स्मार्ट सिटी
इरफॉन ह्यूमन
इक्कसवीं सदी का ही एक दिन था। मैं डॉ. जिम राबर्ट से मिलने पहुँच चुका था। मेरे साथ मेरी सहयोगी एलीना भी थी। हम दोनों प्लेन से उतर कर एयरपोर्ट के रिसेप्शन की ओर बढ़े। रिसेप्शन काउन्टर पर पहुँच कर मैं बोला, ‘‘ज़ीरों फ़ाइव एट फ़ोर टू।“
काउन्टर पर उपस्थित महिला रिसेप्शनिस्ट मेरी यात्री कोड सुनकर बोली, ‘‘वेलकम सर। आपकी कार का नम्बर ट्रिपल वन, बाहर पार्किंग नम्बर वन में आपका इंतज़ार कर रही हैं।“
बाहर आकर हम लोग कार नम्बर ट्रिपल वन में बैठ गये। ड्राइवर की सीट खाली थी। हम दोनों पिछली सीट पर थे। मैंने कार को आदेश दिया, ‘‘ट्रिपल वन, प्लीज़ मूव टू नाइंटी सेवन।“
नाइंटी सेवन उस स्थान का नम्बर था जहाँ डॉ. जिम राबर्ट का घर था। बिना ड्राइवर की कार मेरा आदेश सुनते ही मेरी बताई दिशा में चल पड़ी। यह थी एक समझदार कार जिस के साथ यहाँ की सड़कांे पर भी संेसर लगे है, जो इन कारों जैसे अन्य वाहनों का नियंत्रण करते हैं। अतः कारांे के साथ-साथ सड़के भी स्मार्ट हैं।
हम लोग लगभग बीस मिनट बाद डॉ. जिम राबर्ट के घर पहुँच गये। डॉ. राबर्ट एक जाने माने वैज्ञानिक थे। हम लोग बहुत अच्छे मित्र थे। इन दिनों डॉ. राबर्ट साइबरनेटिक्स और क्लोनिंग को लेकर काफ़ी चर्चा में थे। अतः हम लोगों ने सोचा क्यों न इस बार अपनी विज्ञान पत्रिका का एक विशेषांक डॉ. राबर्ट पर ही छाप दिया जाए। अब हम लोग डॉ. राबर्ट के गार्डन में थे। गार्डन में कोई पानी दे रहा था। मैं उसकी ओर बढ़ा पास पहुँच कर पता चला कि वह डॉ. राबर्ट ही हैं।
‘‘हैलो डॉ. राबर्ड, कैसे हैं?“ मैंने मुस्कराते हुए उनकी ओर हाथ बढ़ाया।
इस पर डॉ. राबर्ड ने कोई प्रतिक्रिया नही दी। मुस्कराहट तो दूर उनका चेहरा एक दम भावहीन दिखाई दे रहा था। वह ऐसे देख रहे थे जैसे मुझे पहली बार देख रहे हों। मैंने उनके ऐसे व्यवहार से सकपका गया और झेंपते हुए अपना हाथ पीछे खींच लिया और बात बनाते हुए पुनः डॉ. राबर्ट की तरफ मुख़ातिब होना ही चाह रहा था कि वह बड़े ही रूखे स्वर में बोल पड़े, ‘‘मैं टू नाइन सेवन हूँ, डॉ. राबर्ट अंदर हैं।“
ओह, क्या ज़माना आ गया है, अब लोग अपना नाम रखने कि बजाय अपना कोेड रखना ज्यादा पसंद करतेे हैं। एलीना ने सोचते हुये मुझसे प्रश्न किया, ‘‘सर अगर डॉ. राबर्ट अंदर हैं तो फिर यह कौन था?“
एलीना क प्रश्न सुनकर मैं बोला, ‘‘मुझे तो लगता है यह डॉ. राबर्ट का कोई क्लोन साइबोर्ग हैं।“
‘‘साइबोर्ग यानी अपने इंसानी बदन में मशीनी कलपुर्ज़े फ़िट किए हुए चलता फिरता हांडमांस का पुतला।“ एलीना की बात पर मैं बोला, ‘‘राइट, अगर यह वाकई साइबोर्ग है तो इसमें मानवीय संवेदनाएं कम और मशीनी प्रभाव अधिक दिखाई पड़ रहा है।“
इस पर एलीना बोली, ‘‘राइट सर, मुझे तो लगता है कि अंदर और भी साइबोर्ग से मुलाक़ात होगी, आख़िर डॉ. राबर्ट भी तो एक साइबोर्ग हैं। मुझे तो यह घर बड़ा ही अजीब लग रहा है। सुनसान, वीरान, बिलकुल हांॅरर फिल्मों जैसा!“
एलीना की बात पर मैं हंस दिया और बोला, ‘‘वास्तव में यह घर स्मार्ट घर है। अब लोग इस तरह के समझदार घर बनवाना ज्यादा पसंद करते हैं।’’
इस समय हम लोग डॉ. राबर्ट के घर के दरवाज़े पर पहुँच चुके थे। दरवाज़ा बंद था। तभी एक आवाज़ उभरी, ‘‘स्वागत है आप लोगांे का। आप अंदर आ सकते हैं।’’
