कॅरियर
वेल्डिंग प्रौद्योगिकी
संजय गोस्वामी
वेल्डिंग स्थायी रूप से दो धातु भागों को जोड़ने की एक तकनीक है। जिसमें 450 डिग्री से 1050 डिग्री सी.जी. तक की तापमान पर भारी गर्मी से धातु पिघल कर एक स्थायी बांड बनाता है वेल्डिंग में फिलर रॉड को फ्यूज कर धातु के टुकड़े को जोड़ने के लिए उपयोग किया जाता है। आज वेल्डिंग का कार्य ऑटोमोबाइल, निर्माण उद्योग, जहाज निर्माण, एयरोस्पेस अनुप्रयोगों, परमाणु ऊर्जा विभाग में और अन्य विनिर्माण उद्योग में बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जा रहा है। वेल्डिंग का काम पाइपलाइनों में, भवनों में, पुलों में, बिजली संयंत्रों और रिफाइनरियों में पाइप को जोड़ने के लिए और अन्य संरचनाओं के निर्माण में भी प्रयोग किया जाता है। वेल्डिंग प्रौद्योगिकी में वेल्डिंग और फिटिंग ड्राइंग, गणित, मैकेनिकल ड्राइंग, धातु विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, अविनाशी परिक्षण प्रौद्योगिकी और आदि के पाठ्यक्रम शामिल है वेल्डिंग प्रौद्योगिकी में धातु विज्ञान, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल इंजीनियरिंग विषय मुख्य रूप से होते हैं। वेल्डिंग, वेल्डिंग तकनीक में वेल्डिंग से सिर्फ दो धातुओं को जोड़ना ही नहीं है, बल्कि इस प्रक्रिया में उसके आकार-प्रकार को संतुलित रखना सबसे बड़ी चुनौती होती है। अतः धातु के वेल्ड भागों के सूक्ष्म संरचना का अध्ययन करने के लिए धातु विज्ञान का ज्ञान भी महत्वपूर्ण है। कम्प्यूटर का ज्ञान भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आजकल आर्क वेल्डिंग रोबोट द्वारा भी वेल्डिंग का कार्य किया जाता है। इस क्षेत्र में इंस्ट्रुमेंटेशन, इलेक्ट्रॉनिक्स, मैकेनिक्स तथा कम्प्यूटर साइंस जैसे सहयोगी क्षेत्रों का ज्ञान शामिल होता है। इसलिए इस क्षेत्र में करियर बनाने वालों को इन क्षेत्रों से संबंधित तकनीकों से अवगत होना महत्वपूर्ण है।
कई उपयोगी वस्तुओं के निर्माण में धातु खण्डों को आपस में जोड़ने की आवश्यकता रहती है। प्रारम्भ में कुछ धातुओं को फ्यूजन की स्थिति तक गर्म करके हथौड़े के प्रेशर से जोड़ा जाता था, जैसे- चेन कड़ा; आदि, परन्तु बाद में कई अन्य प्रक्रमों का आविष्कार हुआ। इसमें समस्त कार्यखण्ड को गर्म करने की आवश्यकता नहीं रहती। मात्र वेल्डिंग के स्थान पर फ्यूजन करके दोनों सतहों को जोड़ा जाता है। फ्यूजन के लिये ताप की आवश्यकता रहती है जिसे विभिन्न प्रकार के उपकरणों तथा प्रक्रमों से प्राप्त किया जता है। इन्हीं के आधार पर वेल्डिंग विधियों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है।
वेल्डिंग प्रक्रियाओं का वर्गीकरण
वेल्डिंग प्रक्रियाओं को निम्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है
- जोड़े जाने वाली धातुओं के आधार पर
- वेल्डिंग के लिये लगाये गये प्रेशर के आधार पर
- ताप के स्तरों के आधार पर
- अन्य वर्गीकरण मैटल के फ्यूजन के लिये आवश्यक ऊष्मा को विद्युत आर्क बनाकर जुटाया जाता है तो उसे आर्क वेल्डिंग कहा जाता है। वेल्डिंग आर्क बनाने की विधि के अनुसार इसे कई भागों में बाँटा गया हैः-
- आर्क वेल्डिंग स कार्बन आर्क वेल्डिंग
- टिग वेल्डिंग स आर्क स्पॉट वेल्डिंग आर्क स्ट्ड वेल्डिंग
- एटोमिक हाइड्रोजन वेल्डिंग स इलेक्ट्रो गैस वेल्डिंग
