विज्ञान कथा


रहस्यमय कुआं 

डॉ- अरविन्द दुबे
 
विज्ञान कथा के पुरोधाओं का मानना है कि विज्ञान कथा को भविष्योन्मुखी होना चाहिए। मेरी राय में यह किसी विज्ञान कथा के विज्ञान कथा होने की जरूरी शर्त नहीं है। वस्तुतः विज्ञान कथा वह कथा है जिसमें से यदि विज्ञान निकाल दें तो उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाए, जो पढने वालों में हर चीज, हर घटना के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करने में मदद करे और जो एक आम कहानी की तरह किसी उद्देश्य की पूर्ति करती हो, जिस में लेखक की समाज के प्रति प्रतिबद्धता झलकती हो। इन सारे बिंदुओं को ध्यान में रखते हए यह एक ऐसी विज्ञान कथा है जो भविष्योन्मुखी नहीं है पर फिर भी यह विज्ञान कथा तो है न?    
-लेखक
 
बरसों पहले कुछ उत्साही युवकों ने इस कुएं को पुनः चालू करने की मुहिम शुरू की थी। इसके लिये वे कमर मंे रस्सी बांध कर कुएं के अंदर उतरे थे। ऊपर खड़े लोग इस रस्सी के दूसरे छोर को कस कर पकड़े थे कि जब नीचे से इशारा मिले तो वे रस्सी ऊपर खीच लें।  इसके अलावा तीन-चार बाल्टियां भी रस्सियों से बांध कर कुएंं में लटकाई गयीं थीं। योजना यह थी कि नीचे उतरे युवक तली पर की गंदगी इन बाल्टियों में भरेंगे। जब वे नीचे से रस्सी हिला कर ऊपर की ओर इशारा करेंगे तो ऊपर खड़े लोग इन बाल्टियों को को ऊपर खीच लेंगे और बाहर निकाल कर खाली कर देंगे। इसके बाद वे इन खाली बाल्टियों को दोबारा कुएं में उन युवकों के पास पहुंचा देंगे। इस तरह से एक बार अगर कुएं की सफाई हो जाएगी तो इसका पानी पीने के काम आ सकेगा। अंदर गए युवकों को अगर कोई परेशानी होगी तो अपनी कमर में बंधी रस्सियों को हिला कर संकेत दंेगे ताकि उन्हें जल्दी से ऊपर खींचा जा सके।
कुएं के आस-पास अपार जनसमुदाय जमा था। किसी मेले का सा माहौल था। गांव की पीने के पानी की समस्या जो दूर होने वाली थी। पर ऊपर खड़े लोग प्रतीक्षा करते रहे, समय बीतता गया। जब बहुत देर तक बाल्टी वाली कोई रस्सी न हिली और न युवकों की कमर में बंधी रस्सी ही हिली तो उन्हें फिक्र होने लगी। उन्हांेने कुएं में झांक कर देखने की कोशिश की पर कुअंा इतना गहरा था कि उसके अंदर कुछ नजर ही न आता था। घबरा कर वे युवकों को आवाज देने लगे पर कुएं के अंदर से कोई आवाज नहीं आई। उन्हांेने हड़बड़ाहट में रस्सियां ऊपर खीचनी शुरू कीं। तीनों युवक ऊपर आ गए। पर यह क्या, उनमें से कोई किसी तरह की हरकत नहीं कर रहा था। आनन-फानन मंे तीनों की कमर से रस्सी खोल कर उन्हें पास के अस्पताल में ले जाया गया जहां डाक्टरांे ने दो को तो तुरंत मृत घोषित कर दिया। उत्सव का माहौल शेाक में बदल गया। 
तीसरे युवक को ठीक होने में समय लगा पर मानसिक रूप से वह कभी स्वस्थ न हो पाया। अब वह पागलों की सी हरकतंे करता है। कभी बोलता है तो बताता हैं कि कुएं में कोईर् था जिसने सबकी गर्दनें दबाइंर् थीं। कभी-अपनी ही गर्दन दबा कर वह कुएं के अंदर घटी घटना का विवरण देने की कोशिश करता है। उसकी बेतरतीब बातें सुन कर लोगों को यकीन हो चला है कि सचमुच कुएं में कोई दैवी आत्मा निवास करती है जो नहीं चाहती कि कोई उस कुएं का पानी प्रयोग करे। 
