कॅरियर


हार्टिकल्चर साइंस

संजय गोस्वामी

हॉर्टिकल्चरल साइंस या उद्यान विज्ञान जिसे बागवानी भी कहा जाता है यह कृषि विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें अनाज, फूलों और पौधों को उगाने से लेकर उनकी मार्केटिंग तक का अध्ययन किया जाता है। मानव उपयोग के लिए इस्तेमाल होने वाले पौधों के विज्ञान, तकनीक और विपणन से जुड़ा क्षेत्र है। उद्यान को हानि पहुचाने वाले कारण यथा वर्षा की कमी, जल स्रोतों का सूखना, मिट्टी का कटाव, बढ़ती हुई उष्णता, भू-आवरण की सौंदर्यहीनता तथा क्षति आदि का अध्ययन भी उद्यान विशेषज्ञ/विज्ञानी के लिए महत्वपूर्ण है। उद्यान की खूबसूरती कायम रखने हेतु पौधे की जड़ें एवं फैली हुई शाखाओं का सही मात्रा में काट-छांट करना तथा आवश्यक जल व नमी बनाए रखने में पौधों को महत्वपूर्ण योगदान को उद्यान विज्ञानी सहेज कर निराले फूलों से खूबसूरत बनाए रखें। इस हेतु आवश्यक खाद, कृषि यंत्र, सिंचाई हेतु जल व्यवस्था आदि का कार्य भी हॉर्टिकल्चरल साइंस  को देखना पड़ता है। उद्यान के रखरखाव की सफलता जिन पाँच चीजों पर आधारित है, वह है बीज, मिट्टी, मौसम, खाद और उद्यान संबंधित तकनीकी समझ-बूझ। बागवानी पौधों की कला, तकनीक, व्यवसाय और विज्ञान है। पेड़-पौधे मात्र भवन की शोभा ही नहीं, बल्कि आसपास वातावरण को भी खुशहाल रखते हैं, प्रदूषण को रोकने में कारगर सिद्ध होते हैं। वायुमंडल में व्याप्त जहरीली गैसें जैसे कार्बन डाईआक्साइड, सल्फर डाईआक्साइड, ओजोन, हाइड्रोकार्बन, हाइड्रोजन सल्फाइड, नाइट्रोजन के आक्साइड को रोकने में कारगर सिद्ध होते हैं। प्रकृति सानिध्य से सरोबार हॉर्टिकल्चरल साइंस हमें सुंदर बने रहने की आधारशिला प्रदान करता है। आजकल पर्यटन विभाग को उद्यान विज्ञानियों की आवश्यकता पर्यटन क्षेत्रों को हरा-भरा बनाने हेतु जरूरत पड़ती है। एक गमले में फूल का पेड़ लगाने में हमें कितनी मेहनत एवं इंतजार करना पड़ता है, लेकिन जब पेड़ में फूल लगने लगते हैं तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। जहाँ भूमि एवं बाग-बगीचे की सुविधा नहीं है, वहाँ बागवानी कैसे की जाए, इसका सही विश्लेषण उद्यान विज्ञानी ही दे सकते हैं। गमलों में कैसे पुष्पोपादन किया जाए एवं कितनी मात्रा में इसकी संख्या अपने घर के अनुसार हो, इसके लिए किसी उद्यान विशेषज्ञ से मदद ले सकते हैं। प्रकृति के प्रति प्रेम को उद्यान विशेषज्ञ बाखूबी जानता है। हॉर्टिकल्चरल साइंस को रोजगार भी मिलने से कोई परेशानी नहीं है। अपने ही घर में विभिन्न प्रकार के फूल उत्पादन एवं पेड़-पौधा लगाकर उसे अच्छे दामों पर बेच सकते हैं। साथ ही पुष्पों के लाभ का फायदा उठाकर उससे इत्र, अगरबत्ती आदि बनाने एवं स्वरोजगार की ओर अग्रसित होना उद्यान विज्ञानियों के लिए एक सस्ता एवं आसान विकल्प है। इसके लिए शुरूआती दौर में खास पूजी की आवश्यकता नहीं होती है। वास्तव में यह क्षेत्र प्रकृति प्रेमी के लिए काफी महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है, जिसका रूझान फूल, पेड़, पौधे, बगीचे की ओर है। अतः हार्टिकल्चर साइंस में विशेष रूप से फल, फूलों, सब्जी को उत्पन्न करने की सही एवं सटीक विधि फसल सुरक्षित रखने की तकनीकी तथा मौसम के अनुसार पौधों को सही मात्रा में पानी देने की सुव्यवस्था उद्यान विज्ञानियों के लिए प्रमुख है। इसके अलावा इसमें जैविक प्रतिरोधक का योगदान, विभिन्न प्रजातियों का अध्ययन किया जाता है। रोपण विधियों का अध्ययन कर अधिक से अधिक उत्पादन के कारणों को ढूंढ़ना महत्वपूर्ण है। आजकल बागवानी द्वारा गंध चिकित्सा से रोग दूर करने का तरीका खोजा जा रहा है। पूर्ण रूप से स्वस्थ एवं उत्साहित बने रहने हेतु आज ही हॉर्टिकल्चरल साइंस को अपनी जीवनशैली का अनिवार्य अंग बना लीजिए, तो जिंदगी में रौनक बिखेर देगा एवं वातावरण को मोहक बना देती है।
