विज्ञान


दूरियाँ हुई दूर मगर कितनी?

प्रो. यशपाल

वर्ल्ड वाईड वेब की सबसे प्रमुख विशेषता य्ाह है कि य्ाह अलग-अलग भाषाओं व बोलिय्ाों वाले व्य्ाक्तिय्ाों को आपसी सम्पर्क की सुविधा प्रदान करता है। वे जानकारिय्ाों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। वेब में सभी व्य्ाक्तिय्ाों को समान दर्जा प्राप्त है कोई भी श्रेष्ठ य्ाा सर्वोत्तम नहीं है। य्ाहाँ सभी को विचार व्य्ाक्त करने की स्वतंत्र्ाता प्राप्त है, किसी भी प्रकार का सांस्कृतिक भेदभाव नहीं है वेब स्वय्ां ही एक सार्वभौम संस्कृति है।
हालांकि संभवतः हम अभी ऐसी स्थिति तक नहीं पहुँच पाय्ो हैं जहाँ कि ऊपर लिखी समस्त बातें सत्य्ा हों लेकिन उपरोक्त स्थिति तक बहुत जल्दी ही पहुँचने की संभावना है। आज जिस व्य्ाक्ति का हम सम्मान कर रहे हैं उसने तकनीकी आविष्कार से कहीं बहुत बड़ा काम किय्ाा है। उसके आविष्कार ने एक बहुत बड़ी सामाजिक क्रांति को जन्म दिय्ाा है। लोग अक्सर उसके इस य्ाोगदान को भूल जाते हैं। जिन लोगों ने ूमंअपदह जीम ूमइ किताब नहीं पढ़ी है, उन्हें अतिशीघ्र इस पुस्तक को पढ़ डालना चाहिय्ो। मेरी राय्ा में समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र तथा मानविकी विषय्ा के छात्र्ाों के लिय्ो इस पुस्तक को पढ़ना अनिवायर््ा होना चाहिय्ो।
इस व्य्ाक्ति की उपलब्धिय्ाों को भली प्रकार न तो वैज्ञानिक ही समझ्ा पाय्ो हैं न ही बिजनेसमेन। आज मैं ‘टिम’ की उपलब्धिय्ाों व य्ाोगदान के पीछे कायर््ारत शक्ति के संबंध में कुछ कहूँगा। मैंने अपनी जिन्दगी तथा विज्ञान एवं तकनीक के अनुभवों से य्ाह सीखा है कि ज्ञान को सामाजिक विकास के लिय्ो उपय्ाोगी होना आवश्य्ाक है। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि जिन्दगी में हम बहुत दूर तक नहीं चल पाय्ोंगे य्ादि हम भेदभाव रहित समानान्तर, सामाजिक नेटवर्क की विश्व व्य्ाापी स्थापना नहीं कर पाय्ोंगे।
लगभग 25 वर्ष पूर्व जब मैं पार्टिकल फिजिक्स तथा हाई एनर्जी एस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र्ा में ब्म्त्छ में कायर््ा कर रहा था उसी समय्ा टिम भी वहाँ पर वेब के महत्वपूर्ण अंगों के बारे में सोचने तथा उन्हें अमली जामा पहनाने में व्य्ास्त थे। भारत जैसे देश में जहाँ कि आधारभूत सुविधाओं का अभाव है, वहाँ दूर-दराज के क्षेत्र्ाों में रहने वाले लोगों से सम्पर्क स्थापित करने व जानकारिय्ााँ पहुंचाने में अंतरिक्ष विज्ञान की खोजों व प्रसारण व्य्ावस्था से मैं पहले से ही अभिभूत रहा हूँ। मुझ्ो लगता है कि वेब तकनीक हमारे जैसे देशों को ध्य्ाान में रखते हुए ही विकसित की गई और इसी बात ने, अहमदाबाद में स्थापित हो रहे स्पेस एप्लीकेशन सेंटर, जो कि उपग्रह संचार को उपय्ाोग करते हुए पहला बड़ा सामाजिक तकनीकी प्रय्ाोग था, से जुड़ने के लिय्ो मुझ्ो प्रेरित किय्ाा। इसका उद्देश्य्ा भारत के दूरदराज के हजारों गाँवों में, सीधे टी.