ऐतिहासिक पृष्ठ


भारत का परमाणु कार्यक्रम 

शुकदेव प्रसाद
भारत में परमाणु अनुसंधान के जनक होने का श्रेय स्व। डॉ। होमी जहांगीर भाभा (1909.1966) को है और सच तो यह है कि आप के कुशल निर्देशन में अंतरिक्ष अनुसंधानों की भी आधारशिला रखी गई थी, बाद में डॉ। भाभा के निधन के बाद डॉ। विक्रम अंबालाल साराभाई ने अंतरिक्ष संधानों की बागडोर संभाली।
1944 में डॉ। भाभा ने टाटा ट्रस्ट के तत्कालीन अध्यक्ष श्री दोराव जी टाटा को एक पत्र लिखकर भावी भारत के लिए परमाणु बिजली की उपयोगिता पर प्रकाश डाला और परमाणु संधानों के लिए एक प्रयोगशाला की स्थापना पर जोर डाला।
‘अब से कुछ वर्षों बाद जब परमाणु ऊर्जा का बिजली पैदा करने में सफलतापूर्वक उपयोग होने लगेगा, तब मुझे विश्वास है कि भारत को अपने लिए विशेषज्ञ बाहर से नहीं बुलाने पड़ेंगे वरन् वे अपने देश में तैयार मिलेंगे।’
कहने की आवश्यकता नहीं कि सर टाटा ने तत्काल इस संस्थान की स्थापना के लिए धन देना स्वीकार कर लिया और पेडर रोड, मुंबई के एक छोटे से फ्लैट में एक प्रयोगशाला स्थापित की गई और इस तरह टाटा ट्रस्ट के अनुदान से मुंबई में ‘टाटा आधारभूत अनुसंधान संस्थान’ की स्थापना हुई। वस्तुतः कास्मिक किरणों तथा सैद्धांतिक भौतिकी से सम्बन्धित अनुसंधानों हेतु डॉ। भाभा के लिए इस प्रयोगशाला की स्थापना हुई थी। स्वाधीन भारत में यह संस्थान विकास कार्यक्रमों का आधार स्तंभ बना।

 

1948 में डॉ। भाभा की अध्यक्षता में परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन किया गया। आगे चलकर 1954 में परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान की ट्राम्बे में स्थापना की गई। डॉ। भाभा के निधन के बाद उनकी स्मृति में श्रीमती गांधी ने, जनवरी 1967 में इसका नामकरण किया-भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र।
यही केंद्र भारत में परमाणु विकास का राष्ट्रीय कंेद्र है, जहाँ से सारे कार्य संचालित होते हैं। यहां परमाणु भट्टियों के अभिकल्पन, निर्माण एवं नियंत्रण विषयक शोध कार्य होते हैं तथा परमाणु ईंधनों के निर्माण एवं पुनर्सांधन तथा रेडियो आइसोटोपों का निर्माण भी होता है। इस केंद्र ने उद्योग, औषधि तथा कृषि के क्षेत्र में रेडियो आइसोटोपों के इस्तेमाल सहित परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण कार्यों में उपयोग हेतु प्रौद्योगिकियों का विकास किया है। कई प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण उद्योगों के व्यावसायिक उपयोग के लिए भी किया गया है।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र परमाणु विद्युत कार्यक्रम तथा उद्योग व खनिज क्षेत्र की इकाइयों को अनुसंधान एवं विकास संबंधी सहायता भी देता है। उक्त संस्थान का स्वास्थ्य भौतिकी केंद्र देश भर में विकिरण क्षेत्र में काम करने वालों के स्वास्थ्य की देखभाल भी करता है। मुंबई स्थित विकिरण औषधि केंद्र रोगों का पता लगाने और रोगोपचार के लिए रेडियो आइसोटोपों का उपयोग भी करता है। परमाणु नीतियों के कार्यान्वयन के लिए 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की गई। परमाणु ऊर्जा विभाग परमाणु एवं सम्बद्ध विज्ञानों के क्षेत्र में बुनियादी शोध के लिए कई संस्थानों को वित्तीय सहायता देता है। विभाग के कार्यों को अनुसंधान एवं विकास, परमाणु विद्युत उत्पादन तथा उद्योग एवं खनिज अनुसंधान में वर्गीकृत किया जा सकता है। देश के विभिन्न संस्थानों में चल रहे शोध कार्यों की देख-रेख एवं समन्वयन का कार्य विभाग करता है।

