विज्ञान कथा


गुरु जी कहाँ चले?

डॉ.अरविंद दुबे

 

वे चमत्कारी गुरुजी जब से राजू के गाँव में आए थे तब से सारे गाँव में चहल-पहल थी। लोग कहते थे कि वे सिद्ध पुरुष हैं। कोई कहता वे कलियुग में भगवान के अवतार हैं। दूर-दराज के गाँवों से लोग पैदल या गाडि़यांे में भर-भर कर गुरुजी के दर्शनों को आते और तो और अब तो शहर से भी लोग मोटर गाडि़यों में गुरुजी के दर्शनों को पहुँचने लगे थे। कोई कहता कि गुरुजी ने किसी की कैंसर की बीमारी सिर्फ छू कर ठीक कर दी। कोई बताता कि बरसों से बिस्तर पर पड़े, चलने में असमर्थ व्यक्ति को गुरुजी ने सिर्फ छूकर ही चंगा कर दिया और कोई कहता कि वह आया तो था व्हील-चेयर पर बैठ कर और पैदल चल कर वापस जा रहा है। आस-पास सिर्फ गुरुजी के चमत्कारों के ही चर्चे थे। अखबारों में गुरुजी के बारे में खबरंे छपतीं थीं। गुरु जी के लिये गाँव वालों ने पक्का आश्रम बनवा दिया था। गुरु जी अपने चार शिष्यों के साथ उसी आश्रम में रहते थे। बहुत सवेरे से ही गुरुजी के आश्रम पर दर्शन करने वालों की भीड़ जुड़ने लगती। नियत समय पर गुरुजी अपने कक्ष से बाहर निकलते और दर्शनार्थियों को दर्शन देते। दर्शन देते समय गुरुजी अपने भक्त को कोई न कोई चमत्कार जरूर दिखाते। वे भक्त को हाथ फैलाने को कहते अपने खाली हाथ की उंगलियों को रगड़ते और उनके हाथ से खुशबूदार विभूति झड़ने लगती। भक्त श्रद्धा से उसे अपने हाथ पर लेकर माथे से लगाते और गुरु जी की जय-जय कार करते। लोगों का मानना था कि इस विभूति को लकवा (पक्षाघात) से पीडि़त व्यक्ति की टांगों पर लगाने से वे पुनः चलने लगते हैं। कभी-कभी गुरु जी अदृश्य में अपना हाथ लहराते उनके हाथ में कोई फल आ जाता। वे फल को प्रसाद के रूप में भक्त को पकड़ा देते। कुछ दिनों से आश्रम की व्यवस्था के नाम पर आश्रम में प्रवेश करने पर टिकट लगा दिया था। पचास रुपये का ये टिकट लेकर ही भक्त आश्रम में प्रवेश करते, गुरु जी से अपनी समस्या कहते और गुरु जी उनकी समस्या का समाधान बताते थे। भक्त चढ़ावा चढाता फिर समस्या के समाधान में जुट जाता। समाधान के तौर पर भक्त को या तो यज्ञ कराना होता या सवा मन आटे का प्रसाद चढाना होता या फिर कुछ और अर्थदान करना होता। समाधान की व्यवस्था गुरुजी के शिष्य ही करते। आश्रम की सम्पन्नता बढ़ रही थी। भक्तों का गुरुजी पर अटूट विश्वास बढ़ रहा था। यही नहीं राजू के गाँव के लोग भी गुरु जी की इस महिमा से कम लाभ नहीं उठा रहे थे। पूरे गाँव में खान-पीने की, रोजमर्रा के जरूरी सामानों की, प्रसाद की बहुत सारी दुकानें खुल गयीं थीं। गाँव में अब रोजगार की कमी नहीं थी। इस सब के बाद भी कुछ लोग ऐसे भी थे जो यदा-कदा गुरु जी के चमत्कारों पर अविश्वास जताते थे पर इतने अगाध भक्तों की भीड़ में उनकी आवाज दब जाती। कई बार बाहर आये वैज्ञानिकों की टोलियों ने गुरु जी के चमत्कारों की जांच करनी चाही पर गुरु जी ने उन्हें इसकी आज्ञा नहीं दी। वे समझाते ‘ये तो पराशक्ति और श्रद्धा का मामला है। इसमें संदेह की गुंजाइश कहां? भगवान को क्या किसी ने सिद्ध किया है? पर क्या भगवान नहीं हैं... इसमें किसी तर्क की गुंजाइश है क्या?’ 
