विज्ञान कथा


एलियन

सनोज कुमार

ईस्वी २२१६ तक यह साबित हो चुका था कि सौरमंडल के आठों ग्रहों, उपग्रहों में एलियन का कोई अस्तित्व नहीं है। और अब विश्व की कई अन्तरिक्ष एजेंसियाँ इस कार्य से अपने आप को खींच रही थी। तब भारत की पहल पर कुछ देश भारत की अगुवाई वाले मिशन चौरोन में साथ आने को तैयार हो गए थे। ईस्वी २२२९ में भारत के एक संस्थान सेंटर फॉर स्पेस आर्कियोलोजी ने कभी ग्रह रह चुके प्लूटो के उपग्रह चौरोन पर मानव भेजने का प्रोग्राम बनाया। क्योंकि इस समय प्लूटो-चौरोन युग्म नेपच्यून की कक्षा को पार कर सूर्य के नजदीक आ गया था। इस समय पृथ्वी से इसकी दूरी कम से कम थी। यह घटना २४८ वर्ष बाद आती है जब प्लूटो २० वर्षों के लिए  नेपच्यून की कक्षा के अन्दर आ जाता है। इस संयुक्त मिशन में चीन से प्रो। जिन पिन, रूस से डॉ। रुज़ोस्की, अमरीकी वैज्ञानिक प्रो। टॉम अल्बर्ट के अलावा भारत से जाने-माने स्पेस आर्कियोलोजिस्ट प्रो। विहान और डॉ। हैदर थे। १० दिसम्बर २२३० को श्रीहरिकोटा से स्पेस शटल आर्यवर्त को पी.एस.एल.वी। द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया था। करीब आठ वर्षों की लम्बी यात्रा करने के बाद स्पेस शटल आर्यवर्त चौरोन की कक्षा में पहुँचकर उसके चक्कर काटने लगा। सभी अंतरिक्ष यात्रियों का मत था कि यान को चौरोन के सबसे बड़े क्रेटर में उतारा जाये जिससे अधिक जानकारियाँ प्राप्त की जा सके। चौरोन उपग्रह के सबसे बड़े क्रेटर का क्षेत्रफल ३१४०० वर्ग किलोमीटर था जोकि पृथ्वी पर मौजूद सबसे बड़े क्रेटर से कहीं ज्यादा। १६ अप्रैल २२३८ सायं पाँच बजे आर्यवर्त चौरोन की कक्षा में स्थापित हो गया था और क्रेटर के ऊपर सतह की ओर बढ़ने लगा। १७ अप्रैल की सुबह सात बजे चौरोन यान आर्यवर्त से अलग हो गया।
प्रो। विहान, प्रो.अल्बर्ट और डॉ। रुजोस्की चौरोन यान में थे और सतह पर उतरने के लिए तैयार थे। संपर्क तथा संचार प्रणाली को मॉनिटर करने के लिए डॉ। हैदर और प्रो। जिन पिन अंतरिक्ष यान में ही रुक गए। आठ बजकर सत्रह मिनट पर चौरोन यान क्रेटर की सतह पर उतर गया। प्रो। विहान ने पहला कदम चौरोन की सतह पर रखा। प्रो। विहान, प्रोफेसर अल्बर्ट, टुडे इज दि ग्रेट डे फॉर ह्यूमन। प्रो। अल्बर्ट- यस प्रोफेसर। तीनो वैज्ञानिकों ने चौरोन उपग्रह के विशाल क्रेटर का मुआयना किया। डॉ। रुजोस्की- इतना विशाल क्रेटर कैसे बना? कहीं आंतरिक हलचल से या किसी उल्का पिंड के गिरने से तो नहीं?
प्रो। विहान- यू आर राईट डॉ। रुजोस्की। चौरोन उपग्रह के उद्दभव के शुरुआत में कोई उल्का पिंड या बाह्य पिंड आकर टकरा गया होगा अथवा आंतरिक हलचल होने से भी बन गया होगा।
प्रोफेसर- यू.आर.राईट। जस्ट लुक एट डाउन। व्हाट इज दिस? प्रो। अल्बर्ट ने कहा।
प्रो। विहान जैसे ही नीचे की ओर देखा- ‘‘व्हाट इज दिस? दिस इज अमेजिंग’’। वे आश्चर्य से उछल पड़े। डॉ। रुजोस्की ने स्टिक से उसके ऊपर जमी बफ़र् हटाई तो सभी की आँखे खुली की खुली रह गयी। प्रो। अल्बर्ट - यह तो कोई कंकाल जैसा मालूम पड़ता है। प्रो। विहान- सही कहा आपने। लेकिन चौरोन जैसे उपग्रह में तो जीवन संभव ही नहीं है तो फिर ये कंकाल नुमा चीज आई कहाँ से ?
