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कैलेंडर का इतिहास और वर्तमान

संगीता चतुर्वेदी

पहले समय में अधिकांश कैलेंडर्स चंद्र चक्र पर आधारित हुआ करते थे। इन कैलेंडर्स में एक वर्ष 12 चंद्र चक्रों से बना होता था, ये महीने कहलाते थे। चूंकि 12 चंद्र चक्र 1 सूर्य वर्ष के बराबर नहीं होते हैं अतः एक अतिरिक्त महीना समय-समय पर जोड़ा जाता था। मिस्र के लोगों ने पहला ऐसा कैलेंडर निकाला जिसमें एक वर्ष 365 दिनों पर आधारित था। इसे सूर्य वर्ष कहा जाता था। इसमें उन्होंने महीनों को चंद्र चक्र पर आधारित न करके पूर्ण रूप से अलग इकाई के रूप में रखा। एक वर्ष को 12 महीनों में विभाजित किया गया जिसमें प्रत्येक में 30 दिन होते थे। इस प्रकार कुल 360 दिन होते थे जिसमें 5 अतिरिक्त दिनों को जोड़कर दिनों की कुल संख्या 1 की जाती थी। 365 दिनों का कैलेंडर मिस्रवासियों द्वारा 4236 ई.पू. अपनाया गया था। 
कालान्तर में यह पाया गया कि वास्तव में एक वर्ष में 365 1/4 दिन होते हैं। एक दिन का यह अतिरिक्त तिहाई भाग ही ऋतुओं में परिवर्तन का कारण माना जाता था। 238 ई.पू. में Pharaoh Ptolemy III जिन्हें इतिहास में Euergetes कहा जाता था ने इसमें सुधार करके हर चौथे वर्ष में कैलेंडर में एक दिन को जोड़ दिया था। दूसरा कैलेंडर था मेक्सिको की माया का कैलेंडर जो सूर्य कैलेंडर था और इसे 580 ई.पू. में खोजा गया था। यह अमेरिका में तैयार किया गया पहला ऋतु एवं कृषि आधारित कैलेंडर था। यह कैलेंडर मिस्र के कैेलेंडर से अलग था। इसमें एक सूर्य वर्ष में 18 महीने होते थे और प्रत्येक महीना 20 दिन का होता था। इसके अंत में पांच दिनों का अनलकी समय जोड़ा जाता था जिससे यह वर्ष 365 दिनों का बन जाता था। प्रत्येक महीने का अपना नाम होता था और दिनों को 0 से लेकर 19 तक संख्या दी जाती थी। इस कैलेंडर के साथ-साथ एक धार्मिक कैलेंडर भी निकाला गया जिसे ज्रवसापद कैलेंडर कहा गया। इसमें 13 महीने होते थे। प्रत्येक महीना 20 दिनों का होता था। प्रत्येक दिन का एक नाम होता था जो 1 से लेकर 13 तक की संख्याओं के साथ जोड़ा जाता था। ज्रवसापद कैलेंडर में कुल 260 दिन होते थे।

जूलियन कैलेंडर

पहले के समय में रोम के लोगों ने एक चंद्र कैलेंडर की शुरुआत की जो काफी जटिल था और इसमें बहुत अस्पष्टता थी। मूलतः यह केवल 10 महीने लंबा था। (मार्च से दिसंबर तक) लेकिन जल्दी ही इसे 12 महीनों का बना दिया गया और इसमें जनवरी और फरवरी महीनों को जोड़ दिया गया। एक तेरहवां महीना जिसे Merce donius कहा गया कभी कभी इसमें डाल दिया जाता था। रोमन कैलेंडर के 12 महीनों में से सात महीने 29 दिनों के होते थे और चार महीने 31 दिनों के होते हैं। फरवरी का महीना 28 दिनों का हुआ करता था। इस प्रकार वर्ष में कुल 355 दिन होते थे। रोमन कैलेंडर वर्ष में 12 महीनों के नाम इस प्रकार होते थे:


महीने का नाम              नाम का मूल स्थान
मार्शियस                     मार्स का महीना
एप्रिलिस                     शुरुआती महीना (नई फसल)
माइयस                      सर्वोच्च भगवान जुपिटर का महीना
जूनियस                     जूनी का महीना
क्ंिवनिविस                पांचवां महीना
सेक्सटिलिस                 छटवां महीना    
सेप्टेम्बर                     सातवां महीना

