ऐतिहासिक पृष्ठ


भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की पूर्व पीठिका

शुकदेव प्रसाद
 
 
वस्तुतः डॉ. विक्रम साराभाई भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान के पर्याय कहे जा सकते हैं। डॉ. साराभाई की विकास यात्रा भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान की विकास यात्रा है। इस पृष्ठभूमि को समझने के लिए हमें विक्रम साराभाई के जीवन पर दृष्टिपात करना होगा। 12 अगस्त, 1919 को अहमदाबाद के एक उद्योगपति परिवार में विक्रम साराभाई का जन्म हुआ था। पिता का नाम अम्बालाल साराभाई था और माँ थीं- श्रीमती सरलादेवी साराभाई। गुजरात कॉलिज से विशेष योग्यता के साथ इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद साराभाई उच्च अध्ययन के लिए कैम्ब्रिज चले गए। उस समय विक्रम साराभाई की उम्र 18 वर्ष की थी। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से विक्रम ने 1940 में भौतिकी और गणित के साथ ट्रिपोस परीक्षा उत्तीर्ण की और नाभिकीय भौतिकी में स्नातकोत्तर अध्ययन प्रारंभ किया। चूँकि उस समय द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो चुका था, अतः विक्रम 1940 में भारत वापस आ गए। यहाँ आकर प्रख्यात विज्ञानी प्रो.सी.वी.रामन् के साथ बंगलूर स्थित ‘इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ सायंस’ में उन्होंने कॉस्मिक किरणों’ पर शोध कार्य आरंभ किया। यह कहना अप्रासंगिक न होगा कि वर्ष 1942-43 में भी, विक्रम साराभाई अहमदाबाद में ‘भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला’ स्थापित करने की योजना का प्रारूप बना रहे थे। और जब वे वैज्ञानिक विचार-विमर्श के लिए पूना आए, तो उन्होंने प्रयोगशाला की भावी रूप रेखा के बारे में डॉ.के.आर। रामानाथन् से बातचीत की। वर्ष 1945 में उनके अभिभावकों ने ‘कर्मक्षेत्र एजूकेशनल फाउंडेशन’ की स्थापना की जिसका मकसद था विज्ञान के क्षेत्र में उच्च अनुसंधान करना और शैक्षणिक क्रिया-कलापों के लिए सहायता और प्रोत्साहन प्रदान करना।
सन् 1945 में जब दूसरा महायुद्ध समाप्त हो गया तो साराभाई कैम्ब्रिज चले गए और 1946 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पी.एच-डी. डिग्री के लिए अपनी थीसिस जमा कर दी। उनकी थीसिस का शीर्षक था- ‘कॉस्मिक रेज इन्वेस्टीगेशन्स इन ट्रोपिकल लैटीट्यूड्स’। यह थीसिस बंगलौर और कश्मीर क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए अध्ययनों पर आधारित थी। 1947 में विश्वविद्यालय ने उन्हें पी.एच-डी। की डिग्री दे दी और वे स्वदेश लौट आए।
 
भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना
भारत लौटते ही उन्होंने अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना के काम में बड़ी दिलचस्पी ली। यद्यपि कॉस्मिक किरणों पर अनुसंधान के लिए उनके पास ‘रिट्रीट’, साहिब बाग में, एक प्रयोगशाला पहले से ही थी फिर भी एक बृहतराष्ट्रीय प्रयोगशाला की स्थापना का सपना अरसे से वह देख रहे थे। चूँकि रामानाथन् की दिलचस्पी वायुमंडलीय भौतिकी, भू-चुम्बकत्व और भू-सौर सम्बन्धों में थी, अतः इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए डॉ। साराभाई ने उनसे अपनी भावी प्रयोगशाला को ज्वाइन करने की पेशकश की और यह भी कि कब वे इस नई टोली में अपने को शामिल कर सकेंगे। डॉ। रामानाथन् ने साराभाई को स्वीकृति दे दी और यह भी कहा कि भारतीय मौसम विभाग से 28 फरवरी, 1948 को अवकाश प्राप्त करने के बाद उनकी पूर्ण सेवाएँ साराभाई की नई प्रयोगशाला को मिल सकेंगी।
 