गांव की कुछ युवतियों ने जीवन से निराश होकर या किन्हीं अन्य कारणों से जब से इस कुएं में कूद कर आत्महत्या की है तब से तो लोगों का यह विश्वास पक्का हो गया है कि इस कुएं में कोई चुड़ैल निवास करती है। उनका कहना है कि लड़कियों ने आत्महत्या नहीं की थी वरन उनके अनुसार जब ये लड़कियां सबेरे शौच के लिये गईं थीं तो उन्हांेने उस कुएं की मंुडेर पर एक बूढ़ी स्त्री को बैठे देखा। उसने लड़की को अपने पास बुलाया। जब लड़की उस स्त्री के पास पहुंची तो उसने लड़की की आंखों में सीधे-सीधे झांका। बस फिर क्या था लड़की पूरी तरह से उसके बस में हो गयी। वह बूढी औरत कुएं में उतर गई और अंदर से आवाज देकर लड़की को अपने पास बुलाने लगी। लड़की तो जैसे अपने बस में ही नहींं थी सो कठपुतली की तरह आगे बढ़ी और झम्म से कएं में कूद गई। यही एक-एक कर के उन सारी लड़कियांे के साथ हुआ। तरह-तरह से लोग उन लड़कियों से जुड़ी कहानियां सुनाते हैं और बाद में यह कहना नहीं भूलते कि वह औरत थोड़े ही थी वह तो कुएं के अंदर की चुडै़ल थी जो अपने शिकार की तलाश में रोज सुबह की धंुधलके में कुएं की मुंडेर पर आकर बैठती है। जितने मुंह उतनी बातें। पर कभी भी किसी ने यह सवाल नहीं किया कि इस घटना को खुद किसने अपनी आंखों से देखा था? अगर देखा था तो वह कैसे चुडै़ल के वश में आने से बच गया? क्यों नहीं उसने चीख पुकार मचा कर औरांे का ध्यान खींचने की कोशिश की? कभी-कभी कुछ लोग तो प्रत्यक्षदर्शी होने का दावा भी करते हैं और बताते हैं कि वे इस लिए बच गए कि उस औरत को देखते ही उन्होंने हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू कर दिया था। बीच में कछ नई विचारधारा के लोगों ने ऊपर से ही कुएं के अंदर झांकने की कोशिश की थी। पर कुआं इतना गहरा था कि ऊपर से कुछ दिखाई ही नहीं दिया तब उन्होने दो तीन पेट्रोमेक्स तार में बांध कर कुएं के अंदर डालने की कोशिश की। अचानक कुएं के अंदर से नीली-हरी रोशनी निकलने लगी, फिर एक विस्फोट हुआ। सारे लोग सिर पर पांव रख कर भागे। मीडिया ने इस खबर को काफी बढ़ा-चढा़ कर प्रसारित किया और यह सिद्ध करने में कोई कसर नहीं रखी कि कुएं में किसी चुडै़ल का निवास है। बहुत से वैज्ञानिक सोच वाले लोगों ने इसके खंडन की कोशिश भी की पर जनसाधरण में आज भी यह मान्यता है कि उस कुएं में चुडै़ल रहती है। जो सबेरे के धंुधलके में तरह-तरह के रूप (इंसान से लेकर जानवर तक के) बनाकर अपने शिकार के लिए कुएं से बाहर आती है। अब हाल यह है कि रात की तो बात दूर, दिन में भी लोग उस कुएं के पास से नहीं निकलते। अगर निकलना भी पडे़ तो वहां से गुजरते समय हुनमान चालीसा पढ़ते रहते हैं। लोग अब उसे बाकायदा चुडै़ल वाला कुअंा कहने लगे हैं। संयोग से एक बार ऐसा हुआ कि कुएं के पास जिस किसान का