विज्ञान


स्मृति संपादन : नई संभावनाएँ

प्रज्ञा गौतम

जीवन में घटने वाली महत्त्वपूर्ण घटनाएँ हमारे मस्तिष्क में स्मृतियों के रूप में संग्रहित रहती हैं। अच्छी और यादगार घटनाएँ हमारे मस्तिष्क में बार -बार गूंजती हैं और अमिट स्मृति के रूप में संग्रहित हो जाती हैं। मनुष्य जीवन में अनेक घटनाएँ ऐसी भी घटती हैं जिनकी दुखद स्मृतियाँ दीर्घकाल तक कष्ट देती रहती हैं। कई बार हम सोचते हैं कि काश दुखद घटनाओं की स्मृति को हम मिटा सकते और अच्छी स्मृति को और मजबूत कर पाते। अनेक विज्ञान कथाओं और विज्ञान कथा आधारित फिल्मों में मस्तिष्क से गैर जरूरी और दुखद स्मृतियों को हटाने की अवधारणा रखी गयी है। 2004 में आई विज्ञान कथा फिल्म ‘इटरनल सनशाइन ऑफ़ द स्पॉटलेस माइंड’ में दिखाया गया था कि किस प्रकार एक प्रेमी जोड़ा अपने रिश्ते की कड़वी स्मृतियों को मिटाता है ताकि वे दोनों नई शुरुआत कर सकें। ‘मैन इन ब्लैक’ और ‘टोटल रिकॉल’ भी ऐसी ही फि़ल्में हैं जिनमें विविध कारणों से स्मृतियों को मिटाया गया है। यह माना जाता है कि विज्ञान कथा में की गयी कल्पनाएँ भविष्य में नवीन आविष्कारों का आधार बनती हैं। स्मृति संपादन की परिकल्पना भी अब साकार होने को है। अब मस्तिष्क से अवांछित स्मृतियों को पहचान कर हटाया जा सकेगा। मस्तिष्क में साहचर्य स्मृतियों के निरूपण को बनाने वाले सिनेप्टिक बदलावों को पहचानना अब संभव हो गया है। अब तक यह तकनीक अपृष्ठवंशी जीवों पर सफलतापूर्वक अपनायी जा सकी है। इन जीवों में विशिष्ट स्मृतियों को पहचान कर सम्पादित करना संभव हो गया है। हालांकि मनुष्य तथा अन्य पृष्ठवंशी जीवों में स्मृतियों का निरूपण इतना जटिल होता है कि उन्हें इस तकनीक से सम्पादित कर सकना संभव नहीं है। वैज्ञानिकों द्वारा मनुष्य में स्मृति संपादन की नवीन तकनीकें खोजी जा रही हैं जिनका उद्देश्य दुखद स्मृतियों से उत्पन्न भावनात्मक ज्वार और नशे के आदी लोगों में नशे की इच्छा को कम करना है।
स्मृति संपादन के क्षेत्र में ऑप्टोजेनेटिक्स तकनीक को आजमाया गया है। वैज्ञानिकों ने ये प्रयोग चूहों पर किए हैं जिनका मस्तिष्क अपेक्षाकृत सरल होता है। इस तकनीक में मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं को आनुवंशिक बदलाव लाकर प्रकाश के प्रति संवेदनशील बना दिया जाता है। फिर प्रकाश द्वारा इन कोशिकाओं को नियंत्रित किया जाता है। इस तकनीक के उपयोग से जंतुओं में भावनात्मक स्मृतियों को मिटाने में सफलता मिली है। लेकिन यह मनुष्य के लिए सुरक्षित नहीं है क्योंकि इसमें अधिक चीर-फाड़ की आवश्यकता पड़ती है। प्रायोगिक स्तर पर सफलता मिलने के बाद भी किसी तकनीक को चिकित्सकीय उपयोग में लेने के पूर्व अनेक परीक्षण आवश्यक होते हैं। फिर भी इस क्षेत्र में निरंतर हो रहे शोध यह उम्मीद तो जगाते ही हैं कि भविष्य में स्मृतियों का संपादन सुगम हो जायेगा।

