तकनीकी


कलाम को आखिरी सलाम

विजन कुमार पांडे

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉ. जाकिर हुसैन के बाद यह एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्हें भारत रत्न मिलने का सम्मान राष्ट्रपति बनने से पूर्व ही प्राप्त हो गया था। षुरूआती दौर में व्यक्तिगत जीवन में संघर्ष से जूझने वाले डॉ. कलाम की डिक्षनरी में असंभव जैसा षब्द नहीं रहा है। डॉ. कलाम एक सामान्य परिवार से संबंधित असमान्य षख्सियत के रूप में जाने जाते थे जिन्हांेने एरोनॉटिकल क्षेत्र में भारत को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया था। आसमान की ऊँचाइयों को छूने के लिए हौसला जरूरी है। हौसला आपकी सोच को वह उड़ान देता है जिसका षिखर कामयाबी की चोटी पर है। कामयाबी के षिखर तक पहुँचने की आपने यूं तो हजारों कहानियां पढ़ी होंगी लेकिन ऐसी ही एक जीती जागती कहानी थे डॉ. कलाम। डॉ. कलाम एक साफ छवि के व्यक्ति थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन देष हित में लगा दिया। उनकी कर्मठता व ईमानदारी युवाओं की मिसाल बनी। उन्हीं के प्रयासों का नतीजा था कि आज रक्षा विभाग मजबूती से खड़ा है। व्यक्तिगत जीवन में संघर्ष से जूझने वाले डॉ. कलाम जो ठान लेते थे उसे वे करके दिखाते थे। 
देष के 11वें राष्ट्रपति डॉ. कलाम के आकस्मिक निधन से समूचा देष षोक-संतप्त है। राजनेता तो उन्हें औपचारिक तरीके से श्रद्धांजलि तो दिये ही, लेकिन आम जनता भी, खासकर युवा, बच्चे, विज्ञान और षिक्षा के क्षेत्र में संलग्न लोग उनके निधन से ऐसा महसूस कर रहे हैं, जैसे उन्हें हमेषा मार्गदर्षन देने वाला घर का कोई बुजुर्ग अचानक उनसे जुदा हो गया। भारत में राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च होता है। राष्ट्रपति भवन की ओर से समय विषेष पर विज्ञप्तियां जारी की जाती है, जिन्हें जनता सुनती-पढ़ती है। हमारे कहने का अर्थ यह है कि राष्ट्रपति से जनता का रिष्ता इक तरफा होता है, दोतरफा नहीं। आम जनता राष्ट्रपति को हर 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर सुनती है, और समय-समय पर उनकी अन्य देषों के राष्ट्र प्रमुखों से मुलाकात या विदेष यात्राओं में उन्हें देखती है। अर्थात जनता राष्ट्रपति से सीधे संवाद नहीं कर सकती। लेकिन भारत में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. राधाकृष्णन, डॉ. जाकिर हुसैन जैसे कुछ राष्ट्रपति हुए हैं, जिनके साथ जनता ने एक अलग किस्म का जुड़ाव महसूस किया। डॉ. कलाम ऐसे ही राष्ट्रपतियों की श्रेणी में आते हैं। इसीलिए तो उन्हें ‘जनता का राष्ट्रपति’ कहा गया। इसका कारण था, उन्होंने कभी भी अपने पद को अनावष्यक महिमा मंडित नहीं किया। उस पद की तमाम औपचारिकताओं और गरिमा को निभाते हुए भी उसके आडंबर से हमेषा दूर रहे और पदमुक्त होने के बाद भी अपने सहज-स्वाभाविक जीवन में लौट आए। जिस देष में वीआईपी संस्कृति इतनी हावी हो कि नगर निगम का पूर्व पार्षद भी अपनी कार पर अपने पुराने रूतबे का जिक्र करने से नहीं चूकता, वहां यह देखना सुखद आष्चर्य था कि हमारे पूर्व राष्ट्रपति कितनी सहजता से लोगों से, विद्यार्थियों से मिलते थे, जिज्ञासुओं की समस्याओं का समाधान करते थे।
