कॅरियर


मेटलर्जी इंजीनियरिंग

संजय गोस्वामी

हमारे दैनिक जीवन में धातु का इस्तेमाल कई रूपों में होता है। चाहे बर्तनों की बात हो या भवन निर्माण की, चिकित्सा की बात हो या विज्ञान संबंधी उपकरणों का जिक्र हो, धातु का इस्तेमाल हर जगह होते हैं। धातु विज्ञान का विभिन्न उद्योगों जैसे परमाणु, एयरोस्पेस, क्रायोजेनिक, पेट्रोकेमिकल, समुद्री, रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि में कई अनुप्रयोग होता है। मेटलर्जी को हिन्दी में धातु विज्ञान कहा जाता है धातु विज्ञान का अहम् क्षेत्र है लौह धातु, जिसमें टैंक, नलिकाएं एवं एयर कंडीशनिंग के आफ गैस, चिल्हर यूनिट, बड़े-बड़े फैन आदि लौह धातु से बनते हैं, जिसमें प्रमुख रूप से लोहा(थ्म) होता है। इसे कार्बन स्टील या माइल्ड स्टील कहते हैं। इसमें लोहा, कार्बन, मैगनीज के साथ सिलिकान, गन्धक  तथा फास्फोरस अवांछनीय तत्व होते हैं, जिसे हटाया नहीं जा सकता। धातु विज्ञान विषय में लौह एवं इस्पात, धातु कंटेनर संरचना, फाउंड्री, कोरोजन विज्ञान, एनडीटी परीक्षण, धातुओं की निकासी, बार सामग्री, पाइप सामग्री (सीमलेस पाइप और वेल्डेड पाइप), खनन, मिलिंग, अयस्कों, ताप उपचार, वेल्डिंग प्रसंस्करण आदि है आज धातु का उपयोग बर्तन, सेलेकर रेज़र ब्लेड, कार सामान, गियर, शॉफ्ट, केबल, रेल पटरियों, स्थायी चुंबक, कवच प्लेट, बॉयलर, प्लेटें, एक्सेल सर्जिकल उपकरण, सिक्का, मिसाइल, प्रक्षेपास्त्र आदि में प्रयोग किया जाता है धातु विज्ञान की तीन मुख्य शाखाएं एक्स्ट्रेक्टिव मेटलर्जिजी, भौतिक धातुकर्म और मैकेनिकल धातुकर्म है।

क्षेत्र

इस क्षेत्र में टीम के साथ मिलकर काम करना आवश्यक है। प्रोडक्शन के कार्य से जुड़ने के लिए गर्म माहौल में भी धैर्यपूर्वक काम करने की क्षमता होनी चाहिए। धातु विज्ञान की तीन मुख्य शाखाएं एक्स्ट्रेक्टिव मेटलर्जी (इसमें अयस्क से धातु निकालने), भौतिक धातुकर्म (सामग्री चयन, विभिन्न प्रकार के विनिर्माण और निर्माण कार्य के लिए आवश्यक मिश्र धातुओं को विकसित करने का ज्ञान) और मैकेनिकल धातुकर्म है, मैकेनिकल धातुकर्म के क्रम में वेल्डिंग मेटलर्जी, संक्षारन विज्ञान, फाउंड्री, फोर्जिंग और धातु के लिए आवश्यक गुणवत्ता परीक्षण है। फोर्जिंग की क्रिया सामान्य ताप पर (तववउ जमउचमतंजनतम), मामूली गर्म अवस्था में (ूंतउ) या खूब गर्म करके (ीवज) की जाती है। यह लौह और अलौह सामग्री की रासायनिक संरचना, यांत्रिक गुण (मैकेनिकल), संक्षारक प्रतिरोधकता के लिए धातु प्रयोगशाला में जाँचा जाता है।