स्मृति का बनना, दृढ़ीकरण और पुनः दृढ़ीकरण

जब कोई स्मृति मस्तिष्क में दर्ज होती है तो तंत्रिकाओं के मध्य नए समन्वय बनते हैं। तंत्रिकाओं में सन्देश विद्युत संकेतों के रूप में संचरित होते हैं।जहाँ दो तंत्रिका कोशिकाएं मिलती है, उस स्थान को सिनैप्स कहते हैं। सिनैप्स पर कुछ रसायनों (प्रोटीन्स) का संष्लेषण होता है, ये रसायन सन्देश को आगे भेजते हैं। ये प्रोटीन ही किसी स्मृति के बनने और दृढ़ होने के लिए जिम्मेदार होते हैं। जब किसी पुरानी याद को ताज़ा किया जाता है तो पुनः वैसे ही समन्वय बनते हैं। नए प्रोटीन्स का संष्लेषण होता है। इसे उस स्मृति का पुनः दृढ़ीकरण कहते हैं।
तंत्रिकाविज्ञानी किसी स्मृति को एन्ग्रैम के रूप में चिह्नित करते हैं। एन्ग्रैम मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं में उस भौतिक बदलाव को कहा जाता है जो कि किसी घटना विशेष को याद करने पर होता है। मनुष्य में एन्ग्रैम एक चिन्ह की तरह नहीं होता बल्कि जाल की तरह सम्पूर्ण मस्तिष्क में फैला होता है क्योंकि किसी स्मृति में दृश्य, श्रव्य, गंध और स्पर्श सभी संवेदनाएं शामिल होती हैं और इनके केंद्र मस्तिष्क अलग- अलग होते हैं।

मस्तिष्क के स्मृति केंद्र

मस्तिष्क के प्रमस्तिष्क भाग में स्मृति के केंद्र होते हैं। मनुष्य एक ही घटना को अनेक प्रकार से याद कर सकता है और प्रत्येक स्मृति भिन्न तंत्रिकीय निरूपण से संबद्ध होती है। मान लीजिये किसी व्यक्ति के साथ कोई दुर्घटना घटती है तो उसकी वह स्मृति जीवन में घटने वाली अन्य घटनाओं की तरह संग्रहित हो जाती है, जैसे कहाँ घटित हुई, कब घटित हुई, कैसे घटित हुई आदि। इस स्मृति को प्रासंगिक स्मृति कहते हैं। इसे प्रमस्तिष्क का हिप्पोकेम्पस भाग नियंत्रित करता है। इस दुर्घटना के फलस्वरूप मनुष्य में एक रक्षात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है जैसे उस स्थान को देखने या वहां जाने से डरना। वह स्वाभाविक रूप से उस स्थान से बचने की कोशिश करता है। इस रक्षात्मक प्रतिक्रिया को मस्तिष्क का एक अलग भाग नियंत्रित करता है जिसे प्रमस्तिष्क खंड कहते हैं। ये दोनों प्रकार की स्मृतियाँ और इनसे जागृत व्यक्तिगत भावनाएं परस्पर से प्रतिक्रिया कर सकते हैं और इनके संग्रहण और अभिव्यक्ति में एक अलग तंत्रिकीय प्रणाली भाग लेती है। किसी घटना की स्मृति के एक रूप को हटाया जाए तो भी वह दूसरे रूप में मस्तिष्क में बनी रह सकती है। यानी मनुष्य के मस्तिष्क से किसी स्मृति को पूर्णरूपेण हटाना मुश्किल कार्य है। लेकिन इस बात का एक फायदा यह भी है कि कोई स्मृति प्रासंगिक स्मृति के रूप में मस्तिष्क में बनी रहे लेकिन उससे उत्पन्न नकारात्मक भावनाओं को हटा दिया जाये। शोधकर्ताओं का ध्यान इसी बात पर है कि केवल घटना विशेष से उत्पन्न नकारात्मक भावनाओं को हटाया जाये। किन्तु अभी यह निष्चित नहीं हो पाया है कि ऐसा करने पर उस स्मृति के अन्य रूपों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

