कॅरियर


फिशरीज साइंस

संजय गोस्वामी

फिशरीज साइंस कृषि विज्ञान का महत्वपूर्ण क्षेत्र है फिशरीज साइंस अध्ययन का मूल उद्देश्य जल के वैज्ञानिक एवं व्यावसायिक प्रबन्धन और फिशरीज उत्पादन की कार्यप्रणाली की समझ प्राप्त करना है। फिशरीज विज्ञान में शिक्षा प्राप्त विद्यार्थियों के लिऐ देश विदेश में रोजगार के अनेक अवसर खुले है फिशरीज में स्नातक छात्र फिश फार्म मैनेजर, हैचरी मैनेजर, मत्स्य प्रसंस्करण, बहुरंगी मछली प्रजनन-पालन इत्यादि क्षेत्रों में कार्य कर सकते हैं। इन क्षेत्रों के अलावा स्नातकोत्तर उपाधी प्राप्त छात्र मत्स्य अनुसंधान,परियोजना प्रबन्धन, मत्स्य सूचना प्रौद्योगिकी, मत्स्य सलाहकार सेवा, जल पारिस्थितिकी एवं गुणवत्ता विशेषज्ञ इत्यादि क्षेत्र में कार्य एवं स्वरोजगार प्राप्त कर सकते हैं। फिशरीज में स्नातक एवं स्नातकोत्तर योग्यता धारी युवाओं को राज्य एवं अन्य सरकारों द्वारा संचालित मत्स्य विभागों में सहायक एवं मत्स्यविकास अधिकारी के पदों पर भी नियुक्ती मिल सकती है। फिशरीज में स्नातकोत्तर एवं पी.एच.डी। शिक्षाधारकों के लिये कई मत्स्य अनुसंधान संस्थानों, सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रेकिश वाटर एक्वाकल्चर, चैन्नई, केन्द्रीय अन्तरस्थलीय फिशरीज अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर एनआईओ, गोवा सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज नॉटीकल एण्ड इंजीनियरिंग ट्रंेनिंग, कोच्ची, ए नेशनल रिसर्च सेन्टर फॉर कोल्ड वाटर फिशरीज, भीमताल में वैज्ञानिक एवं अनुसंधान अधिकारियों की भर्ती प्रतियोगी परीक्षाओं द्वारा की जाती है। फिशरीज में शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी कई नेशनल एवं प्राईवेट सेक्टर के बैंकों में प्रशिक्षु एवं कृषि ऋण अधिकारी के पदों पर समुचित प्रक्रिया द्वारा नियुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। मछली पालन दुनिया के सबसे अच्छे व्यवसाय और उद्योग में से एक है। आप मत्स्य पालन में बीएससी या एमएससी या मत्स्य पालन या एक्वाकल्चर में बीएफएससी या एमएफएससी या देश के विभिन्न मत्स्य पालन कालेज में कर सकते हैं। मत्स्य पालन में अवसरों की कोई कमी नहीं है। सरकार और निजी विभाग में बड़ी संख्या में रिक्तियां हैं।