खेत था उसे सवेरे के धुंधलके मंे उस के खेत हल चलाते समय शायद सांप ने डंस लिया। चुडै़ल के डर से उसका इलाज नहीं करवाया गया था। तमाम झाड-फूंक के बाद उसकी मृत्यु हो गई थी। गांव के लोगों ने उपचार के आभाव में हुई इस मृत्यु को भी कुएं वाली चुडै़ल के खाते मंे ही लिख दिया। अब तो हालत यह है कि लोग यह सोच कर डरे रहते हैं कि गांव पर कोई आपत्ति तो नहीं आने वाली है। जब भी गांव में कोई शादी-ब्याह, किसी के यहां बच्चे का जन्म या कोई और मंागलिक कार्यर्क्रम होता है तो लोग उस समय इस कुएं वाली चुडै़ल का हिस्सा निकालना नहीं भूलते हैं। इस हिस्से को एक काले कपड़े में बांध कर शनिवार के दिन उस कुएं में डाल दिया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि माता हम पर कृपा रखना। हमारे इस मांगलिक कार्य में कोई विघ्न न डालना। बरसों से इस कुएं वाली चुडै़ल के बारे में अनेक कथाएं कहीं-सुनी जाती हैं। हर साल उनमें एक दो घटनाएं और जुड़ जाती हैं। 
प्रशांत मूलतः इसी गांव का रहने वाला है। चूंकि उसके पिता सरकारी सेवा में हैं अतः वह अपने परिवार के साथ शहर में ही रहता है। वहीं के एक स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ता है। चूंकि यह शहर गाव से बहुत दूर है इसलिए वह अपने परिवार के साथ सिर्फ गर्मी की लंबी छुट्टियों में ही गांव आता है। गांव आते ही उसे उसके ताऊ जी चेतावनी देते हैं, ‘‘खबरदार, चुडै़ल वाले कुएं की तरफ न जाना।’’ 
उसने भी अपनी दादी और ताऊ के मंुह से चुडै़ल की बहुत सारी कहानियंा सुनीं है। लेकिन प्रशांत का मन है कि मानता नहीं। वह देखना चाहता है कि आखिर चुडै़ल वाले कुएं में है क्या? उसे डर भी लगता है, एक तरफ तो चुडै़ल से तो दूसरी तरह उसे भी ज्यादा अपने ताऊ जी से। 
पिछली बार जब उसने अपने गांव में कही जाने वालीं ये चुडै़ल की कहानियां अपने विज्ञान के अध्यापक को सुनाईं थीं तो वह खूब हंसे थे। प्रशांत चिढ़ गया, ‘‘आप मानोगे नहीं पर यह सब सच है। मेरे गांव के कितने लोेंगों ने तो उसे देखा भी है।’’ 
उसके विज्ञान अध्यापक काफी देर तक उसे समझाते रहे कि ये सब कहानिया कोरी गप्पंे हैं पर प्रशांत तर्क पर तर्क दिए जा रहा था। अंततः वह बोले, ‘‘ठीक है इस बार मैं भी तुम्हारी इस चुडै़ल आंटी से मिलने तुम्हारे साथ, तुम्हारे गांव चलूंगा।’’ 
इसी सिलसिले में वह एक दिन प्रशांत के परिवार के साथ उसके गांव गए। वे लोग जब गांव पहंुॅचे तो शाम हो चुकी थी। 
‘‘कल दिन मेें ही कुएं पर चलेंगे’’, अध्यापक जी ने सुझाव दिया।
‘‘हां यही ठीक रहेगा। क्योंकि सबेरे को तो शिकार की तलाश में चुडै़ल निकल कर कुएं की मंुड़ेर पर बैठती है। खतरा उठाना ठीक नहीं’’, प्रशांत के ताऊ जी ने समर्थन किया।  
अध्यापक जी हंसे, ‘‘नहीं वह बात नहीं। मैं तो दिन में इसलिए जाना चाहता था क्योंकि दिन में काफी रोशनी होती है। ऐसे में नजरों का धोखा होने की संभावना नहीं होगी।’’ 
‘‘मतलब आप समझते हैं कि यह बस हम लोगों की नजरों का धोखा है?’’ 
