तकनीकी


जैविक अणुओं के अध्ययन में नैनौ-प्रौद्योगिकी 

डॉ.दिनेष मणि

सूक्ष्म अवस्था में तत्वों के परमाणुओं के भौतिक तथा रासायनिक गुणों में आशातीत परिवर्तन होते हैं। नैनो-प्रौद्योगिकी के अध्ययन से परमाणुओं के इन्हीं गुणों का संदोहन मानवहित में करने का प्रयास हमारे वैज्ञानिकगण करते हैं। नैनो-प्रौद्योगिकी का उपयोग कर मानव आज आकाश की ऊँचाइयों से लेकर सागर की गहराइयों तक अपनी विजय पताका फहरा रहा है।
वनस्पतियों एवं जीवों के विभिन्न ऊतकों में चलने वाली जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं का अध्ययन नैनो-स्तर पर करने के लिए आज सूचना-प्रौद्योगिकी की सहायता ली जा रही है। उभरती हुई नैनो-प्रौद्योगिकी ने जैविकी, इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना विज्ञान की चिन्तन धाराओं को एक-दूसरे के अत्यन्त निकट लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसा विश्वास किया जा रहा है कि सुपर कम्प्यूटर की उदीयमान पीढ़ी कई लाख संसाधितों से सुसज्जित तथा कई करोड़ संक्रियायें प्रति सेकण्ड की दर से कार्य करने में सक्षम होगी। नैनो-प्रौद्योगिकी पर आधारित इलेक्ट्रॉनिक युक्तियाँ जब सजीव द्रव्य से पारस्परिक क्रिया करेंगी तो आशातीत परिणाम सामने आने की संभावना बनेगी।
निश्चित रूप से नैनो-प्रौद्योगिकी के माध्यम से मानव-जीवन को और अधिक गहराई से समझा जा सकेगा। कोई आश्चर्य नहीं यदि सजीव तथा निर्जीव का अन्तर और भी कम हो जाए व जीवन के प्रति मानव को अपना दार्शनिक दृष्टिकोण परिवर्तित करने के लिए ही बाध्य होना पड़े और सार्वभौमिक चेतना के किसी अनछुये धरातल पर मानव अपने वैज्ञानिक ज्ञान के सहारे जा पहुँचे। नैनो-प्रौद्योगिकी की सहायता से हम जैविक कोशिकाओं की कार्य प्रणाली को अधिक विस्तार से समझने में सफल होंगे, साथ ही कम्प्यूटरों के लिए और भी सूक्ष्मचिपों के निर्माण की क्षमता हममें आ जायेगी जिससे जैविकी के क्षेत्र में अनेक अभिनव अनुप्रयोग सम्भव होंगे। पदार्थ से आण्विक विन्यास को अनेक प्रकार से परिवर्तित कर वैज्ञानिक आज नैनो आकार की कणिकाएं, तार, रंध्रहीन ठोस पदार्थ और नैनो-आकार वाली संपुटिकायें कैप्सूल, बनाने के भी प्रयास कर रहे हैं।
जैविक अणुओं में स्वतः समायोजित होने की क्षमता पाई जाती है। जैविक अणुओं पर कार्य करने वाले वैज्ञानिक ”स्वतः समायोजन“ नामक इस गुण से भली-भाँति परिचित हैं। वास्तव में जब विविध प्रकार के जैविक अणु ठीक-ठीक अनुपात में परस्पर मिश्रित हो जाते हैं तो कोशिकाओं एवं शरीर के विभिन्न अंगों की रचना होती है। जैविक अणुओं के स्वतः समायोजन के लिए नैनो-नलिकायें भी बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई हैं।
