गागरिन ने देखा था एक सुखद सपना
शुकदेव प्रसाद
12 अप्रैल, 1961 विज्ञान के इतिहास का एक महत्वपूर्ण दिन है। इसी दिन आदमी के अंतरिक्ष विजय के सपने साकार हुए थे। मेजर यूरी गागरिन ने रूसी यान ‘वोस्तोक’ में बैठकर धरती की एक परिक्रमा की थी। सारी दुनिया सन्न रह गयी थी गागरिन की इस दिलेरी पर। आदमी के साहस, शौर्य और धैर्य का उत्कृष्ट नमूना - रोमांच से भरपूर।
रातों रात गागरिन अंतरिक्ष सितारे बन गए। दुनिया के कोने-कोने से उन्हें बधाइयां मिलीं। उन्होंने ने कई देशों की यात्राएँ भी कीं। भारत आगमन के अवसर पर उनका गर्म जोशी से स्वागत किया गया। राजधानी के अतिरिक्त उन्होंने कई और भारतीय नगरों का भ्रमण किया। एक सभा में बोलते हुए प्रथम अंतरिक्ष यात्री गागरिन ने किसी भारतीय के साथ अंतरिक्ष यात्रा की आकांक्षा प्रकट की थी -‘एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री के साथ, अंतरिक्ष की यात्रा करने में मुझे प्रसन्नता होगी।’
इतना ही नहीं, एक अन्य स्थल पर बोलते हुए उन्होंने अपने उद्गार व्यक्त किए थे - ‘किसी दिन यह संभव होगा कि सोवियत और भारतीय अंतरिक्ष यात्री मिलकर अंतरिक्ष का अन्वेषण करेंगे।’
गागरिन ने जो सुखद सपना देखा था, 23 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद वह साकार भी हुआ। गागरिन ने जब यह बात कही थी, तब किसने सोचा था की ऐसा कुछ भविष्य में घटित होने वाला है। नहीं कहा जा सकता, कब कौन सी बात अत्यंत महत्वपूर्ण और कालजयी बन जाय। यह अलग बात है, आज मेजर गागरिन हमारे बीच नहीं हैं पर उनके परवर्तियों ने गागरिन के सपने को सच में परिणत कर दिखाया। यह हर्ष और गौरव की बात है की सोवियत यात्रियों के साथ एक भारतीय नागरिक भी अंतरिक्ष की सैर करके वापस आ चुका है। इस संयुक्त उड़ान के साथ भारत-सोवियत मैत्री की एक और नायाब मिसाल कायम हो चुकी है।
सोवियत संघ की पेशकश
वर्ष 1979 में भारत की यात्रा के अवसर पर सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति लियोनिद ब्रेझनेव ने अपने एक महत्वपूर्ण व्याख्यान में अपनी अभिलाषा प्रकट की, जो दो दशक पूर्व गागरिन ने प्रकट की थी। किसी भारतीय के साथ अंतरिक्ष यात्रा का प्रस्ताव रखते हुए ब्रेझनेव ने कहा -‘वह दिन शीघ्र ही आएगा, जब भारतीय और सोवियत यात्री संयुक्त उड़ान भरेंगे और दोनों देशों की जनता उनका उत्साह के साथ अभिनंदन करेगी।’
तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इदिरा गांधी ने सोवियत मित्रों की हार्दिक इच्छा का स्वागत करते हुए घोषणा की कि भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने और उनमें से एक को ‘सैल्यूत’ क्रम के सोवियत कक्षीय स्टेशन में भेजने के सोवियत सरकार के प्रस्ताव को भारत सरकार ने मंजूर कर लिया है। संसद में भाषण करते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा - ‘भारत ने सोवियत संघ का प्रस्ताव न केवल इसलिए माना कि यह भारत के लिए मूल्यवान है, और इसका आयाम विस्तृत है, बल्कि इसलिए भी कि भारतीय अंतरिक्ष यात्री की उड़ान देश की नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद होगी।
लंबे अरसे से चली आ रही वार्ता ने भारतीय नागरिक की अंतरिक्ष यात्रा की बुनियाद डाली और सोवियत-भारतीय मैत्री के प्रतीक के रूप में भारत भूमि के एक वासी ने सोवियत यात्रियों के साथ अंतरिक्ष में उड़ान की और सकुशल धरती पर लौट भी आया।
