विज्ञान वार्ता
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम खोज और बचाव के लिए
कालीशंकर से डॉ.टी.एन. उपाध्याय की बातचीत
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के वैज्ञानिक कालीषंकर ने एम.एन.आर. इंजीनियरिंग कॉलेज, इलाहाबाद से बी.ई. की डिग्री तथा आई.आई.टी रूड़की से एम.टेक. की डिग्री एवं इंस्टीट्यूशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एण्ड टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियर्स के फेलो कीे उपाधि प्राप्त की। आपने 17 मार्च 1971 को इसरो ज्वाइन किया और 31 जुलाई 2005 को इसरो से सेवा निवृत्त हुए। आपने लेखन, व्याख्यान के अलावा इसरो के लिए अनेक हार्डवेयर डिजाइन विकसित किये तथा यह विकास सीमित समय के अन्दर किया गया, और तो और ये तंत्र पहली बार देश में विकसित किये गये। जैसे-70 मेगाहर्त्स वाइड बैन्ड डिमाडुलक, स्वदेशी तकनीक से विकसित भारत का प्रथम स्पेक्ट्रम अनालाइजर, देश में पहली बार निम्न आवृत्ति में कैविटी फिल्टर का विकास (कैविटी फिल्टर का मतलब उच्च आवृत्ति वाले माइक्रोवेव फिल्टरों से होता है लेकिन ये फिल्टर जिन्हें हेलिकल फिल्टर कहते हैं निम्न आवृत्ति पर बनाये गये), भारत के प्रथम दूरसंचार परीक्षण ‘स्टेप’ (जिसका परीक्षण फ्रैंको जर्मन सिम्फोनी के द्वारा किया गया) के लिए फ्रीक्वेन्सी ट्रान्सलेटर, दिल्ली के इसरो के दो ग्राउन्ड स्टेशनों-सामान्य सी बैन्ड और विस्तृत सी बैन्ड स्टेशनों का इन्स्टालेशन, टेस्ट एण्ड इवैलुएशन एवं कमोशनिंग। विश्व के सबसे बड़े जनसंचार परीक्षण ‘साइट’, स्टेप परीक्षण एवं संयुक्त राष्ट्र संघ अनुमोदित प्रसारण प्रयोग परियोजना (पेप) के परियोजना मैनेजर के रूप में उन्होंनंे काफी सराहनीय कार्य किया है। अंतरिक्ष विज्ञान को जन जन तक पहुँचाने के लिए तथा सामान्य मानव को अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति जागरूक करने के लिए कालीषंकर ने 36 पुस्तकें लिखी है। उनकी एक पुस्तक Basic of satellite communication कुछ इंजीनियरिंग कालेजों में पाठ्य पुस्तक के रूप में चलती है। उनके पास 16 उपग्रहों के साथ काम करने का अनुभव है तथा देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम में उनके महान योगदान के लिए उन्हे राष्ट्रीय स्तर पर 22 सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। उनका हालिया सम्मान 14 सितम्बर 2016 को प्रदत्त उत्तर प्रदेश सरकार का विज्ञान भूषण सम्मान है। काली शंकर जितने बड़े हार्डवेयर विकासकर्ता और एक बड़े अंतरिक्ष विज्ञान संचारक हैं, उतने अच्छे कवि भी हैं। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की सम्पूर्ण गीता को छंद रूप में लिखा है तथा इसके अलावा अंतरिक्ष विज्ञान पर काव्य रचनाएँ कीं।
अपनी प्रारंभिक शिक्षा और जीवन के विशय में बताएँ?
मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के नीबी गाँव मेें हुआ। कक्षा 8 तक की पढाई मैंने गाँव की पाठशाला में की, कक्षा 9 से कक्षा 12 तक की पढ़ाई मैने गवर्नमेंट कालेज रायबरेली में की। बी.ई. (इलेक्ट्रिकल) मैंने एम एन आर इंजीनियरिंग कालेज इलाहाबाद तथा डण्म्ण्;भ्व्छैद्ध मैने रूड़की विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रानिक्स एवं कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग से की।
चूँकि आपने 34 वर्ष इसरो में सक्रियता से काम किया है इसलिए मैं आप जैसे अंतरिक्ष विज्ञानी से यह जानना चाहता हूँ कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की वे कौन सी बातें हैं जो विश्व मंे बेजोड़ हैं?
