विशेष


डिजिटल इंडिया अभियान और 
आईसेक्ट की भूमिका

 

भारत सरकार ने डिजिटल इंडिया वीक 1 जुलाई से 7 जुलाई मनाया जिसके तहत भारतीय जनता को सीधे भारतनेट, वाई-फाई हॉटस्पॉट्स और नेक्स्ट जेनरेषन नेटवर्क से जोड़ा। सरकार का जोर अपने उत्पाद डिजिटल लॉकर, नेषनल स्कॉलरषिप्स पोर्टल, ई-हास्पिटल/ओ.आर.एस, ई-साइन, डिजिटल इंडिया प्लेटफार्म (डी.आई.पी.) पर रहा। सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट फंड और ई-गवर्नेंस पॉलिसी इनिषियेटिव्स जैसी नीतियों के तहत अपने पोर्टल डिजिटल इंडिया पोर्टल एंड मोबाइल एप, माइगव मोबाइल एप, स्वच्छ भारत एप तथा आधार मोबाइल एप की पहल की। नेषनल सेंटर फॉर फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर आईआईटी जैसे संस्थान के माध्यम से सरकार अपनी इस महत्वपूर्ण योजना को विस्तार दे रही है। जबकि मध्यप्रदेष में ऑल इंडिया सोसायटी फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्प्यूटर टेक्नॉलॉजी (आईसेक्ट) एक मात्र ऐसी संस्था है जो इस दिषा में वर्षों से कार्य कर रही है।

 