‘‘शायद’’ 
‘‘और ये धोखा हम सालों से खाते आ रहे हैं?’’, प्रशांत के ताऊ जी चिढ़ गए। 
‘‘हो सकता है’’, अध्यापक जी ने शांत स्वर में उत्तर दिया। 
‘‘सारे नफा नुकसान की जिम्मेदारी आपकी होगी, आप ही जानिए’’, ताऊ जी ने चेताया। 
‘‘कहो तो स्टांप पेपर पर लिख कर दे दॅू’’, अध्यापक जी ने जबाब दिया। 
ताऊ जी पैर पटकते वापस चले गए। 
रात को अध्यापक जी प्रशांत के साथ गांव के कुछ और बुजुर्गांे से चुडै़ल वाले कुएं की जानकारी लेने निकले। लोगों ने चुडै़ल के बारे में एक से बढ़कर एक कहानियां अध्यापक जी को सुनाईं। कुछ ने तो उन्हें डराने की कोशिश भी की तो कुछ ने उन्हें समझाया कि वहां जाते समय अपने साथ लोहे का चाकू या और कोई लोहे की चीज जरूर लेते जाएं, साथ मंे हनुमान चालीसा भी पढ़ते रहें।” 
‘‘हमारे शरीरों मेें कुदरती तौर पर काफी लोहा होता है। क्या उतना काफी नहीं है आप लोगों की इस चुडै़ल के लिए’’, अध्यापाक जी ने मुस्करा कर जबाब दिया। कुछ लोगों ने तो उन्हें चेतावनी तक दे डाली, “आप बेकार में इस मसले में टांग अड़ा रहे हैं। अगर चुडै़ल नाराज हो गई तो हमारे गांव पर कहर बरपा कर देगी”। गांव पर कोई मुसीबत आई तो इसके जिम्मेदार आप होंगे, अगर गांव पर मुसीबत आई तो छोंडेंगे हम आपको भी नहीं’’, आदि धमकियां सुन कर वापस लौटते समय अध्यापक जी चुप थे। 
प्रशांत ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘यही ठीक रहेगा सर कि आप इसमें कुछ न करें।’’ 
‘‘कल देखा जायेगा, अभी तो चल कर सोते हैं, थकान काफी हो रही हैं’’, अध्यापक जी शांत थे। 
उस रात प्रशांत को काफी देर से नींद आई वह भी कुछ समय बाद कुत्ते भांैकने की आवाज से खुल गई। उसने उठ कर, अध्यापक जी जिस खाट पर सो रहे थे वहां आकर झांका, चारपाई खाली थी। 
‘‘कहां गए होंगे वे’’, उसने सोचा, ‘‘कहीं चुडै़ल उन लड़कियों की तरह अपने वशीभूत कर के तो नहीं ले गई उन्हें?’’