नैनो-नलिकाओं पर कतिपय रासायनिक पदार्थ के अणुओं का आवरण चढ़ाकर उन्हें इच्छित विन्यासों में स्वतः समायोजित किया जा सकता है। वैज्ञानिकों को आशा है कि निकट भविष्य में वे आण्विक-इलेक्ट्रॉनिकी एवं जैव-चिकित्सकीय युक्तियों को विकसित करने हेतु, जैविक अणुओं के स्वतः समायोजन में काम आने वाली नैनो-नलिकाओं का निर्माण करने में सफल होंगे। अभी तक नैनो-आकार की कुछ कणिकाओं के स्वतः समायोजन हेतु अमेरीका में कुछ तकनीकें विकसित की जा चुकी हैं।
एक उल्लेखनीय तकनीक इस दिशा में यह है कि नैनो-कणिकाओं के द्वारा त्रिविम संपुटिकाओं का निर्माण करने में वैज्ञानिकों को सफलता मिली है। उन्होंने देखा कि किसी तैलीय माध्यम में विलगित की गयी नैनो-कणिकाओं में जल की सूक्ष्म बूँद पर स्वतः समायोजित होने की प्रवृत्ति पायी जाती है। एक अन्य शोध के अनुसार जो नैनो-कणिकायें तेल में विलेय होती हैं, उनको विशिष्ट आवृŸिायों वाले प्रकाश से प्रकाशित करने पर वे जल में घुल जाती हैं। इस प्रकार प्रदीप्ति की घटना का सम्बन्ध सीधे नैनो-कणिकाओं से हो जाता है। आशा की जाती है कि आने वाले समय में यह अनुसंधान चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा। चिकित्सीय छायांकन तथा रोगों का पता लगाने की नवीन पद्धतियाँ इस अनुसंधान के कारण विकसित कर ली जायेंगी। शरीर में औषधि को वितरित करने और रूग्ण कोशिकाओं तक पहुँचाने में भी यह प्रणाली सहायक सिद्ध होगी।
एक अध्ययन के अनुसार कार्बन की अजैविक नलिकाओं के पृथक्करण में एकल कुण्डलित डी.एन.ए. अणु बहुत सहायक सिद्ध होते हैं। डी.एन.ए. के विशाल जैविक अणु इन नैनो-नलिकाओं को दृढ़ता पूर्वक अपनी ओर खींच कर उनको अलग-अलग कर देते हैं। जैविक और अजैविक अणुओं के बीच का यह आकर्षण कौतूहल का विषय है। नैनो-कणिकाओं को किसी अन्य सबस्ट्रेट पर उचित स्थितियों में समायोजित करके उनका उपयोग रोगों का पता लगाने और रोग की पहचान करने में कर सकते है। डी.एन.ए. और प्रोटीन अणुओं का संश्लेषण कार्बन की नैनो-नलिकाओं के साथ करके हम सर्वथा नवीन जैविक पदार्थों का निर्माण कर सकते हैं। ऐसा देखा गया है कि कुछ विशिष्ट बहुलकों (च्वसलउमते) अथवा प्रकाश संवेदी तत्वों को प्रोटीनों या डी.एन.ए. अणुओं में विसरित करा देने पर नैनो-नलिकाओं के गुणों में बड़ा परिवर्तन हो जाता है। वैज्ञानिकों ने साइटोसिन एवं गुआनिन सरीखी प्रोटीनों की कुण्डलित संरचनायें इस विधि से प्राप्त करने में सफलता अर्जित की है। इन प्रोटीनों का स्वतः समायोजन हाइड्रोजन बन्धों के माध्यम से कराया गया था। इन प्रयोगों को देखते हुए ऐसा लगता है कि नैनो-नलिकायें निकट भविष्य में नये पदार्थाें, इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों और आण्विक स्तर वाले नये विद्युत परिपथों के निर्माण में सहायक सिद्ध होंगी।
