभावनाएं है। हमारे देश में अभी भी अनेक वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर सभी ग्रामीण क्षेत्रों से पढ़कर उच्च पदों पर आसीन होते है, यही इस बात को सिद्ध करता है कि विज्ञान के प्रति लगाव गाँवों तक पहुँच रहा है और लोगों में इसके प्रति जागरुकता आई है।

आपकी दृष्टि में क्या विज्ञान लेखन को कॅरियर बनाकर जीविकोपार्जन किया जा सकता है?
विज्ञान लेखन को कॅरियर बनाकर जीविकोपार्जन करने में कठिनाइयाँ तो आती हैं क्योंकि आज भी विज्ञान को हिंदी में लिखने-पढ़ने वाले लोग इतने नहीं हैं जितने इसे अंग्रेजी भाषा में पढ़ते हैं। फिर भी आज अनेक संस्थाएं ऐसी हैं जो हिंदी में विज्ञान लेखन को बढ़ावा दे रही हैं। इसके अलावा सभी समाचार पत्रों व न्यूज चैनलों पर भी विज्ञान से जुड़े आलेख, वार्ता आदि प्रकाशित किये और दिखाए जाते हैं जिनके लिए विज्ञान लेखकों की बेहद आवश्यकता होती है। अतः इस दिशा में संभावनाएं तो बढ़ी हैं जो अपने आप में शुभ संकेत है।

अपने किन-किन माध्यमों के लिए और कौन सी विधाओं में विज्ञान लेखन किया है? इनमें से कौन सी विधा आपकी प्रिय विधा है?
मैंने अभी तक हिन्दी भाषा में विज्ञान के विविध विषयों पर लेख लिखे हैं, कम्प्यूटर विषय पर हिन्दी भाषा में पुस्तकें भी लिखी हैं। ओडि़या भाषा पर पकड़ पहले अच्छी थी पर अब धीरे-धीरे इस भाषा से दूर हो गई हूँ। पिछले कुछ वर्षों में मैंने अधिकतर कम्प्यूटर पुस्तकों का अंग्रेजी से हिन्दी भाषा में अनुवाद किया है। इस तरह अब यही मेरी प्रिय विधा बन गई है।

आपकी पहली विज्ञान रचना कौन सी रही है, इसे आपने कब लिखा और इसकी प्रेरणा आपको कैसे मिली थी?
मेरी पहली विज्ञान रचना इलेक्ट्रॉनिक परिपथ नामक पुस्तक के रूप में थी। इसके बाद मैंने विंडोज एक परिचय नामक पुस्तक लिखी। इसके अलावा आइसेक्ट की इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए पत्रिका में विज्ञान समाचार एवं विज्ञान से जुड़े लेख भी लिखे। बच्चों के लिए एक पुस्तक सिरीज कम्प्यूटर की दुनिया कक्षा १ से ५ तक के लिए आईसेक्ट प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित हुई। इस बीच मैंने एनआईओएस के लिए भी कम्प्यूटर विषय में पुस्तकें लिखीं एवं उनका अनुवाद भी किया। एनआईओएस मंे कई अन्य विषयों की पुस्तकों जैसे खिलौना निर्माण कला, कन्स्ट्रकशन सुपरविजन में प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम आदि का भी हिन्दी अनुवाद किया। वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत नामक पुस्तक आईसेक्ट के अनुसृजन कार्यक्रम के अंतर्गत प्रकाशित हुई।
प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के लिए विज्ञान लेखन करते समय लेखक को कौन-कौन सी सावधानियाँ बरतनी आवश्यक होती हैं। 
मेरा मानना है कि विज्ञान लेखकों को शब्दों के चयन पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए ताकि विषय की प्रस्तुति लोगों तक आसान और सरल भाषा में की जा सके। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के लिए खास तौर पर आसान शब्दों के साथ चित्रों का भी होना आवश्यक है। किसी भी आलेख में ग्राफिक, चार्ट एवं डिजाइन के माध्यम से हम विषयों को बेहतर ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं।

आज के युग के नये माध्यम (फेसबुक, वाट्सएप और ट्विटर आदि) के जरिये विज्ञान का संचार करने की क्या कुछ संभावनायें आपको नज़र आती हैं? क्या भारत में विज्ञान संचार के लिए इन माध्यमों का पर्याप्त उपयोग किया जा रहा है? यदि नहीं तो क्या अड़चनें आ रही हैं और आपके मतानुसार उनके संधान के क्या रास्ते हैं?
आज के डिजिटल युग मे फेसबुक, वाट्सएप और ट्विटर के माध्यम से यदि विज्ञान का संचार किया जाए तो इससे लाखों युवा प्रतिभाएं सामने आएंगी और हम उन तक आसानी से पहुँच सकेंगे या किसी विषय पर उनके विचार आसानी से जान सकेंगे। आज सोशल मीडिया एक शक्तिशाली माध्यम बन गया है और इन्हें हम नज़र अंदाज नहीं कर सकते हैं। हमारे देश में भी इन माध्यमों का काफी उपयोग हो रहा है, देश के युवा इसी माध्यम को अधिक पसंद कर रहे हैं और इसका उपयोग भी कर रहे हैं।