प्लाज्मा आर्क वेल्डिंग जोड़े जाने वाली धातुओं पर जोड़े जाने वाली धातुओं पर वेल्डिंग प्रक्रियाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है
- ऑटोजीनियम वेल्डिंग
- हैट्रोजीनियम वेल्डिंग
ऑटोजीनियम वेल्डिंग - जब वेल्डिंग द्वारा समान धातु के दो भागों को उसके धातु की फिलर रॉड के द्वारा जोड़ा जाता है या बिना फिलर रॉड प्रयोग किये जोड़ा जाता है तो उसे ऑटोजीनियम वेल्डिंग कहते हैं- जैसे माइल्ड स्टील के पार्ट को माइल्ड स्टील द्वारा वेल्ड करना। इसके लिये फ्यूजन वेल्डिंग, फोर्ज वेल्डिंग आदि क्रियाएँ कही जाती है।
हैट्रोजीनियम वेल्डिंग - जब अलग-अलग धातु के भागों को फिलर रॉड की सहायता से अथवा बिना सहायता के जोड़ा जाता है तो उसे हैट्रोजीनियम वेल्डिंग कहते हैं। इसमें फिर मैटल की राड का गलनांक जोड़ने जाने वाले धातु पाटर््स से कम रहता है। इसके द्वारा माइल्ड स्टील तथा कास्ट आयरन को अधिकता से जोड़ा जाता है। इसके लिये सॉलिड फेज वेल्डिंग क्रिया की जाती है प्रेशर के आधार पर वेल्डिंग दो प्रकार की होती है-
- प्रेशर या प्लास्टिक वेल्डिंग
- नॉन प्रेशर या फ्यूजन वेल्डिंग
प्रेशर या प्लास्टिक वेल्डिंग इस प्रक्रिया में वेल्डिंग करने वाली सतहों को प्लास्टिक स्टेज अर्थात् पिघलने की अवस्था तक गर्म करके, दोनों सतहों पर दबाव डालकर जोड़ देने से स्थायी जोड़ प्राप्त होता है। इसी प्रक्रिया को प्रेशर या प्लास्टिक वेल्ंिगड कहते हैं। इस प्रक्रिया में धातु का प्लास्टिक अवस्था तक गर्म होना आवश्यकता होता है। तत्पश्चात प्रेशर लगाने पर ही आवश्यक बॉण्ड बनता है। इस प्रक्रिया के द्वारा निम्न प्रक्रियाएँ की जाती हैं:
रजिस्टैंस वेल्डिंग फोर्ज वेल्डिंग नॉन-प्रेशर या फ्यूजन वेल्डिंग- इस वेल्डिंग प्रक्रिया में जोड़े जाने वाली सतहों को मिलाकर रखा जाता है तथा किसी ऊष्मा स्रोत के द्वारा सतहों को पिघलने तक गर्म किया जाता हैं। इस प्रकार पिघली धातु आपस में मिलकर एक समान मिश्रण बनाती है। आवश्यकतानुसार फिलर धातु भी इसमें मिलायी जाती है। इस मिश्रित धातु के ठण्डी होने पर एक पक्का जोड बनाती है। यह जोड़ धातुओं के पिघलने पर बिना प्रेशर लगाये ही बन जाता है इसलिए इसको फ्यूजन वेल्डिंग कहते हैं। इस विभाग में निम्न प्रक्रियाएँ आती है-
आर्क वेल्डिंग, इलेक्ट्रॉन बीम वेल्डिंग, इलेक्ट्रो स्लैग वेल्डिंग, लेजर वेल्डिंग, चुनौतीपूर्ण कार्यः वेल्डिंग अभियंता और वेल्डिंग निरीक्षक संयंत्र का चित्र के आधार पर विशिष्ट वेल्डर से उनके वेल्डिंग कार्य की योजना पूर्ण या आंशिक रूप से वेल्डिंग कर टैंक संयंत्र का निर्माण करते हैं पाइप से पाइप को जोड़ने और धातु प्लेट को जोड़ने के लिए वेल्डिंग के भागों का गुणवत्ता परीक्षण महत्वपूर्ण है। वेल्डिंग का विश्लेषण करने के लिए वेल्डिंग इंजीनियर अपने ज्ञान का उपयोग, स्टैंडर्ड कोड से मिलाकर वे (वेल्डिंग इंस्पेक्टर) वेल्डिंग का चयन और उपकरण का सेटअप वेल्ड की अच्छी गुणवत्ता के लिए वेल्डर से तैयार करवाते है। वेल्डर का काम बड़ी चुनौती होती है। वेल्डिंग के गुणवत्ता परिणाम की जांच वेल्ड की मजबूती और संक्षारण प्रतिरोधकता के लिए करते हैं, निर्माण के ड्राइंग में आरंभिक वेल्डिंग प्रिंट पढ़ने के बाद, उचित वेल्डिंग, फिटिंग और निरीक्षण कर वेल्डिंग से पाइप और धातु प्लेट को जोड़कर टैंक बनाते हैं जिसमें अग्नि