सभी अंतरिक्ष यात्री हैरान थे कि आखिर ये है क्या? सभी ने आसपास कुछ दूरी तक मुआयना करने का फैसला किया। बफ़र् के ऊपर कई जगहों पर ठोस पदार्थ जैसी संरचना दिखाई दी। इस तरह के सभी नमूनों को इकठ्ठा किया गया। यह पहली घटना थी जब किसी आकाशीय पिण्ड पर इस तरह के नमूने प्राप्त हुए जो ब्रह्मांड में एलियन होने के पक्का सबूत थे। प्रो। विहान- आज की घटना मानव इतिहास की बहुत बड़ी घटना है। इससे दो संकल्पनाएँ उभरकर सामने आ रही हैं। चौरोन पर जीवन होने के लिये किसी तरह का वातावरण नहीं है। हो सकता है कि  हमारी तरह किसी ग्रह से एलियन यहाँ आये हो? और यहाँ आकर किसी दुर्घटना के शिकार हो गये हो ?...
प्रो। अल्बर्ट- यह भी तो हो सकता है कि ब्रह्मांड के किसी गैलेक्सी के ग्रहों में जीवन का उद्दभव हुआ हो और किसी कारणवश आंतरिक विस्फोट हो जाने के कारण ग्रह नष्ट हो गया हो द्य उसका मलबा अन्तरिक्ष तैरता हुआ हमारे सौरमंडल के नजदीक से गुजरा हो और कुछ हिस्सा चौरोन पर गिरा हो जिसकी वजह क्रेटर का निर्माण हुआ हो? हमारी पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति का भी तो ऐसा ही रहस्य हो सकता है? 
डॉ। रुजोस्की- प्रोफेसर, लेकिन कंकाल को देखकर ऐसा लगता है कि यह बहुत पुराना नहीं है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि पृथ्वी के अलावा भी कहीं न कहीं जीवन मौजूद है।
प्रो.विहान- जो भी हो? परीक्षण होने के बाद ही पता चलेगा। हमें इसकी जानकारी कंट्रोल रूम को दे देनी चाहिए।
उधर पृथ्वी पर जब इस खोज का पता चला तो वैज्ञानिकों से लेकर आम लोगों में आश्चर्य की लहर दौड़ गयी। भारत समेत चीन, रूस, अमेरिका सहित विश्व के बहुत से देशों में जश्न का माहौल था। जब जब मानव ने चाँद, मंगल, नेपच्यून की सतह पर कदम रखा तब तब पृथ्वी पर इस तरह का जश्न देखने को मिला था। एक बार फिर भारत वर्ष ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विश्व गुरु की भूमिका निभा रहा था।
उधर चौरोन यान वापस आर्यवर्त की और बढ़ने लगा और कुछ देर बाद आर्यवर्त से जुड़ गया और पृथ्वी की ओर बढ़ने लगा। उस समय चौरोन की पृथ्वी से दूरी लगभग ५ण्८८ बिलियन किलोमीटर थी जिसको तय करने में आठ वर्ष का समय लगा।
भारतीय समयानुसार २५ मार्च २२४७ रात दस बजे आर्यवर्त पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल हुआ। २६ मार्च तड़के चार बजे आर्यवर्त हिंद महासागर में उतर गया। सभी यात्री करीब सत्रह वर्ष बाद पृथ्वी पर सकुशल वापस लौट आये थे और अपने साथ एक रोमांचकारी सच लेकर आये जिस पर विश्वास करना शायद उतना ही रोमांचकारी था।
तीन दिनों तक विश्व के प्रमुख देशों का भ्रमण करने के बाद आर्यवर्त अन्तरिक्ष यान भारत की राजधानी दिल्ली उतरा तो उसका भव्य स्वागत किया गया मानों सारे भारतवासियों ने अपनी पलकें बिछा दी हों। प्रो। विहान इस मिशन के नायक थे। लेकिन उनके सामने इस अलौकिक सत्य को साबित करने की चुनौती थी कि इस ब्रह्मांड में पृथ्वी के अलावा भी किसी ग्रह में जीवन था अथवा वर्तमान में भी है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ बोस्टन, जिन जियांग यूनिवर्सिटी बीजिंग तथा सेंटर फॉर स्पेस आर्कियोलोजी मैसूर में चौरोन उपग्रह से लाये गए नमूनों की जाँच शुरू की गयी। यूनिवर्सिटी ऑफ़ बोस्टन के स्पेस आर्कियोलोजी विभाग से प्रो.मैडम एलिस तथा सेंटर फॉर स्पेस आर्कियोलोजी के प्रो.के.आर.वशिष्ठ ने संयुक्त रूप से चौरोन में पाए गए कंकाल नुमा ढांचे की कार्बन डेटिंग की। जाँच में उसकी आयु चार लाख वर्ष आंकी गयी। उस समय पृथ्वी पर आधुनिक मानव का उद्दभव काल था। मैडम एलिस ने प्रो। विहान को फोन कर सारी जानकारी दी।