क्षेत्र 

आज, दुनिया भर में समुद्री मछली पकड़ने में लोग जुटे हैं जिस विषय मैरीन फिशरीज के नाम से जाता है आज मछली की खपत की दर बढ़ जाती है, इसलिए मत्स्य पालन व एक्वाकल्चर के क्षेत्र में भविष्य में एक सुनहरा अवसर है। भारत में कई शोध संस्थान हैं जैसे सीएमएफआरआई, सीआईबीए, सीआईएफए, एनएफडीबी, एन आईओ आदि। जहां मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर सेक्शन पर शोध कार्य किया जाता है इसलिए इस क्षेत्र में रोजगार के बहुत उजले अवसर विद्यमान हैं। फिशरीज साइंस कृषि विज्ञान की ऐसी शाखा है जिसमेंे जल एवं जलचरों से सम्बन्धित अनेक विषयों का समग्र अध्ययन किया जाता है। फिशरीज विज्ञान के अंतर्गत मछलिया का अध्ययन, बहुरंगी मछलियों का रखरखाव, जलकृषि, जलजीव शाला एवं अतंःस्थलीय जल स्रोतों व समुद्र  में प्रगृहण मत्स्यकी, जालों एवं नावों का निर्माण व रखरखाव, सामुद्रिकी, मत्स्य प्रजनन, मत्स्य प्रौद्योगिकी एवं मत्स्य उत्पादों का प्रसंस्करण निर्यात इत्यादि विषयों का अध्ययन एवं अनुसंधान किया जाता है। इन विषयों में जीव विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान, गणित, अर्थशास्त्र प्रबन्धन, सामाजिक विज्ञान इत्यादि मूल विषयों का समायोजन रहता है। मछली शल्कों वाला एक जलचर है जो कि कम से कम एक जोडा पंखों से युक्त होती है। मछलियाँ मीठे जल - स्त्रोतों और समुद्र मे बहुतायत मे पाई जाती हैं। समुद्र तट के आसपास के इलाकों में मछलियाँ पोषण का एक प्रमुख स्रोत हैं। कई सभ्यताओं के साहित्य, इतिहास एवं उनकी  संस्कृति में मछलियों का विशेष स्थान है। इस दुनिया में मछलियों की कम से कम 28ए700 प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें अलग अलग स्थानों पर कोई 2ए28ए000 भिन्न नामों से जाना जाता हैं। मछली किसानों के अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारतवर्ष में लगभग दस मिलियन लोगों का जीवनयापन मछली पालन पर निर्भर करता है। मछली पालन से छोटे औरं मझोले किसानों को  लगभग 25 प्रतिशत आय प्राप्त होती है। मछली पालन 1ध्3 गाँव की आबादी का जीवन यापन का सहारा बनती है। यह भारत वर्ष में दस प्रतिशत लोगों को रोजगार प्रदान करती है।
मछली का उल्लेख अनेक परिकथाओं तथा प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। प्राचीन काल में अनेक ऐसे लोकगीत गाए जाते थे जिनमें मछली के प्रति प्यार तथा कृतज्ञता का उल्लेख है। मत्स्यावतार के आज की मछलियों के सगे-सम्बंधी चालीस करोड़ वर्ष पहले अवतरित हुए थे। ये आदि-मत्स्य गोल मुँहों वाले थे और इनके शरीर पर मजबूत जबड़े और पतवारनुमा पंख नहीं थे। समुद्र के पेंदे पर धीरे-धीरे रेंगते, तैरते हुए वे कृमियों, घोंघों और केकड़ों को खाते थे। पीठ में रीढ़ थी और शरीर की बाहरी सतह पर शल्कों का मजबूत कवच था। इसके अतिरिक्त उपास्थियों (कार्टिलेज) या अस्थियों (हड्डी) से बना कंकाल भी था। इस कंकाल से मांसपेशियों को सहारा मिलने के कारण तेजी से गति करना संभव हो पाता था। मुँह से जल लेकर उसे वे पेशियों की शक्ति से गलफड़ों के छिद्रों से बाहर निकालते थे। इन गलफड़ों के द्वारा जल से ऑक्सीजन