पानी को बचाना सबसे बड़ी आवश्यकता
डॉ.मनीष मोहन गोरे
भारतीय संस्कृति में पानी को बेहद महत्व प्रदान किया गया है। गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु ये सब भारत की नदियाँ तभी तक पवित्र और जीवनदायिनी हैं, जब तक इनमें पानी मौजूद है। पानी न केवल एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है, बल्कि यह हम मनुष्यों, पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों के जीवन का आधार भी है। धरती पर पहले जीव की उत्पत्ति करोड़ों साल पहले पानी में ही हुई थी। मानव सभ्यता और कृषि का विकास नदियों और जल स्रोतों के पास ही हुआ है। सिन्धु घाटी सभ्यता का विकास सिन्धु नदी, मिस्र की सभ्यता नील नदी, चीन की सभ्यता येलो और यांगजे नदियों के पास हुआ है।
जलः हमारी सभ्यता का प्रतीक
जल को जीवन से जोड़कर देखने की भारतीय संस्कृति रही है। रामायण, महाभारत, पुराण, बृहत संहिता जैसे प्राचीन भारतीय साहित्य में जल चक्र की प्रक्रियाओं और परंपरागत जल संचय के तरीकों के बारे में उल्लेख मिलता है। महान कवि रहीम ने ‘बिन पानी सब सून’ जैसी अनमोल पंक्ति रचकर पूरी दुनिया को पानी की अहमियत का सन्देश दिया है।
जीवन के पनपने के लिए तीन मुख्य तत्व अहम होते हैं - पानी, हवा और सूरज की रोशनी। ब्रह्मांड में केवल हमारी पृथ्वी पर इन तीन तत्वों के संयोग से यहाँ जीवन मौजूद है। मंगल ग्रह पर पहले कभी पानी मौजूद था, इस बारे में वैज्ञानिक खोज जारी है। वैसे तो हमारी पृथ्वी पर करीब सत्तर प्रतिशत पानी मौजूद है मगर यह अनोखी बात है कि इतनी बड़ी जल राशि का एक प्रतिशत से भी कम हिस्सा मानव उपयोग के लिए उपलब्ध होता है। सीधे तौर पर समुद्र के पानी का इस्तेमाल हम पीने के लिए नहीं कर सकते। दरअसल पानी का एक प्राकृतिक चक्र होता है। बारिश का पानी जलाशयों से होता हुआ भूमि के अंदर पहुँचता है। हम अपने दैनिक जीवन में पानी से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए भूमिगत जल पर निर्भर होते हैं। दुर्भाग्य से पिछले बीस वर्षों में हमने इस भूजल का इस कदर दोहन किया है कि आज देश के लगभग हर हिस्से में भूजल का स्तर बहुत नीचे लुढ़क गया है।
विश्व की करीब एक चौथाई आबादी को आज स्वच्छ पेयजल नहीं मिल रहा है। भारत के अधिकतर हिस्सों में जल संकट गहराता जा रहा है। जहाँ एक तरफ देश की आबादी बढ़ती जा रही है, वहीं लोगों की पानी से जुड़ी जरूरतें भी लगातार बढ़ रही हैं। लेकिन दूसरी ओर जलस्रोत तेजी के साथ सिकुड़ते जा रहे हैं।
21वीं सदी में पानी सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है। संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व बैंक और विश्व मुद्रा कोष के अध्ययन बताते हैं कि दुनिया के एक चौथाई से भी अधिक हिस्से में आज पानी नहीं है। तो वहीं दुनिया के करीब 40 देशों में घोर जल संकट है। एक अनुमान के अनुसार पानी की माँग हर 20 साल में दोगुनी हो जाती है और वहीं इसकी उपलब्धता एक चौथाई घट जाती है।
साल-दर-साल भूजल के लगातार दोहन की वजह से भूजल स्तर नीचे सरकता जा रहा है। आज से दस साल पहले भारत के जिन स्थानों पर तीस मीटर की खुदाई पर पानी मिल जाता था, वहाँ पानी के लिए आज 50 से लेकर 70 मीटर तक खुदाई करनी पड़ती है।
इस भूजल की हमारे समाज में अहम भूमिका है। भारत एक कृषि प्रधान देश है और खेतों की सिंचाई का करीब सत्तर प्रतिशत भूजल से होती है। वहीं दूसरी ओर घरेलू काम-काज में होने वाली पानी की खपत का अस्सी प्रतिशत हिस्सा इसी भूजल से प्राप्त होता है। आज भूजल के घटते स्तर के पीछे सबसे बड़ा कारण हमारे द्वारा इसका लगातार और बिना सोचे-समझे दोहन है। जहाँ एक तरफ भूजल का अनियंत्रित दोहन हो रहा है तो दूसरी ओर पेड़-पौधों और पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचाया जा रहा है। इसके नतीजे के तौर पर बारिश में भी कमी आई है। बरसात के पानी से भूजल प्राकृतिक रूप से रिचार्ज होता है। मगर पर्यावरण की हानि से मानसून और बारिश का लय बिगड़ गया है जिस वजह से भूजल की आवश्यक भरपाई नहीं हो पा रही है।
