विज्ञान


हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन के 25 वर्ष

प्रदीप कुमार

सदियों से ब्रह्माण्ड मानव को आकर्षित करता रहा है। इसी आकर्षण ने खगोल वैज्ञानिकों को ब्रह्माण्डीय प्रेक्षण और ब्रह्माण्ड अन्वेषण के लिए प्रेरित किया। रात के समय यदि हम आसमान में दिखाई देने वाले तारों का अवलोकन करते हैं, तो हमें दूरबीन के बिना भी कुछ बातें शीघ्र स्पष्ट होने लगती हैं। मगर, हम तारों के सूक्ष्म रहस्यों तथा ब्रह्माण्ड के विभिन्न पिण्डों के आकार, गति, स्थिति, आकृति इत्यादि के बारे में बिना दूरबीन की सहायता से नही जान सकतें हैं। जब महान वैज्ञानिक गैलिलियो ने हैंस लिपर्शे द्वारा दूरबीन के आविष्कार के पश्चात् स्वयं दूरबीन का पुनर्निर्माण किया और पहली बार खगोलीय अवलोकन में उपयोग किया था, उस क्षण के पश्चात् लगभग चार शताब्दियां बीत चुकी हैं। इन चार सौ वर्षों में बहुत से विशालकाय दूरबीनों का निर्माण पृथ्वी पर किया जा चुका है तथा कुछ दूरबीनें अन्तरिक्ष में स्थापित किए जा चुकें हैं, इन्हीं दूरबीनों में से एक है हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन (भ्नइइसम ैचंबम ज्मसमेबवचम)। इसका प्रमोचन स्पेस शटल डिस्कवरी द्वारा 25 अप्रैल, 1990 में किया गया। अतः अमेरिकी अन्तरिक्ष संस्था नासा (छ।ै।) तथा यूरोपीयन अन्तरिक्ष संस्था (म्ै।) वर्तमान में हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन के प्रमोचन के शानदार 25 वर्ष पूर्ण होने पर रजत जयंती मना रहा हैं। हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन विगत 25 अप्रैल, 2015 को हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन ने अपने शानदार पच्चीस वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन खगोलिकी एवं खगोलभौतिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी सिद्ध हुआ। हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन की महानतम उपलब्धियों ने उसे खगोलभौतिकी एवं खगोलकी के इतिहास में  सर्वाधिक महत्वपूर्ण दूरबीन बना दिया है। सृष्टि के आरम्भ और आयु के सबंध में खगोलीय प्रेक्षण द्वारा प्रथम परिचय हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन ने ही करवाया है। दरअसल हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन हमसे बहुत दूर स्थित अधिनव तारा विस्फोटों (ैनचमतदवअं) को देखने में समर्थ हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य हैं विभिन्न खगोलीय दूरियों का सटीक मापन करके हब्बल स्थिरांक (भ्नइइसम बवदेजंदज) का बिलकुल सटीक ऑकलन करना। आप सोच रहे होंगें कि आखिर ये हब्बल स्थिरांक क्या होता हैं? दरअसल एडविन पी. हब्बल ने 1929 में ब्रह्माण्ड के विस्तारित होने के पक्ष में प्रभावी तथा रोचक सिद्धांत रखा। हब्बल ने ही हमें बताया कि ब्रह्माण्ड में हमारी आकाशगंगा की तरह लाखों अन्य आकाशगंगाएं भी हैं। उन्होंने अपने प्रेक्षणों तथा डॉप्लर