रक्षा क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी
शशांक द्विवेदी
रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन के अनुसार यह मिसाइल सभी पैमानों पर खरा उतरी है। अस्सी फीसद से ज्यादा स्वदेशी उपकरणों से बनी इस मिसाइल ने भारत को नाभिकीय बम के साथ सुदूर लक्ष्य पर सटीक वार करने वाली अतिजटिल तकनीक का रणनीतिक रक्षा कवच दिया है। इसके जरिए भारत अपने किसी भी हमलावर को भरोसेमंद पलटवार क्षमता के साथ मुंहतोड़ जवाब दे सकता है। वास्तव में ये भारत के इतिहास की सबसे बड़ी सामरिक उपलब्धि है क्योंकि इस कामयाबी में स्वदेशी तकनीक के साथ साथ आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ते कदम की भी पुष्टि होती है ।
रक्षा क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए भारत ने अपनी सबसे ताकतवर परमाणु मिसाइल अग्नि-5 का ओडिशा के बालासोर तट से सफल परीक्षण कर लिया। अग्नि-5 का यह तीसरा सफल परीक्षण है। देश में तैयार किया गया अग्नि-5 भारत का पहला अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है, जो 5000 किलोमीटर की दूरी तक मार करने में सक्षम है। अग्नि-5 की जद में आने वाले यूरोप के कई देशों के अलावा चीन भी शामिल है।अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन के बाद भारत दुनिया का पांचवां ऐसा देश है, जिसके पास अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है। डीआरडीओ ने 4 साल में इस मिसाइल को तैयार किया जिसे बनाने में करीब 50 करोड़ रुपये की लागत आई है। इस मिसाइल का वजन 50 टन और इसकी लंबाई 17ण्5 मीटर है। यह एक टन का परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है और 20 मिनट में 5000 किमी की दूरी तय कर सकती है। अग्नि-5 दुश्मनों के सैटेलाइट नष्ट करने में भी उपयोगी है और इसके लॉचिंग सिस्टम में कैनिस्टर तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। जिस वजह से इस मिसाइल को कहीं भी बड़ी आसानी से ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है। इसे सड़क से भी लांच किया जा सकता है।
रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन के अनुसार यह मिसाइल सभी पैमानों पर खरा उतरी है। अस्सी फीसद से ज्यादा स्वदेशी उपकरणों से बनी इस मिसाइल ने भारत को नाभिकीय बम के साथ सुदूर लक्ष्य पर सटीक वार करने वाली अतिजटिल तकनीक का रणनीतिक रक्षा कवच दिया है। इसके जरिए भारत अपने किसी भी हमलावर को भरोसेमंद पलटवार क्षमता के साथ मुंहतोड़ जवाब दे सकता है। वास्तव में ये भारत के इतिहास की सबसे बड़ी सामरिक उपलब्धि है क्योंकि इस कामयाबी में स्वदेशी तकनीक के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ते कदम की भी पुष्टि होती है । अगर सकारात्मक सोच और ठोस रणनीति के साथ हम लगातार अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने की दिशा में हम कदम बढ़ाते रहे हैं तो वो दिन दूर नहीं जब हम खुद अपने नीति नियंता बन जायेंगे और हमें किसी तकनीक, हथियार और उपकरण के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल
अग्नि-5 तीन स्तरीय, पूरी तरह से ठोस ईंधन पर आधारित तथा 17ण्5 मीटर लंबी मिसाइल है जो विभिन्न तरह के उपकरणों को ले जाने में सक्षम है। इसमें मल्टीपल इंडीपेंडेंटली टार्गेटेबल रीएंट्री व्हीकल (एमआरटीआरवी) भी विकसित किया जा चुका है। यह दुनिया के कोने-कोने तक मार करने की ताकत रखता है तथा देश का पहला कैनिस्टर्ड मिसाइल है। जिससे इस मिसाइल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना सरल होगा।
