भूगर्भ विज्ञान
संजय गोस्वामी
भूगर्भ विज्ञान में मुख्यतः पृथ्वी के विविध पहलुओं जैसे भूभौतिकी, जल विज्ञान, खनन, रासायनिक भूविज्ञान, समुद्र विज्ञान, वातावरणीय विज्ञान, ग्रहीय विज्ञान, जीवाश्म विज्ञान, मौसम विज्ञान, पर्यावरणीय विज्ञान और मृदा विज्ञान को व्यापक तौर पर पढ़ने व समझने का मौका मिलता है। महाद्वीपों के खिसकने, पर्वतों के बनने, ज्वालामुखी फटने के क्या कारण हैं, पर्यावरण किस तरह परिवर्तित हो रहा है? पृथ्वी प्रणाली कैसे काम करती है? हमें औद्योगिक अपशिष्ट का निपटान कैसे और कहाँ करना चाहिए? भविष्य की पीढि़यों के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए समाज की ऊर्जा और पानी की बढ़ती माँग को कैसे पूरा किया जा सकता है, जिस तरह विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है क्या हम उसके लिए पर्याप्त खाद्य और रेसा तैयार कर सकते हैं तथा किस प्रकार खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं? ये तमाम् चीजें जियोलॉजिकल साइंस के अध्ययन क्षेत्र में हैं। जियो साइंस इतना व्यापक और विविध क्षेत्र है इसलिए उनका कार्य और कॅरिअर मार्ग विभिन्नताओं से परिपूर्ण है। इस कोर्स में पहले तीन साल स्नातक स्तर की पढ़ाई होती है। इसके बाद एमएससी में दाखिला मिलता है। भूवैज्ञानिक अर्थ के समस्याओं को सुलझाने और संसाधन प्रबन्धन, पर्यावरणीय सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा मानव कल्याण के लिए सरकारी नीतियों को तैयार करने में प्रयुक्त अनिवार्य सूचना या डाटाबेस उपलब्ध कराते हैं। पृथ्वी और इसकी मिट्टियों, महासागरों और वातावरणों की जाँच, कृषि, मौसम के पूर्वानुमान, अभियांत्रिकी, भूमि उपयोग योजनाओं का विकास आदि के काम में भी इनकी भूमिका होती है। वे एनवायरमेंट मैनेजमेंट, ट्रेजरी मैनेजमेंट, इंफॉरमेशन सिक्योरिटी और डिजीटल फोरेंसिक्स, जियोलॉजिकल साइंसेज, डिजाइन, ईनॉलॉजी और विटीकल्चर जैसे प्रोग्राम्स को ऑर्डिनेट करते हैं भूविज्ञान में पृथ्वी सिस्टम, भूगोल में विश्लेषणात्मक तकनीक ग्लोबल हाइड्रोलॉजी, खनिज विज्ञान, पेट्रोलोजी, सेडमेंटोलॉजी और स्ट्रैटिग्राफी, भूविज्ञान में जीईओएल के बारे में संघटित ज्ञान होना चाहिये, इसके अलावा अन्य विशेष विषय में जनरल ओशनोग्राफी जीईओएल जीवाश्म ईंधन का भूविज्ञान,ऊर्जा, जलवायु और कार्बन पेट्रोलियम भूविज्ञान, खनिज और क्रिस्टलीय चट्टानों का परिचय के बारे में भी पढ़ा जाता है भूविज्ञानी, जो अर्थ साइंस, पर्यावरणीय विज्ञान के क्षेत्र में रत है, के लिए खनिज भूविज्ञानी, खनिज और तेल अन्वेषण भूविज्ञानी, भू-भौतिकी परामर्शदाता, पर्यावरण सलाहकार में करियर के विकल्प हैं। भूविज्ञान को दो प्रमुख वर्गों में विभक्त किया जाता है : भूभौतिक और भूरसायन। भौतिक भूविज्ञान के अंतर्गत खनिज विज्ञान, मृदा विज्ञान, संरचनात्मक भूविज्ञान और भूआकृतिक विज्ञान सम्मिलित हैं। ऐतिहासिक भूविज्ञान में स्तरित शैलविज्ञान, जीवाश्म विज्ञान तथा पुराभूगोल को सम्मिलित किया जाता है।
क्षेत्र