इसके साथ ही दरवाज़ा स्वतः खुल गया। सामने कोई भी नज़र नहीं आ रहा था, न दरवाज़ा खोलने वाला, न ही स्वागत करने वाला। हम लोग अंदर पहुँच गये। वह एक लम्बा वरांडा सा था जिसके अन्त में एक शीशे का दरवाज़ा लगा था। हम लोग शीशे वाले दरवाज़े के करीब पहुँचे ही थे कि दरवाज़ा ख़ुद खुल गया। सामने ही आराम कुर्सी पर डॉ. राबर्ट मुस्कराते हुए नज़र आये, उन्होंने पुनः हम लोगों का स्वागत किया, ‘‘वेलकम, वेलकम।“
‘‘आप डॉ. राबर्ट हैं न!“ एलीना अपने स्वभाव के मुताबिक चहकते हुए बोली। इस बीच मैंने अपना हाथ डॉ. राबर्ट की ओर बढ़ाया। डॉ. राबर्ट ने कुर्सी से उठते हुए हम लोगों से हाथ मिलाया और मुस्कराते हुए बोले, ‘‘क्यों मिस एलीना, क्या मेरे डॉ. राबर्ट होने में कोई शक है।’’
‘‘नहीं नहीं....वह बात यह है कि अभी गार्डन में आप की ही शक्ल का एक व्यक्ति पौंधों मे पानी दे रहा था। मैं समझी....।“
मेरी बात सुनकर डॉ. राबर्ट ज़ोर से हंसे और बोले, ‘‘अरे टू नाइन सेवन, वह तो मेरा माली हैं....।“
‘‘आपका क्लोन....?“ एलीना ने बीच में ही प्रश्न किया।
‘‘नहीं, वह मेरा हमशक्ल रोबोट है।’’
‘‘रोबोट!‘‘ एलीना के आश्चर्य की सीमा नहीं रही।
‘‘अच्छा आप लोग क्या लंेगे। चाय, काफ़ी या फ्रूट जूस।“ डॉ. राबर्ट बोले। इस पर एलीना तपाक से बोल पड़ी, ‘‘मैं तो एप्पल जूस लूंगी।“ मैंने काफ़ी के लिए हामी भर दी। अचानक मेरी निगाह डॉ. राबर्ट के हाथ में थमें एक छोटे से रिमोट कंट्रोल जैसे एक बटन विहीन यंत्र पर पड़ी, जिस ओर डॉ. राबर्ट बड़े ध्यान से देख रहे थे। मुझे इस प्रकार उनका उस यंत्र को देखना बड़ा अजीब सा लगा।
एलीना उस हॉल में आस-पास की दीवारों पर लगे बड़े-बड़े तैल चित्रों को देख रही थी, जो बहुत पुराने समय के प्रतीत हो रहे थे। लगभग पाँच मिनट बीत हांेगे कि सामने का एक दरवाज़ा खुला। हम लोगों ने देखा कि एक ट्रॉली दरवाज़े से अन्दर प्रवेश कर रही है, जिसका आकार किसी 72 सेंटीमीटर टी.वी. की ट्रॉली जितना रहा होगा। ट्रॉली हम लोगों के सामने आकर रूक गई, जिसमें एक गिलास में जूस था, दो कप कॉफी के थे और एक ट्रे में कुछ ड्राई फ्रूट्स भी थे। डॉ. राबर्ट ने हमें नाश्ते के लिए आमंत्रित करते हुए कॉफ़ी का एक प्याला उठाकर होठों से लगा लिया।
तभी एलीना चौंकते हुए बोली, ‘‘डॉ. राबर्ट, आपने एप्पल जूस और काफ़ी के लिए यहाँ किसी से कहा भी नहीं, फिर यह कैसे आ गई?“
डॉ. राबर्ट मुस्करा दिये। तभी खुले हुए दरवाज़े से एक छोटा और प्यारा सा कुत्ता उछलता हुआ चला आया और डॉ. राबर्ट के पैरांे को सूंघता हुआ कूं-कूं की आवाज़ करने लगा। एलीना सोचनें लगी, कितना प्यारा कुत्ता है, काश यह उसके पास होता।
डॉ. राबर्ट कुत्ते की ओर देखते हुए बोले, ‘‘मिली ठीक है, तुम चलो मैं आ रहा हूँ।“
डॉ. राबर्ट की बात सुनकर मिली उछलता-कूदता वापस चला गया।
‘‘क्या आपको कहीं जाना है?“ मैंने प्रश्न किया, इस पर डा. राबर्ट बोले, ‘‘हाँ, मिली मेरी पत्नी का संदेश लेकर आई थी।“
‘‘संदेश? क्या आप जानवरों की भाषा भी समझते हैं!“ एलीना आश्चर्य से बोली।
इस पर डॉ. राबर्ट ने जवाब दिया, ‘‘जानवरांे की नहीं मन की भाषा। मैं यह भी बता सकता हूँ कि अभी-अभी आप ने क्या सोचा था।“
डॉ. राबर्ट ने मुस्कराते हुए कहा। इस पर एलीना मुस्कराते हुए बोली, ‘‘बताइए अभी मैंने क्या सोचा?’’