एक्स्ट्रेक्टिव मेटलर्जी

एक्स्ट्रेक्टिव मेटलर्जी के क्रम में अयस्क से धातुओं की निकासी की जाता है। ऐसे खनिज जिनमें धातुओं का आसानी और लाभदायक तरीके से निष्कर्षण किया जाता है, अयस्क कहलाते है। अयस्क से धातु निकालने का अध्ययन करने के लिए एक्स्ट्रेक्टिव मेटलर्जी पाठ्यक्रम है जिसमें हेमेटाइट (थ्म२व्३), मैग्नेटाइट(थ्म३व्४) -सिडराइट (थ्मब्व्३) से आयरन(थ्म) बनाई जाती है आयरन (थ्म) का लोहा कच्चे माल के रूप में फाउंड्री और कास्टिंग उद्योग में जरूरत होती है इसके लिए भट्ठी की आवश्यकता होती है जिससे विभिन्न प्रकार के इस्पात कार्बन स्टील्स, मिश्र धातु स्टील्स, मैंगनीज (डद) स्टील, उच्च कार्बन इस्पात, स्टेन लेस स्टील, अलॉयस्टील, मिश्र धातु इस्पात, उपकरण स्टील्स के द्वारा बनाई जाती है कम कार्बन इस्पात को उच्च ताप पर ठंडा किया जाता है, जिसमें क्रमशः फेराइट, सीमेंटाइट तथा ऑस्टेनाईट आदि धातु को वर्गीकरण किया जाता है। यह कार्बन के प्रतिशत के अनुसार घटता-बढ़ता है। शुद्ध लोहा (फेराइट) में क्रांतिक ताप ७६८० से.ग्रे। ९०८० से.ग्रे ताप पर रहता है, जो चुम्बकीय होता है। यदि उसे गर्म किया जाए तो ७६८० सेंटी ग्रेड ताप पर वह बीटा रूप में परिवर्तित हो जाता है, जो चुम्बकीय गुण खो देता है। जैसे-जैसे तापक्रम बढ़ाते हैं, चुंबकीय प्रवृत्ति घटती है। अतः धातुविदों के लिए आयरन एंड स्टील मेकिंग विषय आज की दौड़ में काफी मांग है। धातुविद को धातु के संगठन एवं उसके चुंबकीय गुण को जानना पड़ता है। धातु का प्लेट जो बेले हुए पदार्थ वस्तुतः प्लेट (चादर) कहलाते हैं, जो ३ मिमी से ३० मिमी तक रहता है। बेले हुए पदार्थ का आकार शेल में बने आकारों के अनुसार रहता है। बेलन करने के लिए दो बेलन, तीन बेलन वाली तथा चार बेलन वाली रोलिंग मशीन रहती है। बेले जाने वाले पदार्थ हमेशा एक ही दिशा में बेले जाते हैं अथवा प्रत्यावर्तन व्यवस्था द्वारा पारी-पारी से उलटे दिशा में बेले जाते हैं। बेलन को मोटर द्वारा घुमाया जाता है, प्लेट को बनाने के क्रम में रोलिंग की जाती है, जिससे धातु को बड़ी जल्दी वांछित आकार दिया जाता है। इसमें दो घूमते हुए बेलनों के बीच धातु का ठंडा या गर्म इंगाट प्रवेश किया जाता है। घुमाव के कारण इंगाट की मोटाई कम हो जाती है एवं उसकी आणविक संरचना एक जैसी एवं होमोजीनियस(शुद्ध) रहता है। अतः धातुविदों के लिए विद्युत का ज्ञान भी काफी मायने रखता है। धातुविदों को विद्युत के अलावा तापक्रम मापन हेतु इंस्ट्रूमेशन का ज्ञान भी काफी जरूरी है। जैसे थर्माेकपल लगाने के क्रम में किस ताप को मापने के लिए कौन से थर्माेकपल लिए जा सकते हैं एवं रिकार्डर का ग्राफ कैसा दिखाई देता है, उसमें कोई त्रुटि तो नहीं है। इस तरह धातुविदों को इंस्ट्रूमेशन, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं वेल्डन प्रक्रम का ज्ञान जरूरी है। 