उस सौभाग्यशाली का नाम है राकेश शर्मा जिसे प्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री होने की विशिष्ट गरिमा मिली। 3 अप्रैल, 1984 को भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा ने ‘सोयूज टी-11’ यान में बैठ कर उड़ान भरी। साथ में सोवियत संघ के कमांडर यूरी मैलिशेव तथा इंजीनियर गेन्नाडी स्त्रेकालेव भी थे। पूर्व स्थापित प्रयोगशाला ‘सैल्यूत-7’ में 8 दिन तक रहकर 11 अप्रैल, 1984 को सकुशल यात्रीगण धरती पर वापस आए।
इस ऐतिहासिक उड़ान के साथ ही भारत का नाम उन राष्ट्रों में शुमार हो गया जिनके यात्री अंतरिक्ष यात्रा कर चुके हैं।
इस यात्रा से राकेश शर्मा को अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाले 138 वें व्यक्ति की संज्ञा मिली और अंतरिक्ष में अपना यात्री भेजने वाले राष्ट्रों की कोटि में भारत का नाम 14 वें स्थान पर अंकित हुआ।
भारतीय अंतरिक्ष यात्री का चयन और प्रशिक्षण
यह कहने में बड़ा आसन लगता है की भारत भूमि से भी एक आदमी अंतरिक्ष की यात्रा करके सकुशल धरती पर वापस आ चुका है पर बात इतनी आसन नहीं। यात्रा से पूर्व अंतरिक्ष यात्रियों को कई कठिन परीक्षणों से गुजरना पड़ता है, लंबी अवधि तक उन्हें खासा प्रशिक्षण लेना पड़ता है, तब कहीं जाकर सफल होती है अंतरिक्ष की यात्रा।
यात्रा से पूर्व अंतरिक्ष यात्री का चुनाव अपने आप में जटिल समस्या है। वास्तव में अंतरिक्ष यात्रा के लिए किसी कुशल विमान चालक का अनुभव लाभप्रद होता है। इसी नाते प्रारम्भ में भारतीय वायु सेना के 150 प्रत्याशियों में से 20 का चुनाव किया गया। लगभग 4 महीनों की गहरी परख के बाद इनमें से 8 को चुना गया।
इनकी डाक्टरी जांच के बाद 4 प्रत्याशियों को मास्को भेजा गया। फिर यहाँ शुरू हुआ लगभग एक पखवाड़े तक कठिन परीक्षणों का दौर। प्रत्येक को अलग-अलग कमरों में लगभग 72 घंटे की अवधि तक एकदम निपट अकेला रखा गया। किसी भी तरह का कोई संपर्क नहीं। सिर्फ टिमटिमाती हुई हल्की सी लैम्प की रोशनी। एक छोटे से गुप्त दरवाजे से उन्हें भोजन पहुँचाया जाता था। चूंकि अंतरिक्ष यान में भी ऐसे ही अलग-थलग तन्हा यात्रा करनी पड़ती है, अतः प्रत्याशियों में से कौन ऐसी एकांतिक यात्रा के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से अपने को तैयार कर पाता है, इसकी जाँच के लिए कठोर परीक्षण किया गया और इनमें से अंततः दो भारतीय चुने गए।
ये दोनों भारतीय थे-स्क्वाड्रन लीडर श्री राकेश शर्मा और विंग कमांडर श्री रवीश मल्होत्रा। दोनों योग्यता प्राप्त कुशल विमान चालक हैं। 25 दिसंबर 1943 को जन्मे रवीश मल्होत्रा ने तब तक 3400 घंटों की उड़ानें की थी और 13 जनवरी, 1949 को जन्मे राकेश शर्मा को तब तक 1600 घंटों तक विमान के उड़ान का खासा अनुभव था।
प्रशिक्षण का दौर
अंतरिक्ष यात्रा से पूर्व अंतरिक्ष यात्री को कई तरह के दौर से गुजरना पड़ता है ताकि वे अंतरिक्ष की गुरुत्वहीन परिस्थितियों के अनुरूप अपने आप को ढाल सकें, अन्यथा जरा सी भी गफलत से जान भी जा सकती है। निर्धारित योजना के अनुसार अप्रैल 1984 में ‘भारत-सोवियत संयुक्त उड़ान’ होनी थी, अतः दोनों भारतीयों का प्रशिक्षण सोवियत संघ के ‘ब्रेझनेव नक्षत्र-नगरी’ के यूरी गागरिन केंद्र में 1982 से ही प्रारंभ हो गया।