मैडम एलिस- प्रोफेसर विहान, वी फाउंड दैट द सैंपल इज फोर लैख ईयर्स ओल्ड बट वी कांट से दैट इट्स एलियन बॉडी।
प्रो। विहान- यस मैडम, वी हैव टू डू मास स्पक्ट्रोस्कोपी एंड न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेन्स। देन वी गेट फाइनल रिजल्ट।
मैडम एलिस- यू आर राईट प्रोफेसर।
इसके बाद प्रोफेसर विहान के अनुरोध पर जिन जियांग यूनिवर्सिटी बीजिंग और सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी रूस के साझा प्रयासों से उस ढ़ाचे में मौजूद रसायनों का अध्ययन किया गया जिसमें पाया कि जीवन के लिए सभी जरुरी तत्व विद्यमान है। डी.एन.ए. मॉलिक्यूल में करीब चार अरब न्युक्लियोटाईड बेस पेअर पाए गए जोकि ह्यूमन के डी.एन.ए. में मौजूद न्युक्लियोटाईड से कहीं ज्यादा थे। लेबोरेटरी ऑफ़ मॉलिक्यूलर बायोलॉजी कैम्ब्रिज़ यूनाइटेड किंगडम में ढ़ाँचे में पाए गए डी.एन.ए. के आधार पर एलियन का थ्री डी। स्ट्रक्चर बनाया गया जो पृथ्वी पर मौजूद वर्तमान मानव से अस्सी फीसदी समान था। यह पृथ्वीवासियों के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
उधर सेंटर फॉर स्पेस आर्कियोलॉजी मैसूर में डॉ। हैदर ने सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी से डॉ.रुजोस्की से बात की तो वे खुशी से चहक उठे। क्योंकि अब यह साबित हो गया था कि पृथ्वी के अलावा भी ब्रह्मांड के किसी कोने में जीवन था। लेकिन चौरोन उपग्रह पर उसके चिन्ह कैसे पहुँचे यह गंभीर विषय था। कार्बन डेटिंग के अनुसार यह तो तय था कि पृथ्वी और उस अनाम ग्रह पर जीवन लगभग साथ-साथ फल फूल रहा था फिर अचानक कुछ जरुर हुआ होगा जिससे वह ग्रह नष्ट हो गया और उसका मलबा अन्तरिक्ष में बिखर गया और कुछ भाग सौर मंडल में प्रवेश करते समय प्लूटो के उपग्रह चौरोन से टकरा गया होगा जिससे एक बड़े क्रेटर का निर्माण हो गयाद्य परीक्षण के दौरान एक गंभीर बात का खुलासा भी हुआ। कंकाल और कुछ नमूनों की जाँच से पता चला कि उनमें कुछ रेडियोधर्मी पदार्थ भी उपस्थित थे। इसका अर्थ यह हुआ कि उस अनाम ग्रह पर जीवन का अंत रेडियोधर्मी विकरण से हुआ जोकि अणुबम और परमाणु बम के इस्तेमाल से ही संभव है।
इसका मतलब यह हुआ कि इस ब्रह्मांड में चार लाख वर्ष पूर्व भी उस गुमनाम ग्रह में उन एलियनों के पास टेक्नॉलॉजी के अलावा अणुबम और परमाणु बम विद्यमान थे। जबकि उस समय पृथ्वी पर मानव अपने दो पैरों में खड़ा होने की कोशिश कर रहा था।
प्रोफेसर विहान तथा उनके सहयोगियों ने दिसम्बर २२४९ को अपनी रिपोर्ट सार्वजानिक कर दी। रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी के सामानांतर ब्रह्मांड के किसी भाग अथवा ग्रह में जीवन की उपस्थिति थी। वहाँ के सबसे बुद्धिमान प्राणी (एलियन) चार लाख वर्ष पहले ही टेक्नॉलॉजी से लैस हो चुके थे। नमूनों से प्राप्त रसायनों के परीक्षण से साफ़ जाहिर होता है कि वहाँ पर जीवन का अंत टेक्नॉलॉजी तथा संसाधनों के दुरुपयोग होने के कारण हुआ।
२० अप्रैल २२५० में संयुक्त राष्ट्र संघ की विशेष बैठक हुई। संयुक्त राष्ट्र महासचिव मैथ्यू कोर्टिन ने प्रोफेसर विहान और उनकी टीम की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह अन्तरिक्ष मिशन अब तक का सर्वश्रेष्ठ मिशन है। रोमांचकारी और इस अलौकिक सत्य की खोज के लिए मिशन चौरोन का नाम मिशन एलियन दिया गया। विश्व को आगाह किया गया कि पर्यावरण और विश्व शांति को अनदेखा किया तो वो दिन दूर नहीं जब हम लोग भी गुमनाम ग्रह के बीते हुए एलियन बन जायेंगे।

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