एक फिल्म में ज़िन्दा होते डायनासोर
डॉ. जगदीप सक्सेना
कभी उम्मीद नहीं थी कि बदसूरत और भय्ाानक दिखने वाले डाइनोसौर भी फैशन में आ जाएंगे। पर हॉलीवुड की बात ही निराली है। कोई छः करोड़ डालर की लागत से बनी एक हालीवुड फिल्म जुरैसिक पार्क ने इस अनहोनी को भी सच कर दिखाय्ाा है। ‘जॉस’ और ‘ई.टी.’ जैसी जगप्रसिद्ध फिल्मों के कल्पनाशील निर्देशक स्टीवेन स्पीलबर्ग की इस फिल्म ने आज दुनिय्ााभर में तहलका मचा रखा है। लोग डाइनोसौर के दीवाने हो गए हैं। जहाँ-जहाँ फिल्म रिलीज होती है, वहां-वहां लोग ‘डाइनोमेनिय्ाा’ के शिकार हो जाते हैं। विदेशी बाजारों में ‘डाइनो’ और ‘जुरैसिक’ के नाम से तरह-तरह की चीजें बिकने लगी हैं स्वादिष्ट डिशों से लेकर जींस और टी-शर्ट तक। कहते हैं अब तक इस तरह की कोई हजार चीजें बाजारों में आ गई हैं।
‘जुरैसिक पार्क’ हॉलीवुड में बनी आज की सबसे सनसनीखेज फिल्म है। कारण फिर इसमें कोई साढ़े सात करोड़ साल पहले धरती पर विचरने वाले भय्ाानक डाइनोसौरों को सड़कों पर आतंक मचाते दिखाय्ाा गय्ाा है। बिलकुल असली लगने वाले डाइनोसौर जब पर्दे पर फुंफकारते हैं तो बदन में झ्ाुरझ्ाुरी सी दौड़ जाती है। स्पीलबर्ग ने जिस डाइनोसौर को मुख्य्ा भूमिका में उतारा है, उसका वैज्ञानिक नाम है ‘टाइपरैनोरेस रैक्स’ पर आज य्ाह दुनिय्ााभर में ‘टीरैक्ट’ के नाम से मशहूर हो गय्ाा है।
‘टीरैक्ट’ एक बेहद भय्ाानक और मांसाहारी डाइनोसौर था। इसकी लंबाई पचास फुट के आस-पास थी। जबड़े मजबूत और दांत रेजर की तरह तेज थे। इसके आठ इंच लंबे दांत शिकार की हड्डी तक को चीर-फाड़ डालते थे। इसके भारी-भरकम पंजों से शिकार का छूट पाना लगभग नामुमकिन था। कुदरत ने टीरैक्ट के शरीर की रचना इस तरह से की थी कि य्ो हमेशा शिकार के पीछे फुर्ती से भाग सके। इसलिए इसका सिर बड़ा रखा गय्ाा था और हाथ छोटे। पर य्ो छोटे हाथ कमजोर नहीं थे। छह सौ पौंड तक का भार एक झ्ाटके में उठा सकते थे। य्ो अपने से छोटे अन्य्ा प्राणिय्ाों के अलावा छोटे डाइनोसौरों का भी शिकार करते थे।
सिर्फ टीरैक्ट की करतूतों के आधार पर डाइनोसौर की पूरी बिरादरी को बदनाम करना ठीक नहीं होगा। बहुत से डाइनोसौर सीधे-सादे और शाकाहारी भी थे। दरअसल डाइनोसौर का नामकरण ही गलत हुआ है। हुआ य्ाह कि सन् 1825 में पहली बार एक विशाल प्राणी का कंकाल मिला। इससे सिर्फ य्ाह पता चल रहा था कि य्ाह सरीसृप वर्ग का कोई प्राणी है। सन् 1842 में अंग्रेज वैज्ञानिक सर रिचर्ड ओवेन ने इसे नाम दिय्ाा ‘डाइनोसौर’। य्ाह य्ाूनानी भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है ‘डीनोस’ और ‘सौकोस’। इन दोनों का सम्मिलित अर्थ है ‘भय्ाानक छिपकलिय्ाां’। पहले डाइनोसौर को खास वैज्ञानिक नाम दिय्ाा गय्ाा इगुआनोडोन। बाद में हुई खोजों से पता चला कि इगुआनोडोन विशुद्ध शाकाहारी प्राणी थे। पर अपनी तीस फुटी लंबाई और चार टन के भार के कारण य्ो भय्ाानक दिखते थे। इनका जन्म कोई साढ़े चौदह करोड़ साल पहले हुआ था।