अग्नि-पांच को अचूक बनाने के लिए भारत ने माइक्रो नेवीगेशन सिस्टम, कार्बन कंपोजिट मैटेरियल से लेकर कंप्यूटर व सॉफ्टवेयर तक ज्यादातर चीजें स्वदेशी तकनीक से विकसित कीं। अग्नि-5 का प्रयोग छोटे सेटेलाइट लांच करने और दुश्मनों के सेटेलाइट नष्ट करने में भी किया जा सकता है। एक बार इसे दागने के बाद रोकना मुश्किल है। इसकी रफ्तार गोली से भी ज्यादा तेज है और यह 1 टन परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है।
भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण
आज के इस तकनीकी युग में हजारों किलोमीटर दूर तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होगी क्योंकि जिस तरह से चीन एशिया में लगातार अपनी सैन्य ताकत को बढ़ा रहा है ऐसे में भारत को भी अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाते हुए उसे अत्याधुनिक तकनीक से लैस करते जाना होगा । तभी देश बदलते समय के साथ विष्व में अपनी मजबूत सैन्य उपस्थिति दर्ज करा सकेगा ।
जमीन और सीमा विवाद को लेकर जिस तरह चीन भारत को लगातार चुनौती दे रहा है और कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा देकर पकिस्तान अपने सामरिक हित पूरा कर रहा ऐसे में देश के पास लंबी दूरी की अग्नि-5 जैसी बैलेस्टिक मिसाइलों का होना बेहद जरूरी है। देश की रक्षा जरूरतों को देखते हुए अग्नि-5 का परीक्षण काफी जरूरी हो गया था क्योंकि पड़ोस में चीन के पास बैलिस्टिक मिसाइलों का अंबार लगा हुआ है जिससे एक सैन्य असंतुलन पैदा हो गया था। चीन ने दो साल पहले ही 12 हजार किलोमीटर दूर तक मार करने वाली तुंगफंग-31 ए बैलिस्टिक मिसाइलों का विकास कर लिया है। लेकिन अब अग्नि-5 के सफल परीक्षण से कोई दुश्मन देश हम पर हावी नहीं हो सकेगा ।
आत्मनिर्भरता ही एक मात्र विकल्प
अग्नि-5 की सफलता ने भारत की सामरिक प्रतिरोधक क्षमता की पुष्टि कर दी है और डीआरडीओ ने अपनी ख्याति और क्षमताओं के अनुरूप ही अग्नि-5 को आधुनिक तकनीक के साथ विकसित किया है। लेकिन देश की रक्षा प्रणाली में आत्मनिर्भरता और रक्षा जरूरतों को समय पर पूरा करने की जिम्मेदारी सिर्फ डीआरडीओ की ही नहीं होनी चाहिए बल्कि ‘आत्म निर्भरता संबंधी जिम्मेदारी’ रक्षा मंत्रालय से जुड़े सभी पक्षों की होनी चाहिए। देश में स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी को बड़े पैमाने पर विकसित करने की जरुरत है और इस दिशा में जो भी समस्याएं हैं उन्हें सरकार द्वारा अविलम्ब दूर करना होगा तभी सही मायनों में हम विकसित राष्ट्र का अपना सपना पूरा कर पायेगे । सरकार को यह महसूस करना चाहिए कि अत्याधुनिक आयातित प्रणाली भले ही बहुत अच्छी हो लेकिन कोई भी विदेशी प्रणाली लंबे समय तक अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती। सैन्य तकनीकों और हथियार उत्पादन में आत्मनिर्भरता देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत जरुरी है। इसके साथ ही भारत को हथियारों के आयात की प्रवृत्ति पर रोक लगानी चाहिए। अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी। क्योंकि भारत पिछले छह दशक के दौरान अपनी अधिकांश सुरक्षा जरूरतों की पूर्ति दूसरे देशों से हथियारों को खरीदकर कर रहा है । वर्तमान में हम अपनी सैन्य जरूरतों का सत्तर फीसदी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर आयात कर रहे हैं। रक्षा जरूरतों के लिए भारत का दूसरों पर निर्भर रहना कई मायनों में खराब है एक तो यह कि अधिकतर दूसरे देश भारत को पुरानी रक्षा प्रौद्योगिकी ही देने को राजी है, और वह भी ऐसी शर्ताे पर जिन्हें स्वाभिमानी राष्ट्र कतई स्वीकार नहीं कर सकता। वास्तव में स्वदेशी व आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है। पिछले वर्षों में सैन्य हथियारों ,उपकरणों की कीमत दोगुनी कर देने, पुराने विमान, हथियार व उपकरणों के उच्चीकरण के