आयरन व स्टील मेकिंग

इस देश में इस्पात की उपलब्धता में वृद्धि करने के लिए निजी क्षेत्र प्रमुख भूमिका अदा कर रहा है स्टेन लेस स्टील एक इस्पात है जो वायुमंडल तथा कार्बनिक और अकार्बनिक अम्लों से भी खराब नहीं होता है। साधारण इस्पात की अपेक्षायें अधिक ताप सह सकते हैं। इस्पात में ये गुण क्रोमियम मिलाने से उत्पन्न होते हैं। इसमें १२.२०: क्रोमियम (ब्त), ८.१३: निकेल(छप) तथा लोहा(थ्म) होता है। क्रोमियम इस्पात के बाह्य तल की परत वायु से प्रतिक्रिया कर क्रोमियम आक्साइड बना देता है जिससे इस्पात पर पानी और हवा का प्रभाव निष्क्रिय हो जाता है। ऑस्टेनाईट स्टेनलेस स्टील एक उच्च संक्षारक प्रतिरोधक सामग्री है जो व्यापक रूप से निर्माण उद्योग में इस्तेमाल किया जाता है। 

वेल्डिंग मेटलर्जी

वेल्डिंग मेटलर्जी में धातु में वेल्ड एवं उसकी आणविक संरचना, यांत्रिक गुण, संक्षारक प्रतिरोधकता, आदि विषय शामिल हैं। वेल्डिंग प्रक्रम में दो धातु को उच्च ताप पर जोड़ा जाता है और उसके गुणवत्ता परीक्षण को अविनाशी परीक्षण जैसे रेडियोग्राफी, अल्ट्रासोनिक से जांचा जाता है। विनाशी परीक्षण में क्रीप परीक्षण, यांत्रिक परीक्षण, कठोरता परीक्षण , तन्यता तनाव परीक्षण, हीलियम लिक टेस्ट, आदि प्रयोगशाला में किया  जाता है। धातु में वेल्डिंग प्रक्रिया में वेल्ड के चारों ओर एक उच्च तापमान क्षेत्र का उत्पादन हो जाता है। इस क्षेत्र को गर्मी प्रभावित क्षेत्र (भ्।र्) कहा जाता है। वेल्डिंग के दौरान वेल्ड के आसपास बेस प्लेट में गठित एक गर्मी प्रभावित क्षेत्र हैगर्मी प्रभावित क्षेत्र में वेल्डेड सामग्री में कुछ संरचनात्मक परिवर्तन हो जाता है। क्योंकि इस क्षेत्र में हीटिंग और ठंडा करने के चक्र में वेल्ड के चारों ओर का सूक्ष्म संरचना में परिवर्तन हो जाता है, हाइड्रोजन की उपस्थिति और थर्मल चक्र परिवर्तन की वजह से हाइड्रोजन क्रैकिंग (भ्।ब्) हो जाता है। इस क्षेत्र में हाइड्रोजन प्रसारण, अवशिष्ट तन्यता तनाव और तापमान रेंज की उपस्थिति को जाँचा जाता है। हीटिंग और ठंडा की दर देखे जाते है, एवं उसकी आणविक संरचना एक जैसी एवं होमोजीनियस (शुद्ध) नहीं रहता है। जाँच के लिये आधुनिक उपकरणों का उपयोग किया जाता है, इस गर्मी प्रभावित क्षेत्र को कम करने के लिए  ताप- उपचार विधि का इस्तेमाल किया जाता है।