अनुसंधान रिएक्टरों की स्थापना

अनुसंधान रिएक्टरों के अभिकल्पन से लेकर उनके निर्माण एवं संचालन के सभी चरणों के निष्पादन की दिशा में भारत ने पूर्ण आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है।
अप्सरा : भारत के 1 मेगावाट क्षमता का तरण ताल किस्म का रिएक्टर ‘अप्सरा’ 1956 में निर्मित हुआ था। यह पूर्णतः स्वदेशी रिएक्टर है। ईंधन के रूप में इसमें प्राकृतिक यूरेनियम का प्रयोग किया जाता है।
साइरस : 40 मेगावाट क्षमता वाले भारत के दूसरे रिएक्टर ‘साइरस’की स्थापना 1960 में हुई थी। यह कनाडा के सहयोग से निर्मित किया गया था। यह संसार भर में अपने तरह के सबसे बड़े रिएक्टरों में से एक है। इसने पूर्ण क्षमता 1963 में अर्जित की थी। इसमें ईंधन के रूप में प्राकृतिक यूरेनियम तथा मंदक के रूप में भारी पानी और शीतक के रूप में हल्के पानी का इस्तेमाल किया जाता है। महत्वपूर्ण आइसोटोपों के उत्पादन के अतिरिक्त परीक्षण तथा प्रशिक्षण संबंधी सुविधाएं भी इस रिएक्टर ने हमें प्रदान किया है।
जरलीना : अत्यंत अल्प ऊर्जा (100 वाट क्षमता) वाले रिएक्टर ‘जरलीना’ की स्थापना 1961 में हुई थी। यह पूर्णतः स्वदेशी रिएक्टर है। इससे विभिन्न प्रकार के परमाण्विक ईंधनों के गुणों एवं ज्यामितियों के अध्ययन तथा रिएक्टर क्रोडों के परीक्षण में मदद मिलती है।
पूर्णिमा : ‘पूर्णिमा’ का अभिकल्पन और निर्माण भारतीय वैज्ञानिकों ने 1972 में किया। फास्ट रिएक्टरों के क्षेत्र में परीक्षण हेतु शून्य ऊर्जा वाले ‘पूर्णिमा’ रिएक्टर की स्थापना की गई थी। इसमें थोड़े सुधार परिवर्तन के बाद इस श्रेणी के अगले रिएक्टर ‘पूर्णिमा-प्प्’ का निर्माण किया गया जो 10 मई, 1984 को क्रिटिकल हुआ। ‘पूर्णिमा-प्प्प्’ 1990 में क्रिटिकल हुआ। ईंधन के रूप में यूरेनियम-233 प्रयुक्त करने वाला संसार का प्रथम रिएक्टर पूर्णिमा ही है। पूर्णिमा से प्राप्त अनुभवों से यूरेनियम-233 से बने ईंधन पर आधारित ‘कामिनी’ नामक न्यूट्रान सोर्स रिएक्टर की डिजाइन में मदद मिली है जिसकी स्थापना रिएक्टर अनुसंधान केंद्र, कलपक्कम में की जा चुकी है। अब ‘पूर्णिमा’ श्रृंखला के रिएक्टरों को बंद कर दिया गया है।
ध्रुव : 7.8 अगस्त, 1985 को भारत का उच्च अभिवाह रिएक्टर ‘ध्रुव’ भी क्रिटिकल हो गया। 100 मेगावाट क्षमता वाले रिएक्टर ‘ध्रुव’ की स्थापना से आइसोटोपों के उत्पादन में और वृद्धि हुई है। अप्सरा में फास्फोरस, सोना, सल्फर, क्रोमियम तथा ‘साइरस’ में भी इसी तरह के लगभग 100 आइसोटोपों का निर्माण होता है। ‘ध्रुव’ में आयोडीन-131, क्रोमियम-51, मालिब्डेनम-99 के उत्पादन के अतिरिक्त आयोडीन-125 का भी उत्पादन हो रहा है जो अभी तक हमें विदेशों से मंगाना पड़ता था। यह प्रतिवर्ष 30 कि.ग्रा। प्लूटोनियम का भी उत्पादन करता है जो दूसरी पीढ़ी के तीव्र प्रजनक रिएक्टर के लिए ईंधन का कार्य करता है। ‘ध्रुव’ की स्थापना के साथ ही भारत ने तीव्र प्रजनक तकनीक में भी सफलता अर्जित कर ली। 18 अक्टूबर, 1985 को प्लूटोनियम से चलने वाला दूसरे पीढ़ी का रिएक्टर, जिसे फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (तीव्र प्रजनक परमाणु भट्टी) कहा जाता है, कलपक्कम (मद्रास) में सक्रिय हो गया।