‘इगुआनोडोन’ को सबसे पहले खोजा जरूर गय्ाा था पर य्ो धरती पर जन्म लेने वाले पहले डाइनोसौर नहीं थे। सन् 1991 में सबसे पहला डाइनोसौर खोजा गय्ाा। नाक से लेकर दुम के छोर तक इसकी लंबाई सिर्फ 102 सेंटीमीटर थी। इस हिसाब से इसका भार लगभग ग्य्ाारह किलोग्राम रहा होगा। इनका जन्म डाइनोसौर य्ाुग की भोर में कोई साढ़े बाईस करोड़ साल पहले हुआ था। इसीलिए इन्हें य्ाूनान की भोर की देवी ‘इय्ाोसञञ के नाम पर ‘इय्ाोरैप्टर’ का नाम दिय्ाा गय्ाा है। ‘इय्ाोरैप्टर’ की खोज से पहले ‘हेरीरासौरस’ नामक डाइनोसौर को सबसे पुराना डाइनोसौर माना जाता है। य्ाह भी छोटा ही था सिर्फ नौ फुट लंबा।
इसके बाद डाइनोसौर जैविक विकास के रास्ते में तेजी से दौड़ लिए। छोटे-बड़े, जमीन पर रहने वाले और हवा में उड़ने वाले, शाकाहारी और मांसाहारी सभी तरह के डाइनोसौर विकसित हुए। अब तक डाइनोसौर की तीन सौ से ज्य्ाादा जातिय्ाॉं खोजी जा चुकी हैं और हर साल कोई आधा दर्जन नई जातिय्ाॉं और मिल जाती हैं। य्ाह सिलसिला कब तक चलेगा कहा नहीं जा सकता। डाइनोसौरों के विकास में एक खास बात य्ाह रही कि विशाल और भय्ाानक दिखाने वाले ज्य्ाादातर डाइनोसौर शाकाहारी थे। उदाहरण के तौर पर ‘सीस्मोसौरस’ को ले सकते हैं।
एक सौ चालीस फुट लंबे इस भय्ाानक डाइनोसौर का वजन 80.90 टन रहा होगा। लेकिन इसका सिर और दांत घोड़े जैसे दिखते थे। फिर य्ाह अपनी विशाल खुराक को किस तरह चबाकर उदरस्थ करता था? हाल में वैज्ञानिकों ने य्ाह रहस्य्ा भी खोल दिय्ाा है। दरअसल सीस्मोसौरस के पेट में आलू बुखारे जितने कई सौ पत्थर पेट में खुराक को कुचलते रहते थे। य्ाानी इसके पेट में दांत थे। विशाल और शाकाहारी डाइनोसौरों ब्रांटोसौरस का नाम भी मशहूर है। इसकी लंबाई अस्सी से सौ फुट के बीच थी। सिकैटोप्स नाम का एक अन्य्ा शाकाहारी डाइनोसौर भी दिखने में काफी भय्ाानक था। इसके सिर पर एक जोड़ी सींग भी थे। य्ाह डाइनोसौर सैकड़ों के झ्ाुंड में रहता था इसी बीच मांसाहारी और छोटे डाइनोसौर भी जन्म ले चुके थे। इनमें सबसे खतरनाक डीनोनिकस नाम का डाइनोसौर था। नौ फुट लंबा और कोई तीन से पांच फुट ऊंचा य्ाह डाइनोसौर बला का फुर्तीला था। य्ाह अपने शिकार को हंसिय्ो जैसे पंजों के बीच दबाकर खत्म कर देता था।
पिछले कुछ साल में हुई खोजों ने डाइनोसौर के दिमाग और रहनµसहन पर भी काफी रोशनी डाली है। पता चला है कि, इनकी बुद्धिमत्ता आज के सरीसृप वर्ग के प्राणिय्ाों से कोई ढाई गुनी ज्य्ाादा थी। एक वैज्ञानिक ने टाइरैनोसौरस जाति के एक छोटे डाइनोसौर की खोपड़ी की कैट स्कैन जांच परख की। नतीजा निकला कि इसका दिमाग हमारी अपेक्षाओं से दुगुना बड़ा था। साथ ही इसकी देखने की क्षमता भी बहुत ज्य्ाादा थी। सूंघने के मामले में य्ाह भेड़िए को हरा सकता था।