कार्बनिक नैनो-नलिकायें पानी जैसे व्यापक विलायक में भी नहीं घुलतीं। पानी में इनके न घुलने के इस गुण का उपयोग अनेक प्रकार से चिकित्सा के क्षेत्र में किये जाने की आशा है। एक अध्ययन के अनुसार जब जैविक पदार्थों का सम्बन्ध कार्बन की नैनो-नलिकाओं से कर दिया जाता है तो नैनो-नलिकायें पानी में घुलने लगती हैं। इनका सम्बन्ध यदि स्टार्च अथवा ग्लूकोसामीन के कर दिया जाये तो भी वे जल में घुल जाती है परन्तु विलयन में मनुष्य की लार मिला दी जाए तो लार में उपस्थित एमाइलेज नामक एन्जाइम विलयन के स्थायित्व को भंग करके कार्बन की इन नैनो-नलिकाओं को पुनः ठोस व कठोर रूप प्रदान कर देता है। वैज्ञानिक नैनो-नलिकाओं की सहायता से डी.एन.ए. चिप बनाने के लिए प्रयासरत हैं। यदि आने वाले समय में ऐसा सम्भव हुआ तो यह उपलब्धि इलेक्ट्रॉनिकी, जैविकी, चिकित्सा विज्ञान और भौतिकी इन सभी को एक-दूसरे के बहुत निकट ले आयेगी। जैव-कोशिकाओं में चलने वाली क्रियाओं की सूचना प्राप्त करने के लिए उसी आकार के संवेदित्रों की आश्यकता पड़ेगी। अधिकांशतः इसके लिए किसी एंटीबाडी, एन्जाइम या ट्रांस्ड्यूसर प्रणाली का चयन किया जाता है। एन्जाइम अथवा एंटीबॉडी कोशिका में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों को प्रकाश, विद्युत अथवा इसी प्रकार के किसी अन्य संकेतों में बदल देते हैं। नैनो-आकार वाले ये संवेदित्र रोगों को पहचानने तथा उनकी सफल चिकित्सा में बेहद प्रभावी सिद्ध होंगे। अभी औषधि का वितरण शरीर के रोग से प्रभावित भाग में उतना प्रभावी ढंग से नहीं हो पाता। नैनो-संवेदित्रों की सहायता से औषधि को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में बड़ी सहायता प्राप्त होगी। शरीर में औषधि के ठीक वितरण न होने के कारण वह उन कोशिकाओं में भी चली जाती हैं जहाँ उसकी आवश्यकता नहीं है। स्वस्थ कोशिकाओं में पहुँचकर औषधि वहाँ अपना दुष्प्रभाव छोड़ती है। यह दुष्प्रभाव मानव के शरीर पर अनेक रूपों में प्रकट होता है।
कैंसर और ट्यूमरों का उनकी प्रारंभिक अवस्था ही पता लगाने में भी नैनो संवेदित्रों की भूमिका महत्वपूर्ण है। नैनो-कणों पर रोग के एंटीबाडीज का आवरण चढ़ाकर तथा चुम्बकीय अनुनाद छायांकन तकनीक का प्रयोग करके कैंसरों का उनके प्रथम चरण में ही पता लगाया जा सकता है और उनका प्रभावी ढंग से उपचार किया जा सकता है। इतना ही नहीं, बल्कि धमनियों में वसा के जमाव के कारण जो कठोरता आ जाती है, नैनो-संवेदित्रों से इसकी भी सूचना प्रारम्भिक अवस्था में ही प्राप्त हो जाती है और वसा के उस कठोर जमाव पर एंजियोप्लास्टी या बाई पास सर्जरी द्वारा नियंत्रण पाया जा सकता है। जैव-वैज्ञानिक इस प्रकार के जैविक अणुओं को प्राप्त करने हेतु प्रयत्नशील हैं जिनकी कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं से बंधुता हो। नैनो-आकार वाले सूक्ष्म तार इन जैविक अणुओं को रोगी अणुओं के साथ दृढ़तापूर्वक आबद्ध कर देंगे और जब ये अणु अपने रासायनिक संदेश देना प्रारम्भ कर देंगे जिनको किसी उचित ट्रांस्ड्यूसर प्रणाली द्वारा अकूटित (क्मबवकम) कर उनका विश्लेषण किया जा सकता है।