वी. प्रसारण के द्वारा पहुंचना था। य्ाह कुछ उस समय्ा की बात है जबकि हमारे देश में दूरदर्शन का प्रसारण मात्र्ा कुछ ही घंटों के लिय्ो मुम्बई व दिल्ली तक सीमित था। इस प्रय्ाोग के पीछे तकनीकविदों, सामाजिक विज्ञानिय्ाों, संचार विशेषज्ञों की हजारों मानव वर्ष की मेहनत तथा नासा का उपग्रह ।ज्ै.6 शामिल थे। हालाँकि इस प्रय्ाोग से भारत में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं आय्ाा लेकिन य्ाह इससे प्रत्य्ाक्ष य्ाा अप्रत्य्ाक्ष रूप से जुड़े अनेक लोगों की जीवन शैली में परिवर्तन लाने में सफल रहा है। इस प्रय्ाोग के दौरान भारत भर में फैले हजारों गांवों से सम्पर्क के जरिय्ो हमने बहुत सारी बातें जानीं। दूरी की बाधा से निजात पाना जहाँ इसकी एक प्रमुख उपलब्धि थी वहीं विविधताओं से परिपूर्ण इस देश में समस्य्ााओं से निजात पाना तथा समस्त व्य्ाक्तिय्ाों तक अपनी आवाज पहुंचाना य्ाा उनकी आवाज बन पाना एक चुनौती थी। अंतरिक्ष संचार, आधुनिक य्ाुग की एक महत्वपूर्ण देन है तथा इसका उपय्ाोग व्य्ााख्य्ाान देने, सिद्धांतों का प्रदर्शन करने व विज्ञापनों के क्षेत्र्ा में प्रभावी रूप से किय्ाा जा सकता है। इसका उपय्ाोग कर बहुत सारी जानकारी जन सामान्य्ा तक पहुंचाई जा सकती है लेकिन सही प्रकार की शैक्षणिक व विकासात्मक गतिविधिय्ाों को इसके द्वारा संचालित करने के लिय्ो एक बेहतर संवाद व्य्ावस्था व भागीदारी की जरूरत होती है। दूसरी तरफ य्ाह भी सच है कि लोगों को संचार माध्य्ामों द्वारा आपस में न जोड़ने पर उनके पिछड़ने व विश्व की मुख्य्ा धारा से अलग-थलग पड़ जाने की संभावना है। जरूरत इन्हीं जटिल समस्य्ााओं के हल ढूंढने की है।
मैं एक बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि एक छोटे समूह में मनुष्य्ाों के मेल-जोल से उनके व्य्ाक्तित्व के अनेक बेहतर पक्ष उभर कर आते हैं। क्रिस्टल व रत्नों का विकास भी स्थानीय्ा कम क्षमतावान बलों की गतिविधिय्ाों द्वारा ही होता है। य्ाही बात प्राकृतिक रूप से उपलब्ध तत्वों व अणुओं के संदर्भ में भी लागू होती है। सब बातों को छोड़िय्ो और जीवन के लघुतम अणु डीएनए की स्थिति के बारे में थोड़ा सोचिय्ो। भाषा, मनोरंजन, संगीत, प्लास्टिक निर्मित सुंदर कला, भवन शैली य्ाहाँ तक कि विज्ञान भी आज वहाँ नहीं पहुंच सकता था, य्ादि लोगों ने आपस में बैठकर उसके बारे में बातचीत न की होती। ऐसा नहीं है कि य्ाह बात सिर्फ प्राचीन काल के लिय्ो ही लागू होती है। आज जिन शैक्षणिक केन्द्रों को महान कहा जाता है वे सिर्फ इसलिय्ो महान बने हैं क्य्ाोंकि मनुष्य्ाों ने उनके बारे में चर्चा की है। कोलंबिय्ाा, एमआईटी, हावर्ड, आदि इसके उदाहरण हैं और लोग इनमें आना चाहते हैं। हालॉकि आज इन संस्थानों के विशेषज्ञों द्वारा लिखित पुस्तकें व पेपर, छपे