भूजल का घटता स्तर एक चेतावनी है कि हमने पर्यावरण को नुकसान पहुँचाना और पानी का दोहन जारी रखा तो हमें पीने का पानी भी मयस्सर नहीं होगा। हमारी लापरवाही, बढती आबादी, बिगड़ी हुई जीवन-शैली और पानी की बर्बादी के कारण आज हम पानी के गंभीर संकट से गुजर रहे हैं। पानी का संचय और उचित प्रयोग इस प्राकृतिक संसाधन को बचाने के सबसे कारगर उपाय हैं।
जल संरक्षण हमारी परम्परा
सामुदायिक स्तर पर स्थानीय लोगों की देख-रेख में पानी के संरक्षण के प्रयास हों तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। स्थानीय समुदाय ही यह तय करे कि उन्हें अपने शहर, कस्बे, गाँव और मोहल्ले में पानी को बचाने के कौन से तरीके किस तरह इस्तेमाल करने हैं। ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि इतिहास गवाह है कि भारत में पानी का संरक्षण हजारों साल से स्थानीय समुदाय करती आई है।
हमारी परम्पराएं, हमारे संस्कार, रीति-रिवाज और आदतें पानी से जुड़ी हुई थीं। जिस तरह प्रकृति ने समूचे देश में नदियों का जाल बिछाया था, उसी प्रकार प्राचीन भारतीय समाज में कदम-कदम पर तालाब, कुएं, पोखर और बावडि़याँ बनवाये गये थे। एक जमाने में हमारे देश में हैसियत का पैमाना ये तालाब और कुएं हुआ करते थे। भोपाल शहर का बड़ा तालाब राजा भोज की हैसियत का एक नायाब उदाहारण है। तालाब-कुएं बनवाने के पीछे दूसरा अहम मकसद पूरे समाज और गाँव के कल्याण की भावना हुआ करता था।
हमारी परंपराओं, उत्सव और मान्यताओं का रिश्ता मौसम और पानी से जुड़ा होने की वजह से पानी के संरक्षण को लेकर हम चिंता करते थे। आज परिवेश बदल गया और हमने अपनी सोच भी बदल डाली। हमने पानी का सम्मान करना छोड़ दिया। जिसका खामियाजा भी हम भुगत रहे हैं। विकास के नाम पर उद्योग और शहरीकरण के दबाव में तालाबों, पोखरों जैसे जलाशयों को पाट दिया गया। इससे एक तरफ पानी की किल्लत हो गई और दूसरी ओर चेन्नई जैसी बाढ़ और महाराष्ट्र में सूखे जैसी विकट समस्याएं भी पैदा हो गईं।
हमारी आदत में बदलाव से संभव है जल संरक्षण
आज हमारे देश में जल संसाधन को सहेजने की विशेष जरूरत है। आजादी के बाद हम प्राकृतिक संसाधनों के विनाश पर नज़र डालें तो हम पाते हैं कि विकास की राह में आगे बढने के लिए पानी, हवा, भूमि और जंगल को हमने गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाया है। भारत की नदी प्रणाली समाप्त होती जा रही है। प्रदूषण से नदियों का दम घुट रहा है। वे अपने साथ गंदगी का अम्बार ढो रही हैं। डायरिया, हैजा, टायफाइड जैसी बीमारियों का स्रोत बन रही हैं। यह नदियों की बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हालत है।
पानी को सहेजना हमारे आज और आने वाले कल के लिए जरूरी है। पानी का हमें समझदारी से प्रबंधन करना होगा और इस्तेमाल भी। कृषि क्षेत्र में पानी का उचित प्रयोग जरूरी है मगर दुरूपयोग सरासर गलत। वैज्ञानिकों से उम्मीद है कि वे शोध के द्वारा कम पानी में वृद्धि करने वाली और पर्याप्त पैदावार देने वाली फसलों को तैयार करेंगे। उद्योगों में पानी का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल रोकना होगा। यहाँ पानी को एक से अधिक बार प्रयोग यानी रिसाइक्लिंग करने वाली टेक्नॉलॉजी का सहारा लेना जरूरी कदम है। सब्सिडी की बिजली देने के लिए अक्सर घटिया गुणवत्ता वाले पंपसेट प्रयोग किये जाते हैं। ये भूजल को बेपरवाह होकर निकालते हैं। इस तरह के दोहन से देश के अनेक हिस्सों में भूजल का स्तर गंभीर रूप से नीचे चला गया है। इस वजह से उन स्थानों पर स्थानीय समुदाय के सामने पेय जल की समस्या पैदा हो गई है।
शहरों में पानी के परिवहन और वितरण के दौरान भी बड़ी मात्रा में पानी रिसकर बर्बाद हो जाता है। इस ओर गम्भीरता से ध्यान दिए जाने की जरूरत है। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रहित में औद्योगिक और व्यावसायिक क्षेत्रों के साथ-साथ घरों में भी पानी की बर्बादी पर अंकुश लगाना हमारा परम कर्तव्य बनता है।
