ऊँटनी का दूध क्षय रोग में उपयोगी
डॉ.डी.डी.ओझा
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशु पालन का एक विषेष स्थान है। देष के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 9.0 प्रतिषत है और इसके द्वारा करीब 8.0 प्रतिशत मजदूरों को रोजगार प्राप्त होता है। देश के उत्तरी-पष्चिमी शुष्क व अर्द्धषुष्क क्षेत्रों के छोटे तथा सीमान्त कास्तकारों एवं कस्बों में ऊँटो का सामान ढोने, खेतीबाड़ी इत्यादि मे विषेष महत्व है। भारत में ऊँटो की संख्या करीब 7 लाख है जो कि ज्यादातर राजस्थान, हरियाणा, गुजरात व पंजाब में पाये जाते है। संसार की ऊँटों की कुल जनसख्ंया का 60.0 प्रतिशत भाग पूर्वी अफ्रीका के देषों में पाया जाता है। यहाँ ऊँटनियों से औसतन प्रतिदिन 3.0-5.0 कि.ग्रा. दूध प्राप्त होता है और ऊँटनी का दूध शहरों में भी बेचा जाता है। विगत वर्षो के आँकड़ों के अनुसार भारत का वार्षिक दूध-उत्पादन 74 मिलियन टन है जो अन्य देषों की तुलना में सबसे ज्यादा है फिर भी तुलनात्मक आधार पर देखा जाये तो यह दुनिया के औसत उत्पादन व क्षमता से कम है। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में अनुसंधान द्वारा देखा गया है कि सामान्य पोषण पर एक ऊँटनी का औसत दूध उत्पादन 4.5 कि.ग्रा. प्रतिदिन है। अगर टोडिया/टोरडी दूध से अलग नही किया जाता है तो दुग्ध काल 12.14 महीने तक रहता है जो कि अन्य पशुओं की तुलना में ज्यादा है। दूध उत्पादन पशु की नस्ल, पोषण और दुग्ध कालीन अवस्था पर निर्भर करता है। अध्ययन से पता चला है कि दुग्धकाल के पहले पांच से छः माह में दूध उत्पादन में वृद्धि होती है और इसके बाद धीरे-धीरे कम होने लगता है। हमारे यहाँ ऊँटनी के दूध का उपयोग गाँवों में केवल ऊँटो से जुड़े तबके (रायका/रैबारी जाति) के लोगों द्वारा किया जाता रहा है। ऊँटनी के एक कि.ग्रा. दूध मे 670 से 700 कि. कैलोरी ऊर्जा होती है। इन क्षेत्रों में ऊँटों के अन्य उपयोग के साथ-साथ प्रति व्यक्ति दूध की मांग पूरी करने में भी महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
पोषण की दृष्टि से दूध में पाये जाने वाले रासायनिक पदार्थो को हम निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बाँट सकते हैः-
- शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाले पोषक पदार्थ- जैसे वसा व शर्करा।
- वृद्धिकारक तथा कोषिकाओं व तन्तुओं का निर्माण करने वाले पोषक पदार्थ- जैसे प्रोटीन तथा खनिज पदार्थ।
- शरीर की विभित्र रासायनिक व जैविक क्रियाओं के संचालन में सहायक पदार्थ- जैसे विटामिन्स।
देखने में यह पतला, सफेद रंग का होता है। दूध का स्वाद साधारणतया चारे की किस्म व उपलब्धता पर निर्भर करता है। चारे मे अगर लवणों की मात्रा अधिक हो तो दूध का स्वाद थोड़ा नमकीन या चरका भी हो सकता है। दूध की अम्लता लगभग 0.16-0.17 प्रतिषत और आपेक्षिक घनत्व 01.026-1.028 होता है। ऊँटनी के दूध में ज्यादा अम्लता होने का कारण अन्य पशुओं की तुलना में विटामिन-सी की मात्रा का अधिक होना है।
