इलेक्ट्रॉनिकी का 250वाँ अंक
‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ के 250वें अंक के साथ-साथ आईसेक्ट की स्थापना को भी तीस साल पूरे होने जा रहे हैं।
सन् 1985-86 में जब हम कुछ मित्रों ने इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कम्प्यूटर पर केंद्रित विज्ञान लोकप्रियकरण का कार्यक्रम हाथ में लिया, तो उस समय् बी.बी.सी. माइक्रो और जेड.एक्स. स्पेक्ट्रम जैसी मशीनें ही शिक्षा के लिये उपलब्ध थीं और 64केबी/128केबी मशीनों को भी अच्छा माना जाता था। इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर तथा दूरसंचार के अभिसरण से उत्पन्न सूचना प्रौद्योगिकी जैसा शब्द अभी क्षितिज पर नहीं उभरा था। प्रोसेसिंग के लिये मिनी तथा मेनफ्रेम कम्प्यूटरो का प्रयोग किया जा रहा था और बड़े कम्प्यूटर केंद्रों की विजिट को ही शैक्षिक कार्यवाही माना जाता था। हमने सोसायटी फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्प्यूटर टेक्नॉलॉजी (सेक्ट) की स्थापना की और शालाओं में कम्प्यूटर प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किये। हमें प्रारंभ में ही समझ में आ गया था कि मध्यप्रदेश के छात्रों से हिन्दी में ही बात करनी होगी। हमने हिन्दी में कम्प्यूटर विषय पर पुस्तकें लिखना प्रारंभ किया और छात्रों को अतिरिकत जानकारी देने के लिए एक पत्रिका की योजना बनायी। इस तरह शुरू हुआ था 'इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए' का सफर' सन 1988 में।
प्रारंभ के दो वर्षों तक पत्रिका का स्वरूप त्रैमासिक था। इन प्रारंभिक अंकों के लिये राष्ट्रीय् विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद का सहयोग हमें प्राप्त हुआ। इन आरंभ के वर्षों में हमने महसूस किया कि सिर्फ सरकारी सहयोग पर निर्भर रहकर कोई पत्रिका सतत रूप से नहीं निकाली जा सकती है। दूसरे इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर और दूरसंचार जैसे विषयों पर लिखने वाले लोगों को देश में उगलियों पर गिना जा सकता था और उनमें से भी अधिकतर दिल्ली जैसे बड़े शहरों में थे और बहुत व्यस्त थे। इसलिये लेखकों को जोड़ने के साथ हमें नये लेखकों को पैदा भी करना था।
हमने अपना धैर्य बनाये रखा। पीछे हटने के बदले हमने पत्रिका को द्वैमासिक किया और उसे छात्र केंद्रित बनाने का संकल्प लिया।। 1990 के आस-पास पर्सनल कम्प्यूटर्स का भारत में आगमन शुरू हो गया था और अगला दशक सूचना प्रौद्योगिकी में हाइपर ग्रोथ का दशक सिद्ध होने वाला था। सेक्ट की शाखाये इस बीच पूरे प्रदेश में खुल रही थीं और स्कूलों में भी कम्प्यूटर प्रशिक्षण कार्यक्रम का विस्तार हो रहा था। पत्रिका को छात्र केंद्रित बनाने की हमारी रणनीति को सफलता मिली और सिर्फ छात्रों के व्यापक सहयोग से ही हम इसे अगले पांच वर्षों तक जीवित रख पाये। सदी के आखिरी दशक में सूचना प्रौद्योगिकी का अभूतपूर्व विस्तार हुआ और 1995 के आते—आते हमने पत्रिका को मासिक करने का निर्णय लिया। पिछले अट्ठाइस वर्षों से पत्रिका मासिक रूप से सतत निकल रही है। विज्ञान लेखकों और छात्रों तथा पाठकों का जुड़ाव बढ़ा है और पत्रिका की देश भर में पहचान बनी है। सबसे संतोष की बात ये है कि हमें इस बीच न तो कोई सरकारी सहयोग लेना पड़ा और न ही बाजार के दबावों के आगे झुकना पड़ा। ये हमारे पाठकों के सहयोग से ही संभव हो सका है। पत्रिका आज 30,000 प्रतियों में प्रतिमाह निकल रही है जो शायद देश की प्रमुख विज्ञान पत्रिकाओं के बराबर की प्रसार संख्या होगी। इस बीच सेक्ट ने देश के 29 राज्यों में अपना विस्तार किया है और अब आॅल इंडिया सेक्ट यानी आईसेक्ट के रूप में जानी जाती है। हमें सूचना तकनीक के क्षेत्र में कई अवॉर्ड भी प्राप्त हुये हैं जिसके चलते हमें प्रेरणा और उर्जा मिलती रही। आईसेक्ट की पुस्तकें भारत सरकार के लगभग सभी विभागों द्वारा पुरस्कृत की जा चुकी हैं। स्वाभाविक ही पत्रिका को भी इससे बल मिला है।