गुरुजी ऐसे-ऐसे उदाहरण देते, ऐसी-ऐसी उपमायें बताते कि भक्त जय-जयकार करने लगते। वैज्ञानिक टोलियां निरुत्तर होकर लौट जाती। कभी-कभी कुछ हठी विज्ञानधर्मियों की टोली अगर नहीं समझती तो गुरु जी के शिष्यों के उकसाने पर भक्त जनों की टोलियाँ उन्हें खदेड़ देती। गाँव के कुछ ऐसे भी लोग थे जिनकी राजी-रोटी गुरुजी के भक्तों की आवाजाही से ही चलने लगी थी। ये लोग गुरु जी के चमत्कारों का बढ़-चढ़ कर बयान करते। वैज्ञानिकों की टोलियों को खदेड़ने में भी ये लोग सबसे आगे रहते। उन्हें डर था कि कहीं अगर किसी तरह से गुरु जी के चमत्कारों में कुछ गड़बड़ी निकल आई या इन वैज्ञानिक टोलियों ने ऐसा-वैसा कुछ सिद्ध कर दिया तो उनकी रोजी-रोटी का क्या होगा क्योंकि उनकी जिंदगी तो पूरी तरह गुरु जी के यश और चमत्कारों पर निर्भर थी। चलते समय गुरु जी के भक्त गुरु जी की फ्रेम की हुई तस्वीर ले जाना नहीं भूलते। ये गुरुजी की चमत्कारी तस्वीर थी। इस तस्वीर से अपने आप विभूति झड़ती। लोग इसे अपने घरों में पूजा की अल्मारियों में रखते। सवेरे उठकर तस्वीर से झड़ती विभूति इकट्ठी करते। कोई इसे माथे से लगता कोई शरीर से। लोगों का मानना था कि इस चमत्कारी विभूति को रोग ग्रस्त अंग पर लगाने से रोग जाता रहता है। कुछ लोग तो गंगा जल के साथ इसे फांक भी जाते। ये तस्वीर पाँच सौ रुपये से लेकर पाँच हजार रुपये तक के दामों में मिलती थी। हालांकि इसकी देखा-देखी गाँव वालों ने भी गुरुजी की तस्वीरंे अपनी दुकानों पर बेचना शुरू कर दिया था। पर ये ‘चमत्कारी तस्वीरें’ सिर्फ आश्रम में ही मिलतीं थीं। हालांकि बाहर वाले दुकानदार इन तस्वीरों को चमत्कारी कह कर ही बेचते थे और घर जाकर इन जब तस्वीरों से विभूति नहीं निकलती तो लोग आकर झगड़ा भी करते। अब उन्हें समझाया जाता कि जिसकी गुरु जी में आस्था नहीं है उनके घर में तस्वीर से विभूति नहीं निकलती है। कुछ धर्म से डरने वाले ये तर्क मान लेते पर जो फिर भी झगड़ा करते रहते उनके पैसे लौटा दिए जाते। कुल मिलाकर गुरु जी के आने के बाद से गाँव में चहल-पहल थी, खुशहाली थी और लोगों के पास बात करने के लिए कभी न खत्म होने वाला एक विषय था।
राजू का पूरा परिवार गुरु जी का अनन्य भक्त था। राजू के पिता जब काम पर जाते तो गुरु जी के आश्रम पर साइकिल से उतरते। साईकिल खड़ी करके आश्रम के दरवाजे पर माथा टेकते तब आगे बढ़ते। पहले तो वे रोज आश्रम में जाकर गुरु जी के सामने माथा टेक कर तब काम पर जाते थे पर टिकट लग जाने के बाद से अब रोज-रोज आश्रम में जाना तो नहीं हो पाता था सो आश्रम के दरवाजे पर ही माथा टेकते, कान पकड़ कर न जाने किस भूल की माफी मांगते और आगे बढ़ जाते। 
राजू विज्ञान का छात्र था। उसके अध्यापक ने अपने छात्रों में हर चीज के बारे में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने की कोशिश की थी। उनका कहना था, ‘जो तुम्हें आँखों से दिख रहा है जरूरी नहीं कि वह सच ही हो। जब भी कभी तुम्हें अनोखा देखने को मिले तो उस पर आँख मूंद कर भरोसा मत करो....हर चीज की कोई न कोई वजह जरूर होती है भले ही वह तुम्हें मालूम हो या न हो।’
राजू भी बिल्कुल उन्हीं की तरह सोचता है। वह यह तो जानता है कि दुनियां में चमत्कार जैसी कोई घटना नहीं होती है। जब तक हम किसी घटना की पीछे छिपी क्रियाओं को नहीं जानते तब तक वह घटना चमत्कार ही लगती है। उसके अध्यापक ने बताया था कि एक जमाने में बिजली कड़कने को, चन्द्रग्रहण-सूर्यग्रहण को दैवी घटनाएं ही माना जाता था पर आज इनके बारे में हर कोई जानता है। राजू को गुरु जी के चमत्कारों को देख कर भी ऐसा ही लगता है। उसे लगता है कि इन चमत्कारों के पीछे विज्ञान के कुछ ऐसे सिद्धांत छिपे होंगे जिसकी जानकारी उसे नहीं है। बहुत बार वह अपने अध्यापक से इस विषय में चर्चा भी करता है पर बहुत से प्रश्न ऐसे हैं जिनका जवाब नहीं मिलता। आजकल भक्तजन गुरु जी को घर पर बुलाने लगे हैं। अपने ऐसे महत्वपूर्ण, खास कर सम्पन्न भक्तों पर गुरुजी कृपा भी करते हैं। गुरु जी के साथ उनके चारों विश्वस्त शिष्य हमेशा रहते हैं। जो भक्त के घर में भी सारी कार्यवाही की बागडोर अपने हाथ में लिए रहते हैं। जब गुरु जी किसी भक्त के घर पधारते हैं तो भक्त को आश्रम से लाया मंत्रसिद्ध किया पीला कपड़ा लाकर अपने दरवाजे पर बिछाना होता है फिर गंगोत्री से लाये गंगाजल से गुरुजी के पैर धुलाकर जब वह अपने घर में बुलाता है तो बाहर बिछे कपड़े पर गुरुजी के पैरों की छाप बनती चलती है। भक्त लोग जय-जयकार करते