लेकर उसे प्रभावी ढंग से रक्त में पहुँचाया जाता था। मुँह से अच्छी तरह काटने और तेज गति करने की क्षमता काफी फायदेमंद थी। इसके लिए जैव विकास के दौरान गलफड़ों को सहारा देने वाले कंकाल का रूपांतरण होकर आधुनिक कशेरुकी जंतुओं के जबड़े बन गए और कंकाल की अन्य उपास्थियों, अस्थियों का रूपांतरण कंधों और कूल्हों के कंकाल में हुआ और चलने के लिए दो जोड़ी अंग बने। मछलियां अपने इन दो जोड़ी प्रचलन अंगों यानी पंखों का उपयोग पतवारों के रूप में करती हैं। ऐसे आधुनिक रूप वाली, किंतु आदिम मछलियों से काफी समानता रखने वाली मछलियां हैं शार्क की सहोदर रे मछलियां। तश्तरी जैसे चपटे और 25 सेंटीमीटर से लेकर सात मीटर तक के आकार की इन रे मछलियों की 580 प्रजातियां हैं। मेजन लैश ईटर्स - नाम की मछली अफ्रीकन मछली इंसान को निगल सकती है। अफ्रीका की कांगो नदी में पाई जाने वाली कांगो किलर के खतरनाक होने का अंदाजा इस बात से लगा सकते है  की  मछली  मछुआरों को ललचा कर उन्हें मौत की तरफ ले जाती है। यह जब हमला करती है, तो शरीर पर छुरा घोंपने जैसा निशान बन जाता है। पिरान्हा नाम की मछली के खतरनाक होने का अंदाजा इस बात से लगा सकते वर्ष 1976 में यात्रियों से भरी बस अमेरिका के अमेजॉन नदी में गिर गई और कई लोगों की जान चली गई, जब शवों को बाहर निकाला गया, तो उनमें से कुछ को पिरान्हा मछलियों ने इतनी बुरी तरह खा लिया था कि उनकी पहचान उनके कपड़ों से हुई। दुनिया में मछलियों की 29ए000 प्रजातियां में से केवल कुल 10 मछली की प्रजातियां  जैसे किलर कैटफिश, डीमन फिश, किलर स्नेकहेड, एलिगेटर गार, अमेजॉन असासिंस आदि समुद्र मे बहुतायत और जल मे में कम मात्रा में पाई जाती है  हालांकि मछली अधिकांश प्रजातियां समुद्र के पेंदे पर घोंघे और केंकड़े खाती हैं, किंतु सभी सफल जीव-समूहों के समान  मछलियां भी नए-नए आविष्कारों की सहायता से परिस्थितियों से तालमेल बनाते हुए बड़ी चतुराई से फैल गई हैं। आज, फिश एक्वेरियम व मछली स्पा उपचार भी नए तरह के रूप में एशिया के कुछ देशों में की जाती है। ठंडे पानी की मछलियां जैसे सरडीन, सालमोन, कोड, हेलीबुट, हेरिंग, ट्रॉट, टुना आदि ओमेगा-3 फैटी एसिड के स्रोत हैं। ओमेगा-3 की पर्याप्त खुराक लेने से तनाव, गुस्से और चिड़चिड़ेपन मे कमी आती है। बालों को घना व मजबूत बनाने के लिए भी ओमेगा थ्री महत्वपूर्ण है। इसे खाने से जोड़ों के दर्द की समस्या भी नहीं होती। इसका निर्माण शरीर खुद नहीं कर पाता इसलिए इसकी पूर्ति खाद्य पदार्थो से की जाती है। ज्यादातर मछली प्रजातियाँ जो एशिया में जापान, कोरिया, चीन, सिंगापुर और मलेशिया पाया जाता है। फिशरीज साइंस में मछलियां से सम्बन्धित जीव-समूहों का अध्ययन एवं अनुसंधान किया जाता है।
इस क्षेत्र के विकास के लिए सरकार विभिन्न संस्थाओं, विभागों, विश्वविद्यालयोंं के द्वारा निरन्तर प्रयासरत है। फिशरीज साइंस विज्ञान के स्नातक के लिए खड़ा है। यह एक नौकरी उन्मुख पाठ्यक्रम है जो सरकार के साथ-साथ निजी क्षेत्र में कई नौकरी के अवसर प्रदान करता है। इसके अलावा, छात्र स्वयं मत्स्य पालन से संबंधित व्यवसाय भी शुरू कर सकते हैं।