रूप में य्ाा इंटरनेट पर व पुस्तकालय्ाों में उपलब्ध हैं और इनकी प्रसिद्धि में अपना य्ाोगदान दे रहे हैं लेकिन मनुष्य्ाों द्वारा आपस में की गई प्रशंसा इनकी प्रसिद्धि का आज भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक है। मेरे देश में सदिय्ाों से य्ाह माना जाता रहा है कि किताबों व व्य्ााख्य्ाान दे देने मात्र्ा से ज्ञान वांछित व्य्ाक्ति तक नहीं पहुंच सकता है। इसके लिय्ो शिक्षक व छात्र्ा के मध्य्ा पारस्परिक संबंध व तालमेल होना आवश्य्ाक है। हमारे य्ाहाँ य्ाह परम्परा प्राचीनकाल से ही ‘गुरु-शिष्य्ा परंपरा’ के नाम से चली आ रही है।
टिम की तरह ही मैं भी इस बात को मानता हूँ कि प्रतिभाशाली मनुष्य्ा पूरे विश्व में हर क्षेत्र्ा में मौजूद हैं। लेकिन य्ाह भी सत्य्ा है कि नय्ो ज्ञान व नय्ाी चीजों के निर्माण में बहुत बड़ी संख्य्ाा में व्य्ाक्तिय्ाों की सहभागिता संभव नहीं है। इसीलिय्ो आज हम ऐसे विश्व में निवास करते हैं जहाँ कुछ लोग नई दिशा में कायर््ा करते हैं और शेष व्य्ाक्ति उसी दिशा में चलते हैं। कुछ व्य्ाक्ति ऐसे भी हैं जो य्ाह मानते हैं कि उन्हें अपनी सोच के आधार पर विश्व में सृजन का अधिकार प्राप्त है। य्ाह स्थिति पूरे विश्व में विद्यमान है। चाहे वह देशों के मध्य्ा हो, उत्तर व दक्षिण के बीच हो, य्ाहाँ तक कि य्ाही सोच, विभिन्न जाति, धर्म, रंग, महिला, पुरुषों तथा देशों के शहरों में मौजूद है।
मैंने अपनी पुस्तक में भी जिक्र किय्ाा है साथ ही मेरा य्ाह भी मानना है कि वेब की मूल भावना ऐसी होना चाहिय्ो जिससे कि विश्व इस सीमित सोच से मुक्त हो सके। य्ादि वेब ऐसा हो सका तो पूरे विश्व का भला होगा। ऐसा करके हम नय्ाी दिशाओं में विभिन्न प्रकार के अनुसंधान व खोज को बढ़ावा देंगे साथ ही भिन्न-भिन्न वातावरण में उपलब्ध ज्ञान की गहराई को समझ्ा पाय्ोंगे तथा उनका लाभ उठा सकेंगे। इसके साथ ही पूरे विश्व में एक वैचारिक परिवर्तन भी आय्ोगा, जिससे कि सद्भावना, समानता से परिपूर्ण एक सार्वभौम विश्व का निर्माण होगा, जैसा कि हम चाहते हैं। मैं वर्तमान में अपने इस विचार को विस्तार दे रहा हूँ। अब मैं थोड़ा पीछे चलता हूँ। मेरा ऐसा मानना है और शाय्ाद आप भी इस बात से सहमत होंगे कि एक सीमित दाय्ारे में, सीमित व्य्ाक्तिय्ाों से सम्पर्क य्ाा निकटता बनाना मनुष्य्ा के नैसर्गिक स्वभाव का एक हिस्सा है। मैं एक बार फिर से अपनी बात दोहराना चाहूँगा कि आपसी सम्पर्क य्ाा निकटता ही मानवता के गुणों का विकास करती है। बिना आपसी सम्पर्क के हमारे बीच कोई प्य्ाार नहीं होगा, कोई कला नहीं होगी, बधाईय्ााँ देने के मौके नहीं होंगे, कोई त्य्ाोहार नहीं होंगे, समारोह नहीं होंगे, तात्पयर््ा य्ाह कि संभवतः कुछ नहीं होगा।