जियोलॉजी में अर्थसाइंस, भूभौतिकी, जल विज्ञान, समुद्र विज्ञान, मॅरीन साइंस, वातावरणीय विज्ञान, ग्रहीय विज्ञान, मौसम विज्ञान, पर्यावरणीय विज्ञान और मृदा विज्ञान को व्यापक जियोलॉजी विषय के रूप में है। मृदा विज्ञान के अंतर्गत काम करने वाले व्यक्ति पौधे या फसल विकास से जुड़ी मिट्टी के रासायनिक, भौतिकीय, जैविकीय तथा खनिजकीय संयोजन का अध्ययन करते हैं। इस विज्ञान के अनेक क्षेत्र हैं जिसमें से निम्नलिखित अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं- ऐतिहासिक जियोलॉजी, भौतिक जियोलॉजी, आर्थिक जियोलॉजी, संरचनात्मक जियोलॉजी, खनिज विज्ञान, खनन जियोलॉजी, भू-आकृति विज्ञान, शैल वर्णना, शैल विज्ञान, ज्वालामुखी विज्ञान, स्तरिक जियोलॉजी एवं जीवाश्म विज्ञान। बीएससी भू-विज्ञानी , करने के बाद यानी जियोलॉजिस्ट के रूप में कॅरियर की शुरूआत की जा सकती है। यदि इस विषय में मास्टर्स डिग्री तथा पीएच डी भी कर लें, तो अच्छी जॉब की संभावनाएं और बढ़ जाती हैं। एमएससी और पीएच डी के तहत भू-विज्ञान के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल की जाती है, जैसे जीवाश्म विज्ञान, खनिज विज्ञान, जल विज्ञान, वोल्कैनोलॉजी आदि।
अवसर
समय-समय पर जियोलॉजिस्ट/जीवाष्म वैज्ञानिक की भर्ती के लिए परीक्षा आयोजित की जाती है। एक जियोलॉजिस्ट को जहाँ-जहाँ काम मिल सकता है, उनमें प्रमुख हैं - प्राकृतिक संसाधन कंपनियाँ (कोल इंडिया, ओएनजीसी आदि), पर्यावरण संबंधी सलाह देने वाली कंपनियां, सरकारी संगठन, एनजीओ और कॉलेज यूनिवर्सिटी में अध्यापन और शोध। एक जियोलॉजिस्ट को इन संस्थानों में आपदा मूल्यांकन, उत्खनन और जाँच संबंधी कार्यों की देखरेख, शोध कार्य आदि करना होता है। एमएससी करने वाले युवाओं को आम तौर पर जूनियर जियोलॉजिस्ट/जीवाष्म वैज्ञानिक के रूप में नियुक्ति दी जाती है। सरकारी विभागों, जैसे जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, भारतीय जियोमैग्नेटिक संस्थान, एनजीआरआई, सेंट्रल ग्राउंडवॉटर बोर्ड आदि के लिए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा जियोलॉजिस्ट भर्ती परीक्षा आयोजित की जाती है। इसके लिए किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से भूगर्भ विज्ञान या समकक्ष में मास्टर्स डिग्री के युवा उम्मीदवार आवेदन कर सकते हैं।
पात्रता
भूविज्ञान का अध्ययन 12वीं (पीसीएम) के बाद किया जा सकता है। विश्वविद्यालय पाठ्यक्रमों में प्रवेश योग्यता आधारित है। भूविज्ञान में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम कई विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदान किए जाते हैं। विशेष पाठ्यक्रम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं। 12वीं के बाद (पीसीएम के साथ) आईआईटी खड़गपुर जेईई के माध्यम से छात्रों को पांच साल के अन्वेषण भूभौतिकीय कार्यक्रम में मानते हैं। बीटेक/बीई और इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट (गेट) के बाद भूविज्ञान और भूभौतिकी में 3 सेमेस्टर एम टेक में प्रवेश किया जाता है। (31ध्2 वर्षीय पाठ्यक्रम) बीएससी जियोलॉजी कोर्स में आमतौर पर बारहवीं की मेरिट के आधार पर दाखिला दिया जाता है। साइंस के छात्र के लिए बारहवीं में भौतिकी, गणित, और रसायनशास्त्र होना जरूरी है । अगर किसी ने आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास की है, तो उसे भी एम.एससी एकीकृत पाठ्यक्रम (जियोलॉजी)/बीटेक (जियोटेक)/एम.टेक। (भूविज्ञान) में दाखिला मिलता है, भू-पर्यावरण में एक वर्ष की अवधि का स्नातकोत्तर डिप्लोमा एम.एससी./एम.टेक। (भूविज्ञान) डिग्रीधारियों के लिए खुला है।