हैं। गुरु जी के प्रवेश के बाद भक्त वह कपड़ा उठाकर माथे से लगाते हैं फिर सावधानी से उसे पूजा की अल्मारी में रख लेते हैं। कुछ लोगों ने तो गुरु जी के पैरों की इस छाप केा भी फ्रेम करा कर अपने घरों में टांग रखा है। भक्त के पास अक्सर गंगोत्री का गंगा जल तो होता नहीं पर उसकी भी व्यवस्था है। कुछ दक्षिणा जमा करने पर आश्रम से ही खास गंगोत्री का शुद्ध जल मिल सकता है। पिछली बार राजू के पड़ोसी के घर गुरु जी पधारे थे तब राजू भी वहीं था। चरणों की छाप देने के बाद पड़ोसी ने गुरु जी से अपने कष्टों के बारे में निवेदन किया। गुरु जी भक्त से एक मोमबत्ती लाने को कहा। भक्त ने वह मोमबत्ती लाकर गुरु जी के शिष्य को पकड़ा दी। शिष्य ने एक स्थान पर मोमबत्ती को जमाया। गुरुजी ने कुछ बुदबुदाना शुरू किया थोड़ी देर में एक चमत्कार हो गया। मोमबत्ती अपने आप जल उठी। भक्त गुरुजी की जय-जय कार करने लगे। गुरुजी ने समझाया, ‘दैवी प्रकाश तुम्हारे घर मंे आया है। अब तुम अपनी सारी परेशानियां कटीं समझो।’  
वहाँ उपस्थित सब लोगों ने उस दैवी प्रकाश को प्रणाम किया। राजू भी भौचक्का था। आखिर इतनी दूर से, वह भी माचिस का प्रयोग किये बना सिर्फ मंत्रों से कोई मोमबत्ती कैसे जला सकता है? उसने सोचा कि वह अपने विज्ञान अध्यापक से इस बारे में बात करेगा। 
गुरुजी ने अपने एक शिष्य को इशारा किया। शिष्य ने एक चाँदी का ताबीज लाकर गुरुजी के हाथ पर रख दिया और बोले, ‘भक्त ये ताबीज मैं तुम्हंे देता हूँ। ये सिद्ध ताबीज है। इसे तुम अपनी मुठ्ठी में बंद कर लो और फिर अपनी समस्या पर ध्यान कंेद्रित करो। अगर ये ताबीेज तुम्हें मुठ्ठी मंे गर्म लगने लगे तो समझो तुम्हारी समस्या का समाधान हो जायेगा।’ 
भक्त के ताबीज को मुठ्ठी में बंद करने से पहले सबने उस ताबीज को उत्सुकता वश छूकर देखा। ताबीज का तापक्रम सामान्य था। अब गुरुजी ने उस ताबीज को एक चाँदी के वर्क में लपेट कर भक्त की मुठ्ठी में रख दिया। भक्त ने अपनी समस्या पर ध्यान केन्द्रित करना शुरु किया और गुरुजी ने कुछ बुदबुदाया। थोड़ी ही देर मे भक्त चिल्लाया, ‘गर्म हो रहा है, ताबीज मेरी मुठ्ठी में गर्म हो रहा है।’
‘अपनी मुठ्ठी खोलो भक्त’, गुरुजी ने आदेश दिया।  
भक्त ने मुठ्ठी खोली। जब ताबीज के ऊपर का चांदी का वर्क हटाया गया तो पूरा ताबीज विभूति मंे लिपटा था। गुरुजी ने विभूति झाड़कर पानी में घोल कर भक्त से अपने घर में छिड़कने को कहा। सबके साथ राजू ने भी उस ताबीज को छूकर देखा। ताबीज सचमुच अच्छा-खासा गर्म था। राजू सोच रहा था कि अब तो कल विज्ञान अध्यापक के पास ही जाना पड़ेगा। गुरुजी के शिष्य वहां उपस्थित भक्तों को उसी तरह के ताबीज अच्छी खासी रकम लेकर बेच रहे थे। 
पड़ोसी के घर गुरुजी का प्रवचन शाम तक चला। गुरुजी और उनके शिष्यों ने भोजन के पश्चात वापस लौटने की इच्छा प्रकट की पड़ोसी उनके पैरों पर गिर गया। गुरुजी ने मुस्कराते हुये कहा, ‘उठो भक्त, आज से तुम्हारे दिन फिर जाएंगे। तुम्हारी सारी परेशानियां दूर हो जायेंगी। जाओ अपनी पत्नी को बुलाओ।’
पड़ोसी की पत्नी जो वहीं खड़ी थी, आगे आई और अपने आंचल को गुरुजी के चरणों पर रख कर प्रणाम किया।  
‘तुम दोनों अपना दाहिना हाथ आगे करो’, गुरुजी ने मुस्कराते हुए कहा।
पड़ोसी और उसकी पत्नी ने ऐसा ही किया। गुरुजी ने अपने दाहिने हाथ को हवा मंे घुमाया और फिर पड़ोसी के हाथों के ऊपर लाकर अपने अंगूठे और तर्जनी को रगड़ने लगे। गुरुजी के हाथ से सुंगधित विभूति झरने लगी। पड़ोसी ने उस विभूति को लेकर माथे से लगाया। अंतिम चमत्कार करके गुरुजी विदा हुए। 
जाते समय पड़ोसी ने नोटों भरा एक लिफाफा गुरु जी को दक्षिणा के रुप ने थमाना चाहा पर गुरुजी ने कहा, ‘भक्त मंै तो पैसा छूता नहीं’ और तभी उनके एक शिष्य ने आगे बढ़कर लिफाफा ले लिया। 
उस रात सब अपने-अपने घरों में जाकर गुरुजी की ही चर्चा कर रहे थे। राजू भी अपने बिस्तर पर करवटें बदलते हुए सोच रहा था कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है? अगले दिन स्कूल जाते समय राजू पूजा में रखी गुरु जी की तस्वीर से झडी भभूत को इकठ्ठा करके पुडिया मे बंाधकर जेब में रख रहा था।
राजू के पिता की भी बड़ी इच्छा थी कि वे भी गुरुजी को घर बुलाकर उन्हे भोजन कराते और आशीर्वाद लेते पर पैसे की कमी से मन मसोस कर रह जाते। एक बार उन्होंने जी कड़ा करके निर्णय ले ही लिया। गुरुजी की कृपा से उनके भी दिन फिर गये तो फिर क्या? राजू ने इसके खिलाफ कुछ कहना भी चाहा पर उसकी सुनता कौन? 