प्रयोगशाला का जन्म
डॉ. साराभाई ने ‘अहमदाबाद एजूकेशनल सोसायटी’ के अधिकारियों से भी बातें कीं कि वे नई प्रयोगशाला की स्थापना में ‘कर्मक्षेत्र एजूकेशनल फाउंडेशन’ का सहयोग करें। नवम्बर 1947 में उक्त दोनों संस्थाओं के बीच एक समझौता हुआ ताकि भौतिक प्रयोगशाला की स्थापना अहमदाबाद में हो सके। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद और परमाणु ऊर्जा विभाग की अनौपचारिक स्वीकृति और सहयोग भी मिला। उल्लेखनीय है कि उस समय उक्त दोनों संस्थाओं के सर्वे सर्वा क्रमशः डॉ.शांति स्वरूप भटनागर और डॉ.होमी जहाँगीर भाभा थे।
अभी प्रयोगशाला की अपनी कोई ज़मीन आदि तो थी नहीं, अतः अहमदाबाद एजूकेशनल सोसायटी ने कार्य शुरू करने के लिए महात्मा गांधी विज्ञान संस्थान में कुछ कमरे दे दिए और वहाँ एक छोटी सी प्रयोगशाला और कार्यशाला के रूप में ‘भौतिक अनुसंधानशाला’ का कार्य आरंभ हुआ। मार्च, 1948 में ही, डॉ। रामानाथन ने भौतिक अनुसंधानशाला के निदेशक और वायुमंडल भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में ज्वाइन कर लिया। डॉ.साराभाई कॉस्मिक किरण शोध के प्राध्यापक थे। प्रयोगशाला के निदेशक के रूप में जिम्मेदारी संभालने के कुछ ही महीनों बाद प्रयोगशाला ने डॉ। रामानाथन को यूरोप की वैज्ञानिक यात्रा पर भेजा ताकि विदेशी प्रयोगशालाओं को देख कर वे समझ सकें कि इस नई प्रयोगशाला को किन-किन उपकरणों की जरूरतें हैं। उन्होंने आयरलैंड, नार्वे, स्वीडन, बेल्जियम, फ्रांस आदि देशों की यात्राएँ की, बहुत से वैज्ञानिकों से भेंट की और ढेर सारे अनुभवों के साथ भारत वापस आए। 1950 में प्रयोगशाला की प्रबंध समिति का गठन किया गया, जिसमें अहमदाबाद एजूकेशनल सोसायटी, कर्मक्षेत्र एजुकेशन फाउंडेशन, प्राकृतिक संपदा एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय, परमाणु ऊर्जा आयोग (भारत सरकार), बम्बई सरकार के प्रतिनिधि शामिल थे।
 