वेतन
जियोलॉजिस्ट/जियोटैक्निकल इंजीनियर का वेतनमान 50 हजार रुपए से 80 हजार रुपए हैं। कॉलेज शिक्षण और रिसर्च एसोसिएट के रूप में वेतनमान शुरुआती तौर पर 50 से 60 हजार रुपए हैं। निजी क्षेत्रों में युवाओं की सैलरी स्किल को देखते हुए तय की जाती है।
क्षेत्र
भूविज्ञान, पृथ्वी विज्ञान का क्षेत्र है भूवैज्ञानिक विज्ञान के कई विषम क्षेत्रों - वायुमंडल, जलमंडल, चुंबकमंडल, और ऊर्जा प्रवाह और रासायनिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं, भूविज्ञान में पृथ्वी के सिस्टम,प्राकृतिक संसाधन भूकंप, ज्वालामुखी भूस्खलन, बाढ़ और लहर का क्षरण भूवैज्ञानिक खतरों, जल विज्ञान (नदियों, महासागर, ग्लेशियरों, झीलों), ज्वालामुखीवाद, मैग्मैटिज्म, टेक्टोनिजम, पर्यावरण संरक्षण, कोयला खनन, भूजल, खनन ,पेट्रोलियम संसाधन, अपशिष्ट निपटान, वायुमंडल पृथ्वी की सतह पर संचरण या उसके निकट बीओस्फिअर, जीओस्फेयर रॉक, बाहरी वायुमंडल (मौसम) और जल मंडल का अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा, वे पवन, भूकंप, भूस्खलन आदि जैसे प्राकृतिक खतरों से जोखिम का आकलन भी करते हैं।
भिन्न कोर्सेज
जियोलॉजी/भूभौतिक/भूरसायन में पीएचडी, बीएससी जियोलॉजी/अर्थसाइंस, बीटेक (जियोटेक) जियोलॉजी, एम.एससी जियोलॉजी/भौगोलिक भूविज्ञान,
भूभौतिक/भूरसायन में एम.एससी, एम.एससी जीवाष्म विज्ञान, जियोटैक्निकल सिविल इंजीनियरिंग (बीई/बीटेक), जियोटैक्निकल इंजीनियरिंग (एमई/एमटेक) एकीकृत पाठ्यक्रम।
मुख्य विषय
इस विज्ञान के अनेक विषय हैं जिसमें से निम्नलिखित विषय अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं- पृथ्वी की सतह की विशेषताएं, भूमि और महासागर का वितरण और उनकी विशिष्टताएँ महाद्वीप और महासागर की उत्पत्ति, भूकंप : भूकंप का वितरण, कारण, वर्गीकरण और प्रभाव के स्थान का निर्धारण, पृथ्वी के इंटीरियर के संकेतकों के रूप में भूकंप की लहरों का केंद्र भूकंपीय बेल्ट और उनके ज्वालामुखीय गतिविधि। ज्वालामुखी : ज्वालामुखी, उनके प्रकार, उत्पाद और वितरण। सतह की प्रक्रियाएँ - मौसम, मृदा क्षरण प्रोफाइल, आपदा प्रबंधन एफिजिकल भूविज्ञान और टेक्सोनिक्स, पैलेन्टोलॉजी, क्रिस्टलोग्राफी खनिज विद्या। नदियों, वायु, ग्लेशियरों, भूजल और महासागरों के भूवैज्ञानिक कार्य। कोरल रीफ्स-प्रकार, वितरण पुराचुम्बकत्व, बर्फ आयु और मौसम, जियोमैग्नेटिक और मूल भूवैज्ञानिक समय स्केल, भू-आकृति विज्ञान के संकल्पना जियोमोर्फोलॉजी का उपयोग। ऐतिहासिक भूविज्ञान, भौतिक भूविज्ञान, आर्थिक भूविज्ञान, संरचनात्मक भूविज्ञान, खनिज विज्ञान, खनन भूविज्ञान, मृदा प्रोफाइल, भू-आकृति विज्ञान, शैल वर्णना, शैल विज्ञान, ज्वालामुखी विज्ञान, सुरक्षित पृथ्वी प्रणाली व आपदा मूल्यांकन और खनिज की के खोज के लिए अध्ययन किया जाता है। स्तरिक भूविज्ञान एवं जीवाश्म विज्ञान, जीवाष्म विज्ञान का परिचय निम्नलिखित जीवाष्मों का स्थूलीय अध्ययन न्यूम्यूलाइट्स कैलसियोला जैफरेटिस माइक्रेस्टर जीवाष्मन की आवश्यक परिस्थितियाँ एवं विधिया, जीवाष्मों के उपयोग, जीवाष्म एवं उनका महत्व, रूगोज कोरल की आकारिकी ब्रेकियोपोड़ा ग्रप्टोलाइट ट्राइलोबाइट, इकिनोयड्स लैमेलीब्रेन्कीया, सिफेलोपोडा गैस्ट्रापोडा की आकारिकी, जीवाश्म के खोज/जांच संबंधी के लिए स्पेशल विषय है, मृदा संस्तर का परिचय, मिट्टी के रासायनिक विज्ञान एवं भूवैज्ञानिक वितरण भूवैज्ञानिक काल सारणी आदि पौधे या फसल विकास से जुड़े विषय है।