आज देशभर के विज्ञान लेखक पत्रिका से जुड़े हैं। गुणाकर मुळे, डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर, डॉ. मनोज पटैरिया, कालीशंकर, अवधेश कुमार श्रीवास्तव, राकेश शुक्ला, डॉ. अरविन्द मिश्र, डॉ. डी.डी. ओझा, डॉ. पी.के. मुखर्जी, डॉ. विजय कुमार उपाध्याय, डॉ. दिनेश मणि, डॉ. डी. बालसुब्रमण्यम, शुकदेव प्रसाद, डॉ. ओमप्रकाश शर्मा, शशि शुक्ला, डॉ. एन.के. तिवारी, मनोहर नोतानी, राजीव रंजन उपाध्याय, कल्पना कुलश्रेष्ठ, संगीता चतुर्वेदी, ललित कोटियाल, संतोष शुक्ला, डॉ.अनुराग सीठा, जी.डी. सूथा, डॉ. के.आर.के.मोहन, जे.कोनेटी राव, सी.एल. शर्मा, आलोक हल्दर, बृजमोहन गुप्ता, जीशान हैदर ज़ैदी, हरीश गोयल, डॉ. कृष्ण कुमार, डॉ. नकुल पराशर, प्रवीण कुमार, पंकज मौर्य, यतीन चतुर्वेदी, संजीव गुप्ता, मनीष मोहन गोरे, बालेन्दु शर्मा ‘दाधीच’, धर्मेंद्र कुमार मेहता, आभास मुखर्जी, सुभाष चंद्र लखेड़ा, संजय गोस्वामी, अभिषेक मिश्र जैसे लेखकों ने समय—समय पर लेख देकर इसकी गरिमा में वृद्धि की है। इनमें से अधिकांष लेखकों के साथ मिलकर हमने ‘अनुसृजन’ योजना पर भी काम किया जिसके अंतर्गत विज्ञान के विविध विषयों पर केन्द्रित किताबें हमने हिंदी में प्रकाषित की। इस योजना में हमने ‘अनुसृजन-एक’ और ‘अनुसृजन-दो’ में उन्नीस किताबें प्रकाषित की हैं। अनुसृजन-तीन की किताबें प्रकाशनाधीन हैं। छात्रों ने इसे एक मंच की तरह लिया है और स्थानीय शिक्षकों तथा आईसेक्ट के प्रशिक्षकों ने भी लगातार इसमें लिखना पसंद किया है।
पत्रिका के प्रचार-प्रसार के साथ ही हम आम पाठकों तक पहुँच सकें, ऐसे प्रयास कर रहे हैं। ई-पत्रिका के रूप में ‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ उपलब्ध की गई है। आप इसे हमारी वेबसाइट www.electroniki.com पर देख सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के हमारे ये प्रयास इसलिए भी जरूरी हुए कि इधर दस वर्षों में तकनीक के क्षेत्र में अभूतपूर्व बदलाव आए हैं। पिछले दस वर्षों में तकनीक इस तेजी से बदली है कि पिछले सौ वर्षों के परिदृष्य में ऐसा दृष्य नहीं उभरा। सूचना प्रौद्योगिकी अब कम्प्यूटर से आगे चलकर मोबाइल तक आ गई है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अब पूरी तरह मोबाइल पर है और मोबाइल डिवाइस के माध्यम से सारे कार्य संपादित हो रहे हैं। इस बदलाव से व्यक्ति के कार्य, कार्यक्षमता, कार्यषैली और यहाँ तक कि सोच में भी बदलाव आया है। यह बदलाव उसके गतिषील होने का प्रमाण है। हमारा प्रयास इस बदलाव को रेखांकित करने का भी रहा है।
इस तरह मैं देख पाता हूँ कि ‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ ने इन अठ्ठाइस वर्षों में कई पड़ाव तय किए। जो नई तकनीक आयीं, उन्हें ग्रहण करते हुए नए-नए स्वरूप में अंक प्रकाषित किए। प्रारंभ में डॉ.अनुराग सीठा, संतोष शुक्ला ने संपादन में मदद की, वहीं बाद के वर्षों में पुष्पा असिवाल, पूर्णिमा दुबे, अम्बरीष सोनी, जयश्री दुबे, कमलेश शर्मा, मुकेश सेन और मोहर सिंह ने इसका अधिकतर भार उठाया। वर्तमान में विनीता चौबे, वंदना श्रीवास्तव, रवीन्द्र जैन, मोहन सगोरिया, मनीष श्रीवास्तव, सोनाली शुक्ला, अमित सोनी पत्रिका के संपादकीय सुयश को उत्कर्ष प्रदान कर रहे हैं।
‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिये’ के 250वें अंक के प्रकाशन पर हम सब खुशी और गर्व महसूस कर सकते हैं। इस शुभ अवसर पर हम सभी आईसेक्ट परिवार के मित्रों, छात्रों और प्रशिक्षकों को, इलेक्ट्रॉनिकी से जुड़े लेखकों एवं व्यापक पाठक वर्ग को तथा सभी सहयोगियों को बधाई प्रेषित करते हैं, शुभकामनाये देते हैं। यह नयी उंचाईयां हासिल करने के लिये संकल्प लेने का समय भी है और नये रास्तों का प्रस्थान बिन्दु भी।
संपादक