विभिन्न प्रकार के कोर्स

  • बैचलर ऑफ फिशरीज साइंस (बीएफएससी) - चार साल
  • बैचलर ऑफ साइंस (औद्योगिक मत्स्य पालन) - तीन साल
  • बीएससी (मत्स्य पालन) - तीन साल
  • बीएससी (एक्वाकल्चर) - तीन साल
  • मास्टर ऑफ फिशरीज साइंस  विज्ञान (एमएफएससी) - दो साल
  • मास्टर ऑफ साइंस (एमएससी एक्वाकल्चर) - दो साल
  • मास्टर ऑफ साइंस (एमएससी)  जैविक महासागरीय विज्ञान - दो साल
  • एम बी.ए.. हैचरी और मत्स्य प्रबंधन- दो साल

प्रवेश योग्यता 

फिशरीज साइंस में चार वर्षीय पाठ्यक्रम में प्रवेश हेतु अभ्यार्थी के पास विज्ञान विषय जैसे भौतिकी, रसायन विज्ञान, जैवविज्ञान, अथवा गणित, अथवा कृषि विज्ञान विषयों में न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों के साथ 10+2 की योग्यता होनी चाहिये। स्नातक (बी.एफ.एस.सी.) एवं एम.एफ.एस.सी। पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् वर्ष में एक बार (ए.आई.ई.ई.ऐ.) प्रतियोगी परीक्षा आयोजित करती है। एमएससी फिशरीज/एम.एफ.एस.सी। जो दो वर्षीय की है यह कोर्स में दाखिला हेतु - बीएससी फिशरीज साइंस/प्राणीशास्त्र/वनस्पति विज्ञान/रसायन विज्ञान/कृषि/माइक्रोबायो- लॉजी या एप्लाइड साइंसेज में स्नातक स्तर की पढ़ाई होना जरूरी है। फिशरीज शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में आई.सी.ए.आर। के कई संस्थान सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर, कोशल्यागंगा, सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज एजुकेशन, (डीम्ड यूनिवर्सिटी),  सेन्ट्रल मेरीन फिशरीज रिर्सच इंस्टीट्यूट, कोच्ची भी कार्यरत हैं। फिशरीज साइंस  कैरियर के कई रास्ते प्रदान करता है।