मनुष्य में स्मृति संपादन, मनोवैज्ञाानिक तकनीकें

किसी नकारात्मक घटना का साहचर्य यदि सुखद स्मृति से कर दिया जाये तो नकारात्मक भावनाओं और डर की अनुभूति कम हो जाती है। ऐसे प्रयोग भी चूहों पर किए गये हैं। चूहों को पिंजरे में रखने पर उनमें डर की भावनाएं उत्पन्न होती हैं। यदि नर चूहे को पहले एक घंटे तक मादा चूहे के साथ पिंजरे में रखा जाये और फिर अकेले पिंजरे में रखा जाये तो उसमें नकारात्मक भावनाओं और डर में कमी आती है।
चिकित्सकीय दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण नहीं है कि दुर्घटना से सम्बंधित सभी बातें किसी को ठीक से याद हैं या नहीं, महत्त्वपूर्ण है घटनाओं से उत्पन्न भावनाएं। अवसादग्रस्त व्यक्ति को वह घटना पुनः याद दिलाई जाती है (घटना से सम्बंधित चीजें दिखा कर या उस स्थान पर ले जाकर)। घटना से सम्बंधित भावनाओं को पहले उत्तेजित किया जाता है। फिर घटना के अभाव में यह प्रक्रिया दोहराने से धीरे- धीरे घटना से सम्बंधित नकारात्मक भावनाएं कम होने लगती हैं। मनोविज्ञान में इसे विलोपन विधि कहते हैं।
स्मृति के दृढ़ीकरण और पुनः दृढ़ीकरण को बाधित करना
जब कोई स्मृति बनती है तो उसमें दृश्य, श्रव्य, और स्पर्श आदि सभी संवेदनाएं सम्मिलित होती हैं। किसी घटना विशेष की स्मृति किसी एक स्थान तक सीमित नहीं होती इसलिए उसे यांत्रिक रूप से हटाना मुश्किल और अव्यवहारिक है। इस समस्या से निजात पाने के लिए वैज्ञानिक किसी विशिष्ट समय में जब किसी स्मृति विशेष से सम्बंधित न्यूरॉन सक्रिय होते है, उन्हें पहचानते हैं। यह वह समय होता है जब क्रमिक रूप से किसी स्मृति में बदलाव और स्थायीकरण होता है। ऐसी स्थिति में बार- बार उस स्मृति से सम्बंधित नयूरोंस सक्रिय होते हैं, चाहे व्यक्ति सो रहा हो या जाग रहा हो। यह प्रक्रिया ही स्मृति का दृढ़ीकरण कहलाती है।
 ऐसे प्रोटीन जो सिनेप्टिक परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार होते हैं, उनके संष्लेषण में बाधा उत्पन्न कर स्मृति को दृढ़ होने से रोका जा सकता है। जंतुओं में इस तकनीक से ताज़ी स्मृतियों को मिटाया जा सका है। पर ये प्रोटीन चिकित्सकीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नहीं हैं क्योंकि ये विशिष्ट नहीं होते। ये कुछ समय पहले की सभी स्मृतियों को मिटा देते हैं, अतः इन्हें मनुष्य के लिए काम में लेना सुरक्षित नहीं है।
कुछ अन्तर्जात न्यूरोहार्मोन्स जो नकारात्मक भावनाओं को कम करते हैं और मूड में बदलाव लाने में सक्षम हैं, मनुष्य के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। शोधों से यह प्रमाणित हो गया है कि स्ट्रेस हॉर्मोन जो किसी दुर्घटना के फलस्वरूप स्त्रावित होते हैं, उस स्मृति के दृढ़ीकरण के लिए जिम्मेदार होते हैं। कुछ दवाएं इन स्ट्रेस हॉर्मोन्स को बाधित कर देती हैं। ये दवाएं मनुष्य उपयोग के लिए कुछ हद तक सुरक्षित हैं। इसी प्रकार की एक दवा प्रोप्रनोलोल है, जो प्रमस्तिष्क खंड (ंउलहकंसं) में इ-एड्रेनेर्जिक रिसेप्टर को बांध लेती है, जो कि बाद में मस्तिष्क के हिप्पोकेम्पस वाले भाग में भी स्मृति का दृढ़ीकरण करता है। मनुष्य में वही स्मृतियाँ ज्यादा दृढ़ हो पाती हैं जो भावनात्मक होती हैं। प्रोप्रनोलोल दवा जीवन की किसी अप्रिय घटना की स्मृति को भावनात्मक रूप से दृढ होने से रोकती है। किसी नयी स्मृति को तो प्रोप्रनोलोल द्वारा मिटाना संभव है ही, पुरानी स्मृति भी इसके द्वारा मिटाई जा सकती है यदि उस स्मृति को पुनः ताज़ा (सक्रिय) किया जाये और उसके बाद प्रोप्रनोलोल दवा दी जाये। रोचक बात यह है कि इस दवा से स्मृति का नकारात्मक भाग ही मिटता है पूर्ण स्मृति नहीं मिटती।