ऐसी आशा की जाती है कि निकट भविष्य में इस प्रणाली का उपयोग करके आज से हजारों गुना अधिक संवेदनशील संवेदित्र विकसित कर लिये जायेंगे जिसके फलस्वरूप एक-एक प्रोटीन अणु और एक-एक कोशिका को जाँचने-परखने में वैज्ञानिक सफल हो जायेंगे। वे अणुओं को मनचाहे ढंग से चला सकेंगे और उनकी संरचना तथा विन्यास को स्वेच्छा से परिवर्तित कर सकेंगे। डी.एन.ए. संवेदित्र के रूप में कई दीवारों वाले नैनो-नलिकाओं के प्रयोग के भी प्रयास किये जा रहे हैं। इन संवेदित्रों के एक से तीन बिलियन नैनो-नलिकाओं को संवेदित्र के प्रति वर्ग संेटीमीटर क्षेत्रफल में संकुलित कर दिया जाता है और डी.एन.ए. की कुण्डलियों को इन नैनो-नलिकाओं में फँसा देते हैं। डी.एन.ए., प्रोटीनों, जैव-रासायनिक अभिक्रियाओं तथा जीनों के उपद्रवों के फलस्वरूप उत्पन्न रोगों की सूचना प्राप्त करने के लिए नैनौ-नलिकाओं से निर्मित ये सेंटीमीटर आकार वाले छोटे-छोटे संवेदित्र भविष्य में बहुत सहायक सिद्ध होंगे। इस प्रकार के संवेदित्रों को विकसित हो जाने पर किसी औषधि के सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रभाव का अध्ययन हजारों लाखों व्यक्तियों पर एक साथ सफलतापूर्वक  किया जा सकेगा और इस परीक्षण के लिए रक्त की मात्र एक छोटी-सी बूँद ही पर्याप्त होगी। नैनो-कणिकाएं रक्त में प्रोटीनों के सान्द्रण का अनुमान कर सकती हैं। रक्त में प्रोटीनों की सान्द्रता का सीधा सम्बन्ध हृदय रोगों के प्रति मानव के जोखिम से होता है। अतः रक्त में प्रोटीनों की सान्द्रता ज्ञात होने पर हृदय रोगों के प्रति पहले से ही हम आगाह हो सकते हैं, और समय रहते सुरक्षात्मक कदम उठा सकते हैं। गोल्ड-नैनो कणिकाएं हमारे डी.एन.ए. से चिपक जाती हैं तो आँतों के कैंसर एवं यौन रोगों के प्रति शरीर की प्रतिरक्षी क्षमता के ह्रास की सूचना हमें समय रहते देने लगती हैं। ऊतकों एवं कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार के अणुओं को लक्षित करने के लिए वैज्ञानिक चुम्बकीय नैनो-कणिकाओं का निर्माण करने में जुटे हुए हैं। आण्विक मोटरें भविष्य में सूक्ष्म-यंत्र डी.एन.ए. अनुवादन, कोशिकीय परिवहन तथा पेशीय संकुचन की क्रियाओं मंे चिकित्सकों की सहायता करेंगी। रसायनविद् अनेक प्रकार कार्बनिक अणुओं को संश्लेषितकर कई प्रकार की आण्विक मोटरें बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। प्रायः चिकित्सा विधि में रोगी के शरीर में औषधी अधिक मात्रा में पहुँच जाती हैं। नैनो आकार के इस प्रकार के स्पंजी अणु विकसित किये जाने के प्रयास चल रहे हैं जो शरीर के भीतर उपस्थित औषधि के अणुओं की अतिरिक्त मात्रा का अवशोषण कर उन्हें बिना किसी हानि के शरीर के बाहर कर देंगी। अनेक प्रकार के वसीय अणुओं से युक्त नैनो-नलिकायें औषधियों की अतिरिक्त मात्रा को अपने भीतर घोल लेती हैं। ये नैनो-नलिकायें भविष्य में रोगी के शरीर में औषधियों के दुष्प्रभाव को रोकने में प्रभावी सिद्ध हो सकती हैं।

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