अवसर 

मत्स्य पालन को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से देश के विभिन्न राज्यों में मत्स्य विज्ञान में बीएफएससी का कोर्स चलाये जा रहें हैं सरकारी एजेंसियों, कृषि विभाग और केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफ- आरआई) जैसे संगठनों में  जिला मत्स्य विकास विकास अधिकारी (डीएफडीओ),  सहायक मत्स्य विकास विकास अधिकारी (एएफडीओ) मत्स्य पालन तकनीशियन,   मत्स्य पालन पर्यवेक्षक के पद पर काम कर सकते  हैं। इन संस्थानों की भर्ती संघ लोक सेवा आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन सेवा आयोग के माध्यम से होती है। अच्छे अनुसंधान कौशल रखने वाले लोगों के लिए, केन्द्रीय इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज टेक्नॉलॉजी (सीआईएफटी) और राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड जैसे शोध सहायक, जैव रसायनविद, जीवविज्ञानी, तकनीशियन इत्यादि जैसे संगठनों में रोजगार मिल सकता है। राज्य सरकार में, मत्स्यपालन के क्षेत्र मत्स्यपालन स्नातक सहायक मत्स्य विकास अधिकारी (एएफडीओ)/मत्स्य विस्तार विस्तार अधिकारी (एफईओ) और जिला मत्स्य विकास विकास अधिकारी के पद के लिए आवेदन कर सकता है। केंद्र सरकार की विभिन्न एजेंसियों में जैसे समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीईडीए), भारत के मत्स्य सर्वेक्षण (एफएसआई), एनआईओ, डब्ल्यूएचओ आदि में अवसर हैं। इस तरह के स्नातकोत्तर फार्म मैनेजर, हैचरी मैनेजर, फिशरी इंस्पेक्टर, एक्वा कल्टुरिस्ट, फिश एक्सपोर्टर, मरीन बायोलॉजिस्ट और मरीन साइंटिस्ट, फिश ट्रेडर, फिश ब्रीडर, हैचरी/फार्म प्रबंधक, फिशरीज एक्सटेंशन ऑफिसर/निर्यात प्रबंधक, मत्स्य विस्तार अधिकारी आदि पदों पर नियुक्ति होती है। निर्यात निरीक्षण एजेंसी (ईआईए), समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीईडीए), तटीय एक्वाकल्चर अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सीएए), फिशरीज सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई), भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई), भारतीय राष्ट्रीय महासागर केंद्र और सूचना सेवा, राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, पशुपालन और मत्स्य पालन विभाग, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, रक्षा, आदि संस्थान में टेक्निकल ऑफिसर, फीड मिल मैनेजर, प्रसंस्करण और उत्पादन प्रबंधक, मछली निर्यात निरीक्षक, वैज्ञानिक सहायक आदि पदों पर नियुक्ति होती है। बीएफएससी के उम्मीदवार के लिए  टाटा एग जेनरल इन्सुरेंस फिशरीज कॉलेज, रिसर्च इंस्टीट्यूट, फिश फार्मर्स डेवलपमेंट एजेंसी, कृषि विज्ञान केंद्र, राष्ट्रीयकृत बैंक, अंतर्राष्ट्रीय संगठन, एक्वैरियम, फिश फार्म, फीड मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स, फीड सेल्स डिपार्टमेंट, सजावटी मछली संस्कृति और प्रजनन केंद्र, हैचरी और बीज उत्पादन कंपनियां, वाणिज्यिक पर्ल उत्पादन उद्योग, मछली प्रसंस्करण और विपणन फर्म, नेट मेकिंग यूनिट, मछली रोग निदान केंद्र आदि संगठन में रोजगार पा सकते हैं। फिशरीज साइंस कैरियर के कई रास्ते प्रदान करता है। मत्स्यपालन स्नातक के उम्मीदवार के लिए मत्स्यपालन विभाग और राष्ट्रीयकृत बैंकों जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों में भी मत्स्यपालन अधिकारी, हैचरी/फार्म प्रबंधक, मत्स्य पालन प्रबंधक, हैचरी साइंटिस्ट  के रूप में काम करने का सुनहरा अवसर मिलता है। बीएफएससी प्रथम श्रेणी के उम्मीदवार के लिए  बीएआरसी में खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग में वैज्ञानिक सहायक पद पर रखे जाते हैं। मत्स्यपालन वैज्ञानिक के लिए हैचरी गतिविधियों का प्रबंधन और समन्वय, ओवरसीज क्वालिटी एश्योरेंस, मत्स्यपालन उपकरण की सुविधा रखरखाव और मरम्मत, झींगा जलीय कृषि की निगरानी व देखभालए कैच की हैंडलिंग और प्रोसेसिंग, पोत और मशीनरी का रख-रखाव, हैचरी और एक्वाकल्चर, मछली प्रसंस्करण, उत्पादन बजट की योजनाएँ महासागर जा रहे जहाजों और समुद्र किनारे की देखभाल प्रशिक्षित कर्मियों के लिए हैंडलिंग, प्रसंस्करण और विपणन, स्वच्छता की देख-रेख, कंपनी नीतियों की वर्तमान जानकारी, एक्वा कल्चर ट्रेंड और साप्ताहिक सीड स्टॉकिंग शेड्यूल पैकिंग दिशानिर्देशों का अनुपालनए मत्स्यपालन प्रोग्राम और हस्तांतरण गतिविधियों की भी जानकारी होनी चाहिए।