डाइनोसौरों के अवशेष लगभग पूरी दुनिय्ाा से मिल चुके हैं। पर मेरिका में इनकी तादाद इससे ज्य्ाादा पाई गई है। हमारे देश में जिय्ाोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिय्ाा के वैज्ञानिकों ने डाइनोसौर के अंडों, हड्डिय्ाों और दातों आदि के अवशेष ढूंढे हैं। य्ो ज्य्ाादातर गुजरात, मध्य्ाप्रदेश और महाराष्ट्र से मिले हैं। अभी पिछले ही साल मध्य्ाप्रदेश के धार जिले के बाग गांव से डाइनोसौर के अंडों, हड्डिय्ाों और दांतों आदि के अवशेष ढूंढे गय्ो हैं। धूसर रंग के इन अंडों का व्य्ाास कई सेंटीमीटर है। फिल्म जुरैसिक पार्क डाइनोसौर के बारे में उपयर््ाुक्त सच्चाइय्ाां बताने की जगह दर्शकों के मन में खौफ पैदा करती है। फिल्म इतनी डरावनी है कि इसे पीजी-13 श्रेणी में रखा गय्ाा है। य्ाानी तेरह साल से कम उम्र का कोई भी बच्चा इसे अकेले नहीं देख सकता। वैज्ञानिकों की राय्ा में फिल्म का नाम ही गलत है। फिल्म में दिखाए गए डाइनोसौर जुरैसिक काल में नहीं बल्कि क्रीटेसिय्ास काल में मौजूद थे। इसलिए इसका नाम होना चाहिए ‘क्रीटेसिय्ास पार्क’ दरअसल वैज्ञानिकों ने गुजरे समय्ा को कई कालों में बांट रखा है। जुरैसिक (21 करोड़ 30 लाख से 1440 लाख साल पहले) और क्रीटेसिय्ास (14 करोड़ 40 लाख से छह करोड़ 60 लाख साल पहले) इन्हीं में से एक हैं।
सबसे ज्य्ाादा बहस फिल्म के वैज्ञानिक आधार को लेकर छिड़ी है। फिल्म का निर्माण माइकेल क्रिचटन द्वारा इसी नाम से लिखे गय्ो उपन्य्ाास के आधार पर किय्ाा गय्ाा है। क्रिचटन खुद हार्वड मेडिकल स्कूल के स्नातक हैं। उनके उपन्य्ाास का आधार है डाय्ानोसौर काल के एंबर में दबे मच्छर के खून से डाय्ानोसौर का डी.एन.ए. अलग किय्ाा गय्ाा और फिर इससे डानोसौर विकसित किए गए। वैज्ञानिक इस तकनीक को ‘क्लोनिंग’ कहते हैं। चूहों और सुअरों में य्ाह तकनीक आंशिक रूप से आजमाय्ाी जा चुकी है। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि अगले तीस वर्षों में डाइनोसौर के डी.एन.ए. से डाइनोसौर विकसित करना संभव होगा। पर मच्छर के खून में डाइनोसौर के डी.एन.ए. का मिलना एक बहुत दूर की कौड़ी है। कोई डेढ़ साल पहले कैलिफोर्निय्ाा य्ाूनिवखसटी के वैज्ञानिक डाय्ानोसौर के काल के कीड़े से डी.एन.ए. प्राप्त कर चुके हैं। पर य्ाह कीड़े का ही है, डाइनोसौर का नहीं।
कैलिफोखनय्ाा में आनुवांशिक सूक्ष्म जीव विज्ञान के विशेषज्ञ रसेल हिगूची ने वहां पत्र्ा लिखकर जुरासिक पार्क के वैज्ञानिक आधार की खूब भर्त्सना की है। उनका मानना है कि इस फिल्म में डी.एन.ए. पर हो रही खोजों को बेहद बढ़ा-चढ़ा कर और खौफनाक ढंग से प्रदर्षित किय्ाा गय्ाा है। इससे लोगों के मन में विज्ञान की इस नई तकनीक के प्रति डर पैदा होगा। इस फिल्म से उन लोगों को बल मिलेगा जो एक लंबे अर्से से जीन पर हो रही खोजों पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। पर माइकेल क्रिचटन इन सारे विवादों पर आश्चयर््ाचकित हैं। वह कहते हैं, ‘‘मैंने एक विज्ञान कथा लिखी है। न जाने क्य्ाों वैज्ञानिकों ने इसे इतनी गंभीरता से ले लिय्ाा है। य्ाह कल्पना अगर खौफनाक न होती तो शाय्ाद इतना बावेला न मचता।’’