आखिर वह दिन आ ही गया। अपनी तनख्वाह से एडवांस लेकर राजू के पिता ने सारा इंतजाम किया। गुरु जी और उनके शिष्योंं के लिये कई प्रकार के भोजन तैयार किए गए। कुछ पैसे खर्च करके पीतल के पात्र में वे खास गंगोत्री से आया जल भी आश्रम से ले आए। गुरुजी पधारे। राजू के घर में भी आस-पड़ोस के भक्तों की भीड़ जुड़ गई। राजू के पिता ने आश्रम से लाया पीला कपड़ा दरवाजे पर बिछाया। एक शिष्य ने इशारा कि गंगोत्री का जल लाकर गुरुजी के पैर धुलवाओ। चमकते पीतल के पात्र में पहले से तैयार रखा जल लेकर राजू के पिता ने गुरु जी के चरण धोए। अब गुरुजी ने राजू के दरवाजे की चौखट पर बिछे पीले कपड़े पर पैर रखते हुए घर के अंदर प्रवेश किया। सबने आश्चर्य से देखा आज पीले कपड़े पर गुरुजी के चरणों के निशान नहीं बने थे। गुरुजी के शिष्यों ने गुरुजी को इशारा किया। गुरुजी थोड़ा सकपकाए और अंदर बढ़ गए। राजू के पिता झुक कर वह पीला कपड़ा उठाने ही वाले थे कि राजू ने उन्हंे रोक दिया। उसने अपने पंैट की जेब से एक शीशी निकाली उसे अपने पैरांे पर डाला और पीले कपड़े पर पैर रखता घर के अन्दर चला गया। लोगों ने देखा कि पीले कपड़े पर राजू के पैरों की लाल-लाल छाप बनती जा रही थी। सारी भीड़ सन्न रह गई। राजू के पिता ने आंखें तरेर कर राजू की और देखा। भीड़ में खड़े राजू के विज्ञान अध्यापक धीरे-धीरे मुस्करा रहे थे। इन सबसे डरे पर बाहर से संतुलित बैठे गुरुजी अपना आगे का कार्यक्रम चला रहे थे। दरअसल उन्हें ये भनक नहीं लग पायी थी कि उनका पैरों की छाप वाला कारनामा राजू सबको करके दिखा चुका है। हर बार की तरह मोमबत्ती मंगाई गयी। राजू के पिता ने मोमबत्ती लाकर गुरुजी के शिष्य को थमाई। गुरुजी के शिष्य मोमबत्ती जमाकर पीछे हट ही रहे थे कि तेजी से चलता हुआ राजू वहाँ से गुजरा और उनसे टकरा गया। इस चक्कर में जमाई गई मोमबत्ती गिर गई जिस पर राजू ने पैर रख दिया था जिससे मोमबत्ती टुकड़े-टुकडे़ हो गयी थी। राजू के पिता को बहुत गुस्सा आया। वे आकर राजू को डंाटने लगे।  
तभी राजू के विज्ञान अध्यापक आगे आए। वे राजू के पिता को समझाने लगे ‘जाने दो बच्चा है’ फिर राजू की ओर मुखातिब हुये ‘चलो मोमबत्ती को वहीं जमाओ और गुरुजी से क्षमा मांगो।’ राजू ने मोमबत्ती को वहीं जमाया फिर तख्त पर बैठ गुरुजी के चरणों पर अपना सिर रख दिया।  
गुरुजी मुस्कराए, ‘कोई बात नही, कोई बात नहीं।’  
‘ऐसे नहीं गुरु जी, मेरे सिर पर हाथ रखिए तब कहिए कि माफ किया’, राजू ने गुरुजी का हाथ खींच कर अपने सर पर रख लिया।  
गुरुजी ने अपना हाथ खींचना चाहा पर राजू ने उनका हाथ अपने सिर पर दबा रखा था। सिर पर हाथ दबाए-दबाए वह बार-बार कहता जा रहा था, ‘माफ करिए, गुरुजी माफ करिए।’   
गुरु जी किंचित क्रोध से बोले, ‘ठीक है माफ किया अब हाथ तो छोड़ो।’
राजू ने उनके हाथ पर से अपने हाथ का दबाव हटा लिया। गुरुजी ने झटके से हाथ खींचा। सबके चेहरो पर संतोष आया सिवाय गुरु जी के।  
तभी राजू के पिता वहाँ आ गए। उन्हांेने राजू को बांह से पकड़ा और दूसरी तरफ धक्का दे दिया। वे चिल्लाए, ‘खबरदार जो यहां दोबारा दिखाई दिया।’ फिर वे गुरुजी के सामने हाथ बांध कर खडे हो गए, ‘माफ करना गुरुजी, नालायक है मेरा बेटा’।  
गुरु जी मुस्कराए फिर अपने कार्यक्रम को आगे बढ़ाने लगे। उन्होंने सबको शान्त होकर बैठने के लिए कहा फिर मोमबत्ती के ओर देख कर मंत्र बुदबुदाने लगे। गुरु जी मंत्र बुदबुदा रहे थे पर मोमबत्ती ज्यों की त्यों थी, जलने का नाम ही नहीं ले रही थी। गुरुजी के चेहरे पर पसीना झलक आया। भक्तों में बेचैनी बढती जा रही थी। एक शिष्य उठ कर खड़ा हुआ ‘इस लड़के ने अपशकुन कर दिया। दूसरी मोमबत्ती लाओ।’ 