आपने लोकविज्ञान साहित्य संबंधी अनुवाद के क्षेत्र में भी सराहनीय योगदान दिया है। वैज्ञानिक साहित्य अनुवाद का क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें अपार संभावनाएं विद्यमान हैं। इस बारे में आपके क्या विचार हैं?
वैज्ञानिक साहित्य को आम बोलचाल की भाषा में लोगों तक पहुँचाना और उन्हें समझना आज अत्यंत आवश्यक है। अतः इस दिशा में उपलब्ध सामग्री को अनुवाद के जरिये कम से कम हिन्दी भाषी क्षेत्र के लोगों तक पहुँचाने की दिशा में कार्य हो रहा है और ऐसा निरंतर होना चाहिए। अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हो तो हमारे देश का कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति विज्ञान के क्षेत्र में होने वाली प्रगति से अछूता नहीं रहेगा।

डिटर्जेंट और कम्प्यूटर के विशुद्ध हिंदी शब्द अपमार्जक और संगणक प्रयोग किये जाएं तो पाठक बोर होगा। विज्ञान लेखन और अनुवाद करते समय वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली में होने वाली दिक्कतों का समाधान आप कैसे ढूंढती हैं?
विज्ञान लेखन और अनुवाद करते समय यदि हम आमतौर पर बोले जाने वाले शब्द जैसे कम्प्यूटर, हार्डडिस्क, मेमोरी आदि को अंग्रेजी मंे ही रहने दें या अंग्रेजी शब्दों को हिन्दी में लिखें तो अधिक बेहतर होगा बजाए उनका विशुद्ध हिन्दी अनुवाद करने के, जैसे कम्प्यूटर की जगह संगणक लिखें तो कोई नहीं समझेगा। मैं अनुवाद करते समय तकनीकी शब्दों को उसी तरह प्रस्तुत करने के पक्ष मे हूँ जिस तरह वो आम तौर पर बोले जाते हैं क्योंकि कई बार उनका शब्दकोश से किया गया अनुवाद बिलकुल ही अलग दिशा में चला जाता है। 

बच्चों और युवाओं को विज्ञान की धारा से जोड़ने में विज्ञान संचार/लेखन कितना कारगर साबित हो सकता है? आपका तजुर्बा क्या कहता है?
बच्चों और युवाओं को विज्ञान की धारा से जोड़ने में विज्ञान संचार लेखन एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है पर यदि वह लेखन उन तक डिजिटल माध्यम द्वारा पहुँचाया जाए तो इससे अधिक से अधिक युवा जुड़ पाएंगे। आजकल पुस्तिकाओं के पाठक कम हो गए हैं जबकि गूगल पर किसी भी विषय के बारे में जानने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही ही। विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के प्रोजेक्ट भी डिजिटल रूप में ही दिये और लिए जाते हैं। इसमें पाठ्य-पुस्तकों के अलावा अन्य किसी तरह की विज्ञान संबंधित पत्र पत्रिकाओं की कोई भूमिका तो मुझे कम ही दिखाई देती है।

आपकी दृष्टि में भारतीय विज्ञान संचार में ऐसा कौन सा नवाचारी प्रयोग करना अपेक्षित है जिसका दूरगामी प्रभाव संभव है?
भारतीय विज्ञान संचार के क्षेत्र में ऐसा नवाचारी प्रयोग करना होगा जैसा सरकार ने हाल ही में एक कार्यक्रम आयोजित किया था जिसका नाम था भ्।ब्ज्ञ।ज्भ्व्छ (हेकाथॉन )। इसमें २६ अलग अलग जगहों से १०ए००० इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने भाग लिया और सरकार को तकनीक के माध्यम से ५९८ समस्याओं का समाधान खोजने मंे मदद की। इसी तरह से विद्यालयों के बच्चों को भी विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक विषयों पर प्रतियोगिताओं और डिजिटल माध्यम द्वारा उन्हें कुछ नया करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।

आईसेक्ट संस्था ने पिछले तीन दशकों के दौरान अपने सीमित संसाधनों मगर असीम इच्छा शक्ति और दूरदर्शिता के बल पर शिक्षा एवं विज्ञान संचार की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। दूसरी गैर सरकारी संस्थाएं विज्ञान संचार और विज्ञान लेखकों के प्रोत्साहन के लिए आगे आएं, इसके लिए क्या प्रयास होने चाहिए?
आईसेक्ट ने पिछले तीन दशकों में विज्ञान संचार के क्षेत्र में लोगों को जो दिशा दिखाई है, वह सराहनीय है। अनुसृजन कार्यक्रम एवं इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए पत्रिका के जरिये लाखों विज्ञान प्रेमी भी इस संस्था से जुड़े हैं और विज्ञान की नई खोजों एवं आयामों से रूबरू हुए हैं। इसी तरह से अन्य गैर सरकारी संस्थाएं भी प्रयास कर सकती हैं। इसके लिए कार्यशालाओं का आयोजन करके लेखकों को प्रशिक्षित किया जा सकता है एवं उनसे सुझाव भी लिए जा सकते हैं। इसके अलावा विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के स्तर पर भी आपस में विज्ञान लेखन पर कार्यशालाओं का आयोजन करके छात्रों में इस विषय के प्रति रुचि बढ़ाई जा सकती है।

भावी विज्ञान लेखकों के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगी?
विज्ञान लेखकों को आगे आकर समाज से जुड़े वैज्ञानिक मुद्दों, नई खोजों, भविष्य के विषयों आदि पर निरंतर लेखन कार्य करते रहकर लोगों तक इसका संदेश पहुँचाने का प्रयास करते रहना चाहिए।   

s17.chaturvedi@gmail.com