सुरक्षा का पूरी तरह से विचार कर ही वेल्डिंग मशीन और पूरक धातु के द्वारा एक उच्च तापमान (500-950वब्) पर वेल्डिंग टॉच द्वारा जोड़ते हैं। एक अच्छे वेल्डिंग इंजीनियर को वेल्डर की कौशल की जाँच के लिये अच्छी दृष्टि और हाथ से आँख का समन्वय के साथ-साथ मैनुअल निपुणता की जरूरत होती है। वेल्डर को लंबी अवधि तक वेल्डिंग के लिए की परीक्षा के लिए विस्तृत कार्य पर ध्यान केंद्रित करने और वेल्डिंग की साइट पर काम के लिए शारीरिक रूप से फिट होना चाहिए। वेल्डिंग प्रक्रिया में वेल्डिंग के वक्त वेल्ड में दोष आ सकते हैं। इसके लिए वेल्डिंग निरीक्षक, वेल्ड के निरीक्षण का कार्य एनडीटी परीक्षण द्वारा पूरा करते है। रेडियोग्राफिक और अल्ट्रासोनिक तकनीक अविनाशी परिक्षण सबसे आम तरीकों में से है दो प्रकार के एनडीटी परीक्षण होते हैं। अविनाशी परिक्षण के स्पष्ट लाभ वेल्डर, वेल्डेड भाग को बिना नष्ट करके वेल्ड दोषों का पता लगा सकते हैं। एनडीटी परीक्षण के अनुसार, रेडियोग्राफिक परीक्षण में एक्स-रे या गामा रे से फोटो फिल्म पर एक ठोस वस्तु (वेल्ड) के माध्यम से गुजरता है किसी भी दोष में रेडियोग्राफिक छवि एक स्थायी रिकार्ड प्रदान करता है वेल्डिंग और वेल्डिंग निरीक्षण में डिजीटल फोटोग्राफी के माध्यम से प्राप्त वेल्डिंग की तस्वीरों को विशेष सॉफ्टवेयर के माध्यम से प्रोसेस किया जाता है। इससे वेल्डेड संरचनाओं की थ्री-डी तस्वीर प्राप्त होती है जिससे वेल्डिंग की प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न ताप और फिर ठंडा होने के कारण उत्पन्न वितियों का ऑकलन सही तरीके से किया जा सकता है। यह एक धीमी और महंगी विधि है। इसमें थ्री-डी तकनीक बेहद कारगर हो सकती है। वेल्ड गुणवत्ता में वेल्ड के अंदरूनी हिस्सों में सरंध्रता, समावेशन, दरारें और रिक्तियों का पता लगाने के लिए अल्ट्रासोनिक जांच भी एक अच्छी तकनीक है। अल्ट्रासोनिक जांच के द्वारा अल्ट्रासोनिक ऊर्जा की किरण के माध्यम से यांत्रिक कंपन वेल्ड से गुजरता हैं-किसी भी दोष से अल्ट्रासोनिक रे वापस परिलक्षित होगा वहाँ वेल्ड में दोष है वेल्ड में दोष की सही स्थिति का निर्धारण करने की क्षमता एक योग्यताधारी वेल्डिंग इंजीनियर एनडीटी परीक्षण के द्वारा देता है। वेल्डिंग इंजीनियर इस प्रक्रिया का उपयोग कर वेल्डर ऑपरेटर क्षमता और प्रशिक्षण की सही स्तर जान जाते हैं। तरल डाई व्याप्ति परीक्षण वेल्ड में दरार का पता लगाने के एक आम गैर विनाश विधि है। यह विधि लौह और अलौह सामग्री के लिए अच्छा है यह किसी भी दरारें या वेल्ड में सील वेल्ड समस्याओं (सरंध्रता या संलयन दोषों) का पता नहीं लगा सकते हैं। वेल्ड विसंगतियों की एक व्यापक रेंज का पता लगाने के लिए, चुंबकीय कण परीक्षण एक बेहतर विकल्प है। इस तकनीक के द्वारा वेल्ड दोषों में दरार, साथ ही सरंध्रता, तेजी, समावेशन और सरंध्रता संलयन का पता लगा सकते हैं। इस विधि में वेल्ड के भाग में एक चुंबकीय क्षेत्र की फ्लक्स के द्वारा गुजारा जाता है -एक चुंबक अपने सिरों को चुंबकीय कणों को आकर्षित करती है और चुंबकीय लाइनों चुंबक के ध्रुवों के बीच प्रवाह के द्वारा वेल्ड हिस्सा के परीक्षण में कोई दरार या अन्य वेल्ड समस्या होता है, तो चुंबकीय कणों उनको आकर्षित नहीं करता है इस तकनीक से बड़ी और भारी संरचनाओं के निर्माण में सुधारों की आवश्यकता कम होगी। इससे समय, धन और श्रम की बचत होगी, वहीं संरचनाओं की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। किसी वेल्डिंग इंजीनियर के लिए वेल्डिंग के निर्माण में धातु आर्क वेल्डिंग में ऑक्सी आर्गन वेल्डिंग और काटने में सुरक्षा काम, देखभाल और रखरखाव और उपकरणों को मापने के प्राथमिक ज्ञान आवश्यक है गैस और आर्क वेल्डिंग उपकरण, उनके उपयोग करता है।
