विज्ञान


कलाम मरते नहीं

मनीष मोहन गोरे

डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम के निधन ने समूचे भारत देश और समाज के हर तबके को शोकसंतप्त कर दिया। हमारे देश की सरहद के पार दुनिया के दूसरे देशों से भी कलाम से जुड़ी संवेदनाएं प्रकट होती देखी गईं। ऐसा परिदृश्य सामने आना देश - दुनिया में उनकी लोकप्रियता का परिणाम था। प्रायः देखा जाता है कि किसी वैज्ञानिक की मौत पर आम जन का ध्यान नहीं जाता और इसके पीछे मीडिया की उदासीनता भी एक बड़ी वजह बनती है। मेरी समझ्ा से भारत के संदर्भ में यह पहला अवसर था जब एक विज्ञान विभूति के अवसान पर समूचे भारतवासियों ने एक मन होकर सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की।
वास्तव में, कलाम एक विशेष मानव थे और ऐसे मानव दुनिया में विरले ही जन्म लेते हैं। उन्होंने अपनी विशेषताओं और अनोखेपन से हर वर्ग के लोगों को प्रभावित किया और मन को जीता। सादगी, विनम्रता, सच्चाई, निष्ठा और परिश्रम कलाम के व्यक्तित्व की कुछ विशेषताएं थीं। जीवन के आरंभिक काल से ही उनमें महानता का तत्व मौजूद था जिसके फलस्वरूप उनकी सोच, उनका व्यक्तित्व और उनकी विश्लेषण क्षमता अद्वितीय कोटि के थे। एक अतिसाधारण परिवार में जन्म लेने के बावजूद कलाम ने जीवन के फलसफे को गहराई से महसूस करते हुए अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया। ऐसा व्यक्तित्व जिसमें आदर्श मानवीय मूल्य स्पष्ट तौर पर समाहित थे। शिक्षा के महत्व का अहसास कलाम को अपने बचपन के दिनों में ही हो गया था, जब रामेश्वरम की गलियों में अखबार बांटते हुए फुर्सत के क्षणों में अखबार में छपे काले अक्षरों को समझ्ाने की अदम्य जिज्ञासा उनके बाल-मन में उपजी थी। इस बाल-सुलभ जिज्ञासा को कलाम ने अपने भीतर जीवनपर्यंत जिन्दा रखा था, इसलिए वे लगातार बच्चों से मिलते रहे और उन्हें जीवन, समाज, देश, दुनिया, तथा ज्ञान-विज्ञान के ताने-बाने समझ्ााते रहे। कलाम के बारे में वर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कथित टाइम्स आफ इंडिया समाचार पत्र में सटीक बात छपी कि, ‘जो गुमनाम बच्चा एक जमाने में गलियों में घूम-घूमकर अखबार बेचा करता था, आज पूरे देश के अखबार उसी होनहार बच्चे की ख़बरों से अटे पड़े हैं।“
कलाम को अच्छी तरह मालूम था कि बच्चे ही भविष्य के ध्वजवाहक हैं और हर बच्चे के भी तर एक आग धधक रही है। उन्हें आभास था कि इस आग को सही दिशा देकर देश को दुनिया की नजरों में ऊँचा उठाया जा सकता है। हम सब ने देखा कि इसी सपने को अपनी आँखों में लिए कलाम जीवन के आखिरी क्षण तक बच्चों को उत्प्रेरित-उद्वेलित करते रहे।
कलाम के जीवन पर यदि ध्यान से दृष्टि डाली जाए तो हमें उनमें एक सच्चे इंसान और अनोखे देशभक्त के दर्शन होते हैं। एक ऐसा इन्सान जो जाति, धर्म, सम्प्रदाय की संकीर्ण दीवारों से ऊपर उठ चुका था और इंसानियत, सदाचरण तथा सेवा भाव को वह अपना सबसे बड़ा मजहब मानता था। देशभक्ति का जज्बा उनमें कूट-कूटकर भरा हुआ था। भारत माँ का सिर ऊँचा उठाने के लिए उन्होंने रक्षा अनुसंधान के क्षेत्र में कठोर मेहनत की, अनेक अभूतपूर्व मिसाइलों का निर्माण किया जिसे देखकर दुनिया के पसीने छूट गए। पड़ोसी देश से कलाम को तब एक प्रस्ताव भी आया था कि भारत से अधिक धन-वैभव और सम्मान उन्हें मिलेगा अगर वे भारत भूमि छोड़कर उस देश को चले आते हैं। देशभक्त कलाम के लिए उनका देश और उसकी सेवा, धन-वैभव से ऊपर थे, उन्होंने वह प्रस्ताव ठुकरा दिया था। कलाम का मानना था कि एक असुरक्षित राष्ट्र समृद्धि की ओर नहीं बढ़ सकता और इसलिए राष्ट्रीय विकास के लिए हमारा सशक्त होना पहली शर्त होना चाहिए। आतंकवाद से आज पूरी दुनिया जूझ्ा रही है और मानवता के लिए यह एक अभिशाप बन गया है। आतंकवाद में लगे गुमराह लोगों को कलाम के जीवन तथा व्यक्तित्व से सबक लेना चाहिए कि कैसे धर्म-जाति से परे होकर मानवता और देश की सेवा की जाती है। इस सच्चे देशभक्त की मौत पर हर एक धर्म या जाति के देशवासी की आँखें नम थीं,कलाम की यही सच्ची कमाई थी।