उसे डर लगने लगा। उसने हड़बड़ाहट मेंे ताऊ जी और अपने पिता को जगाया। 
‘‘मैंने पहले ही मना किया था इस मास्टर को, अब देखना क्या हो”, वे भुनभुना रहे थे। 
तय यह हुआ कि आस-पड़ोस के आठ दस लोगों को लेकर चुडै़ल वाले कुएं की तरफ चला जाए और इस मास्टर को ढूंढा जाए। पर इसकी जरूरत नहीं पड़ी। इन सारे लोगों के जाने के लिए तैयार होने से पहले ही मास्टर जी हाथ में एक झोला लिए और एक टार्च पकडे़ लौट आए़।  
‘‘कहिए कैसी रही’’, ताऊ जी ने आगे बढ़कर व्यंग किया। 
‘‘हम लोग काफी डर गए थे हमें तो लगा था कि ....... ’’
‘‘चुडै़ल पकड़ ले गई मुझे यहीं न’’, प्रशांत के पिता की बात काट कर उत्तर देते हुए अध्यापक जी मुस्कराए। 
‘‘मुझे अभी वापस जाना है”, अध्यापक जी ने एकाएक कहा।
‘‘अभी इस रात में, सबेरे चले जाइएगा” प्रशांत के ताऊ जी ने सुझाव दिया। 
‘‘नहीं अभी जाना जरूरी है। आप बस मुझे बस अड्डे तक पहंुचवाने की व्यवस्था कर दें। वहां से कोई न कोई सवारी मिल ही जाएगी। मैं चार-पांच दिन बाद फिर आऊंगा। 
अध्यापक जी को उसी समय भिजवाने की व्यवस्था कर दी गई। 
‘‘लगता है उस मास्टर की मुलाकात चुडै़ल से हो गई है। तुमने उसका चेहरा देखा? लगता था कि चुडै़ल ने उठा-उठा कर पटका है उसे’’, ताऊ जी हंस रहे थे। ‘‘देखना वह मास्टर अब इस गांव की ओर दोबारा मुँह न करेगा, ताऊ जी फब्तियां कस रहे थे। प्रशांत का चेहरा ग्लानि से लाल हो रहा था।
पर अध्यापक जी फिर वापस लौटे। अब की बार वह अकेले न थे। उनके साथ कई और लोग थे जिनमंे कुछ वैज्ञानिक थे। वे अपने साथ एक क्रेन और खुदाई वाली मशीन भी लाए थे। उन लोगांे ने गांव वालों से छाते मांगे। छाते खोल कर रस्सियों मेें बांध कर उल्टा करके वे उन्हें कुएं में डालते फिर बाहर खींच लेते। करीब आधे घंटे यह क्रम चला। इसके बाद उन्होने बड़ी पावर के बल्ब तारों के सहारे से कुएं में लटकाए और बाहर से अपने साथ लाए जेनेरेटर से उनमें बिजली पहंुचाई। सारा कुआं रोशनी से भर गया। लोग कौतूहल से सब कुछ देख रहे थे। जिस-जिस को खबर लगती वह चुडै़ल वाले कुएं की तरफ दौड़ा आता। दोपहर होते -होते वहां हजारों की भीड़ जमा हो गई।
पीठ पर आक्सीजन का सिलेेंडर लगा, मंुह पर मास्क लगा कर दो लोग अपनी कमर में रस्सियां बांध कर उस जगमगाते कुएं में उतर गए। इधर क्रेन के द्वारा लोेहे की रस्सी में बंधी लोहे की बड़ी-बड़ी बाल्टियां कुएं में लटकाई गईं। कुएं में उतरे लोगों ने इनमें कुएं का कचरा भरना शुरू किया। धीरे-धीरे ढ़ेर सारा मलबा कुएं के अंदर से निकाला गया। कुएं को उसके सोते तक खोदने का काम पूरा किया गया। इसमें काफी समय लगा। 