ऑक्टोवर                    आठवां महीना
नोवेम्बर                     नवां महीना
डिसेम्बर                     दसवां महीना
जैनुऐरियस                  भगवान जेनस का महीना
फेब्रुऐरियस फेबुआ         शुद्धता की दावत।

 

153 ई.पू में जनवरी महीने को वर्ष का पहला महीना माना गया और मार्शियस (मार्च) का तीसरा। जूलियस सीजर ने 47 ई.पू. में पहली बार इस कैलेंडर में सुधार करने की चेष्टा की। सीजर ने रोमन कैलेंडर के लिए सूर्य वर्ष को मान्यता दी। उन्होंने इसे 365 दिनों का माना और 6 घंटों का एक चौथाई दिन अतिरिक्त माना। यह चौथाई दिन प्रत्येक चार वर्षों में पूरे एक दिन के बराबर हो जाता था। जिससे वर्ष के कुल दिनों की संख्या 366 होती थी और इस वर्ष को ‘लीप ईयर’ कहा जाता था। 046 ई.पू. में पुराने और नए कैलेंडरों के बीच की दूरी को मिटा दिया गया। 45 ई.पू. में सबसे पहले संशोधित कैलेंडर का प्रयोग किया था। जनवरी अभी भी पहला महीना माना गया। रोमन सीनेट ने क्विन्टिलिस महीने का नाम बदलकर जूलियस (हमारा जुलाई) रख दिया। जूलियस सीजर के सम्मान में था। इस नए कैलेंडर का नाम जूलियन कैलेंडर रखा गया। बाद में रोमन सीनेट ने सेक्सटिलिस महीने का नाम बदल कर ऑगस्टस (ऑगस्ट) रख दिया जो राजा ऑगस्टस के सम्मान में था।

सात दिनों का सप्ताह

321 ई. में सम्राट कन्स्टैंटाइन ने सबसे पहले सात दिनों के सप्ताह की शुरुआत की थी। सप्ताह का पहला दिन संडे होता था और इसे क्रिश्चियन लोगों के लिए पूजा का दिन माना गया। यद्यपि इससे लोगों को काफी सुविधा हुई लेकिन इसमें भी कुछ खामियाँ रह गईं। जो अभी तक मौजूद हैं। जूलियन और मिस्र दोनों कैलेंडर्स का स्थाईकरण हो चुका है अर्थात प्रत्येक वर्ष दूसरे अन्य वर्षों की तरह समान होता है। लेकिन सम्राट कन्स्टैंटाइन के सुधारों के आने के बाद जूलियन कैलेंडर में थोड़ा-थोड़ा शिफ्ट होने लगा। चूंकि इसमें सात दिनों के सप्ताह की कुल संख्या 52 है अतः कुल मिलाकर 364 दिन ही होते हैं जो कि वर्ष के दिनों की कुल संख्या से 1 कम है जबकि लीप वर्ष से यह संख्या दो कम है।

ग्रेगोरियन कैलेंडर

एक सूर्य वर्ष की वास्तविक लंबाई है 365 1/4 दिनों में थोड़ी कम। यह है 365ण्242199 दिन या 365 दिन पांच घंटे, 40 मिनट और 46 सेकेंड। इसलिए जूलियन कैलेंडर करीब 11 मिनट लंबा माना गया जो कुछ शताब्दियों के बाद कई दिनों के अंतराल में बदल जाता था। 1502 में कैलेंडर में एक अन्य सुधार किया गया। जिसे पोप ग्रेगोरी ग्प्प्प् ने निर्धारित किया। इसमें कैलेंडर को ऋतुओं के अनुसार एडजेेस्ट किया गया। इसके लिए गणितज्ञ क्रिस्टोफर क्लोवियस और खगोलविद-भौतिकविद Aloysius Lilius की सेवाएं ली गईं। उन्होंने पाया कि जूलियन कैलेंडर की अतिरिक्त लंबाई की वजह से जो गल्तियाँ हो गई थीं उनकी कुल संख्या 10 दिन थी। अतः वर्ष को सही करने के लिए उन्होंने जूलियन कैलेंडर में से 10 दिनों को कम कर दिया और 4 अक्टूबर 1582 को 15 अक्टूबर 1582 माना जाने लगा। इन 10 दिनों के नुकसान से कुछ भ्रम अवश्य हुआ लेकिन बाद में इसी ग्रेगोरियन कैलेंडर को ही काम में लिया जाने लगा।
सभी रोमन कैथोलिक देशों ने ग्रेगोरियन सुधारों को मान लिया लेकिन अंग्रेजों ने इसे 1752 तक स्वीकार नहीं किया था। जापान ने इसे 1873 में, चीन ने 1912 में, ग्रीस ने 1924 में और तुर्की ने 1927 में इसे अपनाया।