राजू के पिता हाथ जोड़ कर आगे आ गए उन्होंने जी भर कर राजू को कोसा और बोले, ‘मंगाता हूँ गुरु जी पर उसमें कुछ देर लगेगी। आप तब तक मेरी कठिनाई सुन लीजिए उसका सामाधान कीजिए महाराज तब तक मोमबत्ती भी आ जाएगी।’
गुरुजी अब की बार चौकन्ने थे। उनके शिष्य ने एक ताबीज निकाल कर गुरुजी के हाथ पर रखा। गुरुजी ने उसे चाँदी के वर्क में लपेट कर राजू के पिता के हाथ में दे दिया और बोले ‘अपनी मुठ्ठी बंद कर लो और आंखे बंद करके अपनी समस्या पर ध्यान कंेद्रित करो। जब ताबीज गर्म लगने लगे तो मुठ्ठी खोल देना।’
राजू के पिता ने वैसा ही किया। गुरु जी मंत्र पढ़ने लगे। पर यह क्या? गुरु जी को मंत्र पढ़ते काफी देर हो गई थी पर राजू के पिता ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी।  
आखिरकार गुरुजी सेे न रहा गया। उन्होने राजू के पिता से पूछ ही लिया, ‘भक्त क्या ताबीज गर्म लग रहा है?’ 
राजू के पिता ने आँखे खोल कर कहा, ‘नहीं गुरु जी अभी तो नहीं।’ 
गुरु जी कुछ परेशान से दिखे पर मुस्कराते हुए बोले, ‘कोई बात अपना मन न भटकाओ वत्स, सिर्फ अपनी समस्या पर ध्यान कंेद्रित करो।’
भीड़ मे कानाफूसी होने लगी थी। सहसा राजू के विज्ञान अध्यापक आगे आए और तेज स्वर मे बोले, ये ताबीज कभी गर्म नहीं होगा गुरुजी।’  
गुरुजी ने पलट कर अध्यापक की ओर देखा। भीड़ की निगाहें अध्यापक पर जमी थीं। विज्ञान अध्यापक ने कहना जारी रखा, ‘हां गुरु जी कितने भी मंत्र पढो पर ये ताबीज कभी गर्म नहीं होगा क्योंकि ये ताबीज शुद्ध चाँदी का बना है। ये वह तांबे का और मरक्यूरस नाइटे्रट मे भिगोया ताबीज नहीं है जो आप यहां अपने हाथ की सफाई यानि कि आपने मंत्रों की करामात दिखाने के लिये खास तौर पर तैयार कर के लाए थे। हमने उसे इस शुद्ध चांदी के ताबीज से बदल दिया है। आपके पास तो मंत्रों की शक्ति है जरा इस ताबीज को भी गर्म कर के दिखाइए।’
फिर उन्होने अपनी जेब से एक मोमबत्ती निकाल कर गुरुजी के सामने जमाई और बोले, ‘ये वह मोमबत्ती नहीं जिस की बत्ती पर आपके शिष्य ने चुपके से, हम सबकी नजर बचा कर कोई घोल गिरा दिया था। इसे अपने मंत्रों से जला कर दिखाइए तब में मानूं कि आप एक सिद्ध पुरुष हैं। 
गुरु जी हड़बड़ाहट में मंत्र पढ़ने लगे पर मोमबत्ती को न जलना था और न वह जली। अब राजू के विज्ञान अध्यापक वहां बैठे दर्शकों की ओर मुखातिब हुये, ‘ये व्यक्ति जिसे आप गुरुजी-गुरुजी पुकारते नहीं थकते, जो अपने आप को चमत्कारी सिद्ध पुरुष कहता है; महज एक ढोंगी है। इसके ये चमत्कार मात्र वैज्ञानिक प्रयोग हैं जिनके बारे मंे आप लोग नहीं जानते। ये ठग रहा है आपको।’
भीड़ कोधित होने लगी। कई लोग चिल्लाने लगे। कुछ लोग अध्यापक को गालियां देने लगे।  
गुरुजी के शिष्य चिल्लाए, ‘मारो इसको, सारा अनुष्ठान भंग कर दिया।’
कुछ लोग अध्यापक को मारने उठे पर लोगों ने बीच-बचाव किया।  
राजू के पिता क्रोध में भर के आगे आए और अध्यापक से बोले, ‘आप अभी चले जाइए मास्टर साहब, हमें आपकी नसीहत की जरुरत नहीं है।’ 
‘चला जाऊंगा, पर मुझे अपनी बात कहने तो दीजिए’, मास्टर साहब भीड़ से मुखातिब हुए, ‘आप लोग शांत हो जाइए, मेरी बात सिर्फ दो मिनट सुन लीजिए।’
भीड़ शांत होने लगी। 
तभी गुरु जी उठ खड़े हुए और बोले, ‘इस अधर्म की जगह एक पल भी नहीं रुकूंगा मैं।’  