विशिष्ट सामाजिक वातावरण के अंतर्गत प्रचलित पौराणिक कथाओं, कल्पित कहानिय्ाों तथा सामाजिक उत्थान के परिणाम स्वरूप व्य्ाक्तिय्ाों के मध्य्ा आपसी सम्पर्क व निकटता में वृद्धि हुई है। इस परम्परा को हमें बनाय्ो रखना है। हमें अपने निकटस्थ व्य्ाक्तिय्ाों की देखभाल करने के लिय्ो ही बनाय्ाा गय्ाा है। हम अपने लोगों के बीच अपने आपको अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं। य्ाही तत्व हमें परिभाषित करता है तथा सामाजिक रूप से ‘हम’ की सीमा रेखा तय्ा करता है। इसी ‘हम’ के द्वारा हम अपने राष्ट्र, धर्म, भाषा, परम्परा जैसे शब्दों को परिभाषित कर पाते हैं। मानव समाज के लिय्ो कुछ कर गुजरने व उनकी बेहतरी की तमन्ना ने ही महान व्य्ाक्तिय्ाों, राष्ट्रभक्तों, राष्ट्रनेताओं, विजेताओं, अत्य्ााचारिय्ाों, तानाशाहों व आजकल के आतंकवादिय्ाों को जन्म दिय्ाा है। वर्तमान में हम अनेकों बंधनों में बंधे हुए हैं और हमें अपनी तरक्की के नय्ो रास्तों को इस सदी में खोजना है। मैं बहुत ही छोटी समय्ा सीमा में एक अलग प्रकार का क्रांतिकारी कायर््ा सम्पन्न करना चाहता हूँ। वो इसलिय्ो क्य्ाोंकि समस्य्ााएं बढ़ गई हैं और इनके निदान के लिय्ो गहमा-गहमी भी जारी है। जबकि कुछ समय्ा पहले तक ऐसी स्थिति नहीं थी।
मारकोनी जन्मशती के समय्ा, मारकोनी फाउन्डेशन द्वारा मारकोनी फैलो हेतु एक सेमीनार का आय्ाोजन किय्ाा गय्ाा था। उस समय्ा भी मैंने मॉरकोनी के सपनों, जो कि रेडिय्ाो के जन्म के 100 वर्षों बाद भी पूरे नहीं हो पाय्ो हैं, के बारे में दुख प्रकट किय्ाा था। मैंने उस समय्ा भी जिक्र किय्ाा था कि पिछले 100 वर्षों में हमने य्ाुद्ध व गृह य्ाुद्धों में लगभग बुद्ध व ईसा मसीह के समय्ा विश्व की जनसंख्य्ाा के बराबर मनुष्य्ाों को परलोक पहुँचा दिय्ाा है। मेरे कई मित्र्ाों को मेरे अनुमान के बारे में अविश्वास होता है कि इतने कम लोग हिंसा में मारे गय्ो हैं।
अंतरिक्ष य्ाुग के आगमन के उपरांत भी, जैसी मुझ्ो व मेरे जैसे लोगों को उम्मीद व आशा थी, वैसा सहिष्णु, एक दूसरे के लिय्ो आदर व प्य्ाार से परिपूर्ण ब्रम्हांड कहीं नजर नहीं आता है। फ्रेड हॉय्ाल, रविन्द्र नाथ टैगोर, टिस्लोक्वास्की तथा अनेक अन्य्ा व्य्ाक्तिय्ाों ने इस बात को कहा है कि मनुष्य्ा ने अब बाह्य अंतरिक्ष से हमारी इस खूबसूरत दुनिय्ाा को देख लिय्ाा है तथा उन्होंने हमारी एकाकी मिलनसारिता को भी देख लिय्ाा है। भविष्य्ा में कुछ नय्ाापन आ सकता है। ”समाज में खुलेपन का विचार आ सकता है। एक दूसरे पर निर्भरता का स्थान स्वय्ांसिद्धि ले सकती है तथा मनुष्य्ा केवल अपने घर तक केन्द्रित हो सकता है। संचार व्य्ावस्था के फैलाव के कारण समाज में कुछ ऐसा ही प्रभाव आने की संभावना है।