मुख्य विषय 

बी.एफ.एस.सी.-पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण विषय के रूप में वर्तमान में मछलियों का वर्गीकरण, पानी और मिट्टी रसायन, कीटाणु-विज्ञानए कम्प्यूटर विज्ञानएमत्स्य पालनए मछली एंडोक्रिनोलॉजी, जल निकाय नेविगेशन, रासायनिक समुद्रशास्त्र, हैचरी प्रबंधनए शेलफिश ब्रीडिंग,  हैचरी प्रबंधन मछलियों की जैव रसायन आंकड़े, समुद्री भूगोल, एक्वाकल्चर के सिद्धांत, अंक शास्त्र संचार कौशल, सुरक्षा और प्राथमिक चिकित्सा, औशेयनोग्रफ़ी, पर्यावरण विज्ञान, जलीय विज्ञान, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता, रेफ्रिजरेशन इंजीनियरिंग, शेलफिश का वर्गीकरण, फिनफिश और शेलफिश की फिजियोलॉजी, फिनफिश और शेलफिश जीवविज्ञान और शेलफिश की शारीरिक रचना,  जैविक समुद्रशास्त्र, खाद्य रसायन और पोषण प्रशीतन और रेफ्रिजरेशन, फ़ीड प्रौद्योगिकी, स्टॉक मूल्यांकन, फिश जेनेटिक्स एंड बायोटेक्नोलॉजी, सामान्य मछली रोग  का ज्ञानए जल प्रदूषण एक्वाकल्चर, सजावटी मछलियाँ, मछली पकड़ने की तकनीक, अर्थशास्त्र, कानूनी पहलू, कैनिंग और पैकिंग प्रौद्योगिकी, विपणन और परियोजना प्रबंधन, संयंत्र प्रबंधन, प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी, गुणवत्ता नियंत्रण और आश्वासन प्रबंधन, आदि महत्वपूर्ण विषय हैं उपर्युक्त सैद्धांतिक विषयों के अलावा, कौशल व्यावहारिक सत्र और अनुभव भी महत्वपूर्ण है।    

सैलरी

फिशरीज विज्ञान से जुड़े प्रोफेशनल्स की प्रारंभिक सैलरी 40-50 हजार रुपये महीना से लेकर पद और अनुभव के साथ 10 से 15 लाख प्रति माह भी हो सकती है। गवर्नमेंट सेक्टर की अनुसंधान प्रयोगशालाए, कृषि मंत्रालय में वैज्ञानिक/ मत्स्य अधिकारी के पद पर नियुक्त होते हैं, जिन्हे मासिक वेतन 60ए000/- 1ए00ए000/- रुपये तक मिलता है।   

प्रमुख संस्थान

  • असम कृषि विश्वविद्यालय जोरहाट, असम
  • उड़ीसा यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नॉलॉजी भुवनेश्वर, ओडिशा 
  • डॉ बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विद्यापीठ दापोली, महाराष्ट्र 
  • तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय चेन्नई, तमिलनाडु 
  • केरल कृषि विश्वविद्यालय त्रिशूर, केरल
  • अन्नामलाई विश्वविद्यालय, अन्नामलीनगर कुड्डालोर, तमिलनाडु
  • केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय -मणिपुर
  • चंद्रशेखर आजाद कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय नवाबगंज कानपुर उत्तर प्रदेश
  • मत्स्य पालन कॉलेज ऑफ साइंस  पूसा समस्तीपुर, बिहार
  • मत्स्य महाविद्यालय, कवर्धा  छत्तीसगढ़
  • कॉलेज ऑफ फिशरी साइंस, नागपुर  महाराष्ट्र
  • जलीय जीवविज्ञान और मत्स्य विभाग केरल विश्वविद्यालय, तिरुवनंतपुरम
  • हजारी पहद रोड, नागपुर (नागपुर जिला) - महाराष्ट्र
  • केरल विश्वविद्यालयः एक्वाटिक जीवविज्ञान और मत्स्यपालन विभाग, करियावट्टम, तिरुवनंतपुरम
  • केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान (सीआईएफई)  ओल्ड बर्मा शेल, बीच रोड, काकीनाडा आंध्र प्रदेश
  • केन्द्रीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान, मुंबई
  • मत्स्य इंजीनियरिंग कॉलेज, नागपट्टिनम, तमिलनाडु
  • मत्स्यपालन कॉलेज और अनुसंधान संस्थान, तिरुवल्लूर तमिलनाडु
  • सेंट्रल मरीन मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई), कोच्चि, पोस्ट बॉक्स संख्या 1603, एर्नाकुलम उत्तर पीओ, कोच्चि (एर्नाकुलम जिला) 
  • मत्स्य पालन और महासागर अध्ययन केरल विश्वविद्यालय  पीओ,, एर्नाकुलम (एर्नाकुलम जिला)

goswamisanjay80@gmail.com