‘‘तुम सोच रही थीं कि मिली कितना प्यारा कुत्ता है, काश यह तुम्हारे पास होता।“ डॉ. राबर्ट का जवाब सुन कर एलीना की आंखें खुली रह गईं।
वह बोली, ‘‘माई गॉड! आपने यह सब कैसे जान लिया?“
डॉ. राबर्ट बताइये न यह क्या रहस्य है, पहले आपने हमारा मनपसंद ड्रिंक मंगवा दिया, फिर मिली से बात कर ली और फिर एलीना के मन की बात जान ली, भला कैसे?“
मेरी बात सुनकर डॉ. राबर्ट बोले, ‘‘बताता हूँ, लेकिन पहले अपनी प्रयोगशाला की रिपोर्ट देख लूं।” इतना कहकर डॉ. राबर्ट ने एक बंद कम्प्यूटर की ओर देखा। पुनः एक और आश्चर्य, कम्प्यूटर स्वतः ही सक्रिय हो उठा। डॉ. राबर्ट ने कम्प्यूटर स्क्रीन पर कुछ आंकड़ों को पढ़ा और उनकी कम्प्यूटर की ओर से नज़रें हटते ही वह बंद हो गया।
अब डॉ. राबर्ट हम लोगों की ओर मुख़ातिब होते हुए बोले, ”चलो, आप लोगों को अपनी प्रयोगशाला लिये चलता हूँ, बाकी बातें वहीं हांेगी। डॉ. राबर्ट का जवाब सुनकर एलीना मन ही मन झुंझला उठी कि आख़िर क्यों डॉ. राबर्ट हमारे सवालों को टाल रहे हैं, क्या वह यह सब कुछ गुप्त रखना चाहते हैं?
इस बीच हम लोग लिफ़्ट द्वारा दूसरी मंज़िल पर पहुँच गये। डॉ. राबर्ट बोले, ‘‘अब हम लोगों को एक विशेष सुरक्षा जांच कक्ष में चलना होगा, बुरा न मानना दोस्तों, यहां आप लोगों की जांच होगी।’’
हम लोग के सुरक्षा कक्ष में प्रवेश करते ही अलार्म घनघना उठा। डॉ. राबर्ट गंभीरता से बोले, ‘‘क्षमा करना दोस्तों, आपके पास कोई ऐसी चीज़ ज़रूर है जो किसी प्राणी के लिये घातक है। आप प्लीज़ खुद चेक करिये।’’
डॉ. राबर्ट की बात सुनकर हम लोग हैरान रहे गये। भला हम लोगों के पास ऐसा क्या हो सकता है? अलार्म बज रहा था, एलीना और मैं एक दूसरे को बड़ी विस्मयकारी दृष्टि से देख रहे थे, एलीना चौंकी और उसने अपनी जेब से सिगरेट का पैकेट निकालते हुए कहा, ‘‘कहीं यह तो नहीं?“
डॉ. राबर्ट ने एलीना से सिगरेट का पैकेट लेकर उसे तुरन्त नष्ट करने के लिये वहीं एक छोटे से डिस्ट्रॉय चैम्बर मे डाल दिया। सिगरेट नष्ट होते ही अलार्म बंद हो गया। अब डॉ. राबर्ट के चेहरे पर संतोष दिखाई पड़ रहा था, वह बोले, ‘‘यदि आप लोगांे के शरीर में कोई ख़तरनाक रोग उत्पन्न करने वाला सूक्ष्मजीव तक मौजूद होता, तब भी यह अलार्म बोल जाता।’’
‘‘थैंक्स गॉड, इसका मतलब है हम लोग अभी किसी ख़तरनाक रोग से ग्रस्त नहीं हैं, इसी बहाने आज पूरे शरीर की जांच हो गई....।’’
डॉ. राबर्ट एलीना की बात काटते हुए बोले, ‘‘लेकिन अगर समय रहते नहीं समझीं तो भयानक रोग के चंगुल में फंस सकती हो।’’
एलीना सोच में पड़ गयी और बोली, ‘‘भला मुझे ऐसा क्या हो सकता है?“
‘‘तुम्हारी सिगरेट की बुरी आदत की वजह से। अभी समय है सिगरेट छोड़ दो, ओके।“ डा. राबर्ट बोले।
‘‘ओ के डॉक्टर, मैं कोशिश करूंगी। थैंक्स फ़ॉर सजेशन।“ एलीना बोली।