संघटक=गुण, देखने में=पतला, रंग=सफेद, स्वाद=हल्का चरका/नमकीन, सुवास=असामान्य, अम्लता=0.16.0.17, आपेक्षिक घनत्व=01.026.1.028, वर्तनंाक=1.319, क्वथनांक=2120 सेन्टीग्रेड, आपेक्षिक उष्मा=0.94
दूध में पानी की सामान्य मात्रा 86ण्0 प्रतिषत के लगभग होती है। लेकिन ऊँटनी को पानी न मिले तो मात्रा 91.0 प्रतिषत तक हो जाती है जिससे शुष्क क्षेत्रों के टोडिया/टोरडी में दूध पीने से पानी की कमी भी दूर होती है। ऊँटनी के दूध का पी.एच. गाय के दूध से कम होता है। सामान्यतया ऊँटनी के दूध में वसा की मात्रा 2.49 से 3.10 प्रतिषत होती है। जोकि गाय के दूध की मात्रा से कम है। वसा की मात्रा सुबह के दूध में शाम के दूध की अपेक्षा कम होती है। वसा दूध में छोटी-छोटी असंख्य गोलिकाओं के रूप में पाई जाती है। इन गोलिकाओं का आकार गाय के दूध में पाई जाने वाली गोलिकाओं से कम होने के कारण ऊँटनी के दूध से दही, घी आदि बनाने में कठिनाई आती है। वसा में व्यूटिरिक अम्ल की मात्रा गाय के दूध से कम होती है। दूध की मुख्य शर्करा को लेक्टोज कहते है। ऊँटनी के दूध में इसकी मात्रा 4.2 से 5.0 प्रतिषत तक होती है। दूध तथा किण्वित किये गये दूध पदार्थो में लेक्टोज का विषेष महत्व है। लेक्टोज की उपस्थिति के कारण दूध तथा दूध से बने पदार्थो की पोषकता काफी बढ़ जाती है। प्रोटीन शरीर में कोषिकाओ का निर्माण करती है इसलिए शाकाहारियों के लिए तो दूध प्रोटीन का विषेष महत्व है। दूध में मुख्यतः तीन प्रकार की प्रोटीन्स पाई जाती हैः केसीन, लेक्टएलब्युमिन तथा लैक्टोग्लोब्युलिन। दूध की मुख्य प्रोटीन केसीन है क्योंकि कुल प्रोटीन का 76 से 78 प्रतिषत भाग केसीन का होता है। ऊँटनी के दूध में केसीन की मात्रा 0.90 से 3.00 प्रतिषत तक होती है। इस प्रकार दूध में प्रोटीन की सामान्य मात्रा 3.78 से 3.90 प्रतिषत तक पाई जाती है। ऊँटनी के दूध में पाई जाने वाली केसीन प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है।
ऊँटनी के दूध में प्रोटीन की मात्रा गाय के दूध के लगभग समान होती है। ऊँटनी के दूध में अमीनों अम्लों की मात्रा अन्य पशुओं से भिन्न है। एलैनीन, हिस्टीडीन की मात्रा गाय के दूध में ज्यादा है। एस्पारटिक और ग्लूटेमिक अम्ल की मात्रा अन्य पशुओं के समान ही है। आइसोल्युसीन और ल्युसीन की मात्रा अधिक है। दूध में लेक्टएलब्युमिन तथा लेक्टोग्लोब्युलिन घुलनषील अवस्था में पाई जाती हैं इनको सीरम प्रोटीन्स कहते हैं। ऊँटनी के दूध में सीरम प्रोटीन्स की मात्रा 0.7 से 1.0 प्रतिषत तक होती है। गाय के दूध में इनकी मात्रा 0.50 से 0.65 प्रतिशत तक होती है। ऊपर लिखित सघंटको की मात्रा पशु की दुग्ध कालीन अवस्था पर निर्भर करती है। दूध का रासायनिक सघंटन निम्न दर्षाया गया है:
पी.एच = 6.38-6.58, वसा=2.49-3.10, प्रोटीन=3.78-3.87, केसीन=2.90-3.01, भस्म=0.82-0.85 वसा विहीन पदार्थ = 7.36-8.22, कुल ठोस पदार्थ = 9.85-011.32