डिजिटल इंडिया वीक के दौरान आईसेक्ट अपने विषेष अभियान के तहत डिजिटल भारत के स्वप्न को दृढ़ता दी है। आईसेक्ट ने अपनी विभिन्न गतिविधियों के तहत डिजिटल साक्षरता, कम्प्यूटर ट्रेनिंग, ई-गवर्नेंस, ऑनलाइन सेवाएं, वित्तीय समावेषन, कौषल विकास, आधार पंजीयन इत्यादि सेवाओं को डिजिटल इंडिया मिषन से जोड़ा तथा आम नागरिक को इन तकनीकी गतिविधियों में दक्ष किया। गौरतलब है कि आईसेक्ट अपने बीस हजार केन्द्रों के साथ सत्ताईस राज्य और तीन केन्द्र षासित प्रदेषों में कम्प्यूटर एवं तकनीक षिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहा है।
आईसेक्ट ने अपने सभी केन्द्रों पर इस मुहिम के तहत जागरूकता अभियान लगाए जिसमें छात्र, सामान्य नागरिक, बच्चे एवं महिलाएं प्रतिभागी हुए। उन्हें सेंटर मैनेजर द्वारा प्रेजेंटेषन एवं बातचीत के माध्यम से डिजिटल इंडिया की परिकल्पना एवं डिजिटल साक्षरता के महत्व के बारे में जानकारी दी गई। आईसेक्ट द्वारा डिजिटल इंडिया योजना के तहत एक नया पाठयक्रम ‘सर्टिफिकेट इन डिजिटल लिट्रेसी’ तैयार किया गया जिसके अंतर्गत कम्प्यूटर का मूलभूत ज्ञान, इंटरनेट के माध्यम से संचार, डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू एवं वेब ब्राउजर्स, ई-मेल इत्यादि फीचर्स षमिल हैं। 
इस अभियान से प्राप्त परिणामों पर गौर करें तो पाते हैं कि हम एक ऐसे युग में प्रवेष कर रहे हैं जहाँ अधिक सुगम और सरल कार्यषैली, अधिक परिश्रम और भाग-दौड़ से निजात, पारदर्षी सरकारी योजनाएं और सेवाएं, भ्रष्टाचार मुक्त समाज होगा। चूंकि मषीनें न तो रिष्वत ले सकती हैं और न ही उसका कोई भाई-भतीजा होता है। अतः यह अवष्यम्भावी है कि आगामी समय इस दौर की लचर प्रणाली से छुटकारा दिलाए। सरकार जिन बिंदुओं पर जो दे रही है वह हैं -
        स ब्रॉडबैंड हाइवे - सड़क, हाइवे की तर्ज पर ब्राडबैंड हाइवे से षहरों को जोड़ा जाना।
        स टेलीफोन सुविधा - सार्वजनिक इंटरनेट एक्सेस कार्यक्रम के तहत इंटरनेट संवाएं मुहैया कराना।
        स ई-गवर्नेंस - इसके अंतर्गत तकनीक के माध्यम से षासन प्रषासन में सुधार लाना।
स ई-क्रांति - विभिन्न सेवाओं को इलेक्ट्रॉनिक रूप में लोगों को मुहैया कराना।
स इंफोर्मेषन फॉर ऑल - सभी को जानकारी मुहैया कराना और पारदर्षिता लाना।
स इलेक्ट्रॉनिकक्स उत्पाद - भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन करना और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के लिए कल पुर्जों के आयात को षून्य करना।
स आई फॉर जाब्स - सूचना प्रौद्योगिकी के जरिए अधिक नौकरियाँ पैदा करना।
स अर्ल हार्वेस्ट प्रोग्राम - इस कार्यक्रम के तहत स्कूल के विद्यार्थियों और षिक्षकों की हाजिरी सुनिष्चित करना।
डिजिटल इंडिया अभियान के तहत इन कार्यक्रमों की कार्यरूप में परिणति हो रही है। इंटरनेट की पहुँच बनाने में अब मोबाइल प्रभावी भूमिका में है। वह अब सिर्फ बात करने या संदेष भेजने का माध्यम भर नहीं रहा। मोबाइल अब पूरी तरह स्मार्ट फोन हो चुका है।
इंटरनेट भारतीय समाज में अनेक सकारात्मक परिवर्तनों के साथ उपस्थिति हुआ है। उसके प्रभाव को सीधे आम जनता पर देखा जा सकता है। यही कारण है कि सरकार डिजिटल इंडिया पर अधिक गंभीर है। उसने आने वाले तीन वर्षों तक ढाई लाख गांवों में ब्रॉडबैंड पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है। आज देश में लगभग सवा पच्चीस करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़े हैं। यह आंकड़ा अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। इंटरनेट के जानकार बताते हैं कि 2017 तक भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या सबसे अधिक हो जायेगी। इस परिवर्तन को देखते हुए हमें कहना पडता है कि डिजिटल इंडिया की मुहिम अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है। गौरतलब है कि सूचना क्रांति की मातृभाषा अंग्रेजी है। जबकि भारतीय सामाजिक-सांस्कृति विविधता और लोकतांत्रिक प्रतिरोध के चलते समाज की अभिव्यक्ति अंग्रेजी में संभव नहीं दिखती। ऐसे में जब डिजिटल क्रांति के दायरे में जनता खड़ी होगी तो उसके संवाद की भाषा और प्रक्रिया पर प्रश्न भी खड़े होंगे। भला यह कैसे संभव होगा कि जहाँ भाषा-परिवार के अंतर्गत एक सौ बाईस भाषा और लगभग सोलह सौ बावन मातृभाषा हैं, जिसमें से बाईस भाषाओं संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है, सत्ताईस भाषाएं मुद्रण और प्रसार माध्यम में प्रयुक्त होती हैं, इकहत्तर भाषाओं में आकाशवाणी का प्रसारण होता है, संघीय स्तर पर दो राज भाषाएं, शैक्षिणिक स्तर पर पैतालिस भाषाएं, देश की मुद्रा द्विभाषिक है औरपंद्रह भाषाओं द्वारा इसका मुद्रा-मान संप्रेषित कराया जाता है, वहां डिजिटल प्रक्रिया सिर्फ अंग्रेजी में हो? यह सर्व विदित है कि नये प्रशासन तंत्र में नौकरशाही की अंग्रेजीपरस्ती को नये सिरे से वैधता मिलती है। जबकि वैश्विक भूगोल को भूगोल अपने प्रभाव में समेटते हुए इंटरनेट ने इस मिथक को तोड़ा है, बावजूद इसके इंटरनेट की भाषा अंग्रेजी ही रही है। इधर के कुछ वर्षों में देखे तो हिन्दी का वर्चस्व इंटरनेट पर बढ़ा है। कुल मिलाकर दृश्य कुछ इस तरह बनता है कि डिजिटल इंडिया का स्वप्न अंग्रेजी और हिन्दी के प्रयोग से ही साकार होता है। 
सूचना-क्रांति जिस तरह अंगरेजी के कंधे पर चल कर वैश्विक एकरूपता की साधन बनी है, उससे हम प्रभावित हुए बिना रह नहीं पाए हैं। यह अनायास नहीं कि आज अंगरेजी के मानकीकरण का काम सूचना-क्रांति कर रही है और चूंकि यह क्रांति अमेरिका द्वारा पोषित है, इसलिए अंगरेजी का वह रूप, जो कभी ब्रिटेन के लिए निष्ठा और प्रतिष्ठा का विषय था, उसे आज बिना किसी युद्ध और उन्माद के सहज ढंग से अमेरिका अपने अनुसार विश्व के अधिकतर देशों पर थोप रहा है। तकनीक और भाषा के आंतरिक संपर्क में भाषा को तकनीक के अनुरूप ही खुद को ढालना पड़ता है। जब कोई उत्पाद समाज में आता है, तो अपनी कुछ शर्तें साथ लेकर आता है, सूचना-क्रांति के संदर्भ में भाषाई शर्त भी शामिल है। इसका लाभ उसके उत्पादक देश और समाज को मिलता है। यही नहीं, आगे वह किसी विजेता की तरह अपने परिवेश का विस्तार करता है, अन्यथा ऐसा कौन-सा कारण है कि स्वच्छ होने की चाह रखने वाला ‘भारत’ अपने ‘डिजिटल’ होने की योजना मात्र में ‘इंडिया’ हो जाता है? अगर भारत के प्रसंग को देखें, तो यह महज योजनाओं का नामकरण नहीं, बल्कि समाज के दो रूपों के व्याप्ति की स्वीकारोक्ति है, भारत स्वच्छ हो सकता है, डिजिटल नहीं। डिजिटल होने के लिए उसको ‘इंडिया’ बनना ही पड़ेगा।
इस डिजिटल इंडिया के निर्माण में सरकार के साथ-साथ आईसेक्ट जैसी संस्था की महत्वपूर्ण भूमिका है।