लिए मुंहमांगी कीमत वसूलने और सौदे में मूल प्रस्ताव से हट कर और कीमत मांगने के कई केस देश के सामने आ चुके हैं। वहीं अमेरिका “रणनीतिक रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत को भागीदार नहीं बनाना चाहता। अमेरिका भारत को हथियार व उपकरण तो दे रहा है पर उनका हमलावर इस्तेमाल न करने व कभी भी इस्तेमाल की जांच के लिए अपने प्रतिनिधि भेजने जैसी शर्मनाक शर्ते भी लगा रहा है। आयातित टेक्नॉलॉजी पर हम ब्लैकमेल का शिकार भी हो सकते है। वर्तमान हालात ऐसे हैं कि हमें बहुत मजबूती के साथ आत्मनिर्भर होने की जरूरत हैं। वर्तमान समय में भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश बनता जा रहा है। रक्षा मामले में आत्मनिर्भर बनने की तरफ मजबूती से कदम उठाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है ।
कामयाबी के साथ चुनौतियाँ भी
अग्नि-5 के सफल परीक्षण के बाद रक्षा वैज्ञानिकों को दुश्मन मिसाइल को मार गिराने वाली इंटरसेप्टर मिसाइल और मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर अधिक काम करने की जरुरत है क्योंकि अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन जैसे देश इस सिस्टम को विकसित कर चुके हैं। मिसाइल डिफेंस सिस्टम के तहत दुश्मन देश के द्वारा दागी गई मिसाइल को हवा में ही नष्ट कर दिया जाता है। इस कामयाबी के साथ ही हमारी चुनौतियाँ भी अधिक बढ़ गई हैं क्योंकि अब चीन और पाकिस्तान इसका जवाब देने के लिए हथियारों और उपकरणों की होड़ में शामिल हो जायेंगे इसलिए हमें सतर्क रहते हुए अपने रक्षा कार्यक्रमों को मजबूत करते जाना होगा। इस कामयाबी को आगे बढ़ाते हुए हमें अपनी सैन्य क्षमताओं को स्वदेशी तकनीक से अत्याधुनिक बनाना है जिससे कोई भी दुश्मन देश हमारी तरफ देखने से पहले सौ बार सोचे। अग्नि का सफरनामा अग्नि प्रक्षेपास्त्र अंतरमहाद्विपीय दूरी तक मार करने में सक्षम प्रक्षेपास्त्रों का समूह है। जो भारत के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम द्वारा स्वदेशी तकनीक से विकसित की गईं हैं। भारत 2008 तक इस प्रक्षेपास्त्र (मिसाइल) समूह के तीन संस्करण प्रक्षेपास्त्र तैनात कर चुका है।
अग्नि का सफर
अग्नि सीरीज की मिसाइलों का विकास 1983 में डॉ. अब्दुल कलाम की अगुवाई में एकीकृत मिसाइल विकास कार्यक्रम के तहत शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम को सफलता के मुकाम तक पहुंचाने के लिए डॉ. कलाम को मिसाइल पुरुष की संज्ञा भी दी गई थी। भारत ने 1983 से मिसाइलों के विकास का अपना महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किया था और आज भारत के पास अग्नि-1 (700 किमी.), अग्नि-2 (2000 किमी.) और अग्नि-3 (3500 किमी.),अग्नि.4 (4000 किमी.), अग्नि-5 (5000 किमी.) वाली बैलिस्टिक मिसाइलों के अलावा ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल और पृथ्वी की 150 से 350 किमी. दूर तक मार करने वाली कई मिसाइल मौजूद हैं। अग्नि.5 मिसाइल की खासियत यह है कि इस पर एक साथ कम से कम तीन मिसाइलों का तैनात होना। यानी एक रॉकेट पर तीन मिसाइलें एक साथ छोड़ी जा सकेंगी, जो दुश्मन के इलाके में एक साथ तीन अलग-अलग ठिकानों को तबाह कर सकेंगी। इस तरह की तकनीक वाली मिसाइल को एमआईआरवी (मल्टिपल इंडिपेंडेंट टारगेटेबेल रीएंट्री वेहिकल) मिसाइल यानी कई विस्फोटक सिरों वाली मिसाइल कहते हैं। अग्नि सीरीज की पहली मिसाइल अग्नि-1 का पहला परीक्षण 1989 में हुआ था। तब अमेरिका और यूरोपीय देशों ने भारत के इस मिसाइल कार्यक्रम पर घोर चिंता जाहिर की थी और भारत पर कई तरह के तकनीक सप्लाई प्रतिबंध लगाने की कोशिशें भी की थीं। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए ऐसी सभी टेक्नॉलॉजी रोक दी गई जिनका इस्तेमाल मिसाइलों के उत्पादन में किया जा सकता था। लेकिन बीते 10 साल में भारत की ताकत अग्नि-1 मिसाइल से अब अग्नि 5 मिसाइल तक पहुंची है। 2002 में सफल परीक्षण की रेखा पार करने वाली अग्नि-1 मिसाइल- मध्यम रेंज की बैलिस्टिक मिसाइल थी। इसकी मारक क्षमता 700 किलोमीटर थी और इससे 1000 किलो तक के परमाणु हथियार ढोए जा सकते थे। फिर आई अग्नि-2, अग्नि-3 और अग्नि-4 मिसाइलें। ये तीनों इंटरमीडिएट रेंज बालिस्टिक मिसाइलें हैं। इनकी मारक क्षमता 2000 से 5000 किलोमीटर है। अग्नि-5 भारत की पहली अंतर महाद्विपीय यानी इंटरकॉन्टिनेंटल बालिस्टिक मिसाइल है। यानी आज के बाद भारत की गिनती उन 5 देशों में होगी जिनके पास है इंटरकॉन्टिनेंटल बालिस्टिक मिसाइल यानी आईसीबीएम. भारत से पहले अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन ने इंटर-कॉन्टिनेंटल बालिस्टिक मिसाइल की ताकत हासिल की है।
अग्नि-5: मध्यम दूरी का बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र, रेन्ज 700.1250 किलोमीटर (परिचालन)। अग्नि 2: मध्यवर्ती दूरी का बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र, रेन्ज 2000.3000 किलोमीटर (परिचालन)। अग्नि-3 मध्यवर्ती दूरी का बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्रए रेन्ज 3500.5000 किलोमीटर (परिचालन), अग्नि-5 मध्यवर्ती दूरी का बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र रेन्ज 3000.4000 किलोमीटर (परीक्षण), अग्नि-5 अंतरमहाद्विपीय बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र रेन्ज 5000.8000 किलोमीटर (परीक्षण), अग्नि-6 अंतरमहाद्विपीय बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र रेन्ज 8000.10000 किलोमीटर (विकास के तहत)
प्रकार ः (अग्नि-1) मध्यम दूरी का बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र। (अग्नि-2,अग्नि-3,अग्नि-4) मध्यवर्ती दूरी का बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र। (अग्नि-5) अंतरमहाद्विपीय बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र।
निर्माता ः रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, भारत डाईनामिक्स लिमिटेड
इकाई लागत ः 25 करोड़ से 50 करोड़
निर्दिष्टीकरण ः वजन: 12000 किलो (अग्नि-1), 16000 किलो (अग्नि-2), 48000 किलो (अग्नि-3), 17000 किलो (अग्नि-4), 50000 किलो (अग्नि-5)
लंबाई ः 15 मीटर (अग्नि-1), 21 मीटर (अग्नि-2), 17 मीटर (अग्नि-3), 20 मीटर (अग्नि-4), 17.5 मीटर (अग्नि-5)
व्यास ः 1 मीटर (अग्नि-1, अग्नि-2), 2 मीटर (अग्नि-3, अग्नि-4, अग्नि-5)
वारहेड ः सामरिक परमाणु (1 टन से 1.5 टन), पारम्परिक एकात्मक, गोला-बारूद, ज्वलनशील वायु विस्फोटक
इंजन ः एकल चरण (अग्नि-1), दो और अर्ध चरण (2 )) (अग्नि-2), दो चरण (अग्नि-3) ठोस प्रणोदक इंजन, तीन चरण ठोस ईंधन (अग्नि.4 ,अग्नि.5 )
परिचालन सीमा ः 700.1200 किलोमीटर (अग्नि-1), 2000.3000 किलोमीटर (अग्नि-2), 3500.5000 किलोमीटर (अग्नि-3), 3000.4000 किलोमीटर (अग्नि-4), 5000 .8000 किलोमीटर (अग्नि-5)
उड़ान ऊंचाई ः 300 किलोमीटर (अग्नि-1), 230 किलोमीटर (अग्नि-2), 350 किलोमीटर (अग्नि-3) 800 किलोमीटर (अग्नि-4), 850 किलोमीटर (अग्नि-5),
मार्गदर्शन प्रणाली ः रिंग लेजर गायरो आईएनएस (इनरसीयल नेविगेशन प्रणाली), वैकल्पिक जीपीएस द्वारा संवर्धित टर्मिनल मार्गदर्शन संभव रडार दृश्य सहसंबंध के साथ।
प्रक्षेपण मंच ः 8ग8 टाट्रा ज्म्स्।त् (ट्रांसपोर्टर निर्माता लांचर) रेल मोबाइल लांचर।
सेंट मार्ग्रेट इंजीनियरिंग कॉलेज, नीमराना जिला-अलवर (दिल्ली-जयपुर हाईवे), राजस्थान,
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