ऊँटनी के दूध में सभी प्रकार के विटामिन्स पाये जाते हैं और इनकी मात्रा पोषण पर निर्भर करती है। दूध में उपस्थित विटामिन्स को दो भागों में विभाजित किया जा सकता हैः-
- वसा विलेय विटामिन्स- ए, डी, ई, एवं के।
- जल विलेय विटामिन्स - विटामिन्स बी और विटामिन सी।
विटामिनों का पोषण में विषेष महत्च है तथा जीवन के अनेक प्रक्रमों के उचित रूप मे से संचालन में अति आवष्यक है। इनकी कमी से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते है। ऊँटनी के दूध में थायमिन (बी1), राइबोफ्लेविन (बी2), बी6, बी12, नियासिन, पेन्टोथेनिक एसिड, विटामिन ”ई“ व विटामिन ”ए“ की मात्रा क्रमषः 0.03, 0.04, 0.05, 0.0002, 0.46, 0.09, 0.27 व 0.03 मि.ग्रा. प्रतिषत तक होती है। नियासिन व विटामिन ”ई“ की मात्रा गाय के दूध से अधिक मात्रा में पाई जाती है। गाय के दूध में इनकी मात्रा क्रमषः 0.08 व 0.1 मि.ग्रा. प्रतिषत होती है। अनुसंधान से ज्ञात हुआ है कि ऊँटनी के एक कि.ग्रा. दूध में 40-50 मि.ग्रा. विटामिन ”सी“ पाया जाता है। जो कि अन्य पशुओं की तुलना में काफी अधिक है। मनुष्य विटामिन ”सी“ को संश्रेषित नही कर सकता है और इसकी कमी से बहुत से रोग पैदा हो सकते है। ऊँटनी के दूध के लगातार उपयोग द्वारा विटामिन ”सी“ की कमी को दूर किया जा सकता है। दूध के लवणों को प्रमुख एवं गौण लवणों में विभाजित किया जाता है। प्रमुख लवणों की मात्रा गौण लवणों की मात्रा से अधिक होती है।
प्रमुख खनिज पदार्थ - सोडियम, पोटेषियम, मैग्नीषियम फास्फेट, क्लोराइडस, सिटेªटस आदि। गौण खनिज पदार्थ - जस्ता, लोहा, ताँबा, मैग्नीज, कोबाल्ट आदि।
दूध में उपस्थित खनिज पदार्थो का पोषण में बड़ा महत्व है। ये तत्च दाँत तथा हड्डी के निर्माण में सहायक होते है। मृदा मे पाये जाने वाले सभी खनिज तत्व अधिकांषतः दूध में भी पाये जाते हैः क्योंकि मृदा पर पैदा होने वाले चारे को ऊँटनी खाकर इन तत्वों को प्राप्त करती है तदन्तर ये तत्व दूध मे स्त्रावित होते है। ऊँटनी के दूध में जस्ते और ताँबे की मात्रा गाय के दूध से अधिक होती है।
ऊँटनी व गाय के दूध का तुलनात्मक विवरण
ऊँटनी व गाय के दूध में लवणों की मात्रा (मि.ग्रा. प्रति 100 मि.ली.):
तत्व ऊँटनी गाय
सोडियम 38.0 - 68.0 35.0 - 60.0
पोटेषियम 50.0 - 90.0 135.0 - 155.0
मैगीषियम 11.88 - 13.59 10.0 - 15.0
फास्फोरस 41.72 - 47.21 75.0 - 110.0
कैल्षियम 94.10 - 97.43 100.0 - 140.0
लोहा 0.32 - 0.36 0.30 - 0.65
जस्ता 1.2- 6.3 1.0 - 3.0
कोबाल्ट बहुत कम बहुत कम
मैग्ंनीज 0.02 - 2.0 0.01 - 0.03
तँाबा 0.09 - 0.5 0.03 - 0.17
दूध की खाद्य महत्ता का अधिकतम उपयोग उस समय होता है जब इससे दुग्ध पदार्थ बन सकें। जैसाकि सभी को ज्ञात है कि गाय व भैंस के दूध से क्रीम, मक्खन, घी, दहीं, पनीर, छेना, मावा, दुग्ध, चूर्ण, आइसक्रीम आदि बनते हैं, लेकिन ऊँटनी के दूध से इन पदार्थो को बनाने में कठिनाई आती है इसका मुख्य कारण दूध में वसा गोलिकाओं के आकार का छोटा होना है। ऊँटनी के दूध से घी और पनीर बनाया जाता है लेकिन इसको बनाने की अलग विधि है। कीनिया में दुग्ध चूर्ण भी