तीव्र प्रजनक रिएक्टर

फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों में यूरेनियम जैसे प्राथमिक ईंधनों की आवश्यकता नहीं पड़ती अपितु यूरेनियम से चलने वाले ताप रिएक्टरों  में प्रयुक्त ईंधन से उत्पन्न प्लूटोनियम की आवश्यकता पड़ती है। फास्ट ब्रीडर रिएक्टर की एक और विशेषता है, वह यह कि यह जितना ईंधन जलाता है, उससे कहीं अधिक ईंधन उत्पादित करता है।
ध्रुव द्वारा निर्मित प्लूटोनियम द्वितीय पीढ़ी के तीव्र गति वाले ब्रीडर रिएक्टर (जो कलपक्कम में सक्रिय हो चुका है) के लिए अत्यंत उपयोगी है। कलपक्कम स्थित संस्थान अब ‘इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र’ के नाम से विख्यात है। इस केंद्र की स्थापना 1971 में की गई थी। उक्त केंद्र ने 1985 में जिस फास्ट ब्रीडर रिएक्टर का विकास किया है, उसकी क्षमता 40 मेगावाट है, सोडियम से शीतलीकृत उक्त रिएक्टर ने 18 अक्टूबर, 1985 से कार्य करना आरंभ कर दिया है। इस रिएक्टर से प्राप्त अनुभव के आधार पर इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र ने 500 मेगावाट क्षमता के प्रोटोटाइप रिएक्टर का डिजाइन तैयार किया है। उक्त केंद्र में धातुकी, रेडियो केमिस्ट्री और फास्ट रिएक्टर ईंधन के संसाधन के लिए आधुनिक प्रयोगशालाओं की सुविधाएं विद्यमान हैं।

न्यूट्रान सोर्स रिएक्टर ‘कामिनी’

विश्व का सर्वप्रथम न्यूट्रान सोर्स रिएक्टर ‘कामिनी’ की स्थापना इंदिरा गांधी अनुसंधान कंेद्र में की गई है जो 28 अक्टूबर, 1996 को क्रिटिकल हो गया है। 30 किलोवाट क्षमता वाला यह रिएक्टर थोरियम चक्र पर आधारित है। इसमें ईंधन के रूप में न्.233 का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह भी जितना ईंधन जलाता है उससे कहीं अधिक ईंधन उत्पन्न करता है। रिएक्टर क्रोड के चारों ओर थोरियम-232 की परतों का इस्तेमाल किया जाता है जो यूरेनियम-233 में परिवर्तित हो जाता है। यह यूरेनियम-233 इसी कोटि के अन्य रिएक्टरों के लिए अच्छी ईंधन सामग्री है।