लेकिन हो बिल्कुल ही उल्टा रहा है। जिस गति से संचार के साधनों का विकास हो रहा है उसी गति से वर्ग संघर्ष व धार्मिक उन्माद विश्व में बढ़ता ही जा रहा है। हम य्ो जानते हैं कि अस्थाई प्रकार के अद्भुत विचार हमें हमारी मूल जैविक उत्तेजना जिसने कि ‘हमें’ दूसरों से अलग पहचान रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, से दूर नहीं ले जा पाते हैं। अनेक उत्तेजनाएं मानव द्वारा अपनी पहचान को अलग दिखाने की चाहत के कारण जन्मती हैं। उनके पीछे गहरी सोच का अभाव होता है। जैसे कि किसी भी वस्तु के पैकेट पर अंकित नाम व पैकेट का रंग ही हमें बाहर से दिखाई देता है, अंदर की वस्तु को बाहर से हम देख नहीं पाते हैं। इन्हीं बाहरी दिखावों और आडम्बरों ने मनुष्य्ा को नई राह दिखाने वाले व्य्ाक्तिय्ाों का दुश्मन बना दिय्ाा है। कोला, टूथपेस्ट तथा अन्य्ा उत्पादों के विभिन्न ब्रांडों को बेचने के लिय्ो जिन तकनीकों का उपय्ाोग किय्ाा जाता है वे उत्पाद विशेष के लिय्ो कुछ राष्ट्रभक्त प्रकार के व कुछ आतंकवादी प्रकार के व्य्ाक्ति निर्मित कर देती है। कभी-कभी सर्वाधिक सामाजिक प्राणी, मनुष्य्ा भी मानवता का दृष्टिकोण छोड़, अति घृणित कायर््ाों में संलग्न हो जाता है। मैं इस प्रकार के पूरे विश्व के कितने ही उदाहरण गिना सकता हूँ, मेरा देश भी इससे अछूता नहीं है।
एक और निराशाजनक तथ्य्ा है। पिछले 100 वर्षों में विश्व के बारे में हमारी समझ्ा में काफी ईजाफा हुआ है तथा हमने बहुत कुछ जाना व समझ्ाा है। य्ाह एक चमत्कार की तरह लगता है। मानसिक प्रसन्नता व बौद्धिक आनंद ने हमारे अंदर य्ाह अहसास भर दिय्ाा है कि हम मानव इतिहास के एक महत्वपूर्ण दौर के साक्षी हैं। वर्तमान में पूरा विश्व, ग्रह, तारे, नक्षत्र्ा, सूयर््ा य्ाा कहें तो पूरे ब्रह्मांड के रहस्य्ाों को लगभग खोजा जा चुका है। हम जीवन की अद्भुत घटनाओं को तथा उस भाषा को पूरी तरह समझ्ा गय्ो हैं जिसमें कि इन विविधताओं व गाथाओं को लिखा गय्ाा है। प्रौद्योगिकी की हर छलाँग हमारे रहनµसहन, संवाद व जीवन पद्धति को परिवर्तित कर देती है। अनगिनत करिश्मे हो चुके हैं तथा वे आगे भी होते रहेंगे। हम ऐसे समाज के निर्माण में लगे हैं जो कि कौशल से परिपूर्ण हों तथा जिसमें कायर््ा करने की गति, प्रकाश की गति के समान हो। लेकिन हमारी मनःस्थिति आज भी पहले जैसी ही है। हम आज भी बचपन में सिखाय्ो गय्ो ‘स्वय्ां’ व ‘दूसरे’ के सिद्धांत से निय्ांत्र्ाित होते हैं। हमारा मस्तिष्क 4 बिलिय्ान वर्षों के विभिन्न दौरों, घटनाओं व अवस्थाओं से गुजर कर, परिष्कृत हो वर्तमान अवस्था में आय्ाा है।
हालाँकि य्ादि हम अपने इतिहास को गौर से देखें तो हमें अपने वर्ग, क्षेत्र्ा व धर्म के आधार पर किय्ो गय्ो मूर्खतापूर्ण कृत्य्ाों का अहसास भी होता है। जबकि मेरा य्ाह मानना है कि हजारों वर्ष पूर्व जब विभिन्न धर्मों का उदय्ा हुआ था, तब इस प्रकार के अज्ञानता भरे कृत्य्ाों के लिय्ो कोई स्थान नहीं था। आज पुराने सिद्धांतवादी तत्व हमारे बचपन से दूर हो गय्ो हैं। हमारे मानवीय्ा मूल्य्ाों में बेहतरी लाने व आपसी समझ्ा बढ़ाने के लिय्ो इस परिस्थिति को बदलने की आवश्य्ाकता है तभी हम पुराने मंदिर व मस्जिदों के फेर में पड़कर एक दूसरे के खून के प्य्ाासे होना बंद करेंगे।