यह बड़ा अच्छा प्रश्न है तथा इसे मैं इस प्रकार से वर्णित कर रहा हूँ।
हम विश्व के ऐसे प्रथम देश हैं जिसने एक उपग्रह मंे तीन सेवाएँ- दूरसंचार, टेलीविजन और मौसम विज्ञानी एक साथ समाहित की हैं। उपग्रह संचार प्रणाली मेें ंआवृत्तियों का एक खास बैन्ड प्रयोग किया जाता है जिसे विस्तृत ‘सी’ बैन्ड (एक्सटेन्डेड) सी बैन्ड कहते हैं। उपग्रह संचार प्रणाली के लिए एक्सटेन्डेड सी बैन्ड का प्रयोग करने वाले हम विश्व के प्रथम देश हैं। उपग्रह संचार प्रणाली द्वारा चालित एक सेवा का नाम है सर्च एण्ड रेस्क्यू सर्विस जिसके अन्तर्गत विश्व के किसी भी कोने में तथा किसी समय भी होने वाली किसी भी दुर्घटना की जानकारी कुछ ही घण्टों मंे सम्बद्ध राष्ट्र को दे दी जाती है कि आप के देश मे फलाँ अक्षांश और देशान्तर के इन्टरसेक्शन विन्दु पर कोई दुर्घटना हुई है तथा सम्बद्ध राष्ट्र की रिलीफ संस्थाएँ तुरन्त राहत कार्यों में लग जाती हैं। सामान्यतया सर्च एण्ड रेस्क्यू सेवा पृथ्वी की निम्न कक्षा से सम्पन्न की जाती हैं लेकिन इस सेवा को पृथ्वी की भूसमकालिक कक्षा (पृथ्वी से 36000 किण्मीण् की दूरी से) चलाने वाले हम विश्व के प्रथम देश है। हम विश्व के प्रथम देश हैं जिसका मंगल ग्रह मिशन मंगलयान प्रथम प्रयास में ही सफल रहा। हमारे चन्द्रयान-1 मिशन के द्वारा ही पहली बार चन्द्र सतह पर पानी की उपलब्धता की पुष्टि हुई है।
आज विश्व अंतरिक्ष अन्वेषण और अंतरिक्ष विज्ञान पर लाखों करोड़ों डालर खर्च किये जा रहे हैं। क्या आप को नहीं लगता है कि यह एक व्यर्थ का खर्चा है जबकि विश्व के अनेक देशों मंे गरीबी और भुखमरी छाई हुई है?
वास्तव में यह एक जागरूकता का अति विशिष्ट मुद्दा है तथा इसके उदाहरण मैं आप के सामने प्रस्तुत करता हूँ। सीटी स्कैन और एमआरआई का विकास कभी भी मेडिकल क्षेत्र के लिए नहीं किया गया था बल्कि अपोलो मिशन में इनका विकास चन्द्रसतह के विस्तृत चित्र लेनेे के लिए किया गया था और उसी प्रकार डायलिसिस मशीन का विकास कभी भी गुर्दे के मरीजों के लिए नहीं किया गया था बल्कि इसका विकास अंतरिक्ष यान के अन्दर प्रयोग किये जा चुके पानी को साफ करके पुनः प्रयोज्यीय स्वरूप देने के लिए किया गया था। आज ये मशीनें हर अस्पताल की एक गंभीर आवश्यकता बन गई है। आज उपग्रह संचार प्रणाली से हम विश्व के किसी कोने से बात कर सकते हैं तथा सुदूर संवेदन उपग्रहों के द्वारा हम पृथ्वी के गर्भ में छिपे खनिज पदार्थाें का पता लगा लेते हैं। इस तरह के हजारों उदाहरण हैं। इसलिए अंतरिक्ष अन्वेषण पर किया जाने वाला खर्च व्यर्थ नहीं है।
आप अमरीकी अंतरिक्ष संस्था नासा में भी रह चुके हैं, वहाँ का आप का अनुभव कैसा रहा?