कलाम बच्चों में बेहद लोकप्रिय शख्सियत थे और उनकी एक झ्ालक पाकर बच्चे ऊर्जा से भर जाते थे। कलाम कहते थे कि नौकरी से मुक्त होने के बाद वे हर साल एक लाख बच्चों से मुलाकात करेंगे और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेंगे। उन्होंने अपने इस वादे को पूरा करने का भरसक प्रयास भी किया। कलाम एक प्रतिबद्ध और नेक दिल इंसान थे। लिहाजा उनके ये सच्चे मानवीय गुण सहज रूप में बच्चे या बड़ों सभी को आकर्षित करतेथे। संस्थागत शिक्षा भले कमतर रही हो, उनका व्यावहारिक ज्ञान अनोखा था। यही कारण था कि उनकी बातें श्रोता और पाठकों के मन को गहरे छू जाती थीं। कलाम के अनेक प्रत्यक्ष व्याख्यानों का मैं साक्षी रहा हूँ और बच्चों पर केंद्रित उनके संबोधन में जैसा मुझ्ो महसूस हुआ करता था, वह सार-रूप में इस प्रकार  हैः ‘तुम्हारे(बच्चों के) हाथ में एक जीवन है और इसे सार्थक बनाने का एक सुनहरा मौका है, अपने ईमानदार प्रयास और कठोर मेहनत के बल पर ऐसा योगदान या खोज करो जो समाज और राष्ट्र की उन्नति में काम आए।’ कलाम बच्चों से अक्सर कहा करते थे कि,‘सपने वे नहीं होते जो सोने पर आते हैं, बल्कि सपने वो होते हैं जो हमें सोने नहीं देते हैं।’ उनके इस प्रेरक कथन में सौ फीसदी सच्चाई छिपी है। अपने पीछे कलाम, भारत और दुनिया के करोड़ों बच्चों के लिए अपने जीवन एवं कर्म की इसी प्रकार की अनमोल सौगात छोड़ गए हैं जो निश्चित रूप से उन्हें प्रेरित करता रहेगा।
महानता और सादगी (विनम्रता) के बीच किस प्रकार संतुलन बनाए रखना चाहिए, इसका एक बड़ा सबक कलाम के व्यक्तित्व में मिलता है। अक्सर देखा जाता है कि विशेष व्यक्ति अकड़ में रहते हैं। गुरूर, अभिमान, आडम्बर इन जैसे लोगों के सहज स्वभाव बन जाते हैं। मगर यहाँ पर एक मौजूं बात याद आती है कि मानव मन में जैसे-जैसे ज्ञान का प्रकाश फैलता जाता है, उसके भीतर अज्ञान, अहंकार, अभिमान जैसे तम (अंधियारे) मिट जाते हैं। इसलिए अज्ञानी को मगरूर और ज्ञानी को विनम्र पाया जाता है। अगर कोई व्यक्ति औपचारिक तौर पर शिक्षित है लेकिन उसमें अहंकार मौजूद है तो इसका सीधा अर्थ है कि ज्ञान की किरण उसके मन को नहीं छू पाई है; उसने हृदय से किताब में लिखी ज्ञान की बातों को आत्मसात नहीं किया है और लिहाजा उसकी शिक्षा अधूरी है। अनपढ़ कबीरदास इस ख़ास संदर्भ में कह गए हैं ‘जब ‘मैं’ थातबहरि नहीं,अबहरि हैं,‘मैं’ नाही; सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देख्या माहि।’ यहां पर ‘मैं’ का अर्थ अहंकार है। कबीर कहते हैं कि जब तक मेरे भीतर अहंकार (अज्ञानता) का वास था, तब तक मुझ्ो ईश्वर (ज्ञान) के दर्शन नहीं हुए, मगर जिस दिन मेरे भीतर से अहंकार निकल गया, उस दिन मुझ्ो ज्ञान प्राप्त हुआ। कलाम का फलसफा भी कबीरदास से मेल खाता है। उनके भीतर ज्ञान-विज्ञान की अनेक शाखाओं का एक संगम प्रवाहित होता रहता था और उनकी सोच सर्वथा सकारात्मक रही, इसलिए हमें उम्मीद करनी चाहिए कि कलाम के चले जाने के बाद भी उनकी विचार धारा करोड़ों बच्चों में पल रही है और आने वाले कल उनकी ये सभी मानस संतानें उनके अधूरे सपने को पूरा करेंगी। इनके समेकित योगदान से जब भारत का सिर दुनिया में और ऊंचा होगा तब जाकर हमें यकीन होगा कि कलाम नहीं मरते...

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