काम
वर्तमान में जियोलॉजी शिक्षा के क्षेत्र में भविष्य उज्ज्वल है। अनुसंधान करने वाले विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, अनुसंधान रिसर्च फाउंडेशन, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया पृथ्वी विज्ञान विभाग, भारत सरकार, भारतीय जियोमैग्नेटिक संस्थान,मानव संसाधन विकास मंत्रालय, और अन्य प्रमुख संस्थानों, तथा पर्यावरण संबंधी एजेंसियों द्वारा अनुसंधान फेलोशिप भी प्रदान की जाती है। जियोटैक्निकल इंजीनियरिंग (पीजी कोर्स) करने वाले विद्यार्थियों को पीडब्ल्यूडी, नगर निगम, शहरी नियोजन विभाग, सरकारी पोर्ट ट्रस्ट, ओएनजीसी, एनएचएआई, भारतीय रेलवे, मेट्रो रेल निगम आदि कुछ प्रसिद्ध सरकारी क्षेत्र में साइट इंजीनियर/वैज्ञानिक के रूप में कार्य कर सकते है। निर्माण कंपनियों, परामर्श एजेंसियां, इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फर्म, माइनिंग फर्म आदि कुछ प्रसिद्ध निजी में भू-तकनीकी अभियंता के रूप में कार्य कर सकते है। जियोलॉजी आमतौर पर पृथ्वी का वैज्ञानिक अध्ययन, भौगोलिक भूविज्ञान पृथ्वी की सामग्रियों का अध्ययन, सतह के परिवर्तन और पृथ्वी के इंटीरियर, और उन परिवर्तनों के कारण बलों का अध्ययन है।
मुख्य संस्थान
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएस-बेंगलूरु)- बेंगलूरु
- आंध्र विश्वविद्यालय (विशाखापत्तनम)य एम.टेक। (भूविज्ञान)
- बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय (भोपाल)-एम। एससी.(टेक.) (भूविज्ञान)
- भारतीदासन विश्वविद्यालय (तिरुचिरापल्ली)-एम.टेक। (दूरसंवेदन)-एम.एससी। भूगोल स बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (रांची)-एम.टेक। (भूविज्ञान)
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मुंबई)-एम.टेक। (भूविज्ञान)
- पुणे विश्वविद्यालय (पुणे) - एम.एससी। (भूविज्ञान)
- रुड़की विश्वविद्यालय (रुड़की), एम.टेक(भूविज्ञान)
- श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय (तिरुपति) - एम.एससी(भूविज्ञान)
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मुंबई) -एम.एससी(भूविज्ञान)
- बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय (झांसी) स्नातकोत्तर डिप्लोमा (भूविज्ञान)
- भारतीय विज्ञान संस्थान (बंगलौर)-एम.एससी.(इंजी)श्री वेंकटेश्वर वि.वि। (तिरुपति) स वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून (उत्तराखंड)
- पटना साइंस कॉलेज, पटना (बिहार)
- लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
- दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
- काशी विद्यापीठ, वाराणसी
- सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय भूविज्ञान विभाग
- मद्रास विश्वविद्यालय विभाग, चेन्नई तमिलनाडु
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