प्रभाव की सहायता से यह निष्कर्ष निकाला कि आकाशगंगाएं ब्रह्माण्ड में स्थिर नहीे हैं, जैसे-जैसे उनकी दूरी बढ़ती जाती है वैसे ही उनके दूर भागने की गति तेज़ होती जाती है। किसी आकाशगंगा के हमसे दूर जाने के मध्य का अनुपात हब्बल स्थिरांक से मिलता है। यदि हमे एक सटीक हब्बल स्थिरांक प्राप्त हो जाएगा तो हम ब्रह्माण्ड के वर्तमान, भूत तथा भविष्य को जानने में सक्षम हो जायेंगें। हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन की सहायता से खगोलज्ञों ने पृथ्वी से दूर स्थित अत्यंत प्राचीन तारों के समूह को ढूंढ़ निकाला हैं। यह तारा समूह हमसे लगभग 7000 प्रकाशवर्ष हैं। इसके बुझते जाने के रफ्तार के आधार पर वैज्ञानिको ने ब्रह्माण्ड के आयु की हालिया गणना 13 से 14 वर्ष के बीच आंकी हैं। हो सकता हैं कि भविष्य में हब्बल स्थिरांक कुछ और हों, परन्तु ब्रह्माण्ड की जीवनगाथा हब्बल स्थिरांक की कलम से ही लिखी जाने वाली है।
इसी दूरबीन ने ही हमें श्याम उर्जा का ज्ञान दिया हैं। इसकी सहायता से खगोलज्ञों ने जब 1ं प्रकार के सुदूरवर्ती अधिनवतारों का प्रेक्षण किया, जो खगोलीय दूरियों को मापने में सहायक होते हैं, तो उन्हें यह ज्ञात हुआ कि हमारा ब्रह्माण्ड न केवल विस्तारमान हैं, बल्क़ि इसके विस्तार की गति भी समय के साथ त्वरित होती जा रही हैं। श्याम उर्जा को इस त्वरण का उत्तरदायी माना जा रहा हैं। ब्रह्माण्ड का कुल 70 प्रतिशत भाग इसी ऊर्जा के रूप में हैं। दीर्घवृत्तीय आकाशगंगाओं की खोज, क्वासरों के विशिष्ट गुणों की खोज तथा वर्ष 1994 में बृहस्पति ग्रह और पुच्छल तारे ‘शूमेकर लेवी-9′ के बीच हुए टकराव का चित्रण हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन की विशिष्ट उपलब्धियों में सम्मिलित हैं। यह पहली अन्तरिक्ष दूरबीन हैं जो अल्ट्रावायलेट और इन्फ्रा-रेड के समीप कार्य करती हैं और सुग्राहकता के साथ खूबसूरत, मनमोहक एवं अद्भुत् चित्रों को लेती हैं और पृथ्वी पर भेजती है। प्रमोचन तथा दुर्लभ खगोलकी प्रेक्षण की शुरुआत हब्बल दूरबीन एक अन्तरिक्ष आधारित दूरबीन होने के नाते, इसे अन्तरिक्ष में कृत्रिम उपग्रह के रूप में स्थापित किया गया है। इस दूरबीन को अमेरिकी अन्तरिक्ष संस्था नासा ने यूरोपीयन अन्तरिक्ष संस्था के पारस्परिक सहयोग से तैयार किया था। नासा ने हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन को अंतरिक्ष में स्थापित करने के लिए लगभग ढाई अरब डॉलर ख़र्च किए थे। पहले हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन को 1983 में प्रमोचित करने की योजना बनाईं गईं थी, परन्तु कुछ तकनीकी खामियों तथा बजट में देरी के कारण इस पारस्परिक सहयोगी कार्यक्रम में सात साल की देरी हो गई। इसे 25 अप्रैल, 1990 को अमेरिकी स्पेस शटल ‘डिस्कवरी’ के उड़ान एस.टी.एस.