‘गुरु जी आप कहाँ चले? आप को तो यहीं रहना है। आखिर आप ही तो फैसला करेंगे कि आपके चमत्कार हैं क्या’, विज्ञान अध्यापक ने कंधे पकड़ कर गुरु जी को वापस बिठाया। 
‘हाँ हाँ गुरु जी को रुकना ही चाहिए। दो मिनट मे दूध का दूध और पानी का पानी हुआ जाता है’, भीड़ में से आवाजें आने लगीं। गुरु जी अंदर ही अंदर बहुत डरे हुये थे। उन्हें लगा कि अब रुकने में ही भलाई है। अध्यापक ने राजू को बुलाया और बोले, ‘राजू क्या तुम मोमबत्ती जला सकते हो, बिलकुल वैसे ही जैसे गुरुजी जलाते हैं?’
राजू ने सहमति में सिर हिलाया, अपनी जेब से मोमबत्ती निकाल कर जमाई फिर दूर खड़े होकर जोर-जोर से कहना शुरू किया ‘जल जा, मोमबत्ती जल जा.......जल जा, मोमबत्ती जल जा।  
आश्चर्य थोड़ी देर में मोमबत्ती जल उठी। उपस्थित लोग भौंचक्के थे। गुरु जी ने उठने की चेष्टा की पर अध्यापक ने उन्हंे टोका, ‘गुरु जी आप कहीं नहीं जायेंगे। अभी तो आपका दूसरा चमत्कार बाकी है।’
उन्होंने राजू को इशारा किया। राजू ने अपनी जेब से एक छोटा ताबीज निकाला उसे चांदी के वर्क मंे लपेट कर पास खड़े व्यक्ति की मुठ्ठी में बंद कर दिया फिर बोला, ‘कुछ भी सोचने की जरुरत नहीं, बस एक मिनट इंतजार कीजिए और बताइए।’
भीड़ के आश्चर्य की सीमा न रही जब उस व्यक्ति ने दो मिनट बाद बताया कि उसकी मुठ्ठी मंे बंद ताबीज गर्म होने लगा है।  
गुरु जी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं वे फिर उठने को हुए। अध्यापक ने उन्हे टोका, ‘गुरु जी बड़ी जल्दी है जाने की? तो जाइये, मगर हमारे राजू स्वामी से विभूति का प्रसाद तो लेते जाइए। राजू स्वामी गुरु जी को विभूति का प्रसाद तो दो’, उन्होंने राजू की तरफ इशारा किया। 
राजू आगे बढ़ा उसने गुरुजी की तरह हाथ हवा में घुमाया फिर गुरु जी के हाथ को खींचकर उसके ऊपर से ही अपने हाथ के अगूंठे और तर्जनी को मसलना शुरु किया। खुशबूदार विभूति उसकी उंगलियों से झरने लगी। गुरु जी ने हाथ खींच लिया और उठकर भागे।  
भीड़ मे से कई लोग चिल्लाये, ‘पकड़ो जाने न पाए।’
सभा की शांति कोलाहल में बदल चुकी थी। गुरुजी राजू के घर के दरवाजे पर पहुँचे ही थे कि सामने से राजू ने रास्ता रोका, ‘गुरु जी कहाँ चले? ये माधुरी दीक्षित की तस्वीर तो लेते जाइए। विभूति इसमें से भी झड़ेगी।’
 उसने तस्वीर के फ्रेम पर से विभूति उंगली पर लेकर भीड़ को दिखाई। गुरुजी हाथ छुड़ा कर भागे। उनके शिष्य उनके पीछे भाग रहे थे। पीछे भीड़ से घूल, कंकड और जूते फेंक रही थी।  
इस घटना की अलग-अलग प्रतिक्रिया हुई। सब तरफ राजू और उसके अध्यापक के चरचे थे। पर वे लोग, जिनकी रोजी-रोटी गुरु जी के चमत्कारों के सहारे चलती थे वे बहुत तमतमाए हुये थे। उन्होने राजू के घर को घेर कर नारे बाजी करनी शुरु कर दी। स्थिति बिगड़ न जाए इसलिये पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। गुरु जी और उनके शिष्य हिरासत में ले लिये गए। शाम तक पत्रकारों की, अखबार वालों और दूरदर्शन वालों की एक बड़ी भीड़ राजू के गाँव में जमा हो गयी। अंततः सब ने फैसला किया कि राजू और उनके अध्यापक से ही इसके बारे में पूरी जानकारी ली जाए। तुरंत-फुरंत एक छोटी प्रेस कान्फ्रंेस का माहौल बन गया। 
राजू और उसके अध्यापक पत्रकारों के सवालों के जवाब दे रहे थे।  
‘ये तस्वीर वाली घटना क्या है राजू, इससे विभूति कैसे झड़ती है’, एक पत्रकार ने सवाल किया।  