बागवानी - बागवानी कृषि विज्ञान की एक बहुत महत्वपूर्ण शाखा है जो कला, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पौधों की खेती के व्यवसाय से संबंधित है। इसमें फल, सब्जियां, नट, बीज, जड़ी बूटियों, स्प्राउट्स, मशरूम, शैवाल, फूल, समुद्री शैवाल और गैर-खाद्य फसलों जैसे घास और सजावटी पेड़ और पौधों की खेती शामिल है। यह खाद्य फलों, सब्जियों, फूलों, जड़ी-बूटियों और सजावटी पौधों के उत्पादन, उन्हें बेहतर बनाने और उनका व्यवसायीकरण करने का विज्ञान और कला है।फसल विज्ञान, जिसे एग्रोनॉमी भी कहा जाता है, दुनिया के प्रमुख खाद्य समूहों, अनाज, फीड, टर्फ और फाइबर फसलों के उत्पादन का विज्ञान है, और उत्पादन, सुधार और विपणन को शामिल करता है। इस पौधों के उपयोग, सुधार या विपणन के अनुप्रयोगों वनस्पति विज्ञान पौधों का शैक्षणिक अध्ययन है, किसी भी अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की तरह, बागवानी में नौकरी के बाजार में काफी संभावनाएं हैं। पुष्प उत्पादों की मांग बढ़ रही है, जिससे इस क्षेत्र में योग्य पेशेवरों के लिए और अधिक रिक्तियां हैं। योग्य पेशेवर बाजार में पुष्प उत्पादन के नए तरीकों को नया बनाने में मदद कर सकते हैं। बागवानी में पुष्प-उत्पादन, वाणिज्यिक उष्णकटिबंधीय फल, बागवानी फसलों की नर्सरी तकनीक, वाणिज्यिक उष्णकटिबंधीय सब्जी, विश्लेषणात्मक रसायन विज्ञान के सिद्धांत, वाणिज्यिक फूलों की खेती, व्यावहारिक गणित, फसल भौतिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि माइक्रोबायोलॉजी आदि के बारे में जानकारी दी जाती है। बागवानी विज्ञान में बागवानी फसलों और उनके प्रबंधन, फलों, सब्जियों और मसालों की पोस्ट-हार्वेस्ट प्रौद्योगिकी, औषधीय और सुगंधित फसलों का वाणिज्यिक उत्पादन, नैनोटेक्नोलॉजी के फंडामेंटल और एप्लिकेशन, एप्लाइड प्लांट बायोटेक्नॉलॉजी, और बागवानी उद्योग में अपशिष्ट प्रबंधन आदि के बारे में बताया जाता है इसके अलावा फूल, वृक्षारोपण, औषधीय और सुगंधित फसलों की कटाई के बाद की तकनीक, बागवानी के प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन के सिद्धांत हेतु कृषि विपणन, व्यापार और कीमतें, बागवानी उत्पादन प्रणालियों में कीट प्रबंधन, बागवानी फसलों में नेमाटोड प्रबंधन, उत्पादन अर्थशास्त्र और फार्म प्रबंधन, ग्रीनहाउस निर्माण और रखरखाव आदि के बारे में उत्पादन में  कुशल विपणन हेतु जानकारी दी जाती है। एक आवासीय ठेकेदार के रूप में बागवानी विज्ञान में लैंडस्केप निर्माण और प्रबंधन आवासीय और वाणिज्यिक परिदृश्य परियोजनाओं को स्थापित करना। इसमें लैंडस्केप निर्माण के ब्लूप्रिंट की व्याख्या, अनुमान लगाना और बोली लगाना, बिक्री और संयंत्र सामग्री और हार्डडेस की स्थापना (आंगन, दीवारें, आदि) शामिल हैं। उत्तम बागवानी का एक अच्छा उदाहरण वृंदावन उद्यान भारत के कर्नाटक राज्य के मैसूर नगर में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। इन साइटों को उत्तम और सुंदर बनाए रखने के लिए अच्छे अवसर भी मौजूद हैं। आजकल बोनसाई बागवानी में भी अच्छे अवसर हैं।