-31 की सहायता से इसको इसकी कक्षा में स्थापित किया गया। इस अन्तरिक्ष आधारित दूरबीन को खगोलज्ञ ‘एडविन पाँवेल हब्बल’ के सम्मान में हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन का नाम दिया गया। यह दूरबीन अभी 600 किलोमीटर की ऊँचाई पर पृथ्वी के कक्षा के चक्कर काट रही हैं। पृथ्वी की एक चक्कर लगाने में इसे 100 मिनट लगते हैं। इस दूरबीन का निर्माण कार्य 1970 में ही आरम्भ हो चुका था तथा बाल्टिमोर, अमेरिका के स्पेस टेलीस्कोप साइंस इंस्टीट्यूट में हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन को पूरी तरह से विकसित किया गया। इसके निर्माण से पहलें इसके आकार-प्रकार के बारे में कहीं ज्यादा ही विशाल कल्पना की गईं थी, परन्तु अंततः यह मात्र 13ण्2 मीटर की लम्बाई और अधिकतम 4ण्2 मीटर व्यास वाली दूरबीन साबित हुई। पृथ्वी के वायुमंडल से पूर्णतया मुक्त, अन्तरिक्ष में होने के कारण यह पृथ्वी पर उपस्थित विशाल दूरबीनों जैसे- ‘साल्ट’, ‘जीण्सीण्टीण्’, ‘बीण्एलण्टीण्’ इत्यादि से कहीं अधिक महत्वपूर्ण साबित हुआ हैं। इसने खगोलकी से संबंधित कई मौलिक समस्याओं को समझने में खगोलज्ञों की सहायता की है। दिलचस्प बात यह है कि इसके द्वारा प्राप्त आकड़ों के आधार पर 3000 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए जा चुके हैं। हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन में 2ण्4 मीटर (94ण्5 इंच) के दर्पण का उपयोग किया गया हैं। इसका भार 11ए110 किलोग्राम है। यह प्रतिदिन पृथ्वी पर 12 से 15 गीगाबाइट आंकड़े भेजती है, जोकि एक विशाल डाटा है। अन्तरिक्ष में सर्विसिंग हब्बल दूरबीन प्रथम ऐसी अन्तरिक्ष दूरबीन है जिसे अन्तरिक्ष में रिपेयर (सर्विसिंग) किया जा सकता है। वर्ष 1990 में इसे प्रमोचित करने के पश्चात् वैज्ञानिको ने पाया कि इसके मुख्य दर्पण में कुछ खामी रह गई है, जिससे वह पूरी क्षमता के साथ कार्य नही कर पा रही है। अतः दिसंबर 1993 को वैज्ञानिकों की एक टीम भेजी गई तथा उन्होंने मुख्य दर्पण को रिपेयर कर दिया। इसके बाद क्रमशः चार बार इसकी सर्विसिंग की जा चुकी हैं-फरवरी 1997, दिसंबर 1999, फरवरी 2002 और सबसे ताजा रिपेयरिंग मई 2009 में की गई। वर्ष 2009 के सर्विसिंग के अभियान में वैज्ञानिकों ने इसके उष्मा कवच और निर्देशक सेंसर को बदला। इसमें स्पेक्ट्रोग्राफ, इमेजर, बैटरीज और गाइरोस्कोप इत्यादि उपकरण लगाए गए। जब इसको प्रमोचित किया गया था, तब इसकी आयु 10 वर्ष आंकी गईं थी। मतलब 2010 तक इसको कार्य करना चाहिए था, परन्तु इसके नियमित रिपेयरिंग और सर्विसिंग के कारण यह प्रथम ऐसी अन्तरिक्ष दूरबीन बन गई है जिसने इतने लम्बे समय तक कार्य किया है तथा 2009 के रिपेयरिंग के बाद आशा है कि 2020 तक कार्य करता रहेगा। वर्ल्ड वाइड टेलिस्कोप (ूवतसकूपकमजमसमेबवचमण्वतह) नामक वेबसाइट पर जाकर आप सीधे हब्बल अन्तरिक्ष दूरबीन से अन्तरिक्ष का लाइव व्यू देख सकते हैं। आप चाहें तो इसके एप्लीकेशन को अपने कम्प्यूटर पर डाउनलोड भी कर सकते हैं।

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