अब मैं इस अंतहीन बहस के मुद्दे से हटकर अपने मूल प्रश्न अर्थात् एक सार्वभौम विषय्ा की संरचना की आवश्य्ाकता पर आता हूँ। मैं इसकी आवश्य्ाकता सिद्ध करने पर अधिक समय्ा लगाना नहीं चाहता। वर्तमान सभ्य्ाता का इसके बिना भविष्य्ा ही नहीं है। समाज में आ रहे वैचारिक परिवर्तन के इस दौर में इस प्रकार की एक व्य्ाापक संरचना अति आवश्य्ाक है। हो सकता है कि हमारी वर्तमान स्थिति को और बेहतर बनाने के लिय्ो कुछ नय्ो आविष्कार भी हमें करने पड़े। मैं य्ाह भी मानता हूँ कि विश्व के समस्त मनुष्य्ा बराबरी से पूर्णता को प्राप्त कर लें, य्ाह संभव नहीं है। सार्वभौमिकता का पूर्णता य्ाा बराबरी से सीधा संबंध नहीं है। न ही इसमें किसी प्रकार का धर्मार्थ सम्मिलित है। य्ाहाँ खुद के हितों को भली प्रकार समझ्ाना व विकास की इच्छाशक्ति सर्वोपरि है। इसके संबंध में मेरा सूत्र्ा, मैं कुछ इस प्रकार से दुनिय्ाा के सम्मुख प्रस्तुत करता हूँ।
छव पदकपअपकनंसए छव भ्नउंद ब्वससमबजपअपजलए छव ब्वनदजतलए छव च्तवमिेेपवदंसए छव ब्वतचवतंजपवदए प्दकममक छव वदम ैींससए ठम व्दसलए वत इम डंकम पदजव वदसल  ं बवदेनउमत
भारत के स्वतंत्र्ाता आंदोलन को करीब से देखने के कारण मैंने इससे बहुत कुछ सीखा है। हमारे सबसे बड़े नेता थे मोहनदास करमचंद गाँधी। वे पूरे देश की नब्ज पहचानते थे। पूरा देश उनके दिखाए मार्ग पर चलता था। वे आज के दौर की तरह के राजनैतिक नेता नहीं थे। हालांकि बहुत सारे नौजवान उनकी अनेक बातों से सहमत नहीं थे लेकिन वे भी इस बात को स्वीकारते हैं कि महात्मा गाँधी देश के लिय्ो सिर्फ स्वतंत्र्ाता नहीं चाहते थे वरन वे जन्म भूमि से प्य्ाार करने वाले व्य्ाक्तिय्ाों के लिय्ो आजादी चाहते थे। इसी के साथ-साथ वे हम पर शासन कर रहे व्य्ाक्तिय्ाों की उन्नति के भी समर्थक थे। वे एक धार्मिक व्य्ाक्ति थे लेकिन उन्होंने जो भी कायर््ा किय्ो वे किसी धार्मिक नेता की तरह नहीं किय्ो। जब कभी भी उन्होंने धर्म की बात की, सिर्फ एक धर्म की बात नहीं की। उन्होंने हर प्रकार के विचारों को ग्रहण किय्ाा। उनका मूल उद्देश्य्ा देश के लोगों को आजादी दिलाना व एक ऐसे समाज की स्थापना करना था जो कि सार्वभौम विश्व के निर्माण की दिशा में पथ प्रदर्शक का कायर््ा कर सके। मुझ्ो ऐसा भी लगता है कि उनके इस दृष्टिकोण को उनके बाद के वे नेता नहीं समझ्ा सके जिन्होंने कि भारत पर शासन किय्ाा। ऐसा शाय्ाद इसलिय्ो हुआ होगा कि इतिहास के उस दौर में उनकी गहरी किन्तु साधारण सी दिखने वाली बातों के लिय्ो स्थान नहीं था। मैं आज उनका जिक्र य्ाहाँ इसलिय्ो कर रहा हूँ क्य्ाोंकि मुझ्ो लगता है कि गाँधी समय्ा से पहले इस धरती पर आ गय्ो थे। आज उनके विचार अवश्य्ा सार्थक होते। टिम तथा आप में से अनेक लोगों ने उनके विचारों को सार्थक किय्ाा है। इसी से जुड़े कुछ और तथ्य्ा मैं य्ाहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