अच्छी स्मृति बनाम बुरी स्मृति

अभी हाल ही में न्यूरोसाइंटिस्ट स्टीव रामिरेज़ (बोस्टन यूनिवर्सिटी) का एक शोध करंट बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है, उसके अनुसार हिप्पोकैम्पस के अलग- अलग भाग अच्छी और बुरी स्मृतियों से सम्बंधित होते हैं। चूहों के मस्तिष्क की कोशिकाओं को ऑप्टोजेनेटिक्स विधि से नियंत्रित कर उन्होंने यह चौंकाने वाला निष्कर्ष निकला। चूहों में हिप्पोकैम्पस के निचले भाग की कोशिकाओं को उत्तेजित करने पर बुरी यादों में वृद्धि देखी गयी। हिप्पोकैम्पस की ऊपरी भाग की कोशिकाओं को उत्तेजित करने में केवल सकारात्मक यादें ताज़ा हुईं। यह शोध शोधकर्ताओं को मनुष्य के मस्तिष्क के भी उन भागों की पड़ताल करने में मदद करेगी जो अच्छी और बुरी स्मृति से सम्बंधित होते हैं। यदि शोधों द्वारा यह प्रमाणित हो गया कि मनुष्य में भी हिप्पोकैम्पस के निचले भाग की सक्रियता अवसाद या नकारात्मक भावनाओं के लिए जिम्मेदार है तो ऐसे रोगियों के उपचार में मदद मिलेगी।

संभावनाओं से भरा है भविष्य

वैज्ञानिकों को जंतुओं में स्मृति को स्थानांतरित करने, बदलने और मिटाने में सफलता मिल चुकी है। मनुष्य में भी मस्तिष्क में स्मृतियों के निरूपण पहचान लिए गये हैं। किसी स्मृति से सम्बंधित तंत्रिकाओं को उत्तेजित कर उस स्मृति को विशेष दवाओं के प्रयोग से मिटाना संभव हो गया है। हालाँकि इन दवाओं के साइड इफ़ेक्ट हैं। ताज़ी स्मृति को बदला जा सकता है। ऐसी घटनाओं की स्मृति मस्तिष्क में डालना अब संभव है जो कभी घटित हुई ही नहीं। मनुष्य में स्मृति संपादन अभी शैशव अवस्था में ही है लेकिन जो लोग किसी दुर्घटना के बाद गंभीर अवसाद (च्ज्ैक् पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) झेल रहे हैं उनके लिए यह वरदान सिद्ध हुआ है। नशे के आदी लोगों में नशे से सम्बंधित स्मृति को मिटाना संभव हो गया है। भविष्य में आशा है कि सम्बंधित तंत्रिकाओं को उत्तेजित कर अलझीमर और डीमेंशिया जैसे रोगों का उपचार किया जा सकेगा, दृष्टि बाधित रोगी देख सकेंगे।

 

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