कोर्स
वेल्डिंग टेकनॉलॉजिस्ट, वेल्डिंग निरीक्षण के क्षेत्र में कैरियर बनने हेतु होना वेल्डिंग इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री होना नितांत आवश्यक है। इसके साथ ही साथ उच्चतम प्रतियोगी तथा तकनीकी क्षेत्र में आविष्कार तथा कुछ नया करने के लिए सृजनात्मक योग्यता भी बेहद जरूरी है। ग्रेजुएट एसोसिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर वेल्डिंग चित्र, वेल्डिंग प्रतीकों, वेल्ड संयुक्त डिजाइन, वेल्डिंग प्रक्रियाओं, कोड और मानक आवश्यकताओं और निरीक्षण और परीक्षण तकनीक कर विनिर्माण उद्योग क्षेत्र में साइट इंजीनियर की नौकरी कर सकते हैं। भारतीय वेल्डिंग संस्थान की ग्रेजुएट एसोसिएट की परीक्षा मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वेल्डिंग प्रौद्योगिकी में बीई/बीटेक के समकक्ष डिग्री प्रदान करता है। वेल्डिंग इंजीनियरिंग में स्पेशलाइजेशन से मैन्युफैक्चरिंग, कृषि, खनन, परमाणु, ऊर्जा संयंत्र जैसे क्षेत्रों में कॅरियर निर्माण के दरवाजे खुल जाते हैं। इसके साथ ही वेल्डिंग इंजीनियरों की पाइप बनने वाले उद्योगों में भी खासी मांग हैं। वर्तमान समय में वेल्डिंग के क्षेत्र में योग्य और गुणी प्रोफेशनल्स के सामने कॅरियर निर्माण का एक सुनहरा संसार बाहें पसारे खड़ा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा योग्य वेल्डिंग प्रोफेशनल्स को बड़ा भारी वेतन एवं अन्य सुविधाएं प्रदान की जाती है। विदेशों में भी वेल्डिंग इंजीनियरों की भारी मांग हैं।
मुख्य विषय
धातु की विभिन्न प्रक्रिया (पेंच, रिवेट्टिंग, टांका, टांकना, और वेल्डिंग) का अध्ययन, ऑक्सी आर्गन वेल्डिंग वेल्डिंग के लिए इस्तेमाल गैस हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और आर्गन. ऑक्सी - आर्गन का उपयोग, आग के प्रकार-विभिन्न गैस संयोजन, लौ तापमान और उनके उपयोग, वेल्डिंग जोड़ों के प्रकार का अध्ययन, सरल नमूने के साथ स्पष्टीकरण, वेल्डिंग के लिए वायु में शुद्धिकरण के लिये अक्रिय गैस आर्गन-सिलेंडर में भंग आर्गन के गुण और उपयोग, ऑक्सीजन-ऑक्सीजन सिलेंडर के गुण और सुरक्षा, एसी और डीसी आर्क वेल्डिंग, गैस धातु आर्क वेल्डिंग, गैस टंगस्टन आर्क वेल्डिंग गैस वेल्डिंग तरीकों की किस्म, एयर आर्गन वेल्डिंग, ऑक्सीजन हाइड्रोजन वेल्डिंग और दबाव गैस वेल्डिंग, प्रतिरोध वेल्डिंग, गैस और आर्क वेल्डिंग, जलमग्न आर्क वेल्डिंग, टंगस्टन सम्मिलित गैस वेल्डिंग, ब्व्2 वेल्डिंग, इलेक्ट्रॉन बीम वेल्डिंग, घर्षण वेल्डिंग, आर्क ब्राजेर, थर्मल वेल्डिंग, प्रतिरोध वेल्डिंग, ऊर्जा बीम वेल्डिंग, सहएक्सट्रूजन वेल्डिंग, शीत वेल्डिंग, प्रसार वेल्डिंग, घर्षण वेल्डिंग, उच्च आवृत्ति वेल्डिंग, गर्म दबाव वेल्डिंग, वेल्डिंग प्रेरण और रोल वेल्डिंग वेल्डिंग इंजीनियरिंग गस्टन अक्रिय गैस प्रक्रिया (स्पर्श वेल्डिंग) और प्लाज्मा आर्क वेल्डिंग, वेल्डिंग निरीक्षण, वेल्डिंग प्रक्रिया, वेल्डिंग इंजीनियरिंग, वेल्डिंग प्रक्रियाओं के क्षेत्र में गुणवत्ता निरीक्षण, वेल्डिंग के अनुप्रयोग, वेल्डर स्तर पर वेल्डिंग पाठ्यक्रम और प्रबंधकों को वेल्डिंग प्रौद्योगिकी, गुणवत्ता निरीक्षण और एनडीटी प्रमाणपत्र प्रशिक्षण कार्यक्रम, इंजीनियरिंग पर्यवेक्षकों के लेवल द्वारा उत्तीर्ण परीक्षा के बाद दिया जाता है। जिसका खाड़ी देश में रिफाइनरी उद्योग में भारी मांग हैं।