अब विशेष जांच कक्ष से निकल कर हम लोग लिफ़्ट द्वारा तीसरी मंज़िल पर पहुँच गये। एक और दरवाज़े पर पहुँच कर डॉ. राबर्ट ने दरवाज़े पर एक सरसरी निगाह डाली ही थी कि दरवाज़ा ख़ुद ब ख़ुद खुल गया। मुझे बचपन में पढ़ी अली बाबा चालीस चोर की कहानी के जादुई दरवाज़े की याद ताज़ा हो गई, जो खुल जा सिमसिम कहने पर खुल और बंद हो जाता था। लेकिन यहां तो कहना भी नहीं पड़ता, सिर्फ़ देखने भर से दरवाज़ा खुल जाता है। वाह, विज्ञान ने क्या तरक़्क़ी की है। इस बीच हम लोग स्वतः खुले दरवाज़े से एक कक्ष में प्रवेश कर गये। यह कक्ष एक प्रयोगशाला थी। चारों ओर रंग-बिरंगे रसायनांें से भरे बड़े-बड़े जार रखे थे, कुछ में रसायन उबल रहा था तो कुछ बड़े-बड़े पाइपों के ज़रिये अन्य यंत्रों से जुड़े थे। प्रयोगशाला के अन्तिम छोर पर एक कोने में स्थित शीशे के एक चैम्बर में कई कम्प्यूटरों से घिरी चश्मा लगाये एक महिला बैठी थी। मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से डॉ. राबर्ट की ओर देखा।
‘‘यह मेरी पत्नी है आयशा।’’
आयशा ने चैम्बर के अंदर से ही हम लोगों का अभिवादन किया।
डॉ. राबर्ट ने आगे कहा, ‘‘यह पूरी प्रयोगशाला पर कम्प्यूटरांे और रोबोट द्वारा नियंत्रित रखती हैं। अब मैं इनके विषय में एक ऐसी बात बताने जा रहा हूँ जिस पर कोई मुश्किल से यकीन करेगा और वह यह कि आयशा अंधी, बहरी और गूंगी है।“
डॉ. राबर्ट की बात सुनकर आश्चर्य से हम लोगों के मुँह खुले के खुले रह गये। वाकई डॉ. राबर्ट की बात पर यकीन करना बड़ा मुश्किल था क्योंकि आयशा कम्प्यूटर पर सभी सूचनाओं का भली-भांति अवलोकन और विश्लेषण कर रही थी और उन्हें निर्देश दे रही थी। भला अंधा या बहरा व्यक्ति ऐसे मुश्किल कार्यों को बिना आँख या कान की सहायता से कैसे कर सकता हैं? अगर यह विज्ञान का चमत्कार है तो वाकई इसे नमस्कार करना पड़ेगा।
डॉ. राबर्ट ने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘आयशा हमेशा से ऐसी नहीं थी। शादी से पहले यह मेरी सहयोगी और एक अच्छी दोस्त थी। शादी के बाद आयशा ही मेरी सब कुछ थी। लेकिन शादी होने के दो वर्ष बाद ही आयशा को ज़बरदस्त पक्षाघात हुआ और उसकी आँखांे की रोशनी चली गई लेकिन आयशा का मस्तिष्क आज भी उतना ही सक्रिय है जितना पहले था। अतः मैंने हिम्मत नहीं हारी और एक दिन विज्ञान ने उसे आखंे, कान और ज़ुबान दे दी।’’
हम लोग डॉ. राबर्ट की बातें बड़े ध्यान से सुन रहे थे, उन्होंने कहना जारी रखा, ‘‘आयशा आज कृत्रिम दृष्टि प्रणाली के माध्यम से देख सकती हैं। उसके चश्में में लगे दो अति सूक्ष्म कैमरे आँख के भीतर लगाये जाने वाले एक अत्यंत सूक्ष्म कम्प्यूटर को अदृश्य लेज़र संचालित संदेश भेजते हैं। कम्प्यूटर लेज़र निहित दृश्य संकेत को विद्युत संकेत में बदल देता है, जो मस्तिष्क तक जाता है और इस प्रकार अंधी आयशा देख सकती है। इस कम्प्यूटर का आकार अत्यंत सूक्ष्म होता है जो आँख के परदे यानि रेटिना पर धीमी गति से घूमता रहता है।“ एलीना इन महत्वपूर्ण बातों को अपनी नोट बुक में लिखती भी जा रही थी।