बोनसाई बागवानी - बोनसाई यानी पेड़ों को बौना बनाना। वर्तमान में स्थानाभाव के कारण गमले में बोनसाई तैयार करना एक अच्छा विकल्प है। जिनके पास जगह की कमी है। बड़ी बागवानी तैयार नहीं कर सकते। उनके लिए यह बड़े ही काम की चीज है। बोनसाई के लिए छिछले गमले इस्तेमाल किए जाते हैं। मानक बोनसाई पात्र की ऊँचाई 28 सेंटीमीटर से भी कम होती है और इस का आयतन 3 से 10 लीटर तक होता है इससे आसपास का माहौल तो हरा-भरा होता है, घर की सुंदरता भी बढ़ती है। वर्तमान में स्थानाभाव के कारण गमले में बोनसाई तैयार करना एक अच्छा विकल्प है। घर के बरामदे में पीपल, बरगद, अमरूद, आम जैसे पेड़ लगाने हों तो बोनसाई ही एकमात्र तरीका है। बोनसाई पौधों को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों मे बांटा जा सकता है।
मेम बोनसाई - छोटे साइज के बोनसाई पौधे, इसमें पौधों की लम्बाई मात्र 2 से 6 तक होती है तथा इन्हेंट आसानी से उठाया जा सकता है। मध्यम बोनसाई - इस तरह के बोनसाई पौधों की लम्बाई 6 से 12 तक की होती है तथा इन्हें एक हाथ से उठाया जा सकता है।
बड़ी साइज के बोनसाई - इस श्रेणी के पौधों की लम्बाई 12 से 24 तक की होती है तथा इन्हें दोनों हाथों से उठाया जा सकता है। इसके अलावा कुछ पौधे और बड़े आकार के होते हैं, बोनसाई कला, त्याग, तपस्या तथा धैर्य का प्रतीक है इस कला में कलाकार अपनी इच्छानुसार वृक्षके स्वंभाव के अनुरूप विभिन्न प्राकृतिक भावों का निर्माण करता है। बोनसाई कला को तथा पौधों की बनावटको ध्यान में रखकर इन्हें 5 प्रमुख प्रजातियों में विभक्तकिया जा सकता है-
सीधा पौधा (अपराइट)- इस प्रकारके बोनसाई प्रकार में पौधा सीधा खडा रहता है। बरगद, पीपल, सीताफल, पाइनस इत्याद इस श्रेणी के प्रमुख पौधे होते हैं।
झुके हुए पौधे (स्लान्टिंग)- इस प्रकार के बोनसाई पौधे एक तरफ झुके रहते हैं तथा मुख्य तना भी टेढ़ा होता है, जूनीपर, पाइनस, कामिनी, बोगनविलिया गूलर इत्यादिपौधे इसके लिए ठीक रहते हैं।
केसकेड और सेमीकेसकेड- इस तरह के बोनसाई पौधे नीचे की तरफ लटकते रहते हैं, अगर पौधा कन्टेनर के पेंदे को छू लेता है या उस तक पहुंच जाता है तो इसे सेमी केसकेड कहते हैं तथा पेंदे से भी बहुत नीचे तक लटकता रहता है तो इन्हें केसकेड किस्मा कहते हैं, जूनीपर, पोरचूलेकेरिया, पाइनस, फाइकस बेनजेमिना, फाइकस ट्राइग्रोना, फाइकस केरिका, फाइकस प्लूमीला, बोगनविलिया इत्यादि पौधे इस श्रेणी में बनाए जा सकते हैं।
फोरेस्ट् या ग्रुप स्टाइल - इस तरह के बोनसाई पौधों को बड़ी ट्रे तथा बड़े आकार की तश्तरी में पास-पास लगाया जाता है जिससे कि पौधों का एक समूह बन जाता है। इनमें जूनीपर, पाइनस, पोमग्रेनेट (नाना), मेलफीमिया,कामिनी मेलफीमिया इत्यादि पौधे काफी प्रचलित हैं।
ब्रूम स्टापइल - इस प्रकार के बोनसाई पौधों में मिट्टी की सतह के उपर से एक साथ कई तने निकलते हैं तथा इनका कोई खास निश्चित आकार नहीं होता है, ये एक झुंड सा बनाते हैं तथा ऊपर के भाग में भी पत्तियां काफी पास-पास रहती हैं : गुड़हल, अनार, अमरूद, आंवला, इरेन्थीकम, एकेलिफा, फाइकस बेनजेमीना, लेजर स्टोहमिया, शिफरेला इत्यादि इस स्टाइल के प्रमुख पौधे हैं।
पेड़-पौधों को बोनसाई रूप में लाने की सफलता निम्न बातों पर निर्भर करती है। अगर इनका सावधानीपूर्वक पालन किया जाए तो इसके परिणाम बहुत ही अच्छे प्राप्त होंगे अच्छी खासी आमदनी का जरिया, लेकिन इसके लिए प्रशिक्षण की भी जरूरत पड़ेगी। किसी विशेषज्ञ अथवा जानकार से यह हुनर सीखा जा सकता है। जैसे-जैसे अनुभव बढ़ते जाएगा, आप इसमें एक्सपर्ट होते जाएंगे। इसकी कीमत कुछ भी हो सकती है। सामने वाले को पसंद आ जाए तो आप जितना सोचेंगे, उससे भी ज्यादा में बिक सकता है। इस कारण बोनसाई बागवानी रोजगार का बहुत उपयोगी क्षेत्र है।