बारिश के पानी का संग्रह करके पानी से जुड़ी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है और पानी के संरक्षण का यह एक बेहतर विकल्प है। सरकार के साथ-साथ सभी नागरिकों का दायित्व है कि हम एक साथ मिलकर पानी की हिफाजत करें। शहरों में घर की छतों पर और ग्रामीण इलाकों में कुएं बनाकर बारिश के पानी का संग्रह किया जा सकता है। इस विकल्प से भूजल पर हमारी निर्भरता मे कमी आएगी और इस तरह भूजल का स्तर ऊपर आ सकेगा।
जल संरक्षण की वैज्ञानिक व्यवस्था हमारे प्राचीन काल के समाज में भी रही है। भारत में जल प्रबंधन का इतिहास बहुत पुराना है और इस बात के प्रमाण भी प्राचीन सभ्यताओं के अवशेषों से मिले हैं। सिन्धु घाटी की खुदाई में अनेक जलाशयों के प्रमाण मिले हैं। हडप्पा काल में पानी की निकासी के अलावा कुआँ बनाने की कला का भी ज्ञान था। चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में भारत के किसान सिंचाई के साधनों जैसे बांध, तालाब बनाना जानते थे, साथ ही बारिश का अनुमान लगाना और जल प्रबंधन के बारे में भी उन्हें जानकारी थी। इलाहाबाद में आने वाली बाढ से बचने के लिए तालाबों और नहरों की परस्पर जुड़ी हुई प्रणालियों को बनाया गया था जिसके अवशेष आज भी कुछ स्थानों पर देखे जा सकते हैं।
हमारे देश में पानी के संग्रह और इसके प्रबंधन का इतिहास सदियों पुराना है। महाराष्ट्र के ताल, राजस्थान के कुंड, खड़ीन और बाड़ी, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बंधी, जम्मू के पोखर, केरल के सुरंगम और कर्नाटक के कट्टा पानी को संजोने के बेहतरीन साधन थे। ये उपाय आज भी उतने ही कारगर है जितने बरसों पहले थे।
आजकल शहरों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी भूजल स्तर में गिरावट दर्ज की जा रही है। पानी के संरक्षण के लिए ऐसे उपयोगी उपायों को अपनाने की जरूरत है जो सरल हो और किफायत भी। इसी तरह का एक उपाय है रेन वाटर हार्वेस्टिंग जो कि पानी के संरक्षण और पानी के प्रबंधन की असरदार विधियों में से एक है। इसमें बारिश के पानी को हम अपने लिए, पशुओं और पेड़-पौधों के लिए संचित करते हैं। इस विधि में बारिश का पानी घर या सोसाइटी की छत पर इकठ्ठा किया जाता है और जरूरत के हिसाब से आगे खर्च किया जाता है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से भूजल को भी रिचार्ज किया जाता है।
इस संचित पानी का उपयोग बरसात के बाद दूसरे मौसम में किया जा सकता है। भारत सहित पूरी दुनिया में पानी को सहेजने और संचित करने का यह उपाय बरसों से किया जाता रहा है। बारिश के पानी के भौतिक और रासायनिक गुण आम तौर पर भूजल से बेहतर होते हैं। वर्षा जल में केवल वायुमंडल का संक्रमण इसे थोड़ा बहुत दूषित करता है जिसे उचित रख-रखाव और साफ-सफाई के जरिये प्रयोग लायक बनाया जा सकता है। इस पानी का उपयोग पीने, सिंचाई, घरेलू काम-काज और पशुओं के पीने के लिए किया जाता है।
भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में जहाँ भूजल का स्तर तेजी से नीचे खिसक रहा है, वहाँ पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग का महत्त्व और बढ जाता है। इससे पानी की जरूरत को पूरा किया जाना और भूजल स्तर में आ रही गिरावट दोनों को कम किया जाना संभव है। पानी को सहेजने के लिए केवल हमें अपनी सोच और आदत में बदलाव लाना होगा। लोगों में पानी के महत्व से जुड़ी हुई जागरूकता लाकर यह काम पूरा किया जा सकता है। अपने रोजमर्रा के जीवन में छोटे-छोटे आसान कदम उठाकर हम बड़े बदलाव ला सकते हैं। हमें पानी की जितनी जरूरत हो, उतना ही पानी इस्तेमाल करें, घर हो या बाहर कहीं भी नल खुला न छोड़ें। स्कूटर-कार की धुलाई में कम से कम पानी खर्च करें। सोचिये अगर हम हर दिन थोड़ा ध्यान देकर अगर 5 लीटर पानी की बचत करें तो इस तरह पूरे साल हम 1825 लीटर पानी बचा सकते हैं। इसी तरह अगर देश के सभी नागरिक पानी बचाएं तो कितना बड़ा परिवर्तन आ सकता है। आइये पानी का संरक्षण करके और पर्यावरण को सुंदर बनाकर हम अपनी धरती को आज और आने वाले कल के लिए संवारें।
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