धातु का गुणवत्ता परीक्षण

हमने रेल दुर्घटना के बारे में बहुत सी पत्रिकाओं में पढ़ा लेकिन सभी में दुर्घटना का मुख्य कारण के बारे में सम्भवतः जानकारी के अभाव में सही वजह नहीं मिला, पटना इंदौर एक्सप्रेस में रेल पटरियों में दरार की वजह से दुर्घटना हुई, इसके लिये रेलपटरियों का समय पर परीक्षण करना आवश्यक है ठंड के दिनों में तापमान की वजह से रेल पटरी के टूटने का खतरा अधिक बढ़ जाता है, अल्ट्रासोनिक मशीनों के माध्यम से रेल लाइनों की सतत निगरानी एवं परीक्षण किया जाता है और यह पता किया जाता है कि पटरी कहीं क्रैक तो नहीं होने वाली है। धातु के प्लेट में लेमिनेशन दोष होती है जो रेडियोग्राफी परीक्षण द्वारा नहीं पता लगाया जा सकता है इसके लिए सिर्फ अल्ट्रासोनिक परीक्षण ही की जाती है। स्टील की प्लेटें के गुणवत्ता परीक्षण के लिये केवल अल्ट्रासोनिक टेस्ट ही है। सामान्य रूप से किसी भी धातु के अविनाशी परीक्षण केवल दो प्रकार से करते हैं प्रथम रेडियोग्राफी है और दूसरा अल्ट्रासोनिक परीक्षण हैं रेडियोग्राफी परीक्षण के लिए फिल्म रखने के लिए जगह (पिछले भाग) की आवश्यकता होती है।
   अल्ट्रासोनिक परीक्षण में उपकरण में ध्वनि प्रसारक यंत्र (ट्रान्समीटर) एवं ध्वनि ग्राही यंत्र (रिसीवर) निश्चित स्थानों पर लगे रहते हैं। ध्वनि ऊर्जा की एक किरण प्रसारक यंत्र से निकलकर सामग्री में प्रवेश करती है फिर कुछ समय पश्चात ध्वनि रिसीवर यंत्र तक आता है लेकिन अल्ट्रासोनिक परीक्षण एक बंद सतह पर प्रयोग किया जाता है लेकिन सामने वाली सतह चिकनी होनी चाहिए अधिकांश अल्ट्रासोनिक निरीक्षण ०ण्५ और २५ मेगाहर्ट्ज के बीच आवृत्तियों पर की जाती है। अल्ट्रासोनिक जाँच के लिए उच्च आवृत्ति (१-२डभ््र) के ध्वनि तरंगों की आवश्यकता होती है इसके लिए पीजो इलेक्ट्रिक ट्रांसड्यूसर प्रोब अपेक्षित है ट्रांसड्यूसर प्रोब एक पीजो इलेक्ट्रिक सेंसर डिवाइस होती है जो पीजोइलेक्ट्रिक प्रभाव पैदा करता है ट्रांसड्यूसर (जतंदेकनबमत) उनयुक्तियों (कमअपबमे) को कहते हैं जो एक प्रकार की ऊर्जा (यांत्रिक) को दूसरे प्रकार की ऊर्जा (इलेक्ट्रिक) में बदलती हैं। बेरियम टाइटेनेट के क्रिस्टल के दाब विद्युत गुण का उपयोग कर पीजोइलेक्ट्रिक ट्रांसड्यूसर (क्रिस्टल) कंपित किया जाता है। इनका उपयोग यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करना होता है। इस परीक्षण को करने के लिए उच्च आवृत्ति के अल्ट्रासोनिक ध्वनि तरंगों धातु (पटरी, वेल्ड, प्लेट) के ऊपर निकले हुए किनारों की ओर एंगिल बीम प्रोबका इस्तेमाल कर धातु के अंदरूनी भाग में दोषों को इन पराश्रव्य तरंगों द्वारा पता लगाया जाता है मानक ।-४६६ एवं ४६७ के आधार पर पराश्रव्य ध्वनि-तरंग, धातु (एक जैसी, होमोजीनियस ) के अंदर समान गति से जाती है। जैसे स्टील में इन ध्वनियों की गति ४२४९ मी/से है, जो पदार्थ के घनत्व के साथ बदल जाती है, जैसे ही अंदर कोई दोष यथा खाली जगह (होल), कोटर नया अन्य अधातु पदार्थ दरार, पोरोसिटी आदि से यह तरंग गुजरती है, वैसे ही इन दोषों की जगह से ध्वनि तरंग परावर्तित हो जाती है, तथा इन तरंगों की प्रतिध्वनि की ऊंचाई में बदलाव आ जाताहै, जिससे यह दोष देखे जा सकते है और दोष के स्थान का पता भी धातु सामग्री में पराश्रव्य तरंगों द्वारा पता लगाया जाता है पाइप और कास्टिंग जैसे विभिन्न उत्पाद फोर्जिंग, प्लेटें, आदि में टेढ़ी परत, लेमिनेशन, दरार, दोषों का पता लगाने हेतु अल्ट्रासोनिक टेस्ट एक बहुत ही उच्च संवेदनशील परीक्षण हैएड़ी धारा परीक्षण (म्ककल ब्नततमदज जमेजपदह) धातु में दोष, धातुकी कठोरता और चालकता की जांच करने के लिए और धातु भागों पर पेंट की तरह  कोटिंग्स की पतली परत को मापने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। परीक्षण आवश्यकताओं के आधार पर एड़ी धारा परीक्षण में परीक्षण सामग्री का विद्युतका चालक होनाबहुत जरूरीहै। परीक्षण आवृत्ति और कुंडली के आकार धातुके चालकता और पारगम्यता के गुण के आधार पर लौह एवं अन्य अलौह धातु चुना जाता है एड़ी धारा परीक्षण में धातु में जब कोई दोष होती है तब धातुके चालकता और पारगम्यता में बदलाव होती है, हीट एक्सचेंजर्स और कई उच्च संवेदनशील धातु ट्यूबिंग में  अंदर सेआईडी (प्दजमतदंस क्पंउमजमत) के निरीक्षण के लिए एड़ी धारा परीक्षण ही प्रयुक्त होती है। अतः धातु विज्ञान का क्षेत्र न सिर्फ धातु को प्रगलित करने, धातु को फर्नेस में ढालने तक ही सीमित है, बल्कि धातु के जोड़-तोड़ एवं उसके गुणवत्ता नियंत्रण , एनडीटी हेतु मन्युफैक्चरिंग तथा गुणवत्ता परीक्षण केन्द्र में भी काफी मांग है।