‘मंै भी बहुत दिनों से यही सोच रहा था कि आखिर इस तस्वीर में से विभूति कैसे निकलती है’, राजू ने बताना शुरू किया। ‘एक दिन मैंने अपने घर की पूजा की अल्मारी मे रखी तस्वीर को सबकी नजर बचा कर खोल डाला। अन्दर गुरु जी की कागज पर छपी साधारण तस्वीर थी। तब मुझे लगा कि हो न हो ये चमत्कार तस्वीर के फ्रेम मंे हो। मैंने उस फ्रेम में माधुरी दीक्षित की एक तस्वीर एक पत्रिका से काट कर फिट कर दी और उसे चुपचाप पूजा की अल्मारी में रख दिया। सवेरे मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा कि माधुरी दीक्षित की तस्वीर से भी वैसी ही विभूति झड़ी थी जैसी कि गुरु जी की तस्वीर से निकलती थी। मतलब साफ था कि करामात फ्रेम मंे थी। अगले दिन मैंने चुपचाप थोड़ी सी विभूति एक पुडिया में बांधी और तस्वीर का फ्रम निकाल कर अपने बस्ते मे छिपा लिया और अपने इन विज्ञान अध्यापक से मिला। तब जाकर कहीं राज खुला।  
‘कैसा राज’, दूसरे पत्रकार ने सवाल किया।
‘मैं बताता हूँ’, राजू के विज्ञान अध्यापक ने आगे आते हुए कहा, ‘मैंने जब प्रयोगशाला मंे राजू द्वारा लाई गई विभूति का जब परीक्षण किया तो पता चला कि इसमे पारा और एल्यूमिनियम दोनों ही मौजूद हैं। मतलब साफ था। एल्यूमिनियम के फ्रेम पर अगर मरक्यूरिक क्लोराइड का घोल पोत दिया जाए तो नमी के संपर्क में आने पर इनमंे रासायनिक क्रिया होती है। इस रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप जो पदार्थ बनता है वह विभूति जैसा दिखता है। इसीलिए गुरु जी की तस्वीर बेचते समय उनके शिष्य तस्वीर को जिस कपडे़ से पोंछने के बाद तस्वीर देते थे वह कपड़ा मरक्यूरिक क्लोराइड में भीगा होता था। फिर मरक्यूरिक क्लोराइड से पुते एल्यूमिनियम के फ्रंम वाली ये तस्वीर जब पूजा की अलमारी में रखी जाती थी तो वहां उपस्थित नमी के कारण इसमें रासायनिक क्रिया होती थी और विभूति झड़ने लगती थी। 
‘और वह मोमबत्ती वाला कारनामा, वह कैसे हुआ राजू’, एक और पत्रकार ने पूछा। 
‘दरअसल गुरु जी का शिष्य जब मोमबत्ती को जमाता था तो उसके पास एक शीशी में कार्बन डाई सल्फाइड में घुला फास्फोरस का घोल होता था जिसकी एक बूंद वह मोमबत्ती की बत्ती पर टपका देता था। जितनी देर मंे गुरु जी अपने मंत्र पढते थे उतनी देर मंे कार्बन डाइसल्फाइड वातावरण की गरमी से भाप बन कर उड जाता था और बचता था फास्फोरस जो भक से जल उठता था। आप चाहें तो आप भी इस तरह मोमबत्ती जला सकते हैं। एक हिस्सा श्वेत फास्फोरस को उस केरासेसिन तेल से, जिसमें कि वह साधारण्तया रखा जाता है, सावाधानी से निकाल कर तीन हिस्से कार्बन डाइसल्फाइड में घोल लें। अब इस घोल में मोमबत्ती की बत्ती डुबो कर मोमबत्ती को कहीं लगा दें। फिर चाहे जो कहना शुरू कर दें या न भी कहें। जैसे ही कार्बन डाइसाल्फाइड भाप बन कर उड़ जाएगा फास्फोरस में आग लग जायेगी और मोमबत्ती जलने लगेगी।’  
‘और वह ताबीज वाला चमत्कार’, एक और पत्रकार ने सवाल किया। 
‘पहले तो आप इसे चमत्कार नहीं, रासायनिक प्रयोग कहें’, राजू ने प्रतिवाद किया। ‘जो ताबीज गुरुजी अपने भक्तों को देते थे वह वास्तव में चांदी का नहीं तांबे का बना होता था। वे इस तंाबे के ताबीज को मरक्यूरस नाइट्रेट के घोल में डुबो कर साफ मुलायम कपड़े से रगड़ते थे। जिससे तांबे का ये ताबीज चांदी के ताबीज की तरह लगने लगता था। जिस चांदी के वर्क में गुरु जी इसे लपेटते थे वह वास्तव में एल्यूमिनियम का पत्र होता था। जब मरक्यूरस नाइट्रेट के घोल से चमकाए इस ताबीज को अल्यूमिनियम के पत्तर में कस कर लपेटा जाता था तो इन दोनोें के बीच रासायनिक क्रिया होती थी जिससे अच्छी खासी गरमी निकलती थी और ताबीज गरम हो जाता था।’ 