प्रयोग में लाए जाने वाले अन्य कैलेंडर्स

वर्तमान समय में ग्रेगोरियन कैलेंडर ही अकेला कैलेंडर नहीं हैं जिसे प्रयोग किया जाता है, बल्कि धार्मिक कार्यों के लिए ज्यूस ने हिबू्र कैलेंडर की शुरुआत की जो चंद्र चक्रों पर आधारित है। इसमें 12 महीने होते हैं जो 29 और 30 दिनों को क्रम में होते हैं। 29 दिनों का एक अतिरिक्त महीना प्रति 19 वर्षों के एक चक्र में सात बार जोड़ा जाता है। जब भी ऐसा होता है 29 दिनों के किसी एक महीने में एक अतिरिक्त दिन जुड़ जाता है। यह वर्ष शरद ऋतु में शुरु होता है।
दूसरा महत्वपूर्ण इस्लामिक या मुस्लिम कैलेंडर है। यह भी चंद्र चक्रों पर आधारित है। इसमें 354 दिन और 12 महीने होते हैं जिनमें से आधे 29 दिनों के है और आधे 30 दिनों के। एक चक्र के 30 वर्षों के बाद और प्रत्येक चक्र में 11 बार एक अतिरिक्त दिन वर्ष के अंत में जुड़ता जाता है। मुस्लिम कैलेंडर की शुरुआत हजीरा वर्ष के पहले दिन से होती है जहां से मोहम्मद साहब का मदीना यात्रा संपन्न हुई थी। यह तारीख थी 15 जुलाई 622 जो कि क्रिश्चियन काल में आती थी।
यद्यपि ग्रेगोरियन कैलेंडर चीन का अधिकारिक कैलेंडर है फिर भी चीनी नया वर्ष अभी भी पुराने चीनी चंद्र कैलेंडर से ही लगाया जाता है। इस चंद्र वर्ष के 12 महीनों के नाम 13 पशुओं के नाम पर होते हैं जो चीनी राशियां मानी जाती हैं जैसे चूहा, बेल, शेर, खरगोश, सांप, घोड़ा, भेड़, बंदर, कुत्ता, सुअर, सपक्ष सर्प, मुर्गा।

कैलेंडर में आधुनिक सुधार

ग्रेगोरियन कैलेंडर ने लोगों की सेवा करीब चार शताब्दियों तक करी। फिर भी कुछ लोगों ने सोचा कि ऐसे सुधार किए जाएं जो ऋतुओं के अनुसार कैलेंडर में स्थिरता लाएं। 1834 में Abbe Marco Mastrofini ने एक योजना लाई जिसमें प्रत्येक वर्ष समान होगा और खोई स्थिरता वापस लाई जाएगी। इस कैलेंडर में 364 दिन थे। 364 एक ऐसी संख्या है जो कई तरीकों से विस्थापित की जा सकती है। 365 वां दिन और लीप वर्ष का 366 वां दिन वर्ष के अतिरिक्त दिनों के रूप में डाले गए। प्रत्येक वर्ष रविवार, जनवरी 1 से शुरु होगा। ।इइम का यह आइडिया इतना सरल था कि अधिकांश आधुनिक कैलेंडरों के सुधार कर्ताओं ने इसे अपने प्रस्ताव का आधार बना लिया। ये कैलेंडर सुधार तब तक चलते रहे जब तक लीग ऑफ नेशन्स ने 1923 में इसके बारे में प्रश्न नहीं पूछा। एक प्रस्ताव यह आया कि विश्व कैलेंडर को आसानी से कटने वाले नंबर 12 पर आधारित होना चाहिए जो कि एक अच्छा विचार था। इस कैलेंडर में वर्ष का प्रत्येक चौथाई भाग अर्थात 91 दिन या 13 सप्ताह या तीन महीने एक ऋतु के बराबर माने जाते थे। इस कैलेंडर में प्रत्येक वर्ष प्रत्येक अन्य वर्ष के बराबर होता था। उदाहरण के लिए वर्ष का पहला दिन एक रविवार को पड़ता था और क्रिस्मस का दिन यानी 25 दिसंबर के बाद और पहला जनवरी के पहले डाला जाता था। लीप वर्ष में 366 वां दिन 30 जून और पहली जुलाई के बीच डाला जाता था। 

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