बनाया जाता है। ऊँटनी के दूध से जो मक्खन बनता है वह सुवासरहित होता है और इसका उपयोग कुछ देषों में सौन्दर्य प्रसाधनों को बनाने के काम में लिया जाता हैं। ईरान में ऊँटनी के दूध से कई प्रकार के पेय पदार्थ भी बनाये जाते है। अभी तक भारत में ऊँटनी के दूध को लोग सिर्फ पीने एवं चाय, कॉफी और खीर बनाने के काम में लेते है। दूध से अन्य पदार्थ भी बनाये जा सकते हैं और इस दिषा में अनुसंधान कार्य चल रहा है।
ऊँटनी के दूध का विभिन्न रोगों में उपयोग
ऊँटनी का दूध केवल पोषण की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि उपलब्ध आकड़ो के अनुसार भारत व अन्य देषों में इसका उपयोग कई बीमारियों में बहुत लाभप्रद पाया गया है। जहाँगीर बादशाह (1579-1627 ए.डी.) ने भी अपनी बीमारी के दौरान ऊँटनी के दूध का सेवन करने के बाद अपने आप को तन्दरूस्त पाया था। ऊँटनी का दूध पीलिया, यकृत, पेट का अलसर, मधुमेह और बवासीर इत्यादि बीमारियों में उपयोगी बताया गया है। ऊँटनी के दूध की विभिन्न रोगों में उपयोगिता को देखते हुए राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर ने सरदार पटेल चिकित्सा महाविद्यालय के क्षय व छाती रोग विभाग के साथ मिलकर तीन प्रकार के क्षय रोगियों पर अलग-अलग अनुसंधान किया:
- बिना उपचार फेफड़ों के क्षय रोगी (अनट्रीटड़ पलमोनरी टी.बी.)
- फेफड़ों में मवाद पड़े हुए क्षय रोगी (ऐमपाइमा)
- दीर्ध कालीन फेफड़ों के क्षय रोगी (करोनिक पलमोनरी टी.बी.)
पहले, दूसरे व तीसरे प्रकार के क्षय रोग में ऊँटनी का दूध पीने वाले रोगियों की संख्या क्रमषः चार, सात व छः और गाय का दूध पीने वालों की संख्या प्रत्येक प्रकार में चार थी। पहले ग्रुप के रोगियों को सामान्य उपचार के साथ-साथ ही ऊँटनी का एक कि.ग्रा. कच्चा दूध दिन में तीन बार पिलाया गया तथा दूसरे गु्रप के रोगियों को उन्ही दवाईयों के साथ-साथ गाय का एक कि.ग्रा. दूध अस्पताल द्वारा वितरित किया गया। यह अनुसंधान प्रत्येक प्रकार के रोगियों पर तीन-2 महीने के लिए किया गया । प्रयोग के शुरूआत में प्रत्येक रोगी के बाहा्र बीमारियों के लक्षण (कलीनिकल), जीवाणु सम्बन्धी जाँच (बैक्टीरियोलोजिकल), एक्सरे, रूधिर परीक्षण (हीमैटोलोजीकल) व जैव रासायनिक (बायोकैमीकल) परीक्षण किये गये। यह सभी परीक्षण प्रयोग के पहले दिन व प्रत्येक महीने के अन्तराल के बाद तीन महीने तक किये गये। प्रत्येक रोगी का पन्द्रह दिन के अन्तराल पर शरीर भार लिया गया।
बाह्म बीमारी के लक्षणों में निम्न बातें देखी गईः- खाँसी, खाँसी के साथ खून आना, साँस की तकलीफ, छाती में दर्द, ज्वर और भूख की मात्रा। जीवाणु परीक्षण में क्षय रोग के लिए थूक की जाँच और प्रतिदिन मवाद की मात्रा आँकी गई। रूधिर परीक्षण में हीमोग्लोबीन की मात्रा, लाल रूधिर कणों के बैठने की दर, श्वेत रूधिर कोषिकाओं की संख्या और श्वेत रूधिर कणों की तुलनात्मक गणना की गई। जैव-रासायनिक परीक्षणों में किण्वक लैक्टेट डीहाड्रोजीनेज, प्रोटीन, ऐलब्यूमिन, मैग्नीशियम और जस्ते (जिंक) की मात्रा का अध्ययन किया गया।