अमेरिका की डाइनोसौर सोसाय्ाटी के अध्य्ाक्ष ने भी जुरासिक पार्क की कुछ वैज्ञानिक गलतिय्ाों की ओर इशारा किय्ाा है। मसलन फिल्म में डाइनोसौर को बहुत तेजी से दौड़ते दिखाय्ाा गय्ाा है। पर वैज्ञानिकों की राय्ा में डाइनोसौर अच्छे धावक नहीं थे। इसी तरह फिल्म में डाइनोसौर को पंजे से दरवाजा खोलते देखकर वैज्ञानिक हैरत में पड़ गए हैं। दुनिय्ाा में दरवाजों का अस्तित्व डाइनोसौर के करोड़ों साल बाद आय्ाा। इसलिए य्ाह महज एक रोमांचकारी अटकल है। फिल्म के कुछ दृश्य्ा में डाइनोसौर अपने शिकार की आंखों में थूककर उन्हें अंधा कर देता है। वैज्ञानिकों को डाइनोसौर की इस अनोखी क्षमता के बारे में कुछ पता नहीं है।
दरअसल इन सारे दृश्य्ाों से सत्य्ा का कोई लेना-देना नहीं है। इन्हें फिल्म में महज रोमांच पैदा करने के लिए डाला गय्ाा है। वैसे भी स्पीलबर्ग ने कोई वैज्ञानिक फिल्म बनाने का दावा नहीं किय्ाा है। करोड़ों की लागत से बनी फिल्म को बॉक्स आफिस पर हिट करने के लिए ऐसा करना जरूरी हो जाता है। इसलिए फिल्म देखते समय्ा इसकी वैज्ञानिक खामिय्ाों पर नहीं, बल्कि तकनीकी कमालों पर ध्य्ाान दीजिए। आपको जरूर मजा आएगा।
आमधारणा है कि कोई साढ़े छह करोड़ साल पहले धरती से एकाएक सारे डाइनोसौर कूच कर गए। इस तथाकथित कूच य्ाा लुप्त होने के कई वैज्ञानिक कारण भी बताए गए हैं। पर पिछले कुछ वर्षों में जैविक विकास के एक नए रास्ते पर चल पड़े और पक्षिय्ाों को जन्म दिय्ाा। इसलिए मशहूर स्मिथसोनिय्ान संस्थान के वैज्ञानिक ब्रैट सुरमैन कहते हैं कि डाइनोसौर आज भी आकाश में उड़ते हुए हमें घूरते हैं।
डाइनोसौर के लुप्त होने के कारण बताए गए हैं। बहुत पहले कुछ वैज्ञानिकों की राय्ा थी कि धरती पर एकाएक कोई घातक वाय्ारस पनपा, जिसने डाइनोसौर को निशाना बनाय्ाा और इन्हें समूल नष्ट कर दिय्ाा। य्ाह कल्पना ठीक वैसी ही है, जैसे एड्स के वाय्ारस पर हम काबू न कर सकें और धीरे-धीरे पूरी मानव जाति ही लुप्त हो जाए। बाद में कुछ वैज्ञानिकों ने कहा कि डाइनोसौर धरती पर धीरे-धीरे होने वाले भौगोलिक तथा मौसमी बदलावों को बर्दाश्त नहीं कर सके। इसलिए सदा के लिए विलुप्त हो गए। आज य्ो दोनों ही कारण वैज्ञानिकों द्वारा नकार दिए गए हैं।