डॉ. अब्दुल कलाम देष के अत्यंत लोकप्रिय राष्ट्रपतियों में से एक थे और अपनी सादगी के लिए मषहूर थे। वह ऐसे विषिष्ट वैज्ञानिक थे, जिन्हें 30 विष्वविद्यालयों और संस्थानों ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया था। वे 1999 से 2001 तक सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार रहे और 1998 के परमाणु परीक्षणों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। मिसाइल मैन के नाम से मषहूर कलाम 25 जुलाई 2002 को देष के 11वें राष्ट्रपति बने। उन्हें 1981 में पùभूषण, 1990 में पùविभूषण और 1997 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया गया। देष के चोटी के वैज्ञानिक होने और राष्ट्रपति बनने के बावजूद डॉ. कलाम में कभी घमंड नहीं आया। वे हमेषा एक आम आदमी की जिंदगी जीने की कोषिष की और इसके लिए कई बार राष्ट्रपति के प्रोटोकाल तक की उन्होंने परवाह नहीं की। अपने आखिरी सार्वजनिक समारोह से ठीक पहले भी वे अपनी सुरक्षा में लगे एक जवान को धन्यवाद कहना नहीं भूले। अपने राष्ट्रपति कार्यकाल में भी वे आम जनता के साथ जुड़े रहे। इसीलिए उन्हें ‘जनता का राष्ट्रपति’ भी कहा जाता था। बचपन में वे अपने परिवार को आर्थिक सहारा देने के लिए अखबार भी बेचा करते थे। वे तमिलनाडु के एक ग्रामीण मुस्लिम परिवार में पैदा हुए थे। चेन्नई के छात्र उन्हें प्रिय कलाम चाचा कहा करते थे। चाचा कलाम के नाम से मषहूर डॉ. एपीजे कलाम बच्चों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। वे हमेषा युवाओं को अपने सपनों को साकार करने की कोषिष करने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे। उन्हें विष्वास था कि भारत जल्द ही महाषक्ति बन जाएगा। उनका कहना था कि विकसित राष्ट्र बनने के लिये गरीबी हटानी होगी। वे भी गरीबी में ही पढ़े लिखे और बड़े हुए थे। कलाम सभी राजनीतिक दलों में लोकप्रिय थे। 2002 में वे करीब एकमत समर्थन के साथ देष के 11वंे राष्ट्रपति चुने गए। यह उनकी लोकप्रियता ही थी कि सभी दलों के नेताओं ने एकजुट होकर उनकी मृत्यु पर गहरा षोक व्यक्त किया। पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने एयरोनॉटिकल इंजीनियर के रूप में अपने करियर की षुरूआत की थी। वे हिन्दुस्तान की दो बड़ी एजेंसियों डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेषन (डीआरडीओ) और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेषन (इसरो) के प्रमुख रहे थे। दोनों एजेंसियों में उन्होंने बहुत उम्दा काम किया। हिन्दुस्तान के पहले रॉकेट एसएलवी-3 को बनाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई, पोलर सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल (पीएसएलवी) बनाने में भी उनकी प्रमुख भूमिका थी। हिन्दुस्तान के पहले मिसाइल पृथ्वी और फिर उसके बाद अग्नि मिसाइल को बनाने में भी डॉक्टर कलाम का अहम योगदान रहा है। 1998 में जो परीक्षण किया था उसमें भी डॉ. कलाम की विषिष्ट भूमिका थी। उस समय वे डीआरडीओ के प्रमुख थे। अगर भारत महाषक्ति बनाना तो उनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। संसार के गिने-चुने ही ऐसे राष्ट्रप्रमुख होंगे जो इतनी ज्यादा उच्च षिक्षा प्राप्त किये होंगे। वे बहुत बड़े मानवतावादी थे। मृत्युदंड के वे सख्त खिलाफ थे। वे किसी को मृत्युदंड नहीं देना चाहते थे। इतने बड़े वैज्ञानिक और राष्ट्रप्रमुख होने के बाद भी वे बच्चों से बच्चों की तरह बात करते थे। वे अपने किस्म के अलग इंसान थे। ऐसे तो वे मुस्लिम थे लेकिन उनका जन्म हिन्दुओं के प्रमुख षहर रामेष्वरम में हुआ था। जिसका प्रभाव उनके जीवन पर बहुत पड़ा। उन्हें हिंदू व मुस्लिम दोनों प्यार करते थे।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को संगीत एवं भारतीय संस्कृति से बहुत प्रेम था। वे रोज रूद्र वीणा बजाया करते थे। यह एक पारंपरिक दक्षिण भारतीय वाद्य यंत्र है। उन्हें कर्नाटक भक्ति संगीत सुनना बहुत पसंद था। वे षास्त्रीय तमिल कविता भी लोगों को सुनाते थे। वे विज्ञान में जितनी गहरी पैठ रखते थे, उतनी ही दिलचस्पी उनकी संगीत, साहित्य और प्रकृति में थी। दिसंबर 2004 की बात है सुप्रसिद्ध गायिका एम.