हम लोग डॉ. राबर्ट के वैज्ञानिक रहस्यों से रूबरू हो रहे थे। डॉ. राबर्ट पुनः बोले, ‘‘हमारे इस स्मार्ट हाउस में एक ऐसी वैज्ञानिक प्रणाली कार्य कर रही है जिसमें मुँह से बोले बगै़र और हाथ से कोई बटन दबाये बग़ैर मात्र सोचने भर से वह कार्य सम्पन्न हो जाता है। इस यंत्र से आपके मन में क्या चल रहा है, यह भी जान सकता हूँ, जैसे आप लोगांे के लिये एप्पल जूस औैर कॉफ़ी मंगवाने के लिए मैंने हाथ में थमें रिमोट जैसे नज़र आने वाले इस बटन विहीन यंत्र की ओर देख कर मन ही मन आदेश दिया था। इसी प्रकार मन ही मन मेरा आदेश मानकर यहाँ के दरवाज़े खुल और बंद हो जाते हैं। इसी तरह का एक रेडियो ट्रंासमीटर मैंने आयशा की बांह मे लगा रखा है। यह उन्हें एक कम्प्यूटर से जोड़ता है। यह यंत्र उनकी तंत्रिका प्रणाली द्वारा प्राकृतिक रूप से उत्पन्न बिजली से सूक्ष्म रेडियो संकेत उत्पन्न करता है। इस उपकरण की सहायता से कोई भी विकलांग व्यक्ति कम्प्यूटर के की-बोर्ड़ या माउस का उपयोग किये बिना ही अपने विचारों द्वारा उत्पन्न विद्युत रासायनिक संकेतों के संचरण से कम्प्यूटर को चला सकता है और अपनी बात को कह, देख व सुन सकता है।“
‘‘वाह डॉ. राबर्ट, यू आर ग्रेट।“ एलीना बच्चों की तरह ख़ुश होते हुए बोली।
अब डॉ. राबर्ट से मैंने प्रश्न किया, “लेकिन आपने अपनी एक विशेष खोज के बारे मंे अभी तक नहीं बताया, यानि आपको मानव क्लोन संबंधी खोज मे कितनी सफलता मिली है?“
मेरा प्रश्न सुन कर डॉ. राबर्ट बोले, ”सॉरी दोस्त, मैं अभी इस विषय पर कुछ नहीं कहना चाहता, इसे अभी गुप्त रखना चाहता हँू।’’
इस पर एलीना डॉ. राबर्ट से बोली, ‘‘तो आशा करूं कि जब आपसे अगली बार जब भेंट हो तो मानव क्लोन के भी दर्शन हो जायें।’’
एलीना की बात पर डॉ. राबर्ट मुस्कराते हुये बोले, “हाँ क्यों नहीं, हो सकता है तब कोई अन्य रोमांचक वैज्ञानिक रहस्य पर से भी परदा हट जाये। लेकिन हमारा इन्टरव्यू छापने के बाद अपनी विज्ञान पत्रिका की एक प्रति हमे अवश्य भेजना।’’
‘‘अवश्य डॉ. राबर्ट इस बार हमारी पत्रिका का आप पर ही विशेषांक होगा और इसकी ई-पत्रिका भी आयेगी।’’ एलीना मुस्कराते हुये बोली।
हम लोग डॉ. राबर्ट के साथ पूरे दिन रहे और उनकी स्मार्ट टेक्नॉलॉजी से जुड़ी अन्य खोजों के बारे में भी बहुत सी जानकारी हासिल कीं। शाम हो गई थी, अब हम लोग डॉ. राबर्ट से विदा लेकर स्मार्ट कार के जरिये पुनः एयरपोर्ट की ओर बढ़ चले पड़े।
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