यह सब होते-होते शाम हो गई। अध्यापक जी के साथ आए और लोग तो लौट गए पर अध्यापक जी उस दिन गांव में ही रूक गए। सारे क्षेत्र में इस घटना की चर्चा थी। कहींे से भनक पाकर दूरदर्शन की एक टोली भी गांव में आ गई। आज मास्टर जी सबके हीरो थे। सब जानना चाहते थे कि आखिर मास्टर जी ने ये सब किया कैसे? कहां गई वह चुडै़ल? अगर वह चुडै़ल नहीं थी तो अब तक की सारी घटनाएं क्या थीं। हर आदमी के मन में एक सवाल था। 
शाम को दूरदर्शन की टोली के आग्रह पर प्रधान की चौपाल पर जमावड़ा हुआ। अध्यापक जी बताने लगे ‘‘पहली बार जब प्रशांत ने इस कुएं के बारे में मुझसे बात की तो मुझे लगा था कि शायद कुएं में कोई ऐसी गैस भर गई हो जिससे कुएं में उतरने वाले व्यक्ति को सांस लेने के लिये आक्सीजन न मिल पाती हो और उनकी मौत हो जाती हो। मैंने पढ़ा था कि जब कहीं भरा पानी सूखने लगता हैं तो नीचे दलदल बच जाती है। इस दलदल में जब पत्तियां, वनस्पतियां या जानवर गिर कर सड़ने लगते हैं तो यहां पर एक तरह की गैस बनने लगती है  जिसे ‘‘मार्श गैस’’ या ‘‘दलदल की गैस’’ कहते हैं। इस गैस में मुख्यतः मीथेन और हाइड्रोजन सल्फाइड होती हैं। इसे ‘‘प्राकृतिक या नेचुरल गैस’’ भी कहते हैं।
‘‘और शायद इन्हीं जहरीली गैसों की वजह से इस कुएं में उतरे लोगों की मौत हुई होगी’’, दूरदर्शन का एंकर अध्यापक जी की बात पूरी करने की कोशिश कर रहा था। 
‘‘नहीं ये गैसें, खासकर मीथेन, जहरीली नहीं होतीं। कुएं में उतरे लोगों की मौत तो इसलिए हुई होगी कि वहां उन्हंे सांस लेने के लिए आक्सीजन नहीं मिली होगी क्योंकि हवा की जगह तो वहां ये मार्श गैस भरी होगी।” 
‘‘पर उनमें से एक आदमी तो मरा नहीं था पर पागल हो गया था, वह तो कुछ और ही कहानी बताता है’’, एक ग्रामीण ने शंका जाहिर की। 
‘‘दरअसल जब संास लेने लिए आक्सीजन न हो तो पहले दिमाग की कोशिकाओं में सूजन आती है, फिर वे गलने लगती हैं। उनका शारीरिक क्रियाओं पर से नियंत्रण खत्म हो जाता है। चूंकि हमारा मस्तिष्क ही सांस लेने व दिल धड़कने की क्रियाओं को चलाता है फलतः ऐसा होने पर सांस और दिल धड़कने की क्रिया बंद हो जाती है और उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। यदि ऐसे में किसी व्यक्ति को बचा भी लिया जाए तो कभी-कभी उसके मस्तिष्क के कुछ भागों की कोशिकाएंं आक्सीजन की कभीं से हमेशा-हमेशा के लिए नष्ट हो जाती हैं या सूख जाती हैं। मस्तिष्क की कोशिकाओं की ये खासियत होती है कि एक बार नष्ट हो जाने पर वे पुनर्जीवित नहीं हो पातीं इसलिये मस्तिष्क का वह प्रभावित भाग हमेशा-हमेशा के लिए खराब हो जाता है। इसलिए ऐसा व्यक्ति तरह-तरह की असामान्य हरकतें करने लगता है जिसे आप पागल होना भी कह सकते हैं।” 
‘‘पर इस कुएं में लालटेन डालते हीे पूरा कुंआ नीली रोशनी से भर गया था और वह विस्फोट’’, किसी ने पूछा। 
“खुली जगह पर जब दलदलों में ऐसी गैस बनती है तो वह हवा के साथ उड़ जाती है और किसी को इसका पता भी नहीं लगता पर कुएं जैसी बंद जगहों में यह पानी के ऊपर पीले धंुधलके की तरह तैरती रहती है। अगर ऐसे में इसका संपर्क खुली आग से हो जाए, जैसा कि लालटेन अंदर लटकाने के साथ हुआ होगा तो ऐसी बंद जगह में यह नीली लौ के साथ जलने लगती है और इसमें विस्फोट हो जाता है।’’ 