नासा में मैं और मेरे दो सहयोगी इंजीनियर ‘साइट’ परीक्षण के सिलसिले में गये थे। यह परीक्षण 1975-76 के दौरान भारत के 6 प्रान्तोें के 2400 गाँवों के लिए किया गया था। वायदे के अनुसार इस परी़क्षण के लिए नासा अपना उपग्रह ए टी एस-6 प्रदान कर रहा था तथा ग्राउन्ड सेगमेन्ट का उत्तरदायित्व भारत का था। लेकिन उपग्रह देने के पहले नासा भारत के ग्राउन्ड सिस्टम की जाँच करना चाहता था। हमने यह ग्राउण्ड सिस्टम अहमदाबाद में विकसित किया तथा उसे लेकर नासा गए। हमारे ग्राउण्ड सिस्टम के निष्पादन को देखकर नासा के इंजीनियर भी आश्चर्य करने लगेे कि क्या भारत भी ऐसा ग्राउन्ड सिस्टम बना सकता है।
दूसरी बार आप इंग्लैण्ड की रदरफोर्ड अपल्टन प्रयोगशाला गये। वहाँ जाने का क्या उद्देश्य था?
तकनीकी तौर पर जितना उच्च आवृत्ति (प्रेषण और अभिग्रहण के लिए) होगी, उसकी संचार क्षमता उतनी अधिक होगी लेकिन उच्च आवृत्ति का सबसे बड़ा दोष यह है कि वर्षा के समय इसका निष्पादन खराब हो जाता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत के देश के 6 स्थानों-कालीकट, गुलमर्ग, दिल्ली, राँची, अहमदाबाद और मद्रास से प्रसारण प्रयोग परियोजना (पेप) सम्पन्न की गयी। यह परीक्षण 11ध्14 गीगा हर्त्स पर किया गया। इसी कार्य के सिलसिले में मै इंग्लैण्ड गया। मैं परियोजना का सहायक परियोजना मैनेजर था। इस परियोजना से कू-बैन्ड पर विभिन्न आंकड़े इकट्ठा किये गये तथा उन आंकड़ों को संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रदान किया गया। इसका कारण यह था कि भारतीय क्षेत्र के वर्षा क्षति (रेन अटैनुएशन) आंकड़े उपलब्ध नहीं थे। यह आँकड़े विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग होते हैं तथा इन्हीं के आधार पर मार्जिन का निर्धारण होता है।
हिन्दी लेखन के प्रति प्रेरणा आपको कहाँ से मिली?
यद्यपि इसरो में समय आधारित परियोजनाओं में अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण हमारे पास लेखन इत्यादि का समय बिल्कुल नही होता था क्योंकि मस्तिष्क में हर समय यही चला करता था- फलाँ तंत्र पूरा करना है, फलाँ का टेस्टिंग होनी है, फलाँ में यह सुधार करना है इत्यादि। लेकिन कहते हैं कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है तथा जहाँ चाह है वहाँ राह है। इसलिए समय मिलने पर मै विज्ञान पत्रिकाएँ इत्यादि पुस्तकालय में पढ़ लिया करता था। लेकिन एक बात यह सच है कि मुझे अच्छी हिन्दी लिखने का शौक अपने गाँव से मिला। आप को आश्चर्य होगा जब एक आठवीं कक्षा का छात्र सूरदास की जीवनी इस प्रकार प्रारंभ करे, ‘‘श्रद्धा विभूति सुरम्य संगीत से मानव हृदय तंत्री को निनादित करने वाले हिन्दी साहित्य के अमूल रत्न सूरदास का नाम साक्षर-निरक्षर संत असंत और बच्चा जानता है“। इस प्रकार की भाषा मैंने गाँव मे सीखी तथा आठवीं बोर्ड परीक्षा में लिखी। मुझे हिन्दी में विज्ञान लेखन की प्रेरणा पत्रिकाओं और ईश्वरीय प्रेरणा से मिली।
आप के इसरो जीवन के कुछ रोचक क्षण?