डाइनोसौर के लुप्त होने का सबसे मान्य्ा सिद्धांत कहता है कि इनकी मौत अंतरिक्ष से आई। साढ़े छह करोड़ साल पहले धरती से एक विशाल धूमकेतू य्ाा क्षुद्रग्रह टकराय्ाा। इसकी इतनी धूल-मिट्टी हवा में घुल गई कि महीनों के लिए धरती पर अंधेरा छा गय्ाा। सूरज की किरणें पेड़-पौधों तक न पहुंच सकीं। नतीजतन य्ो भोजन नहीं बना सके और मर गए। हरिय्ााली से पेट भरने वाले अनेक डाइनोसौर और कुछ प्राणिय्ाों ने भूख से तड़प-तड़प कर जान दे दी। शिकारी डाइनोसौर के शिकार के लिए कुछ बाकी न रहा। इस तरह से धीरे-धीरे य्ो काल के ग्रास बन गए।
य्ाह कहानी विश्वसनीय्ा तो लगती ही है, हाल में इसके कई वैज्ञानिकों ने सबूत भी जुटा लिए गए हैं। सबसे पहली बात तो य्ाह है कि धूमकेतु का धरती से टकराना एक वैज्ञानिक सच्चाई है। कुछ करोड़ सालों के अंतराल पर बराबर ऐसा होता रहा है और पूरी उम्मीद है कि आगे भी होता रहेगा। दर असल धरती पर डाइनोसौर का जन्म भी एक ठीक ऐसी ही प्राकृतिक आपदा के बाद हुआ था। कोई इक्कीस करोड़ साल पहले धरती से एक विशाल धूमकेतु टकराय्ाा और इसने उसी तरह प्राणिय्ाों को मरने पर मजबूर किय्ाा जैसा पहले बताय्ाा गय्ाा है। इससे सभी बड़े प्राणी मर गए और छोटे प्राणी बचे रहे। इसी समय्ा कुदरत ने मौका देखकर एक छोटे से डाइनोसौर को जन्म दिय्ाा। बाद में इसी के क्रमिक विकास से विशाल डाइनोसौर का उदय्ा हुआ इस घटना के सबूत के रूप में वैज्ञानिक कनाडा में धरती पर बना एक साठ मील चौड़ा विशाल गड्डा दिखाते हैं। कहते हैं य्ाह गड्डा धूमकेतु के टकराने से ही बना था। इस ऐतिहासिक तथ्य्ा के अलावा सन् 2216 में धरती से एक विशाल धूमकेतु के टकराने की ताजा वैज्ञानिक गणनाओं ने भी इस मान्य्ाता को पुख्ता बनाय्ाा है।
जो वैज्ञानिक इक्कीस करोड़ साल पहले की इस घटना को नहीं मानते उनकी राय्ा में धरती के अलगµअलग महाद्वीपों के रूप में बंटने और सरकने के कारण ऐसा हुआ। इक्कीस करोड़ साल पहले पूरी धरती एक थी। इसे आज पैनाजिय्ाा कहा जाता है। जमीन के भीतर हुई हलचलों के कारण इसके कुछ टुकड़े हुए जो धीरे-धीरे एक दूसरे से दूर सरकने लगे। इस दौरान अनेक ज्वालामुखी विस्फोट हुए पर्वतों ने सिर उठाय्ाा और जगह-जगह सागर ठाठें मारने लगे। ऐसे में स्वाभाविक रूप से धरती की जलवाय्ाु ने भय्ाानक पलटा खाय्ाा और प्राणिय्ाों का सामूहिक विनाश हुआ।
हाल में साढ़े छह करोड़ साल पहले की धूमकेतु दुर्घटना के कुछ पक्के रासाय्ानिक सबूत भी मिले हैं। एक रासाय्ानिक तत्व है इरीडिय्ाम। धरती पर इसकी बेहद अल्प मात्र्ाा मौजूद है, पर धूमकेतुओं और क्षुद्र ग्रहों पर इसकी भरमार होती है। भूवैज्ञानिक बताते हैं कि धरती के भीतर की साढ़े छह करोड़ साल पुरानी चट्टानों में इरीडिय्ाम बहुताय्ात में मौजूद है। जाहिर है य्ाह धूमकेतु की देन है। हाल में वैज्ञानिकों ने वह गढ्ढा भी ढूंढ लिय्ाा है, जो धूमकेतु के टकराने से बना था। य्ाह मैक्सिको में जमीन के भीतर दबा मिला इसका व्य्ाास एक सौ दस मील है।