गाँधी जी ने ग्राम स्वराज के संबंध में विचार रखे थे। इसके अंतर्गत दूर से किसी भी प्रकार के निय्ांत्र्ाण से मुक्त व्य्ावस्था का निर्माण करना था। य्ाहाँ विचारों और कायर््ा की स्वतंत्र्ाता की व्य्ावस्था की गई थी। आप अपना रास्ता स्वय्ां चुनकर आगे बढ़ सकते थे, इस पर किसी प्रकार का दूरस्थ निय्ांत्र्ाण नहीं था। उनके विचार में नैतिक रूप से व्य्ाक्ति को सिर्फ उपभोक्ता नहीं होना चाहिय्ो। वे अधिकाधिक व्य्ाक्तिय्ाों के द्वारा उत्पादन के पक्षधर थे न कि बड़ी मशीनों द्वारा अधिक उत्पादन के। जहाँ तक ज्ञान का प्रश्न है वे इस बात को मानते थे कि आस पास के वातावरण के साथ साक्षात्कार व सामाजिक आवश्य्ाकताओं को समझ्ा कर उनकी निर्माण प्रक्रिय्ाा में सम्मिलित हो बहुत कुछ सीखा जा सकता है। इस प्रकार की शिक्षा को जब किताबी ज्ञान का सहारा मिल जाता है, तब वह व्य्ाक्ति विद्वानों की श्रेणी में आ जाता है। आज भी य्ादि ऐसी शिक्षा पद्धति को अपनाय्ाा जाता है तो उत्तम होगा। उन्हें पिछली पीढ़ी का पहला पयर््ाावरणवादी माना जा सकता है। उन्होंने कहा था कि इस धरती पर प्रत्य्ोक व्य्ाक्ति की आवश्य्ाकता के लिय्ो पयर््ााप्त संसाधन हैं लेकिन प्रत्य्ोक व्य्ाक्ति की लोलुपता पूर्ण करने के लिय्ो य्ाह नहीं है। य्ाह भी सत्य्ा है कि हम महात्मा गाँधी के प्रत्य्ोक विचार को शब्दशः नहीं ले सकते हैं लेकिन उनके बताए रास्तों पर चलने के अलावा कोई चारा भी नहीं है। य्ाह भी सत्य्ा है कि दूर से किय्ो जाने वाले निय्ांत्र्ाण से वास्तविक आजादी छिन सी जाती है। जब तक समाज में व्य्ाक्ति वस्तुओं व सेवाओं के बदले दूसरों से कुछ वस्तु व सेवा प्राप्त न करें तो वे एक प्रकार के आर्थिक व सांस्कृतिक प्रदूषण व शोषण के शिकार हो जाते हैं। बहुत सारा ज्ञान मौखिक रूप से व उंगलिय्ाों के जरिय्ो पुराने समय्ा में हम प्राप्त करते थे और आज भी कर रहे हैं। उनके समस्त विचार अहिंसा से ओतप्रोत थे। गाँधी जी के समय्ा उपलब्ध तकनीकी आकार में बहुत विशालकाय्ा थी। उन्हें आसानी से विकेन्द्रीकृत करना सम्भव नहीं था। जबकि वर्तमान समय्ा में ऐसा नहीं है। आज सॉफ्टवेय्ार व हार्डवेय्ार दोनों के ही उत्पादन को आसानी से विकेन्द्रीकृत किय्ाा जा सकता है। सूचना आसानी से प्राप्त की जा सकती है तथा प्रय्ाुक्त की जा सकती है। 