पहली प्रबंधक समिति के सदस्य इस प्रकार थे :
 श्री कस्तूरभाई लालभाई (अहमदाबाद एजूकेशनल सोसायटी के प्रतिनिधि)
  • · डॉ. शांति स्वरूप भटनागर, महानिदेशक- वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (भारत सरकार और परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रतिनिधि)
  • · डॉ.के.एस। कृष्णन, निदेशक- राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (अहमदाबाद एजूकेशनल सोसायटी के प्रतिनिधि)
  • · प्रो.वाई.जी. नायक, गुजरात कालेज, अहमदाबाद (बम्बई सरकार के प्रतिनिधि)
  • · प्रो.विक्रम साराभाई, भौतिक अनुसंधानशाला, अहमदाबाद (कर्मक्षेत्र एजूकेशन फाउंडेशन के प्रतिनिधि)
  • प्रो.के.आर. रामानाथन, निदेशक- भौतिक अनुसंधानशाला, अहमदाबाद (भू.पू. सदस्य)
  • अनुसंधानशाला के भवन निर्माण और क्षेत्र अनुसंधान के लिए जमीनें अहमदाबाद एजूकेशनल सोसायटी ने प्रदान की और 15 फरवरी, 1952 को भौतिक अनुसंधानशाला की नींव प्रख्यात नोबेल विज्ञानी सर सी.वी. रामन ने रखी, और पहले भवन का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने 10 अप्रैल, 1954 को किया।
डॉ. रामानाथन को वर्ष 1951 से 1954 तक की अवधि के लिए ‘अन्तर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन’ का अध्यक्ष चुना गया। वर्ष 1954-57 की अवधि के लिए वे ‘अन्तर्राष्ट्रीय भू-गणित और भू-भौतिकी संघ’ के भी अध्यक्ष चुने गए। 1953-54 में ‘अन्तर्राष्ट्रीय भू-भौतिकी वर्ष’ की योजनाओं को क्रियान्वित किया गया। डॉ। रामानाथन् तथा डॉ. साराभाई दोनों ने मिलकर बड़ी तत्परता से योजनाओं की रूपरेखा तैयार की जिनमें भू-विज्ञान, भू-चुम्बकत्व और कॉस्मिक किरणों के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बद्ध अध्ययन शामिल थे।
 
भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला और भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान का विकास
कदाचित भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान की विकास यात्रा भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला से पर्याप्त तालमेल रखती है। इसी नाते अंतरिक्ष अनुसंधान की शुरूआत हम पी.आर.एल। की स्थापना से ही मानते हैं। वस्तुतः भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के बीज यहीं पर पनपे थे। अन्तर्राष्ट्रीय भू-भौतिकी वर्ष की समाप्ति के बाद कृत्रिम उपग्रह हकीकत बन चुके थे। अतः भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला ने अपने अन्तरिक्ष विषयक अनुसंधानों की बढ़ोत्तरी में सहयोग के लिए परमाणु ऊर्जा विभाग के पास निवेदन भेजा। विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ.होमी जहाँगीर भाभा ने भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के कार्यों और उपलब्ध सुविधाओं की जाँच के लिए विशेषज्ञों की एक टोली भेजी और संतोषजनक रपट मिल जाने पर डॉ। भाभा ने भारत सरकार को अपनी अनुशंसा में लिखा कि परमाणु-ऊर्जा विभाग उक्त प्रयोगशाला को अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए ग्रांट दे सकता है और प्रयोगशाला की प्रबंध व्यवस्था एक ऐसी समिति को सौंप दिया जाये जिसमें भारत सरकार, गुजरात सरकार, अहमदाबाद एजूकेशनल सोसायटी, कर्मक्षेत्र एजूकेशनल फाउंडेशन और उक्त प्रयोगशाला के निदेशक प्रतिनिधि हों। यह निर्णय सभी ने स्वीकारा और 5 फरवरी, 1963 को एक समझौते पर हस्ताक्षर के साथ योजना के क्रियान्वयन की शुरूआत हुई।
1962 के प्रारंभ में परमाणु-ऊर्जा विभाग ने अपनी देखरेख में बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए ‘अंतरिक्ष अनुसंधान की भारतीय समिति’ गठित की। डॉ. विक्रम साराभाई इसके अध्यक्ष बनाए गए और 11 अन्य सदस्य थे जिनमें से अधिकांश पी.आर.एल.के वैज्ञानिक थे। डॉ. साराभाई ने अरब सागर के किनारे थुम्बा नामक स्थान चुना, जो राकेट प्रक्षेपण के लिए सर्वथा उपयुक्त था। डॉ। साराभाई ने अपनी निष्ठा, लगन और डॉ। होमी भाभा के स्नेहपूर्ण सहयोग से अत्यल्प समय में ही थुम्बा में राकेट लांचिंग के लिए सारी सुविधाएँ जुटा लीं।
अक्टूबर 1963 में अंतरिक्षीय गतिविधियों का प्रशासनिक कार्यभार भारत सरकार ने डॉ। साराभाई के निर्देशन में पी.आर। एल। को सौंप दिया। 21 नवम्बर, 1963 की शाम को थुम्बा से पहला राकेट अंतरिक्ष में दागा गया। आगामी वर्षों में डॉ. साराभाई ने पी.आर.एल. में विभिन्न क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुसंधान की सुविधाएँ जुटाने, सक्षमता बढ़ाने और योग्यता अर्जित करने में कोई कोर-कसर न छोड़ी। पी.आर.एल. के वैज्ञानिकों ने एक तरफ राष्ट्रीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों के प्रबंधन और प्रशासन में दिलचस्पी ली तो दूसरी ओर अंतरिक्ष अनुसंधान में भी अपनी अहम् भूमिका निभायी। सच यही है कि देश में अंतरिक्ष अनुसंधान का जो ‘टेम्पो’ बना, वह पी.आर.एल.की ही देन है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के शुरुआती दौर में सभी विकासशील राष्ट्र विकसित राष्ट्रों से तकनीकी सहयोग के लिए दोस्ती भरे हाथ की जरूरत महसूस करते हैं। डॉ. भाभा और डॉ. साराभाई दोनों का यह विश्वास था कि निरंतर विदेशी सहायता पर निर्भर रहना भविष्य में निराशाजनक होगा अतः विकासशील राष्ट्रों को तनीकी आत्मनिर्भरता स्वयं अपने प्रयासों से हासिल करनी चाहिए और इस तरह पी.आर.एल.राकेटों में प्रयुक्त होने वाले वैज्ञानिक नीतभारों के विकास और निर्माण का केन्द्र बन गया। राकेटों के प्रक्षेपण और निर्माण की तकनीकों तथा सम्बद्ध दूर संचार एवं डाटा प्रोसेसिंग सुविधाओं के विकास के लिए ‘थुम्बा’ संगठन का विस्तार किया गया। ‘इन्कोस्पार’ के तत्वावधान में अहमदाबाद में वर्ष 1965-67 के दौरान एक प्रयोगात्मक उपग्रह संचार भू-केन्द्र की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य शैक्षणिक टी.वी., प्रसारण और अन्य राष्ट्रीय सेवाओं की आधारशिला रखना था।
जनवरी 1966 में एक हवाई दुर्घटना में जब डॉ। भाभा की दुखद मृत्यु हो गई तो परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष अनुसंधान दोनों की जिम्मेदारी डॉ। साराभाई के कंधों पर आ गई। डॉ. साराभाई ने अपनी जिम्मेदारी समझी और अहमदाबाद तथा थुम्बा दोनों स्थानों पर अंतरिक्ष अनुसंधान संबंधी गतिविधियों में तेजी आयी। फरवरी 1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने थुम्बा राकेट प्रक्षेपण केंद्र को ‘अन्तर्राष्ट्रीय भूमध्य रेखीय प्रक्षेपण केन्द्र’ के रूप में संयुक्त राष्ट्र को सर्मिपत किया।
राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में योगदान और अंतरिक्ष अनुसंधान के राष्ट्रीय कार्यक्रमों को संचालित करने के लिए 1969 में परमाणु ऊर्जा विभाग के अन्तर्गत ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ का गठन किया गया जिसका प्रशासनिक नियंत्रण पी.आर.एल। के निदेशक (यानी डॉ. साराभाई) को सौंपा गया। दिसम्बर 1971 में थुम्बा केन्द्र में डॉ। साराभाई राकेट छोड़ने का मार्गदर्शन कर रहे थे। 29 तारीख की रात को उनका त्रासद निधन हो गया। इस तरह हमने भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के जनक को खो दिया। डॉ. साराभाई के निधन के बाद 1972 में एक नये विभाग ‘अंतरिक्ष विभाग’ की स्थापना की गई। प्रो. सतीश धवन इसके सचिव और ‘इसरो’ के अध्यक्ष नियुक्त किए गए।
डॉ. साराभाई की लगन और दूरर्दिशता का ही यह परिणाम है कि आज अहमदाबाद में न केवल ‘भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला’ है, अपितु अन्य सहयोगी संस्था ‘अंतरिक्ष अनुप्रयोग केन्द्र’ भी स्थापित हो चुकी है जिसकी कई उपयोगी यूनिटें यथा- प्रयोगात्मक उपग्रह संचार भू-केन्द्र, उपग्रह आदेशात्मक टेलीविजन प्रयोग; उपग्रह संचार प्रणाली प्रयोग, इलेक्ट्रानिक प्रणाली प्रभाग; श्रव्य-दृश्य आदेश विभाग; सूक्ष्म तरंग विभाग; तथा सुदूर संवेदन एवं मौसम अनुप्रयोग प्रभाग आदि कार्यरत हैं। देश में अंतरिक्ष अनुसंधान की आधारशिला रखने और उसका जाल बिछाने में भौतिक अनुसंधान शाला का अभूतपूर्व योग है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता है। और कुल मिलाकर यह सारा करिश्मा डॉ। साराभाई की देन है। आज भी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एवं अनुसंधान संबंधी सारी आयोजना व तकनीकी प्रबंध अहमदाबाद की ‘भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला’ ही करती है। देश के प्रख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिक यथा डॉ.यू.आर. राव, डॉ. सत्य प्रकाश, के. कस्तूरीरंगन आदि पी.आर. एल. की ही देन हैं।
 