- तीन माह के अन्तराल के बाद पहले प्रकार के रोगियों में बाह्म लक्षण सामान्य पाये गये लेकिन भूख में बढौतरी सिर्फ उन्हीं रोगियों में हुई जिनको ऊँटनी का दूध दिया गया था। रूधिर में इन्हीं रोगियों में हीमोग्लोबीन की मात्रा में पहले से गुणात्मक सुधार देखा गया। अनुसंधान के बाद लाल रूधिर कणों के बैठने की दर में 77.21 प्रतिषत और गाय का दूध पीने वाले रोगियों में सिर्फ 56.33 प्रतिषत कमी पाई गई। ऊँटनी का दूध पीने वालों में कुल श्वेत रूधिर कोषिकाओं की सख्ंया में 53.68 प्रतिषत व गाय का दूध पीने वाले में 30.61 प्रतिषत की कमी पाई गई। जिन रोगियों को ऊँटनी का दूध दिया गया उनके एक्सरे से ज्ञात हुआ कि फेफड़ों के घावों में भी सुधार हो रहा है। ऊँटनी का दूध पीने वाले रोगियों के खून में जस्ते की मात्रा में भी वृद्वि हुई और भार में करीब 14.0 प्रतिषत की वृद्वि पाई गई ।
- इन रोगियों में अनुसंधान के बाद देखा गया कि शुरू में जिन रोगियों में 150.200 मि.ली. प्रतिदिन मवाद निकलता था, वह बिलकुल खत्म हो गया लेकिन गाय का दूध पीने वाले रोगियों में मवाद का बनना खत्म नही हुआ। ऊँटनी का दूध पीने वाले रोगियों में हीमोग्लोबीन की मात्रा में 20ण्43 प्रतिषत की वृद्वि हुई। लाल रूधिर कणों के बैठने की दर 63.75 प्रतिषत व कुल श्वेत रूधिर कोषिकाओं की संख्या में 47.24 प्रतिषत की कमी पाई गयी। लेकिन गाय का दूध पीने वाले रोगियों में ऐसा नही हुआ। श्वेत रूधिर कणों की तुलनात्मक गणना में न्यूट्रोफिल की संख्या में ऊँटनी के दूध पीने वाले रोगियो में कमी पाई गयी और खून में जस्ते की मात्रा और भार में 6.48 प्रतिषत की वृद्वि आँकी गई ।
- ऊँटनी का दूध पीने वाले रोगियों में भूख और हीमोग्लोबीन की मात्रा में वृद्वि पाई गई। लाल रूधिर कणों के बैठने की दर और श्वेत रूधिर कोषिकाओं की संख्या में कमी पाई गई।
इस प्रकार यह देखने में आया है कि ऊँटनी का दूध पोषण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है साथ ही क्षय रोगियों पर किये गये अनुसंधान से पता लगता है कि ऊँटनी का दूध इस रोग में अधिक लाभप्रद है। ऊँटनी के दूध में अन्य पशुओं की अपेक्षा ज्यादा मात्रा में जस्ता पाया जाता है जोकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। उपलब्ध तथ्यों के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि ऊँटनी के दूध में लाइसोजाइम किण्वक की मात्रा बहुत ज्यादा होती है जो कि क्षय जीवाणुओं की वृद्वि रोकने में सहायक है। इस दिषा में अभी आगे अनुसंधान जारी है। सक्षेंप में यह कहा जा सकता है कि ऊँटनी के दूध में सभी पोषक तत्व विद्यमान है और यह क्षय रोग की रोकथाम में भी सहायक है। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, जोरबीड़ (बीकानेर) के वैज्ञानिकों ने ऊँटनी के दूध उत्पादों की उपादेयता पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की शोध द्वारा देष का नाम उजागर किया है।
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