तकनीकी


आया ज़माना वाई-फाई रेडियो का

रविशंकर श्रीवास्तव

जब मैंने विनीत कुमार के फ़ेसबुक स्टेटस पर यह पढ़ा - ...लेकिन कभी तो विचार कीजिये कि जिस रेडियो को टीवी और इन्टरनेट के प्रभाव के तहत कबाड़ घोषित कर दिया गया, जो माध्यम त्श्र की झौ-झौ करने के कारण बदनाम हो गयाए रिश्तेदारों की जो भाषा विस्थापन के कारण विलुप्त सी होने लगी, उसे इस शख्स ने कैसे गली की दुकान की तरह फैला दिया..आप उस भाषा में कब बात करेंगे जिससे धंधे के चमकते रहने के बावजूद आत्मीय होने, जुड़ने का एहसास पैदा हो, लतियन जोन में रहकर भी कस्बे की बोली निकाल सकें...श् 
तो बरबस ही मेरा ध्यान मेरे नए नवेले वाई-फ़ाई (कृपया ध्यान दें, हाई-फ़ाई यानी हाई डेफ़िनिशन नहीं) रेडियो पर ‘प्लेनेट रेडियो सिटी फ़न का एंटीना’ से स्ट्रीम हो रहे (माने किए इंटरनेट से बज रहे) हनी सिंह के वाहियात, बेसुरे और शोर भरे रैप पर गया और मैंने तुरंत ही वह चैनल बदल दिया और इंटरनेट पर मौजूद हजारों-हजार (जीए हाँ!) रेडियो चैनलों में से एक, अपना पसंदीदा ‘इंस्ट्रूमेंटल हिट्स’ लगा लिया, जहाँ फ्रैंक सिनात्रा का एक शानदार संयोजन बज रहा था। 
वैसे, पारंपरिक रेडियो (माने एएम और एफएम) की बातें करें तो विनीत कुमार का कहना एक हद तक सही है कि टीवी और इंटरनेट के प्रभाव से वह कबाड़ हो गया है, और आरजे के झौं-झौं से बदनाम हो गया है। परंतु रेडियो का एक दूसरा अवतार भी आ चुका है, और क्या ख़ूब आया है। दरअसल एक तरह से रेडियो का कायाकल्प हुआ है और अब यह नए अवतार, नए रूप में आपके घर में, और आपके पॉकेट में (स्मार्टफ़ोन के जरिए) आकर आपका चौबीसों घंटे मनोरंजन करने को तैयार है। जहाँ सुनने के लिए आपके पास महज दर्जन भर नहीं, बल्कि हजारों हजार चैनल हैं जिनमें से सदैव स्ट्रीम हो रहे संगीत का मजा हर कहीं ले सकते हैं। जी, हाँ, बाथरूम में भी। बस, शर्त यह है कि आपके वाई-फ़ाई रेडियो को इंटरनेट की गति जरा ठीक ठाक मिले। 
भूमिका जरा ज्यादा ही सौंदर्यात्मक हो गई? तो चलिए, वापस तकनीकी भाषा में लौट आते हैं। वैसे तो इंटरनेट रेडियो को आपके कम्प्यूटर और इंटरनेट से जुड़े किसी भी उपकरण जैसे कि आपके स्मार्टफ़ोनों/ टैबलेटों पर अवतरित हुए एक अरसा हो गया, मगर सैकड़ों हजारों चैनलों के उपलब्ध होने के बावजूद इसे लोकप्रियता इस लिए नहीं मिली कि एक तो आपको इन्हें चलाने के लिए कम्प्यूटिंग उपकरणों की आवश्यकता होती थी, दूसरे, इसके लिए अच्छी गुणवŸाा का ब्रॉडबैंड इंटरनेट भी चाहिए, और वह भी अनलिमिटेड किस्म का क्योंकि इंटरनेटी रेडियो में अच्छी गुणवŸाा का संगीत सुनने के लिए न्यूनतम 128 केबीपीएस गति की स्ट्रीमिंग चाहिए। अब जब ब्रॉडबैंड इंटरनेट की पहुँच हर जगह हो रही है तो स्ट्रीमिंग रेडियो के साथ वाई-फ़ाई रेडियो सेटों का जमाना भी अब निकट ही है समझिए, जहाँ न तो पसंदीदा संगीत का टोटा होगा और न ही किसी आरजे की घटिया चुटकुलों की झौंझौ बरसात होगी। तो, यदि आपके पास बढ़िया अनलिमिटेड ब्रॉडबैंड है (वाई-फ़ाई हो तो क्या कहने!, यूं 3ळ भी चलेगा, और 4ळ तो दौड़ेगा) और यदि आप रेडियो सुनने और खासकर तमाम तरह के संगीत सुनने वाले मेरे जैसे दीवाने हैं तो आपके लिए कुछ विकल्प पेश हैं   
आपके स्मार्ट टीवी स्मार्टफ़ोन आदि के लिए 
ऐप्प/प्ले स्टोर में रेडियो ;तंकपवद्ध से खोजें और अपना पसंदीदा ऐप्प चुनें। जैसे कि वीट्यूनर या ट्यूनइन रेडियो। ट्यूनइन रेडियो में वर्तमान में 50 हजार से अधिक रेडियो चैनल उपलब्ध हैं जिन्हें आप सुन सकते हैं। दर्जनों भारतीय रेडियो भी इसमें हैं। कुछेक स्मार्टफ़ोनों में क्रोम या ओपरा ब्राउज़र से भी सीधे सुन सकते हैं जैसे कि प्लेनेट रेडियो सिटी के चैनल। वैसे, प्लेनेट रेडियो सिटी जैसे चैनलों के ऐप्प भी हैं जिनसे आप अपने स्मार्टफ़ोनों में ये रेडियो बखूबी चला सकते हैं। 

अंत में असली वाई-फ़ाई रेडियो
यदि आप वाकई रेडियो प्रेमी हैं, और यदि आप अपने एएम या एफएम रेडियो की गुणवŸाा से तंग आ चुके हैं या उसे भूल चुके हैं तो आप अपना पुराना रेडियो अभी ही ओएलएक्स पर बेच दें, और ले आएं नई टेक्नॉलॉजी का, नया वाई-फ़ाई रेडियो (वस्तुतः स्ट्रीमिंग प्लेयर)। आपके पास कुछ विकल्प हैं प्योरध्सोनोस या बोस में से कोई एक चुनें और वाई-फाई रेडियो सुनने का आनंद लें। इनमें न केवल इंटरनेट रेडियो सुन सकते हैं, बल्कि अन्यत्र कहीं भी संग्रहित किए गए आपके संगीत भंडार से होम नेटवर्क के जरिए अपना मनपसंद संगीत भी सुन सकते हैं। आजकल मरांज/यामाहा/ओंकयो/डेनन के कुछ उन्नत एवी रिसीवरों में भी इस तरह की सुविधा (एयरप्ले या डीएलएनए से चिह्नित) मिलने लगी है।


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