जीवन के कुछ क्षण ऐसे होते हैं जो मानव को बहुत विह्नल बना देते हैं। अपने इसरो प्रवास के कुछ क्षण मैं आपको बताता हूँ। भारत के प्रथम संचार उपग्रह एप्पल का निर्माण इसरो ने किया था तथा इसका प्रमोचन एरियन स्पेस के एरियन-1 राकेट की प्रथम उड़ान से किया गया था। एप्पल उपग्रह को देश के लिए समर्पित करने के लिए एक समारोह हमारे दिल्ली के भू केन्द्र में आयोजित किया गया था। मुख्य अतिथि थी हमारी तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी। अपने भाषण में श्रीमती गाँधी ने कहा था, ज्ीपे पे ं अमतल ेउंसस निदबजपवद वित ं इपह मअमदज इस बात से मैं बहुत प्रभावित हुआ। इसी तरह का दूसरा क्षण भी है। जब भारत के प्रथम अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा रूसी अंतरिक्ष स्टेशन सैल्यूट-7 में गये तो उनसे भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने वीडियो कान्फ्रेसिंग (जो हमारे दिल्ली भूकेन्द्र से सम्पन्न की गयी थी) के माध्यम से बात की। श्रीमती गाँधी ने राकेश शर्मा से कहा, ‘‘वहाँ से हमारा भारत कैसा दिखता है।“ राकेश शर्मा ने जवाब दिया था, ‘‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा।“ इस बात ने भी मुझे काफी प्रभावित किया। भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स ने पहली बार हमारे तिरंगे झंडे को अंतरिक्ष से फहराया। यह भी हमारे लिए एक गौरव की बात थी।
आपने बी.ई. डिग्री इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में की तथा एम.ई. डिग्री इलेक्ट्रानिक्स एण्ड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में की। ऐसा क्यों?
मैंने बी.ई. डिग्री इलेक्ट्रिकल में की थी लेकिन मुझे इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ज्यादा मजा नहीं आया इसलिए मैंने मास्टर डिग्री इलेक्ट्रॉनिक्स एण्ड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में पूरी की। वैसे शौक अच्छा था लेकिन शुरू में काफी समस्याएँ आईं पर मैंने सफलतापूर्वक इसे पूरा किया।
वह कौन व्यक्ति था जिससे आप इसरो प्रवास के दौरान बहुत अधिक प्रभावित रहे?