मुख्य विषय

निष्कर्ष धातु विज्ञान (पायरो), यांत्रिक धातु विज्ञान, रासायनिक धातु विज्ञान, भौतिक धातु विज्ञान, प्रक्रिया धातु विज्ञान, फाउंड्री, पाऊडर धातुकर्म, वेल्डिंग, परमाणु धातु विज्ञान, धातुकर्म लक्षण वर्णन, जंग विज्ञान, नैनो संरचित सामग्री, पदार्थ विज्ञान, गुणवत्ता सिद्धांत, भौतिक विज्ञान, संरचनात्मक विश्लेषण, वेल्डिंग, संक्षारण विज्ञान, कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग, इलेक्ट्रॉनिक सिद्धांत, सेमीकंडक्टर टेक्नॉलॉजी, फाइबर एंड इंटिग्रेटेड ऑप्टिक्स, धातु सिद्धांत तथा उत्पादन धातु की उन्नत अध्ययन के मूलभूत तथ्य, इंस्ट्रूमेंटेशन एंड कम्युनिकेशन, विद्युत, मैकेनिकल आदि विषय शामिल हैं।

क्षेत्र

मेटलर्जी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल और कम्प्यूटर इंजीनियरिंग का अध्ययन करने की आवश्यकता होती है। इस क्षेत्र में करियर बनाने के इच्छुक विद्यार्थी मेटलर्जी इंजीनियरी में बी.ई. या बी.टेक। कोर्स से शुरुआत कर सकते हैं अथवा इंजीनियरी में बी.ई या बी.टेक। कोर्स कर बाद में मेटलर्जी इंजीनियरी में एम.टेक। कर सकते हैं। बैचलर्स प्रोग्राम(ठम्ध्ठजमबी) में प्रवेश लेने के लिए इच्छुक उम्मीदवार को कक्षा बारह में फिजिक्स, कैमेस्ट्री और मैथ्स विषय के तौर पर लेना चाहिए। मेटलर्जी इंजीनियर  सरकारी विभाग में डीआरडीओ, परमाणु ऊर्जा विभाग, ईसीआईएल, इसरो, डीएसटी आदि में बतौर वैज्ञानिक, मेटलर्जी इंजीनियर/प्रबंधक/आदि पदों पर काम कर सकता है। मेटलर्जी के विशेषज्ञ धातु वैज्ञानिक के तौर पर भी काम कर सकते हैं। 