परमाणु विद्युत उत्पादन

देश में उपलब्ध यूरेनियम तथा थोरियम के भंडारों को देखते हुए इनके समुचित उपयोग को दृष्टिगत कर देश के कर्मठ परमाणु विज्ञानियों ने विगत शती के पांचवें दशक में ही परमाणु विद्युत उत्पादन की तीन चरणीय योजना बनायी थी।
1. पहले चरण में ऐसे रिएक्टरों की स्थापना करनी थी, जिसमें ईंधन के रूप में प्राकृतिक यूरेनियम का उपयोग किया जाना था। ऐसे रिएक्टरों में विद्युत उत्पादन के साथ-साथ उत्पाद के रूप में प्लूटोनियम भी मिलता है।
2. दूसरे चरण में ऐसे रिएक्टरों के स्थापित करने की योजना थी जिनमें प्लूटोनियम को ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जा सके। निस्संदेह यह परिकल्पना फास्ट ब्रीडर रिएक्टर की ही थी। ऐसे रिएक्टरों में विद्युत उत्पादन के साथ ही साथ यूरेनियम-238 से प्लूटोनियम-239 का और अधिक मात्रा में उत्पादन होगा तथा यूरेनियम-233 भी उत्पन्न होगा।
3. परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के तीसरे चरण में ऐसे रिएक्टरों के स्थापित करने की योजना बनाई गयी थी, जो थोरियम चक्र पर आधारित होगा। इन रिएक्टरों में जितना यूरेनियम-233 जलेगा, उससे कहीं अधिक मात्रा में उत्पन्न होगा।
इस तीन चरणीय योजना का दो हिस्सा भारत पूरा कर चुका है। इस समय भारत में जितनी ताप भट्टियां हैं, वे उच्च दाब वाले भारी पानी किस्म के रिएक्टर हैं और इनमें ईंधन के रूप में प्राकृतिक यूरेनियम का इस्तेमाल किया जाता है।
ताप रिएक्टरों में प्रयुक्त ईंधन को जब संसाधित किया जाता है तो उससे प्लूटोनियम मिलता है, इसे फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों में इस्तेमाल किया जायेगा। ब्रीडर रिएक्टर अस्तित्व में आ चुके हैं। 
ब्रीडर रिएक्टरों में प्रयुक्त ईंधन को थोरियम के आवरण में फिर से संसाधित करने से और अधिक प्लूटोनियम तथा यूरेनियम-233 मिलेगा। तीसरी पीढ़ी के रिएक्टरों में थोरियम चक्र में यूरेनियम-233 का इस्तेमाल किया जायेगा।
भारत के परमाणु विद्युत का उत्पादन 1969 में आरंभ हुआ, जब तारापुर परमाणु बिजली घर (महाराष्ट्र) सक्रिय हुआ था। तारापुर में 4 रिएक्टरों की स्थापना की गई है जिनमें से दो ‘बॉयलिंग वाटर’ रिएक्टर हैं और शेष दो दाबित भारी पानी पर आधारित हैं। 
रावतभाटा (राजस्थान) में 6 यूनिटें स्थापित हैं। कलपक्कम (मद्रास) में 2 यूनिटें, नरोरा (बुलंदशहर, उ.प्र.) में 2 यूनिटें, ककरापार (गुजरात) में 2 यूनिटें, कैगा (कर्नाटक) में 4 यूनिटें कार्यरत हैं। रूसी सहयोग से कुदनकुलम (तमिलनाडु) में एक-एक हजार मेगावाट क्षमता के दो रिएक्टरों की स्थापना की जा चुकी है।
कुदनकुलम की पहली यूनिट ने 7 जून, 2014 को क्रांतिकता प्राप्त की थी और दूसरी यूनिट भी 10 अगस्त, 2016 को सक्रिय हो गई। 
भारत में 22 रिएक्टरों की स्थापना हो चुकी है जिनमें से 21 रिएक्टर परमाणु विद्युत जनन कर रहे हैं क्योंकि रावतभाटा (राजस्थान) की 100 मेगावाट क्षमता वाली पहली यूनिट को स्थायी रूप से बंद कर दिया गया है। इस प्रकार देश भर के सभी परमाणु बिजलीघरों की परमाणु विद्युत जनन क्षमता 6680 मेगावाट हो गई है जो देश भर के समग्र विद्युत उत्पादन का मात्र 3 प्रतिशत है। 
परमाणु ऊर्जा के संदर्भ में सबसे प्रबल पक्ष यह है कि यह ऊर्जा का स्वच्छ स्रोत है अर्थात् इसमें से कोई भी हरित गृह गैस नहीं निकलती है, फिर भी निरापद नहीं है परमाणु ऊर्जा। इसकी चर्चा हम आगामी अंकों में करेंगे।
 
 
 
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