अंतरिक्ष अनुसंधान का वर्तमान ढांचा
‘सरकार बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण को तथा अंतरिक्ष विज्ञान व प्रौद्योगिकी के विकास और उसके उपयोग को अत्यधिक महत्व देती है। अतः इस प्रौद्योगिकी की जटिलता, विषय की नवीनता, इसके विकास की सामाजिक प्रवृत्ति तथा अनेक क्षेत्रों में इसके उपयोगों को देखते हुए आवश्यक है कि सरकार इसके संचालन के लिए उचित संगठनात्मक ढाँचा तैयार करे।’ और इस प्रस्ताव के साथ 1972 में ‘अंतरिक्ष आयोग’ की स्थापना की गई। अंतरिक्ष विभाग की नीति का निर्धारण करना, सरकार की मंजूरी के लिए अंतरिक्ष विभाग के बजट को तैयार करना और बाह्य अंतरिक्ष से सम्बंधित सभी मामलों में सरकार की नीति का क्रियान्वयन जैसी जिम्मेदारियाँ आयोग को सौंपी गई हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसधान संगठन के माध्यम से देश में अंतरिक्ष उपयोग, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र से सम्बंधित अंतरिक्ष क्रिया कलापों के कार्यान्वयन के लिए अंतरिक्ष विभाग उत्तरदायी है। उल्लेखनीय है कि ‘इसरो’ के लिए सारा तकनीकी प्रबंध अहमदाबाद की पी.आर.एल. ही करती है। ‘अंतरिक्ष विभाग’ और ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (‘इसरो’) के मुख्यालय बंगलौर में स्थित हैं तथा ये ‘इसरो’ के निम्न चार केन्द्रों को तकनीकी, वैज्ञानिक और प्रशासनिक कार्यों का समग्र निर्देशन देते हैं।
 
अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, अहमदाबाद
राष्ट्र के सामाजिक, आर्थिक लाभ के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग हेतु परियोजनाओं की परिकल्पना, कार्यक्रम और निष्पादन तथा अनुसंधान कार्य ‘अंतरिक्ष उपयोग केंद्र’, अहमदाबाद द्वारा निष्पादित किए जाते हैं।
इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अंतरिक्ष उपयोग के दो व्यापक क्षेत्र हैं- उपग्रह आधारित संचारों पर कार्यक्रम और सुदूर संवेदन, मौसम विज्ञान एवं भू-गणित सम्बंधी कार्यक्रम। इन कार्यक्रमों का संचालन चार प्रमुख क्षेत्रों और उनकी सहायक सुविधाओं-संचार क्षेत्र, सुदूर संवेदन क्षेत्र, आयोजना एवं परियोजना समूह और सॉफ्टवेयर प्रणाली समूह द्वारा किया जाता है।
 
‘इसरो’ उपग्रह  केंद्र, बंगलौर
इसरो उपग्रह अनुप्रयोग केंद्र, बंगलौर ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ के उपग्रह कार्यक्रम का प्रमुख अंग है। भू-प्रक्षेपण उपग्रह, एरिएन पैसेंजर नीतिभार परीक्षण (एप्पल) उपग्रह और रोहिणी उपग्रह जैसी परियोजनाएँ इसकी कुछेक महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं। इस केंद्र के प्रमुख भाग हैं- इलेक्ट्रॉनिकी, यांत्रिकी प्रणालियों, नियंत्रण प्रणालियों एवं संवेदक, मिशन प्रचालन एवं आयोजना आदि के लिए सुविधाएँ।
 
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, त्रिवेन्द्रम
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, त्रिवेन्द्रम ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ के सभी केंद्रों में सबसे बड़ा है। इसकी छः प्रमुख यूनिटें हैं- अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र; थुम्बा भू-मध्य रेखीय राकेट प्रक्षेपण केंद्र, राकेट निर्माण सुविधा, राकेट प्रणोदक संयंत्र, राकेट र्ईंधन काम्पलेक्स और फाइबर प्रवलित प्लास्टिक केंद्र। ये यूनिटें प्रमुख रूप से प्रमोचक राकेटों या अंतरिक्षयान के लिए प्रौद्योगिकियों का उत्पादन करती हैं। इस केंद्र द्वारा संचालित दो प्रमुख परियोजनाएँ हैं- उपग्रह प्रमोचक यान (एस.एल.वी.) परियोजना और रोहिणी परिज्ञापी राकेट कार्यक्रम। विक्रम साराभाई केंद्र में विकास, उत्पादन और जांच के लिए विविध यांत्रिकी, रसायनिकी और इलेक्ट्रॉॅनिकी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं जो वर्तमान में चल रहे विभिन्न कार्यक्रमों की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हैं।
 
शार  केंद्र, श्रीहरिकोटा
शार केंद्र, श्रीहरिकोटा भारत का प्रमुख राकेट एवं उपग्रह प्रमोचक केंद्र है, जिसका कार्य है- राकेट जांच एवं प्रमोचन सुविधाएँ प्रदान करना, राष्ट्रीय उपग्रहों के रख-रखाव में प्रचलनात्मक सहायता के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के राष्ट्र व्यापी अनुवर्तन जाल कार्य की व्यवस्था करना और प्रमोचक राकेटों के लिए ठोस प्रणोदकों का उत्पादन करना। ‘शार’ रेंज में इसरो केंद्र काम्पलेक्स, स्थैतिक जांच एवं मूल्यांकन काम्पलेक्स, इसरो अनुवर्तन, दूर मिति आदेश एवं आंकड़ा ग्रहण जाल कार्य, ठोस प्रणोदक अंतरिक्ष वर्धक संयंत्र, शार कम्प्यूटर सुविधा, श्रीहरिकोटा सामान्य सुविधाएँ शामिल हैं। अब इस केंद्र का नाम ‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’ हो गया है। प्रो। धवन सबसे सुदीर्घ अवधि तक ‘इसरो’ के अध्यक्ष थे। उनकी स्मृति को जीवंत बनाने के लिए कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से पुष्पांजलि।
 
 
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