सहज ही प्रश्न उठता है की जब एक ही यात्री को अंतरिक्ष यात्रा करनी थी तो दो यात्रियों को लंबी ट्रेनिंग क्यों दी गई ? ऐसा मात्र विकल्प के लिए किया गया था। यदि अंतिम क्षण तक किसी भी के साथ कोई बाधा उपस्थित हो जाय तो दूसरे को उसकी जगह पर भेज दिया जाये। और मजे की बात यह है कि उड़ान के चंद घंटे पूर्व ही यह निर्धारित किया जाता है कि अंततः कौन उड़ान भरेगा पर क्या मजाल कोई यात्री इस प्रशिक्षण के दौरान जरा सी भी लापरवाही बरते। अंत तक उसी उत्साह और लगन के साथ दोनों भारतीय विमान चालक प्रशिक्षण लेते रहे।
प्रारंभ में ही तीन-तीन अंतरिक्ष यात्रियों के दो दल बनाए गए थे। पहले दल में दो सोवियत यात्रियों के साथ राकेश शर्मा को रखा गया था और दूसरे दल में दो सोवियत यात्रियों के साथ रवीश मल्होत्रा को। चूंकि प्रशिक्षण रूसी भाषा में ही हुआ, अतः रवीश और राकेश दोनों ने रूसी भाषा का ठीक से अभ्यास किया और कई सैद्धांतिक तथा प्रायोगिक प्रशिक्षण प्राप्त किए।
सैद्धांतिक प्रशिक्षण
सैद्धांतिक प्रशिक्षण के कुछ अंग इस प्रकार हैं :
- अंतरिक्ष उड़ान गतिकी
- कम्प्यूटर तकनीक
- अंतरिक्ष यान डिजाइन
- विकिरण सुरक्षा
- अंतरिक्ष यान संचालन
- वायु अंतरिक्षीय चिकित्सा
- प्रायोगिक प्रशिक्षण
वस्तुतः प्रायोगिक प्रशिक्षण अपने आप में महत्वपूर्ण चरण है। अंतरिक्ष यान को लेकर राकेट उड़ता है तो भयानक गर्जना होती है, अचानक यान में बैठे यात्रियों का भार पांच गुने ज्यादा हो जाता है। प्रक्षेपण राकेट के इंजन बंद होते ही भारहीनता की स्थिति आ जाती है। वस्तुतः यह बड़ी कठिन घड़ी होती है। इन प्रतिपल बदलती हुई परिस्थितियों में अंतरिक्ष यान का नियंत्रण, धरती के साथ संपर्क आदि करने में अंतरिक्ष यात्री का अत्यधिक सक्षम होना जरूरी है, इसी नाते उसे कई तरह के प्रायोगिक प्रशिक्षण दिए जाते हैं। इस प्रशिक्षण के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं :
- कठोर शारीरिक व्यायाम
- वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में शून्य गुरुत्व की उड़ानों में सहभागिता।
- घूर्णन करने वाली कुर्सियों और अपकेन्द्रण (ब्मदजतपनिहम) कक्षाओं में प्रशिक्षण।
- समुद्र में जीवित रहने का प्रशिक्षण।
- यान से धरातल पर उतरने और साथ ही
- समुद्र में उतरने का प्रशिक्षण।
- यह सब इस नाते किया जाता है की आपातकाल में यदि उन्हें समुद्र में उतरना पड़े तो वे बाहर आकर बचे रहने के तौर तरीकों से परिचित हो सकें।
इस उड़ान दल को अंतरिक्ष में पहले से ही स्थापित स्टेशन ‘सैल्यूत’ से अपना यान जोड़ना था और फिर सुरंग के जरिये उसमें जाकर पूर्व निर्धारित वैज्ञानिक प्रयोग करने थे, अतः इस तकनीकी प्रशिक्षण के अलावा किए जाने वाले प्रयोगों के लिए भी ट्रेनिग दी गई। प्रशिक्षण के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों ने अपना 70 प्रतिशत समय अंतरिक्ष यान और उसका नियंत्रण करने में गुजारा।
भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण का पहला दौर सितम्बर 1982 में और दूसरा सितम्बर 1983 से आरंभ हुआ। यह दौर उड़ान के लगभग पूर्व तक चलता रहा।
‘नक्षत्र-नगरी (ैजंत ब्पजल), जहाँ भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण दिया गया, को देखने प्रधान मंत्री श्रीमती इदिरा गांधी भी गई थीं। 23 सितम्बर 1983 को उन्होंने ‘नक्षत्र-नगरी’ में भारतीय और सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों से मुलाकात की और उनको प्रोत्साहित किया। विदा होने से पूर्व उन्होंने वहाँ की दर्शक-पुस्तिका में अपनी टिप्पणी लिखी - ‘अंतरिक्ष यात्रियों की उपलब्धियां मानव के अदम्य उत्साह और महान कार्य करने के उसके अक्षय एवं दुर्दम साहस का प्रतीक हैं।’
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