एस. सुबलक्ष्मी के निधन पर तत्कालीन राष्ट्रपति के रूप में डॉ. कलाम ने उन्हें स्वयं जाकर श्रद्धांजलि दी थी। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि सुबलक्ष्मी ने देष को संगीत का अनमोल तोहफा दिया है, जो एक अच्छा इंसान बनने में हमारी मदद करेगा। वैसे कलाकारों का सम्मान सरकारी स्तर पर तो कई तरह से होता है, लेकिन ऐसा निजी जुड़ाव और सम्मान कम ही देखने को मिलता है। दरअसल सादगी डॉ. कलाम के व्यक्तित्व की पहचान थी और कई तरह से जाहिर भी होती थी। इसका एक उदाहरण तो यह है कि जब वे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए तब उनके परिजन बिना किसी सरकारी तामझाम या सुविधाओं के उनके षपथग्रहण समारोह में षामिल हुए। उनके किसी निजी संबंधी ने उनके पद या हैसियत का अनुचित लाभ नहीं उठाया।
राष्ट्रपति बनने के बाद डॉ. कलाम के व्यक्तित्व और षैली से युवा बहुत प्रभावित थे। उनकी वे नकल करने की भी कोषिष करते थे। जैसे उनके बीच से काढ़े गए, दोनों ओर से थोड़े-थोड़े सामने निकले सफेद बालों पर भी नौजवान पीढ़ी फिदा थी। उनके नाम की एक फिल्म बनी थी ‘आई एम कलाम’, जिसमें एक गरीब लेकिन होनहार बच्चा उनसे प्रभावित होता है और उनकी ही तरह मेहनत करके बड़ा आदमी बनना चाहता है। डॉ. कलाम बच्चों को प्रोत्साहित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे। एक स्कूली बच्चे ने एक बार विज्ञान प्रदर्षनी के लिए एक मॉडल बनाया था, जिसमें ट्रेन में षौचालय की सुविधा को सुधारने का उपाय सुझाया गया था। डॉ. कलाम उस बच्चे के पास खुद जाकर उसकी प्रषंसा की और इनाम दिया। आज कितने लोग ऐसे होते हैं जो बड़े पदों पर पहुंचने के बाद इस तरह आम जनता के बीच हो रहे प्रयासों पर गौर नहीं फरमाते। उनके पास फुर्सत ही नहीं होती। डॉ. कलाम ऐसे नहीं थे। उच्च पद पर रहकर भी वे सभी से मिलते थे और अंतिम सांस तक मिले। डॉ. कलाम सेवानिवृत्त होने के बाद भी अक्सर छात्रों से किसी न किसी अवसर पर उपस्थित रहते थे। वे अक्सर नौजवानों में जोष भरा करते थे। उनकी किताब ‘अग्नि की उड़ान’ नौजवानों के लिए प्रेरणादायक है। आज के नौजवान कलाम को अपनी जिंदगी में परचम बनाकर रखेगें। वे अपने दिल के मालिक थे। सबके दिमाग में वे एक जुनून भरते थे। उनका सपना था कि देष में एक करोड़ लोग कलाम बनें। वे बड़े ही विनम्र व्यक्ति थे। उनको अपने देषवासियों पर बहुत भरोसा था। वे कहते थे कि भारत प्रतिभाओं से भरा पड़ा है, उन्हें बस मौका चाहिए। अपने स्कूल के दिनों में अखबार भी बांटते थे और पढ़ते भी थे। यह एक विलक्षण उपलब्धि ही है कि एक अखबार बांटने वाला भारत का राष्ट्रपति बन जाए। जिनकी सोच बहुत ऊँची हो ऐसे ही लोग ऐसा कर सकते हैं। विज्ञान में उनकी गहरी रूचि थी। इसीलिए वे एक महान वैज्ञानिक भी बने।
जनरल परवेज मुषर्रफ 2005 में जब भारत आए थे तो वे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ-साथ राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से भी मिले थे। उनसे यह मुलाकात आधे घंटे की हुई थी। कलाम के सचिव पीके नायर जब उनके पास ब्रीफिंग के लिए गए तो कहा कि सर, वे जरूर कष्मीर का मुद्दा उठाएंगे। आपको इसके लिए तैयार रहना होगा। इस पर कलाम एक पल तो ठिठके फिर कहा कि आप उनकी चिंता मत करो मैं सब संभाल लूंगा। डॉ. कलाम ने करीब तीस मिनट तक लेक्चर दिया। उसके बाद मुषर्रफ ने कहा, धन्यवाद राष्ट्रपति महोदय। भारत बहुत भाग्यषाली है जो आप जैसा एक वैज्ञानिक राष्ट्रपति पाया है। डॉ. कलाम ने उन्हें दिखा दिया कि एक वैज्ञानिक भी कूटनीतिक हो सकता है।