‘और जो तुमने विभूति बांटी थी वह’, एक महिला पत्रकार ने उठ कर पूछा।  
‘वह विभूति’, राजू हंसा, ‘वह सचमुच हाथ की सफाई थी। हाँ आप भी मेरी तरह विभूति बाँट सकती हैं। लकड़ी के कोयले की सफेद राख ले लीजिए इसमें अपनी मनपसंद खुशबू मिलाइए। थोड़ा सा चावल का मांड मिलाकर इस विभूति को आटे की तरह गूंद लीजिए फिर इसकी मटर के दाने से छोटी गोलियां बनाकर सुखा लीजिए। हो गई चमत्कारी विभूति तैयार। गुरु जी ऐसी ही एक गोली अंगूठे और तर्जनी के बीच में दबा लेते थे। ये गोली यहाँ दबाए-दबाए आप सारे काम कर सकते हैं, आशीर्वाद दे सकते हैं, हाथ मिला सकते हैं। जैसे कि मैं अभी दबाए हूँ’, राजू ने अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच फंसी गोली को दिखाते हुए कहा। ‘जब जरूरत पडे़ तो हाथ को हवा मंे लहराइए, गोली को उंगली और अंगूठे के पोरों के बीच में ले आइये, मसलिए और विभूति बांटनी शुरू कर दीजिए मेरी तरह’, राजू ने सबके हाथों पर विभूति गिरानी शुरू कर दी। 
‘एक बात और राजू स्वामी, वह तुम्हारे चरणों की छाप, उसका क्या रहस्य है’, एक और पत्रकार का प्रश्न था।
‘वह, वह एक सरल सा प्रयोग था जिसे आप सभी जानते भी हैं। हल्दी और चूने को मिलाकर आप कभी-कभी रोली बनाते हैं न? गुरुजी आश्रम से जो पीला कपड़ा देते थे वह वास्तव में हल्दी से रंगा होता था। उनका खास गंगोत्री से लाया गंगा जल वास्तव में चूने का पानी होता था। चूने के पानी से पैर धोकर जब गुरुजी हल्दी से रंगे कपड़े पर चलते तो उनके पैरों की लाल छाप कपड़े पर बन जाती थी। इस बार हम लोगों ने चुपके से सबकी नजर बचा कर उस चूने के पानी को कुएं के सादे पानी से बदल दिया था तभी इस बार गुरु जी हमारे घर को अपने चरणों की छाप नहीं दे सके। आप चाहें तो आप भी ये करनामा कर सकते हैं। दो सौ ग्राम खाने का चूना लेकर दो लीटर पानी में घोल लीजिए फिर इस घोल को ठहर जाने दीजिए। इसके ऊपर के साफ पानी को निथार लीजिए। ये हो गया आप का खास गंगोत्री से लाया गंगा जल। अब हल्दी से कपड़ा रंग कर अपनी चौखट पर बिछाइए, अपने इस चूने के पानी वाले गंगा जल से पैर धोकर इस कपड़े पर से गुजर जाइए। आपके पैरों के लाल-लाल निशान इस पीले  कपड़े पर बनते जाएंगे।
‘कितना ढोंगी था वह गुरु जी’, एक पत्रकार ने अफसोस जाहिर किया। 
‘ढांेगी नही विज्ञान का एक चालाक विद्यार्थी जिसने विज्ञान को गलत काम के लिए प्रयोग किया’, राजू के अध्यापक ने कहा, ‘यही तो विज्ञान का महत्व है, अच्छे कामों में लगाओ तो दुनियां बना दे और गलत उपयोग करो तो पूरी श्रष्टि ही मिटा दे।’  
अगले दिन शहर के सारे अखबार राजू और उसके अध्यापक की तस्वीरों और प्रशंसा से भरे पड़े थे। सुना है गुरु जी अब जेल मे हैं। इस बात को दो बरस हो गए हैं। राजू और उनके अध्यापक ने इन चमत्कारों के पीछे छिपी वैज्ञानिक जानकारी को जनसाधारण, खास कर बच्चों तक पहुंचाने को जिन्दगी का लक्ष्य बना लिया है ताकि आगे कोई ढोंगी व्यक्ति इन्हंे चमत्कार कह कर भोले-भाले लोगों को बेवकूफ न बना सके।                                          
इस विज्ञान कथा में वर्णित सारे प्रयोग वास्तविक हैं। 12-13 वर्ष का कोई बालक उन्हें दोहरा सकता है। फिर भी दुर्घटना की आशंका से बचने के लिए वे ये प्रयोग सदैव अपने विज्ञान शिक्षक की उपस्थिति में ही करें। प्रयोगों में वर्णित सामग्री किसी भी विज्ञान प्रयोगशाला से आसानी से प्राप्त की जा सकती है। अधिक जानकारी के लिए लेखक से संपर्क करें। 


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