प्रवेश
वेल्डिंग के क्षेत्र में कैरियर बनने हेतु 12वीं कक्षा में गणित विषय होना नितांत आवश्यक है। इसके साथ ही साथ उच्चतम प्रतियोगी तथा तकनीकी क्षेत्र में आविष्कार तथा कुछ नया करने के लिए सृजनात्मक योग्यता भी बेहद जरूरी है। वेल्डिंग प्रौद्योगिकी की डिग्री पत्राचार द्वारा भारतीय वेल्डिंग संस्थान की ग्रेजुएट एसोसिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर गेट द्वारा विभिन्न इंजीनियरिंग कॉलेजों में उपयुक्त क्षेत्र में एम. टेक. में प्रवेश कर वेल्डिंग प्रौद्योगिकी में एक अच्छा कैरियर बनाकर पाइपिंग उद्योग और मशीनरी विनिर्माण उद्योग में अभियंता का कार्य कर सकते हैं। इस क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए इन क्षेत्र से संबंधित तकनीकों से भी अवगत होना चाहिए यदि आप वेल्डिंग में डिजाइनिंग और क्वालिटी कंट्रोल में विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहते हैं जहां यांत्रिक इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री एक निर्धारित योग्यता है.
मुख्य संस्थान
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (आईआईटी)
- खडगपुर, नई -दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कानपुर, गुवाहाट और रुड़की।
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलुरू
- पीएसजी प्रौद्योगिकी कॉलेज, कोयम्बटूर
- जादवपुर यूनिवर्सिटी, कोलकाता।
- एम.एस. यूनिवर्सिटी, बड़ौदा।
- नेताजी सुभाष इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, नई दिल्ली।
- बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी एंड साइंस (बिट्स), पिलानी।
- कोचिन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नॉलॉजी, कोच्चि।
- वीरमाता जीजाबाई टेक्नॉलॉजी इंस्टीट्यूट, मुंबई।
- थापर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, पटियाला।
- यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद, हैदराबाद।
- संत लोंगोवाल इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान, पटियाला
- एडवांस वेल्डिंग प्रौद्योगिकी संस्थान, चेन्नई
- गुणवत्ता प्रबंधन संस्थान, मुंबई
- दिल्ली विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली
- मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई
- इंडियन स्कूल ऑफ माइंस, धनबाद
- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स प्रौद्योगिकी संस्थान, बंगलोर
- राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना
- बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी एण्ड साइंस, पिलानी
- पीएसजी कॉलेज, कोयम्बटूर
- श्री सत्य साई इंस्टिट्यूट, चेन्नई(तमिलनाडु)
- एस.आर.एम. विश्वविद्यालय, कांचीपुरम
- डॉ.सी.वी. रमन विश्वविद्यालय, बिलासपुर
Goswamisanjay80@yahoo.com