सन 2006 की बात है और मई का महीना था। एक बार राष्ट्रपति कलाम का सारा परिवार करीब 52 लोग उनसे मिलने दिल्ली आया था। उसमें उनके बड़े भाई 90 साल के तथा उनकी डेढ़ साल की परपोती भी थी। ये लोग आठ दिन तक राष्ट्रपति भवन में रुके थे। घूमने के लिए सभी लोग अजमेर षरीफ भी गए। लेकिन कलाम ने उनके रूकने और घूमने का किराया अपनी जेब से दिया। यहाँ तक कि उन लोगों की एक-एक प्याली चाय का भी हिसाब रखा गया। जब वे लोग चले गए तो कलाम ने अपने अकाउंट से तीन लाख बावन हजार रूपए का चेक काट कर राष्ट्रपति कार्यालय को भिजवा दिया। यह बात किसी को पता नहीं चली। बाद में जब सचिव नायर ने उनके साथ बिताए गए दिनों पर किताब लिखी तब जाकर लोगों को पता चला। इस तरह वे एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति थे।
राष्ट्रपति कलाम भारत के सबसे सक्रिय राष्ट्रपति थे। अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने 175 दौरे किए। उनमें से वे केवल सात बार विदेष गए। लक्ष्यद्वीप को छोड़कर वे भारत के सभी राज्यों का दौरा किया। एक बार 15 अगस्त 2003 को कलाम ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर षाम को राष्ट्रपति भवन के लॉन में हमेषा की तरह एक चाय पार्टी का आयोजन किया था। उसमें करीब 3000 लोगों को आमंत्रित किया गया था। लेकिन सुबह आठ बजे से जो बारिष षुरू हुई तो रुकने का नाम ही नहीं ली। बारिष के कारण राष्ट्रपति भवन के अधिकारी परेषान हो गए कि इतने सारे लोगों को भवन के अंदर कैसे चाय पिलाई जा सकेगी। फिर आनन-फानन में 2000 छातें मंगवाए गये। जब दोपहर बारह बजे राष्ट्रपति से सचिव मिलने गए तो कलाम ने कहा कि कितना लाजवाब दिन है। ठंडी हवा भी चल रही है। इस पर सचिव नायर ने कहा, ‘सर, आपने 3000 लोगों को चाय पर बुलाया है। ऐसे खराब मौसम में कैसे उनका स्वागत किया जा सकता है।’ इस पर राष्ट्रपति कलाम ने कहा, तुम क्यों चिंता करते हो हम राष्ट्रपति भवन के अंदर लोगों को चाय पिलाएंगे। इस पर सचिव ने कहा कि हम ज्यादा से ज्यादा 700 लोगों को अंदर ला सकते हैं। इसके लिए मैंने 2000 छातों का इंतजाम तो कर दिया है लेकिन ये भी कम पड़ेगें। कलाम ने सचिव नायर की तरफ देखते हुए बोले, ‘हम कर भी क्या सकते हैं। अगर बारिष जारी रही तो ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, हम भीगेंगे ही न।’ कलाम के चेहरे पर जरा भी चिंता की लकीर नहीं थी। सचिव को परेषान देखकर उन्हांेने कहा, ‘आप परेषान न हों। मैंने ऊपर वाले से बात कर ली है।’ आष्चर्य तब हुआ जब ठीक दो बजे अचानक बारिष बंद हो गई। सूरज निकल आया। ठीक साढ़े पांच बजे कलाम परंपरागत रूप से लॉन में पधारे। अपने मेहमानों से मिले। उनके साथ चाय पी और सबके साथ तस्वीरें खिचवाई। सवा छः बजे राष्ट्रगान हुआ। जैसे ही कलाम राष्ट्रपति भवन की छत के नीचे पहुंचे, फिर से झमाझम बारिष षुरू हो गई। दूसरे दिन एक अंग्रेजी पत्रिका में लेख छपा, ‘कुदरत भी कलाम पर मेहरबान।’ वास्तव में डॉ. कलाम पर कुदरत भी मेहरबान रहता था।  डॉ. कलाम अपने अंतिम क्षणों में भी षिलांग में आईआईएम के छात्रों को संबोधित कर रहे थे, उनका अधूरा संबोधन अब कभी पूरा नहीं होगा, यह कसक हमेषा रहेगी। हमें ऐसा लगता है कि वे षायद दुनिया की आखिरी उड़ान इसी तरह भरना पसंद करते। आसमान की तरफ देखिए, डॉ. कलाम अकेले नहीं हैं। पूरा संसार एकटक उनकी तरफ देख रहा है और कह रहा है कि डॉ. कलाम आप अमर हो। आपके अनमोल विचार अमर हैं जो सभी को हमेषा प्रेरणा देते रहेंगे।

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