‘‘पर आपने यह कैसे जाना कि यह गैस मीथेन ही है’’, एक दूरदर्शन संवाददाता शक जाहिर कर रहा था। 
‘‘शक तो मुझे पहले से ही था पर इसको परखना भी जरूरी था। दूसरे आप सब लोगों का कहना था कि सबेरे के धुंधलके मंे चुडै़ल से भी मुलाकात हो जाती है तो उससे मुलाकात करनी भी जरूरी थी।’’ 
लोगों में हँसी की एक लहर दौड़ गई।  
‘‘मैने सोचा कि चुडै़ल से मिलने और गांव वाले तो मेरे साथ जाने से रहे तो मैंने अकेले ही भोर में कुएं पर जाने की योजना बनाई, साथ मेंे था ये पतला तार, पांच सेल की टार्च, पचास मिलीलीटर की डाक्टरी सिरिंज और इसके मुह पर लगी यह प्लाटिक की पतली ट्यूब। मैं इसको लेकर कुएं पर गया। मैने पहले पतले तार में बांध कर अपनी टार्च जलाकर कुएं में लटकाई। वहां न नीली रोशनी थी और न कोई विस्फोट हुआ क्योंकि टार्च में लालटेन की तरह कोई खुली आग तो होती नहीं। कोई और असमान्य बात भी नजर नहीं आई। फिर मैंने उस प्लास्टिक की पतली ट्यूब के अगले सिरे पर लकड़ी का टुकड़ा बांधकर कएं में लटकाया।’’ 
‘‘लकडी का टुकड़ा क्यों?”, किसी ने पूछा। 
‘‘ताकि इस प्लास्टिक ट्यूब का अगला हिस्सा मुड़े नहीं और ट्यूब आसानी से कुएं की तली तक पहुंच जाए। इसे मैंने 50 मिलीलीटर की सिरिज में लगाकर नीचे से गैस सिरिंज में भरने की कोशिश की। कई बार प्रयास करने पर जब मुझे लगा कि कुएं की गैस इस सिरिंज में आ गई होगी तो मैने तेजी से इसकें मंुह पर लगी प्लास्टिक की नली हटाकर एक मोमबत्ती का टुकडा फंसा दिया ताकि इसमें भरी गैस वापस न निकल जाए। सिरिंज के दूसरे हिस्से को भी मैने पिघली मोम से भरकर सील कर दिया। इस सिरिंज को लेकर मैं रात में ही अपनी प्रयोगशाला को चला गया ताकि गैस लीक न हो जाए। वहां मेरा शक सही निकला। परीक्षणों में पता चला कि सिरिंज में भरी गैस “मार्श गैस’’ ही है, मुख्यतः मीथेन। 
‘‘आपकी चुडै़ल से मुलाकात हुई उस दिन’’, किसी ने चुटकी ली। 
‘‘हां हुई’’ 
‘‘क्या’’, कई लोगों ने आश्चर्य से कहा।  
‘‘हां जब मैं कुए की तरफ बढ़ रहा था तो अंधेरे में मुझे दो आंखें चमकती दिखाई दीं। मैंने टार्च की रोशनी उन पर डाली तो सारा मामला समझ में आया।’’
‘‘कैसा मामला?’’ 
‘‘कुएं पर पहले कभी घिर्री लगाने के लिए उसकी जगत पर दो खंभे बनाए गए हांेगे। वक्त के साथ एक खम्भा तो गिर गया है पर एक अभी खड़ा है।’’ 
सब ने स्वीकृति में सिर हिलाया। 
‘‘उसी खंभे पर आकर बैठती थी यह बिल्ली’’ 
‘‘बिल्ली’’, कई आवाजें एक साथ आईं। 
‘‘हां बिल्ली यानि कि आपकी चुडै़ल। बिल्ली की आँखों में एक खास किस्म का पदार्थ होता है जिससे उसकी आंखंे अंधेरे में भी चमकती हैं, आप लोगों ने भी देखा होगा?’’ 