कुछ वैज्ञानिक य्ाह नहीं मानते कि डाइनोसौरों ने भूख के मारे दम तोड़ दिय्ाा। उनकी राय्ा में धरती से धूमकेतु टकराय्ाा, पर डाइनोसौर की मौत धरती पर एकाएक ठंड छाने के कारण हुई। ठंडे खून वाले प्राणी होने के कारण डाइनोसौर ठंडक नहीं बर्दाश्त कर सके और चल बसे। वैज्ञानिक भाषा में ठंडे खून वाले प्राणी वे हैं जिनके शरीर का तापमान वातावरण के तापमान के हिसाब से बदलता रहता है। इसके विपरीत गर्म खून वाले प्राणिय्ाों के शरीर में ऐसी कुदरती व्य्ावस्था होती है कि इनके शरीर का तापमान हमेशा एक-सा बना रहता है। सरीसृप (सांप वगैरह) और उभय्ाचर (मेंढक वगैरह) वर्ग के प्राणिय्ाों का खून ठंडा होता है, जबकि स्तनधारी प्राणी व पक्षी गर्म खून के प्राणी हैं।
हाल में वैज्ञानिकों का एक वर्ग भी उभरा है जो डाइनोसौर के लुप्त होने के विवाद को निरर्थक और बेतुका मानता है। उनकी राय्ा में डाइनोसौर लुप्त हुए ही नहीं। उन्होंने तो सिर्फ बदली हुई भौगोलिक और मौसमी दशाओं के हिसाब से अपने जैविक विकास का रास्ता बदल दिय्ाा। ताजा खोजें बताती हैं कि उस समय्ा डाइनोसौर की लगभग तीन सौ जातिय्ाां मौजूद थीं। धूमकेतु के टकराने से इनमें से लगभग दर्जन भर जातिय्ाां सदा के लिए सो गई। इन जातिय्ाों के डाइनोसौर विशाल और शाकाहारी थे। उस समय्ा डाइनोसौर की कई जातिय्ााँ पक्षिय्ाों की तरह हवा में उड़ती थीं। इनका बाल भी बांका नहीं हुआ। इसी तरह धरती पर कूदनेµफांदने वाले छोटे मांसाहारी डाइनोसौरों ने भी बुरे दिनों में अपनी जिंदगी काट ली और लुप्त होने से बच गए। पर य्ाह बात उनकी समझ्ा में जरूर आ गई कि अब इस तरह ज्य्ाादा समय्ा तक काम नहीं चलेगा। सो वे पक्षिय्ाों के रूप में विकसित हो गए।
आजकल य्ाह भी माना जा रहा है कि डाइनोसौर के पक्षिय्ाों के रूप में विकसित होने और धूमकेतु दुर्घटना के बीच कोई सीधा रिश्ता नहीं है। डाइनोसौर ने विकास की य्ाह पगडंडी दुर्घटना से कोई तीन करोड़ साल पहले ही पकड़ ली थी। हाल में दक्षिण कोरिय्ाा में उस समय्ा के पक्षिय्ाों के अवशेष भी मिले हैं। य्ाानी लाखों सालों तक पक्षी और डाइनोसौर ठीक उसी तरह साथ-साथ रहते रहे जैसे कभी य्ाूरोप में हम और नीय्ोनडर्थल मानव रहते थे। हां, इतनी बात मानी जा सकती है कि जब परिस्थितिय्ाां बदलीं तो डाइनोसौरों के विकास की रफ्तार बहुत तेज हो गई। सच तो य्ाह है कि डाइनोसौर अपने जन्म के समय्ा से ही बेहद विकासशील प्राणी रहे हैं। धरती पर कोई साढ़े सोलह करोड़ साल की य्ाात्र्ाा के दौरान य्ो समय्ा-समय्ा पर अनेक रूपों में प्रकट हुए। जन्म के समय्ा इनकी लंबाई मात्र्ा एक सौ दो सेंटीमीटर थी। धीरे-धीरे इनका आकार बढ़ा और इन्होंने एक सौ चालीस फुट तक की लंबाई पा ली। इसी बीच हवा में उड़ने वाले कुछ डाइनोसौर भी विकसित हुए। पक्षी डाइनोसौर की विकास य्ाात्र्ाा का आखिरी पड़ाव है। कृपय्ाा डाइनोसौरों को लुप्त मत मानिए।
(‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ जुलाई-अगस्त 2002)