वैसे तो इसरो में कार्य काल के दौरान मेरे सभी सीनियर मेरे लिए आदरणीय रहे तथा उन्होंने आवश्यकतानुसार मदद भी की लेकिन मैं अपने निदेशक कर्नल पन्त जी से बहुत अधिक प्रभावित था। जब मैंने यह विभाग ज्वाइन किया तो वे इस्केस (एक्सपेरीनेन्टल सैटेलाइट कम्युनिकेशन अर्थ स्टेशन) के निदेशक थे, फिर संचार क्षेत्र के चेयरमैन बने तथा बाद में वे इसरो के उप-चेयरमैन बने। मै पन्त जी की सादगी और सरलता से बहुत अधिक प्रभावित रहा। साइट ग्राउन्ड सेगमेन्ट को तैयार करके नासा ले जाने की तैयारियाँ जोरों पर थी। रात दिन काम चल रहा था। हम लोगों के साथ कन्ट्रोल रूम में पलथी मार कर बैठ कर पंत साहब ने देर रात तक कार्य किया। रोज रात देर से घर पहुँचते थे। आफिस की गाड़ी उपलब्ध होेने के बावजूद वे अपने स्कूटर से ही आफिस आते थे। रास्ते में आफिस का कोई भी व्यक्ति पैदल आता हुआ मिलता तो उसे स्कूटर में बिठा लेते थे। आफिस में उन्हें तकनीकी या गैर तकनीकी दोनों प्रकार के कामों के प्रति असीम निष्ठा थी। ऐसी महान हस्ती को मैं नमन करता हूँ।
एक अंतरिक्ष वैज्ञानिक का अध्यात्म में इतना अधिक लगाव कैसे हुआ कि उसने भगवान कृष्ण की गीता का हिन्दी अनुवाद ही कर डाला। सुना है कि आपने इसके अलावा भी गीता पर बहुत कुछ लिखा है एवं सारी कविताएँ लिखी हैं।
हाँ यह सत्य है कि अध्यात्म में मेरी बहुत अधिक रूचि है तथा इसी प्रोत्साहन के बल पर मैंने सम्पूर्ण गीता को हिन्दी छन्द रूप में परिवर्तित किया। मेरे इन छन्दों की शैली राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के महाकाव्य ‘रश्मिरथी’ पर आधारित है। इसके अलावा मैंने गीता पर बहुुत कुछ काव्य और गद्य रूप में लिखा है जो अनेक समाचार पत्रों मे प्रकाशित हुए। मैंने तुलसीदास जी के रामचरितमानस और भगवान कृष्ण की गीता का तुलनात्मक विश्लेषण किया है जो प्रकाशित हुआ। कविता लिखना मेरी स्वान्तः सुखाय की इच्छा की पूर्ति करता है।
मैंने यह भी सुना है कि मार्च 1980 की पत्रिका साइंस रिपोर्टर में प्रकाशित आप का लेख श्भ्मंसजी बंतम अपं ेंजमससपजमश् टेली मेडिसिन के क्षेत्र में प्रकाशित देश का पहला लेख था। इसके विषय में बताएँ।
हाँ, यह सच है। इसरो में काम करते हुए मैने अंतरिक्ष उपग्रहों के विचित्र उपयोगों की कहानी साकार होते हुए देखा था क्योंकि मैं इसी के ऊपर कार्य कर रहा था। मैंने अपने गाँव में यह भी देखा था कि किस तरह मरीज डाक्टरी इलाज के लिए पैदल, बैलगाड़ी इत्यादि से चलकर डाक्टरों के पास पहुँचते थे। टेलीमेडिसिन का उपयोग कुछ अन्य देशों में हो रहा था। इस प्रेरणा ने मुझे उपर्युक्त पेपर लिखने की प्रेरणा प्रदान की। जब यह पेपर प्रकाशित हुआ तो कुछ समाचार पत्रों ने पत्रिका से लेकर यह प्रकाशित किया कि इसरो के एक वैज्ञानिक ने स्वास्थ्य सेवा के लिए बहुत अच्छे तरीके का सुझाव दिया है। आज भारत के अनेक अस्पताल टेलीमेडिसिन सेवा से जुड़े हैं। बाद में हमारे दिल्ली भू केन्द्र में एक उपग्रह संगोष्ठी के माध्यम से टेलीमेडिसिन सेवा पर चर्चा की गई तथा इसमें दिल्ली के एम्स और कुछ अन्य अस्पतालों के डाक्टरों ने भाग लिया। टेलीमेडिसिन पर एक परीक्षण हमारे दिल्ली भू केन्द्र में उपग्रह के माध्यम से दिखाया गया जिसमें हमारे प्रिय प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी बाजपेई जी भी मौजूद थे जिसमें मरीज किसी अन्य अस्पताल मंे था तथा डाक्टर कहीं अन्य अस्पताल से गाइडेन्स दे रहे थे।
आप के ग्रामीण जीवन की कोई रोचक घटना?