भीड में से बहुत से लोगों ने सहमति में सिर हिलाया। 
‘‘जब यह बिल्ली उस खंभे पर चढ़कर आंखें चमकाती थी तो अंधेरे में यह खम्भा आपको नारी आकृति जैसा लगता था और उस पर बैठी बिल्ली की आंखंे आपको उस चुड़ैल की आंखों जैसी दिखती थीं। टार्च की रोशनी पड़ते ही घबराकर भागी यह चुडै़ल।’’ 
लोगों में एक बार फिर हंसी की लहर दौड़ गई। 
‘‘पर उन लडकियों की मौतें, उस किसान की मौत’’, भीड़ में कुछ खिसियाए लोग ऐसे भी थे जो अभी भी हार मानने को तैयार नहीं थे।  
‘‘लड़कियों की मौत तो निश्चित रूप से आत्महत्या ही रही होगी। कारण तो उनके घर-परिवार वाले या मित्र-परिचित ही बेहतर जानते होंगे और उस किसान को तो आप भी जानते हैंं, सांप ने काटा था। अगर झाड़-़फूंक की जगह उसका इलाज कराया होता तो शायद वह भी आज जिंदा होता।’’ 
‘‘कुदरत ने कैसा अजीब खेल खेला है इस गांव में”, किसी ने टिप्पणी की। 
‘‘नहीं यह इस तरह की पहली घटना नहीं है। दलदली क्षेत्रों में तो ऐसी घटनाएं आम हैं। जब कभी इस मार्श गैस मेंं आग लग जाये तो यह दलदल के ऊपर के पानी पर नीली लौ के साथ जलने लगती है। कई देशों में ऐसी घटनाओं पर बहुत सारी किंवदंंतियां प्रचलित हैं, जिनमें आयरलैंड, स्काटलैण्ड व इंगलैंड के कुछ भागों में प्रचलित ‘‘विल ओ विस्प’’ और न्यूफाउंडलेंड में दिखने वाली ‘‘जैक-ओ- लेंटर्न’’ जैसी रहस्यमयी दलदली रोशनियां बहुत मशहूर हैं। हमारे देश में ही आपने कई बार अखबारों में पढ़ा होगा कि पुराने बरसों से बंद पड़े कुएं की सफाई करने लोग उसमें उतरे और उनकी मौत हो गई।’’ 
दूरदर्शन के एंकर ने सहमति मेंे सिर हिलाया। 
‘‘ऐसे कुओं की सफाई करने से पहले उनमें खुले छातों को उल्टा लटका कर बार-बार बाहर खींचना चाहिए ताकि इस तरह से उनके अंदर भरी मार्श गैस बाहर निकल सके। इसके बाद कुएं के अंदर जलती आग डालंे। अगर नीली रोशनी न दिखे या विस्फोट न सुनाई दे तभी कुएं मेें उतरा जाए। हो सके तो ऐसे कुओं की सफाई के लिए इस कार्य के विशेषज्ञों का सहारा लिया जाए।’’ 
इसके बाद महफिल बर्खास्त हो गई।
इस घटना को कई साल हो चुके हैं। कुआं खूब पानी दे रहा है। गांव वालों की पीने के पानी की समस्या काफी हद तक हल हो गयी है। अब आदमी, जानवर, बच्चे उस कुएं के आस-पास ही जमे रहते हैं। अब न दिन में, न रात में कोई भी उस कुएं के पास जाने से नहीं डरता। सब कुछ बदल गया है। अगर नहीं बदला हैं तो उस कुएं का नाम। लोग अब भी उसे चुडै़ल वाला कुअंा ही कहते हैं।    
 
 
drarvinddubey2004@yahoo.com