आज आपको सूचना के आदान-प्रदान हेतु उस स्थान तक जाने की जरूरत नहीं है। आप जैसे चाहें वैसे रह सकते हैं और सारी दुनिय्ाा से सम्पर्क में भी रह सकते हैं। आप आवश्य्ाकतानुसार अपनी गति तथा आपसे सम्पर्क रखने वालों की गति बदल सकते हैं। गाँधी जी का नारा ‘अधिकाधिक व्य्ाक्तिय्ाों द्वारा उत्पादन, न कि मशीनों द्वारा अधिक उत्पादन’, आज फलीभूत हो सकता है। य्ादि विश्व को एक ‘जेहाद’ चाहिय्ो तब लोगों को य्ाह समझ्ाना होगा कि य्ाही एक मात्र्ा तरीका है जो लोगों को एक रख सकता है, उनकी विभिन्नताओं को बचाकर रख सकता है तथा व्य्ाक्तिय्ाों को पूर्णता व आनंद की ओर ले जा सकता है। इन सबके लिय्ो एक सर्वोत्तम तकनीक की आवश्य्ाकता होगी। लोग अब सिर्फ मेंढक के समान अपने कुएं में नहीं रहना चाहते हैं। वे आपस में एक व्य्ावस्था के तहत शेष विश्व से जुड़े रहना चाहते हैं। इसके लिय्ो नीचे से ऊपर तक एक बड़े प्रय्ाास की जरूरत है। मुझ्ो नहीं मालूम है कि कौन इस चुनौती को अंगीकार करेगा। 
हालांकि गाँधी जी एक शताब्दी पूर्व इस धरती पर आ गय्ो थे लेकिन अब टिम और उनके मित्र्ा इसे सफल बनाय्ोंगे। अंत में संक्षेप में कहूँ तो आज विश्व के सामने जो प्रमुख चुनौतिय्ााँ हैं वे हैं जैसे-जैसे विश्व तीव्र गति से वैश्वीकरण (ग्लोबलाइजेशन) की तरफ बढ़ रहा है, वैसेµवैसे आत्मीय्ाता का ह्ास होता जा रहा है जो कि मानवता का एक महत्वपूर्ण अंग है। आत्मीय्ाता व संवेदनाओं के कारण ही संगीत, कला, भाषा, मूल्य्ाों, संस्कृति व अन्य्ा मनोरंजक प्रवृत्तिय्ाों का निर्माण हुआ है।
य्ादि इनमें से किसी पर कुठाराघात होता है तब वह पूरी मानवता पर कुठाराघात होता है। जिस तरह से हमारी शारीरिक प्रणाली के रक्षक तत्व, बीमारी के हमले के समय्ा उससे स्वतः ही मुकाबला करते हैं उसी तरह य्ादि ऊपर वर्णित तत्वों के साथ छेड़छाड़ होती है तब स्वभाविक रूप से अनेक बार उग्र प्रतिक्रिय्ाा होती है। और कभी-कभी य्ाही आतंकवाद को जन्म देता है। मेरा य्ाह भी मानना है कि आधुनिक आतंकवाद का हल सैनिक कायर््ावाही से कतई संभव नहीं है। वैश्वीकरण की प्रक्रिय्ाा के समानान्तर इसका भी फैलाव होता गय्ाा है। जैसे कि मेरे एक मित्र्ा कहते हैं कि विश्व का ‘कोला-नाइजेशन’ हो गय्ाा है। इससे विश्व में सांस्कृतिक आघात के साथ-साथ आखथक परिणाम भी परिलक्षित हुए हैं। गाँधी जी द्वारा इन सभी के बारे में पहले से ही सोच लिय्ाा गय्ाा था। अब बिना आर्थिक व सांस्कृतिक व्य्ावस्था को छेड़े हुए एक अलग प्रकार का वैश्वीकरण संभव हो गय्ाा है। वैश्वीकरण के अब नय्ो निय्ाम बनाय्ो जा सकते हैं। मनुष्य्ा अब एक साथ अलग-अलग रह सकते हैं। उन पर अपना स्वय्ां का निय्ांत्र्ाण होगा तथापि वे पूरे विश्व व ब्रह्मांड के साथ नेटवर्क में जुड़े होंगे। इसके लिय्ो तकनीक व साधन अब उपलब्ध हैं। य्ाही मेरे द्वारा चाही गई एक सार्वभौम विश्व की संकल्पना है। 
एक बात और तय्ा है वह य्ाह कि इसके लिय्ो वेब, को उन क्षेत्र्ाों में भी पहुँचाना हंोगा जहाँ वह अभी नहीं पहुँचा है। वैसे य्ादि हम कम्प्य्ाूटर आधारित वेब के साथ-साथ विभिन्नता य्ाुक्त मानव वेब निर्मित कर पाय्ों तो वह अधिक श्रेय्ास्कर होगा।

(‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ जनवरी 2005)