अवसर

एक मेटलर्जी इंजीनियर को धातु के निर्माण, डिजाइन, उत्पादन और परीक्षण के बारे में जानकारी होती है। धातु विज्ञान हेतु सरकारी संस्थान जैसे रक्षा विभाग में रक्षा धातु की लैब, हैदराबाद, डीआरडीओ, भा.प.अ.केन्द्र, इसरो, रेलवे विभाग आदि प्रमुख हैं। रेल मंत्रालय में वे कोच तथा पटरियों के निर्माण के लिए वे मेटलर्जिकल सहायक के पद के लिये नियुक्त होते हैं वहीं सरकारी उपक्रम में स्टील अथारिटी आफ इंडिया लिमिटेड, मेकान, एरोस्पेस रिसर्च लैब, कोल इंडिया लिमिटेड आदि प्रमुख हैं। मेटलर्जी इंजीनियरिंग की शाखा में बी.टेक। करने के बाद एक स्नातक को विभिन्न पदों पर सरकारी क्षेत्र एवं निजी कंपनियों में नौकरी मिलती है। अवसरों के क्षेत्र में भारत में सबसे अधिक संभावना इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन), डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन), आदि संगठनों में हैं, मेटलर्जी से संबंधित पाठ्यक्रमों के लिए शैक्षणिक योग्यता इस बात पर निर्भर करती है कि आप मेटलर्जी इंडस्ट्री में किस रूप में जुड़ना चाहते हैं। वहीं सरकारी और निजी कंपनी में कास्टिंग और फोर्जिंग उद्योग, निर्माण उपकरण उद्योग(दबाव पोत/वाल्व आदि), निर्माण उद्योग (वेल्डिंग एवं एनडीटी परीक्षण) तेल और गैस उद्योग, पेट्रोलियम और रिफाइनरी उद्योग, विमान उद्योग, शिपिंग उद्योग, ऑटोमोबाइल उद्योग आदि में मेटलर्जी इंजीनियर की भारी मांग है। एक योग्य मेटलर्जी इंजीनियर को इस्पात निर्माण, फाउंड्री, धातु की गुणवत्ता के लिए एनडीटी परीक्षण, धातुओं की निकासी, खनन, रीफ्रैक्टरीज, धातुओं के आंतरिक संरचना सुधारने के लिए ताप उपचार, संक्षारण विज्ञान, आदि का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। मेटलर्जी इंजीनियर मुख्य रूप से टैंक, नलिकाएं के डिजाइन, निर्माण, गुणवत्ता नियंत्रण , प्रचालन और सुरक्षा  के लिए जिम्मेदार होता है। एक मेटलर्जी इंजीनियर को टैंक, नलिकाएं के डिजाइन, निर्माण तथा गुणवत्ता नियंत्रण, मानकों के अनुसार एएनएसआई, ।ैछज्, एडब्ल्यूएस,  एपीआई, एएसआईसी, राष्ट्रीय कोड आईएसआई आदि का व्यापक ज्ञान होना बहुत जरूरी है।

वेतन

एक धातुविद को मासिक औसतन डिग्रीधारी इंजीनियर को ४०.५० हजार रूपए मासिक तथा सरकारी संस्थानों में अनुभव के आधार पर ५०ए०००ध्. से १ लाख रूपए मासिक भी मिल जाता है। यदि आपके पास इस क्षेत्र में कार्य करने का ८से १० साल का कार्य अनुभव है, तो सालाना सैलॅरी २०.३० लाख रुपये तक हो सकती है। विदेशों में तो इस क्षेत्र में वेतन बहुत अच्छा मिलता है।

प्रमुख संस्थान

  • आईआईटी, रूड़की, कानपुर एवं मुंबई
  • बीआईटी, सिंदरी, धनबाद 
  • एनआईटी, रायपुर  (छ.ग.) 
  • भारतीय धातु संस्थान, कोलकाता (प.बं.)
  • इंस्टीट्यूट फॉर फाउंड्री एंड मेटल, रांची
  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, राउरकेला (उड़ीसा)
  • भारतीय मेटल रिसर्च सेंटर, रांची
  • मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई 
  • पुणे विश्वविद्यालय, पुणे
  • जादवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता
  • अन्नामलाई यूनीवर्सिटी, अन्नामलाई 
  • एसपी नेशनल इंस्टीट्यूट, सूरत

goswamisanjay80@gmail.com