आठवीं तक की पढ़ाई मैंने अपने गाँव से की तथा वहाँ पढाई के साथ गाय, भैंस की सेवा करना मेरे जीवन का अंग था। छठी कक्षा से आठवीं कक्षा तक मैं कक्षा में मॉनीटर होता था तथा स्कूल के सामने बाग मंे गाय और भैंस को बाँधकर कक्षा में आता था। नियमित दिनचर्या में गाय भैंस की सेवा और उनका दूध दुहाने के बाद मुझे 10 बजे रात में पढ़ाई का मौका मिलता था। पाँच बजे सुबह उठकर मुझे फिर वही गाँव भैंस के काम पूरा करके वही दिनचर्या चलती थी। इन कठिन परिस्थितियों के बीच मैंने आठवीं कक्षा की परीक्षा (जो उस समय डिस्ट्रिक्ट बोर्ड स्तर की होती थी)े में पूरे जिले में टॉप किया। मैंने टॉप तो कर लिया था लेकिन गाँव के उस लड़के को (मुझे)े यह नहीं पता था कि टाप करने का मतलब क्या होता है। यह बात मुझे दिल्ली से आये बड़े भाई ने बताया कि इसका मतलब यह होता है।
आज इसरो का विश्व स्तर पर काफी नाम हो रहा है तथा होने वाला है, इस पर आप अपने विचार प्रकट करें।
हाँ, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं तथा अपने आर्थिक और आत्म विश्वास के बल पर इसरो ने काफी अच्छे अंतरिक्ष और ज्ञानोपयोगी कार्य किये हैं। इसरो ने राकेट तकनीकी पर आधारित एक हृदय पम्प विकसित किया है, स्क्रैमसैट इंजन का विकास किया है, एक साथ 20 उपग्रह प्रमोचित किये हैं तथा अगले वर्ष एक साथ 68 उपग्रहों के प्रमोचन की योजना बनाई है। हमने स्वदेशी निर्मित स्पेस शटल का विकास किया है जिसकी प्रथम प्रोटो उड़ान सम्पन्न हो चुकी है। इसरो 21 देशों के 79 उपग्रह अंतरिक्ष में प्रमोचित कर चुका है तथा जल्दी यह आंकड़ा 100 का पूरा होने वाला है। वर्ष 2018 में इसरो का चन्द्रयान-प्प् मिशन आरबिटर लैन्डर और बग्घी के साथ भेजा जाने वाला है।
इस प्रकार आपसे भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं इसकी वर्तमान और भावी स्थिति के विषय में काफी बातें मालूम हुईं। क्या आप देशवासियों से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के विषय मंे कुछ संदेश देना चाहेंगे?
अवश्य, हमें इस बात का गर्व है कि हमारा अंतरिक्ष कार्यक्रम अच्छी गति से चल रहा है तथा इसमें उसे हर भारतवासी का सहयोग और शुभकामनाएँ प्राप्त हैं। हमारे देश का अंतरिक्ष कार्यक्रम हमारे देशवासियों की विभिन्न आवश्यकताओं- दूरसंचार, टेलीविजन, मौसमी विज्ञानी सेवाएँ, टेलीमेडिसिन, खोज एवं बचाव सेवा इत्यादि के मद्देनजर बनाया गया है तभी तो इसरो के लिए मुझे दिल से यह आवाज आती है।
इसरो तू एक सच्चाई है भारत की आँखों का सपना, इसरो तू एक कर्मणी भाँति साकार किया है यह सपना।
तथा यह सच्चाई यह बयाँ करती है कि इसरो के पास असीमित आत्मविश्वास है क्योंकि इसरो का मानना है कि,
तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के, पाते हैं जग में प्रशस्ति अपने करतब दिखला के।
मूल हीन की ओर देखकर गलत कहे या ठीक, वीर खींचकर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।
आपसे बातचीत करके अच्छा लगा। विज्ञान और अंतरिक्ष पर इस सार्थक संवाद के लिए आपको ‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ परिवार की ओर से हार्दिक धन्यवाद।
आपको और ‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ परिवार को भी मेरी ओर से धन्यवाद एवं षुभकामनाएँ।
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