मुख्य विषय

बागवानी में फ्रूट साइंस (पोमोलॉजी), वेजिटेबल साइंस (ओलेरीकल्चर), लोरीकल्चर और लैंडस्केपिंग और पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट मुख्य क्षेत्र है बागवानी में विज्ञान स्नातक विषय में  खेतीय बागवानी के प्रकारए बागवानी फसलों में खरपतवार और जल प्रबंधनए, एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट के फंडामेंटल, फार्म पावर और मशीनरी, एप्लाईड स्टैटस्टिक्स, मृदा और जल संरक्षण इंजीनियरिंग, सर्वेक्षण और इंजीनियरिंग ड्राइंग, बोनसाई बागवानी, सजावटी बागवानी और भूनिर्माण, बागवानी संपदाओं की स्थापना और प्रबंधन, संरक्षित और सटीक बागवानी, आंतरिक स्कैपिंग और चिकित्सीय बागवानी, हाई टेक क्रॉप प्रोडक्शन, एप्लाइड माइक्रोबायो- लॉजी, नवीकरणीय ऊर्जा वन संसाधन प्रबंधन आदि विषय के बारे में बताया जाता है।

पौधे का प्रसार

बागवानी में पौधे का प्रसार विषय के तहत फल देने वाले पौधों, फूलों और सब्जियों के अलावा, पौधे, बीज, कटिंग और बल्ब और अन्य छोटे पौधों की झाडि़यों के बारे में बताया जाता है। जिसमें बोनसाई बागवानी का अहम योगदान है इस तरह की कला में सभी छोटे प्रकार के पौधों और कुछ अन्य महत्वपूर्ण पौधों को भी अभिनव और अलग दिखने के लिए सजाया जाता है।

कोर्सेस

  • बागवानी में विज्ञान स्नातक - तीन वर्ष
  • बागवानी में बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी-चार वर्ष
  • बागवानी में मास्टर्स ऑफ साइंस - दो वर्ष
  • बागवानी और लैंडस्केप बागवानी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा - एक वर्ष
  • एमएससी एजी- बागवानी (फूलों की खेती और भूनिर्माण) - दो साल
  • बागवानी में पीएचडी

वेतन

एक बागवानी वैज्ञानिक को शुरुआत में प्राइवेट सेक्टर में 5 से 8 लाख का वार्षिक पैकेज मिल जाता है, जबकि सरकारी नौकरी मिलने पर शुरुआत में करीब 50 हजार रुपए मासिक और इन्सेन्टिव मिलता है।

प्रमुख संस्थान

  • बिंधनचंद्र कृषि विवि, हरिनगर, प.बंगाल।     
  • आनंद कृषि विवि, आनंद, गुजरात।
  • जवाहर लाल नेहरू कृषि विवि, जबलपुर।
  • पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना।
  • इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर।
  • आंध्रा कृषि विश्वविद्यालय, वाल्टेयर, विशाखापटनम।
  • तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी, कोयंबटूर, तमिलनाडु।
  • अन्नामलाई विश्वविद्यालय, चेन्नई।
  • कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बैंगलोर।
  • केरल कृषि विश्वविद्यालय, केरल।
  • आचार्य एन.जी। रंगा कृषि वि.वि.।
  • तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर
  • कृषि महाविद्यालय, पुणे।
  • गुजरात कृषि विश्वविद्यालय, आनंद।
  • कॉलेज ऑफ हॉर्टिकल्चर, केरल।
  • बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची।
  • देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, खंडवा रोड, इंदौर, म.प्र.।
  • महात्मा फूले कृषि विवि, नांदेड़, महाराष्ट्र।
  • आचार्य एनजी रंगा कृषि विश्वविद्यालय, हैदराबाद, अ.प्र.।
  • भारतीय हॉर्टिकल्चरल साइंस  संस्थान, बंगलुरू, कर्नाटक।
  • पूसा कृषि विश्वविद्यालय, पूसा रोड, मुजफरपुर, बिहार।
  • गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तरांचल।
  • महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर, राजस्थान।
  • दिल्ली विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली।
  • मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई।
  • रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल।
  • डॉ.सी.वी.रामन विश्वविद्यालय, कोटा, बिलासपुर।

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